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शनिवार, जनवरी 02, 2016

इमोशनल फूल













कुछ अपने हुए नामाकूल
टॉक्स हैं इनकी जैसे शूल
माइंड में मतलब की चूल
अक्ल से हैं ये बैल से लूल
करें प्यार का टैक्स वसूल

भाड़ में जाएँ नियम उसूल
अपनेपन की बात फ़िज़ूल
अपने अपनों को देते हूल
पराये अब लगते जो कूल
पैसा बन गया आज रसूल

हिस्ट्री-फ्यूचर में रहे हैं झूल
प्रेजेंट में ये करते है डरूल
हसरत इनकी उल जुलूल
'निर्जन' कहते हैं ये सब से   
नही हैं ये इमोशनल फूल

भैया अपन भी गए थे भूल
सब हैं अपने में ही मशगूल
चढ़ी आज जज्बातों पर धूल
जीवन जीने का नया ये रुल
प्रक्टिकैलिटी में है अनकूल

#तुषारराजरस्तोगी #प्रैक्टिकल #इमोशनल #फूल

शनिवार, अगस्त 01, 2015

गुलाबो भैंस भाई सा













कुंठित सी भैंस भाई सा, देखी हमने ख़ास
सब पर करूँगी राज मैं, इत्तूसी है बस आस
इत्तूसी है बस आस, बात-बात में रमभाए
कुंठा इनकी देख, दुनिया यह त्रस्त हो जाए

कलयुग के बाज़ार में, दिखा विचित्र सा भेस
लगा गुलाबी रंग, झूमती फ़िरे गुलाबो भैंस
झूमती फ़िरे गुलाबो भैंस, बुद्धि कतई ना पाई
मंदमति वीरांगना ये, बस पूँछ हिलाती आई

सींग हैं अदृश्य इसके, घिनौना सोच विस्तार
माथे पर बस सजा रहे, बेचैनी का अम्बार
बेचैनी का अम्बार, विचलित हस्ती इसकी
ख़ुदा अक्ल दिलाए, बुद्धि कुंद हो जिसकी

परेशां औरों से रहती, ढूंढती सब में ख़ामी
धारणा बनाए रहती, करती सबकी बदनामी
करती सबकी बदनामी, जुबां कड़वी चलाए
सीधा सादा इंसान हो तो, बस पगला जाए

लोमड़ी सी है चालु, बकरी सी है दुखियारी
शातिर बड़ी गुलाबो, फैलती द्वेष की बीमारी
फैलती द्वेष की बीमारी, अजी सब बचके रहना
चक्कर में जो आए, फ़िज़ूल दुःख पड़ेगा सहना

देता 'निर्जन' ये टिप, भैंस भाई सा तुम लेना
मरखने जंगली बैल से, ज़रा बचकर ही रहना
ज़रा बचकर ही रहना, पड़ ना जाए पछताना
अपनी सोच का गोबर, अपने मुंह पर लगाना

#तुषारराजरस्तोगी  #गुलाबो  #हास्यव्यंग  #भैंसभाईसा  #नसीहत  #हैप्पीफ्रेंडशिपडे

मंगलवार, अप्रैल 14, 2015

शादी का चस्का



















शादी के पंडाल में, दी हमने एंट्री मार
देखा अपना यार तो, बैठा है पैर पसार
बैठा है पैर पसार, दुल्हन से नैन लड़ाए
साली देख क़रीब में, मंद मंद मुस्काए

गुम हो गई मुस्कान, ज्यूं साडू जी आए
बोले जीजा राम राम, कहाँ नज़र लगाए
कहाँ नज़र लगाए, सासू जी को बतलाऊं
फेरे पड़ने से पहले, नए रंग दिखलाऊं 

यार का उड़ गया रंग, मैंने ताड़के देखा
बन गए महाबली, पार कर लक्ष्मण रेखा
पार कर लक्ष्मण रेखा, पहुंचे यार के पास
मैं अब तेरे साथ हूँ, मत हो यार उदास

पाकर हमें समीप, हिम्मत दुल्हे ने जुटाई
फिर से नज़र उठा, साली की ओर लगाई
साली की ओर लगाई, साडू से बोला दूल्हा
बीवी संग साली आएगी, स्कीम मैं नहीं भूला

साडू से आँख मिलाई, कहा बुलाओ सासु
अभी हो जाए फैंसला, हम में कौन है धांसू
हममें कौन है धांसू, आस्तीन अपनी चढ़ाओ
सासुजी ही क्या, सभी घरवालों को ले आओ

