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मंगलवार, अक्टूबर 29, 2013

अनजाने जाने पहचाने चेहरे

चेहरा बेशक अनजान था पर दिल शायद अनजान नहीं था । टोटल ज़िन्दगी देने वाला और मुर्दे में जान फूँक देने वाले नयन नक़श थे । 

आज मेट्रो में कहीं से आ रहा था । मेट्रो को वातानुकूलक यंत्र यानी एअर कंडीशनर का शीत माप चरम पर था । खिडकियों पर ओस की तरह भाप जमी साफ नज़र आ रही थी । काफी लोग जिन्होंने या तो आधी बाज़ू के कपड़े पहन रखे थे या जो ज़रुरत से ज्यादा फैशन परस्त थे ठण्ड के कारण सिकुड़े जा रहे थे । भीड़ ठीक ठाक थी । आने वाले त्यौहार की गर्मी इस ठन्डे डिब्बे में रौनक बनकर छा रही थी । मैं भी थोड़ी बहुत ठण्ड बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि अभी अभी बीमारी से दुआ सलाम कर के दुनिया के मैदान में हाज़िर हुआ था । सोचता था के कहीं दोबारा से रामा-शामा की नौबत न आ जाये।

मैं मस्ती से अपने नए मोबाइल पर कानो में हेडफोन लगाये 'होब्बिट्स' नामक फिल्म के रोमांच का आनंद प्राप्त करने में व्यस्त था कि तभी उस स्टॉप से एक बेहद सादी, मनोरम, सुन्दर सी लड़की डब्बे में चढ़ी और मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई । उसको एक बार नज़र उठा कर देखा फिर मैं अपनी फिल्म देखने में मशगूल हो गया । पर कुछ ही पल बाद दिल फिल्म की जगह उसे देखने को कर रहा था तो एक बार फिर से निगाह उठा कर उसका दीदार किया । कमाल की थी वो । सच ! इतनी आकर्षक लड़की अक्सर कम ही देखने को मिलती है । ऐसा चेहरा जिससे देख कर दिल गार्डन नहीं साला तुरंत ईडन गार्डन हो गया । एक दम साधारण होकर भी बहुत असाधारण थी । पर हम भी कौन सा कम हैं अपनी आदत से मजबूर, मेरा अंदरूनी अवलोकन यंत्र शुरू हो गया अर्थात मैं उसका चेहरा, हाव भाव, बैठने के तरीके और शारीरिक भाषा को पढ़ने का प्रयास करने लगा । दरअसल मुझे लोगों का बहुत ही बारीकी से निरूपण करना अच्छा लगता है । उन्हें पढ़ना और उनकी हरकतों से खुद को वाकिफ करना बेहद रोचक रहता है ।

वो बेहद सादा पहनावा नीली डेनिम की जीन्स पर, सफ़ेद टी-शर्ट, कानो में बड़ी गोल बालियाँ, माथे पर पसीने की कुछ बूँदें, कलाईयों पर  हल्का रुआं और टाइटन की सुनहरे डायल वाली घडी के साथ पैरों में कानपुरी चप्पल पहने थी । भीनी भीनी महक वाला डीओ भी अच्छा लगा रखा था । हल्का इवनिंग मेकअप, आईलाइनर, और खुले हुए बालों के बीच उसका चमकता साफ़, गोरा, सुन्दर, चंचल चेहरा और उस पर भूरी आँखें ऐसे झाँक रही थी मानो सागर में से कोई छोटी लहरें बहार आने को बेताब हो रही हो । महीन सी छिदी हुई नाक और बारीक लकीर जैसे उसके होंठ | तौबा ऐसी सुन्दरता को देख कौन न फ़िदा हो जाये । मैं तो सच देखता ही रह गया था । एक हाथ में मोबाइल फ़ोन और दुसरे में कुछ फइलें । सबसे कोने वाली सीट पर बैठी उसकी उदासी उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी । ऐसा लगता था मानो ज़िन्दगी की जंग हार के बैठी हो । डबडबाती आँखों में उमड़ते सैलाब को थामने का जतन करती वो अपने अगल बगल नज़रें झुकाए बार बार देखती फिर अपनी मोबाइल की स्क्रीन पर देखती और चुप चाप हथेलियों से नम आँखें पोंछ लेती । हजारों सवाल थे उसकी मासूम आँखों में और शायद कितनी ही शिकायतें रही होंगी उन कपकपाते होटों पर जिन्हें वो धीरे से बार बार दांतों के बीच दबाती और अपने में बुदबुदाकर धीरे से धक् करके रह जाती। उसको देखकर दिल में बस एक ही ख्याल आता था कि - "आँख है भरी भरी और तुम ठीक होने का दिखावा करती हो, होठ हैं बुझे बुझे और तुम मुस्कराहट का तमाशा करती हो" । 

