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शनिवार, सितंबर 14, 2013

हिंदी को प्रणाम















आता है साल में एक बार
कहते जिसे 'हिंदी दिवस'
क्यों इसे मनाने के लिए
हम सभी होते हैं विवश

हिन्द की बदकिस्मती
हिंदी यहाँ लाचार है
पाती कोई दूजी ज़बां
यहाँ प्यार बेशुमार है

काश! हिंदी भी यहाँ
बिंदी बनकर चमकती
सूर्य की भाँती दमकती
अँधेरे में ना सिसकती

आओ मिलकर लें अहद
हिंदी को आगे लायेंगे
अपनी मातृभाषा को हम
माता समझ अपनाएंगे

शर्म न आये किसी को
अब हिंदी के उपयोग में
मान अब सब मिल करें
हिंदी के सदुपयोग में

हाथ जोड़े करता वंदन
'निर्जन' हिंदी भाषा को
अर्जी है हम आगे बढ़ाएं
राष्ट्रभाषा, मातृभाषा को