देख साडू की रोती सूरत, ख़ूब हंसी उड़ाई
दुल्हन बैठी पास में, मन ही मन मुस्कुराई
मन ही मन मुस्कुराई, मान पति पर करती
जैसे को तैसा मिला, शान अब मेरी बढ़ती

मिला गामा पहलवान, जीजाजी खिसियाए
बात बदल बारातियों से, झेंप कर फ़रमाए
झेंप कर फ़रमाए, आइये जयमाला कर लें
सभी अपने हाथों को, इन फूलों से भर लें

पूर्ण हुई जय माला, दी सबने खूब बधाई
रिश्तेदारों ने फिर, खाने पर दौड़ लगाई
खाने पर दौड़ लगाई, हाय ये मारा-मारी
भोजन के सामने, भूल गए हर रिश्तेदारी

निपटा कर भोजन, सबने फिर दौड़ लगाई
फेरों की तैयारी में, भागी साली औ भौजाई
भागी साली औ भौजाई, दूल्हा-दुल्हन लाओ
खेलेंगे दूसरी पारी, टी ट्वेंटी का मैच बनाओ

प्रथम चरण में दूल्हा, द्वितीय में दुल्हन आगे
बेचारा ऐसे ही, उम्र भर बीवी के पीछे भागे
उम्र भर बीवी के पीछे भागे, ये नाच नचाए
हर बात पर देखो, ये नखरे वखरे दिखलाए

चूहे बिल्ली सा खेल, असल अब होगा चालू
कभी बनेगा ये शेर, कभी बन जायेगा कालू
कभी बन जायेगा कालू , इसकी शामत आई
जीवन के इस शो में, सदा रहेगी आगे भौजाई

हुआ शुरू शो असली, टॉम एंड जेरी का देखो
रंग-बिरंगा देख तमाशा, प्यार के सिक्के फेंको
प्यार के सिक्के फेंको, चस्का ऐसा 'निर्जन' यार
जो पाले वो तड़ीपार और जो ना पाले वो बेकार

--- तुषार रस्तोगी ---

सोमवार, अप्रैल 13, 2015

फेसबुकिया आशिक़

कल एक फेसबुक मित्र के साथ एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण मेरा दिल यह रचना लिखने के लिए विवश हो उठा। मैं पहले तो कुछ संजीदा और उपदेशात्मक बनाकर कहने की सोच रहा था क्योंकि मुद्दा बड़ा ही गंभीर था और नारी के मान-मर्यादा से भी जुड़ा था। परन्तु फिर मैंने इस बात को बड़े ही सहज रूप से प्रस्तुत करने का विचार बनाया क्योंकि जैसे मेरे ज़्यादातर मित्र मेरी आदत से वाकिफ़ हैं मुझे बातों को पेचीदा बनाकर पेश करने में ज़रा भी मज़ा नहीं आता और ना ही बड़े-बड़े जटिल अल्फाज़ों और लफ़्ज़ों को पढ़ने का कोई शौक़ रहा है और ना ही दूसरों को पढ़ाने में कोई लुत्फ़ आता है तो सोचा इस बार भी अगर जूता मारना ही है तो क्यों ना हास्य की चाशनी में लपेटकर, हंसी की तश्तरी में सजाकर परोसा जाए। तो हाज़िर है जनाब-ए-आली आप सबके सामने एक आचार संबंधी, विचारशील मुद्दे पर, लिखी मेरी अपरिहासी और विचारवान रचना। आशा है मेरी कोशिश कुछ तो रंग लाएगी। एक नवचेतना का आगाज़ कर कुछ ख़ास खारिश-खुजली वाले वर्ग के लोगों में आत्मज्ञान का एक नया सूर्योदय कर पायेगी। शायद इसे पढ़कर उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाए, उनकी आत्मा चित्कार कर उन्हें धिक्कारे और वो सही राह पर आ जाएँ। ऐसी उम्मीद के साथ प्रस्तुत है :














देखो मित्रों, बला सरनाम
फेसबुक है, जिसका नाम
कायरों को, मिला वरदान
आते हैं सब वो, सीना तान

अकाउंट बना, मारें वो एंट्री
प्रोफाइल ऑफ़, हाई जेन्ट्री
छोड़-छाड़ के, अपना काम
चिपके हैं सब, सुबहों-शाम