मैं लगातार उसको बड़े ही गौर से पढ़ने की कोशिश कर रहा था । वो बार बार इधर उधर देखती, मेरी तरफ देखती, फिर घुटनों पर घुटने चढ़ा कर बैठती और कुछ मिनट के बाद अपने बैठने का तरीका बदल लेती या फिर टांगें बदल लेती । कभी अपनी फ़ाइल तो कभी मोबाइल को सँभालने में लग जाती । लगता था के जैसे या तो बहुत गहन उधेड़ बुन में है या फिर कहीं पहुँचने की बेहद जल्दी है । लगातार बार बार हर दफा अपने पैरों के अंगूठों को आगे पीछे करना, उसका उँगलियों को सिकोड़ना, हाथों की उँगलियों को बार बार हथेली से दबाना और फिर गर्दन का झटकना साफ़ इशारा करता था के उसके दिल में उथल पुथल चल रही थी । वो कुछ सोच रही थी पर निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रही थी । जो भी था उसके भीतर बहुत ही दर्दनाक और तकलीफ़देह था क्योंकि इतनी भीड़ में भी वो एक दम गुमसुम, अकेली, तनहा और अनजान नज़र आ रही थी । उसकी कालाईयों पर खड़े रोंगटे नए अंकुरित पौधे की भाँती सर उठा कर मानो ऐसे सवाल कर रहे थे कि आगे क्या होगा ? हमारा ख़याल कौन करेगा ? पता नहीं वो डर से था या फिर फ़िक्र से ?

इस सब के बीच उसकी नज़रें कई बार मेरे से मिलीं और हर बार उसने ऐसे देखा जैसे बात करना चाहती हो । वो जानती थी और समझ रही थी मैं उसे बहुत देर से देख रहा हूँ । उसकी एक एक हरकत पर मेरी निगाह है । उसकी नज़रें सवाल कर रही थी ? क्या है ? ऐसे क्यों पढने की कोशिश कर रहे हो मुझे ? क्या पूछना चाहते हो ? रहने दो मत देखो ? मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो ? प्लीज़ । उसने लपक कर मुझे नज़रन्दाज़ करने की बहुत कोशिश की पर शायद वो भी जान गई थी के जो सामने है वो उसको लगातार पढ़ने की कोशिश कर रहा है । उसने अपने भावों को और हरकतों को छिपाने की बहुत कोशिश की पर कामयाबी हासिल ना कर सकी । उसकी उन भूरी और दिल से बात कहने वाली आँखों ने सभी राज़ फ़ाश कर दिए । दिल का विरानापन चेहरे पर दस्तक देता नज़र आता रहा और वो हर लम्हा अपने अकेलेपन से लड़ती रही दूसरों की नज़रों से बचाकर।

कुछ समय बीता और उसका स्टॉप आ गया । वो उठी और गेट की तरफ आगे बढ़ी । मैं भी उसको एक टक देखता जा रहा था । सोच रहा था के काश! इसकी जो भी परेशानी है दूर हो जाये । इसके दिल में जो भी ग़म हैं वो सब फनाह हो जाएँ । इतने सुन्दर चेहरे पर सिर्फ मुस्कान ही अच्छी लग सकती है उदासी, ग़मज़दा तन्हाई और मायूसी नहीं । मैं फिर भी शीशे से परे उसको एकटक देखता रहा । फिर उसने अचानक एक दफा पीछे मुड़कर देखा और मेरी तरफ देखती रही । उसका मुड़कर देखना ऐसा था जैसे वो मेरे से सवाल करना चाहती हो तुम क्या जानना चाहते हो ? मेरे लिए ऐसे परेशान क्यों हो ? आखीर क्या पूछना चाहते हो ? क्या हम बात कर सकते हैं ? फिर अचानक प्लेटफार्म आया, दरवाज़े खुले और वो उतर गई । कुछ देर ऐसे ही खड़े खड़े मेरी ओर देखती रही फिर मेट्रो के दरवाज़े बंद होते ही लिफ्ट की ओर बढ़ गई ।

