मानव जन्म क्या
एक बुदबुदा है
और उसका जीवन
एक कर्म,
कर्म अपूर्व कर्म पर
जब यह कर्म
अधूरा रह जाता है
किसी के प्रति, तब
एक कसमसाहट
कुछ यंत्रणाएँ
असहनीय तड़प
अव्यक्त पीड़ा
मन मस्तिष्क
में लिए
वो बुदबुदा
नया रूप लिए
फिर आता है
क्यों क्या, का
कर्म पूरा करने को
या किसी को, कर्म में
सहभागी बनाने को
नहीं जानता, जीवन
तू अपने नाम
में पूर्ण है, लेकिन
आत्मा में पूर्ण नहीं
वो तुझसे कहीं परे
अपने विस्तार
को बढ़ाये हुए
होने पर
सिमटी है
तुझमें छिपी है
शायद तुझे
मान, सम्मान
यश देने को
उस की आवाज़ सुन
उस की बात गुन
उस के संस्कार चुन
तभी तू पूर्ण जीवन
कहलायेगा,
कहलायेगा
पूर्ण पुरुष, युगपुरुष...
--- तुषार राज रस्तोगी ---
.एक एक बात सही कही है आपने . आभार प्रथम पुरुस्कृत निबन्ध -प्रतियोगिता दर्पण /मई/२००६ यदि महिलाएं संसार पर शासन करतीं -अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस आज की मांग यही मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ . ''शालिनी''करवाए रु-ब-रु नर को उसका अक्स दिखाकर .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद् शालिनी जी |
हटाएंजीवन तू अपने नाम में पूर्ण है,
जवाब देंहटाएंलेकिन आत्मा में पूर्ण नहीं
वो तुझसे कहीं परे
अपने विस्तार को
बढ़ाये हुए होने पर
सिमटी है तुझमें छिपी है
शायद तुझे मान,
सम्मान यश देने को
उस की आवाज़ सुन
उस की बात गुन
उस के संस्कार चुन
तभी तू पूर्ण जीवन कहलायेगा,
कहलायेगा पूर्ण पुरुष, युगपुरुष.
नमन सार्थक अभिव्यक्ति को .....
किसी पुरुष की लेखनी से शब्द हैं ये अचम्भित कर गए ....
शायद भविष्य में महिला दिवस मनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी ....
शुभकामनायें .....
शुक्रिया अम्मा |
हटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंइस भावना को नमन !
आपका बहुत बहुत शुक्रिया |
हटाएंबहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण.
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति -
जवाब देंहटाएंVery nice philosophical verses !! keep it up!!
जवाब देंहटाएंNice philosophical verses!! Keep it up!!!
जवाब देंहटाएंआत्मा ही है ... शरीर तो नश्वर है .. पूर्णता का आभास आत्मा की सुनने पे भी नहीं होता ...
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