देखी लड़की, दिल लो थाम
रिक्वेस्ट भेजो, करो सलाम
आशिक़ी का, नया आयाम
भेजो मेसेज, हो गया काम

छुरी बगल में, मुंह में राम
शोशेबाज़ी है, इनका काम
ओछापन कर, हैं बदनाम
आवारा छिछोरे, घसीटाराम

बनते हैं, दर्द-ए-दिल का बाम
पढ़ते हैं झूठा, इश्क़ कलाम 
इनबॉक्स में, करते हैं मैसेज
मंशा रख, क्लियर हो पैसेज

रेस्पोंस में जब, खाते ये जूती
नर्वसनेस में, बज जाती तूती
देख बिदकते, अपना अंजाम
पीठ दिखा, भग जाते ये आम

पोक की कोक, है इनको भाती
इनकी दुनिया से, भिन्न प्रजाति
बेहया बेशर्म, ये लिप्सा के मारे
सूतो इन्हें, दिखाओ दिन में तारे

'निर्जन' सुनो, हर ख़ास-ओ-आम
आरती उतार, दो नेग सरेआम
ब्लाक करो, औ बेलन लो हाथ
करो धुनाई, दो इनको सौगात

लातों के भूत, बातों से ना माने
तार दो बक्खर, लगो लतियाने
उधेड़ने पर ही, शायद ये माने
मजनू के भाई, लैला के दीवाने

--- तुषार रस्तोगी ---

गुरुवार, जनवरी 22, 2015

खुजलीमैंन एंड पार्टी













दिल्ली के चुनावों में, लो नौटंकी सजाए
खुजली मैंन मौकापरस्त, रायता फलाए

मफलर, टोपी, चश्मा ये, धारण कर आए
गाल बजा बजाकर, नित नए गान सुनाए

मानहानि जोड़ कर, ग्यारह केस बनाए
करोड़ो की पूँजी में, इत्तू सा लौस दिखाए

लोकसभा के लालची, लार सदा टपकाए
बिन सबूत दूजे पर, इलज़ाम ख़ूब लगाए

भ्रष्टाचार का बाजा, हरदम ख़ूब बजाए
भ्रष्टाचारी आप ही, धुल में लठ हिलाए

स्वराज-लोकपाल की, धज्जियाँ उडाए
पागल थी जनता जो, घर यूँ ही लुटवाए

चंदापार्टी ख़ूब है, झट सेक्युलर बन जाए
दुबई जा शेखों से, माया झोली में पाए

इरादा क्या खूब है, लोमड़ माइंड फरमाए
भोली जनता को, बीस हज़ारी डिनर कराए

पांच सौ में सेल्फी, साथ जो चाहे खिंचवाए
आम आदमी बन, गोरख धंधा खूब चलाए

बेशर्मी के पेंच ये हरदम, ऊँचे खूब उड़ाए
26/11 के नाम पर चंदा, कैसे मांगे जाए

टिकट लेने जो गए, पहले जेब ढ़ीली कराए
मूर्ख बना ऐसों को, ऊँगली पर खूब नचाए

लंपट बाबा खुद को, बस कॉमन मैंन बताए
बिज़नेस क्लास में कैसे, फिर ये मौज उड़ाए

बाबा ड्रामेबाज़ है, नित नए खेल रचाए
माया पाने के लिए, भिखमंगा बन जाए

चुनाव निकट देख कर, युक्ति नई लगाए
मुंह मुखौटा लाद ये, हाथ जोड़ दिखलाए

झाड़ू टोपी धार कर, गली गली चिल्लाए
मैं युगपुरुष महान हूँ, वोट मुझे ही आए

बुलेट हाथ थमाए के, कार्यकर्ता बनाए
एवज़ में नेता जी, प्रचार अपना करवाए

प्रचार के नाम पर, ये भूखे पेट घुमाए
गिलास भर पानी को, बंदा तरसा जाए

नीतियाँ खोटी इनकी, इनको ही सुहाए
विरोध होता देख कर, भृकुटी तन जाए

बेवक़ूफ़ है वो जो, साथ इनका निभाए
लात ये धरे हैं, जो मतलब निकल जाए

खुदगर्जों की जमात है, चूना खूब लगाए
दिल्लीवासी को 'निर्जन', प्रभु जी ही बचाए

--- तुषार राज रस्तोगी ---