कभी कभी जीवन में ऐसा भी होता है कि बिना कहे भी किसी अनजान से आप इतनी बातें कर लेते हैं जितनी शायद आप किसी से बोल कर भी और समझ कर भी नहीं कर पाते । ईश्वर ऐसे खूबसूरत चेहरों के दिल को सुकून दे । ऐसे माहताबी, रौनक लगाने वाले चेहरों को रोने और उदास होने का कोई हक नहीं है । मेरी बस इतनी सी इल्तज़ा है लड़की की जो भी मुश्किलें हों वो दूर हो जाएँ । वो सिर्फ़ और सिर्फ़ हंसें, खिलखिलाएं, मुस्कुराएँ, नफासत बरसायें और दूसरो के जीने की प्रेरणा बन जाएँ । उनका काम बस यही होना चाहियें सुन्दरता को कभी रोना नहीं चाहियें । ऐसा मेरा सोचना है औरों से मुझे कुछ लेना देना है वो क्या सोचते हैं । 

खुदा आगे भी मुझे ऐसे ही सुन्दर और अविस्मृत चेहरों के नज़ारे देखने को मिलते रहें ।  आमीन 

शुक्रवार, जुलाई 05, 2013

एक मुलाकत 'सच्चे बादशाह' के साथ

















अभी हाल ही में अमृतसर जाने का अवसर प्राप्त हुआ | अगर दुसरे शब्दों में बयां करूँ तो अचानक ही बैठे बैठे 'दरबार साहब- हरमिंदर साहिब' से बुलावा आ गया | तो बस उठे और चल पड़े कदम 'वाहे गुरु' को सीस नावाने | 'दरबार साहब' के समक्ष अपने को जब खड़ा पाया तो एह्साह हुआ के जीवन में सब कुछ कितना छोटा है, बेमानी है और मिथ्या है | कुछ एक ऐसी परिस्थितियां जिनमे इंसान अपने को कमज़ोर महसूस करने लगता है, हालातों का गुलाम होने लगता है और उस पर एक नकारात्मक सोच काबिज़ होने लगती है ये सब 'हुज़ूर साहब' के सामने कुछ भी नहीं हैं | उनके दर्शन करते ही एक नई स्फूर्ति, नया जोश, नई सोच, नया विश्वास, नई उमंग, नए विचार और जीवन संतुलन के प्रति नया दार्शनिक नजरिया उनके आशीर्वाद से आपके समक्ष दिव्यज्योति बन कर आपके आसपास के वातावरण को प्रकाशित करता है और जीवन जीने की नई शक्ति प्रदान करता है | 'सच्चे बादशाह' के दरबार के कोई कभी खाली हाथ नहीं जाता | मैंने भी अपने जीवन के कुछ क्षण उनके साथ वार्तालाप करने में और 'श्री गुरु ग्रन्थ साहिब' के दर्शन करने में व्यतीत किये और उनका जो जवाब मुझे मिला वो मैं आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ | मुझे लगा उन्होंने मेरे सवालों के जवाब कुछ इस प्रकार से दिए : 

पुत्र 
अपनी भटकन 
मुझे 
क़र्ज़ रूप में 
ही दे दो 
अपने 
मन मस्तिष्क 
का वो शून्य 
जिसमें तुम खो कर 
अपने आप को 
अस्तित्वहीन सा 
पाते हो 
जीवन की एक
गौरव भरी 
सजीव शक्ति 
उस क़र्ज़ के बदले 
मैं तुम्हे देता हूँ 
जिस को 
स्वीकारने पर 
तुम स्वयं 
एक नई दिशा 
बनाओगे 
चेतना स्फूर्ति
कर्म भरा जीवन 
तुम पाओगे 
एक निश्चित धरातल 
जिसमें भटकन का 
कोई स्थान नहीं होगा 
सिर्फ
अथाह कर्म का सागर 
यश और 
समृद्धि का एक रत्न 
उज्जवल आकाश 
निर्मल धारा
सूर्या का तेज 
चन्द्र की शीतलता 
तब तुम्हारा मेरा ऋण
पूरा होगा 
एक कुशल 
व्यापारी की भांति 
हम एक दुसरे के 
सच्चे मित्र होंगे

बस इतना सा कहा उन्होंने मुझसे और मैं माथा टेक कर उनका शुक्रिया अदा कर मुस्कराता हुआ उनसे मिलकर प्रसादी और लंगर  ग्रहण कर वापस चला आया | 

वाहे गुरु जी दा खालसा, वाहे गुरु जी दी फ़तेह | जो बोले सो निहाल 'सत श्री आकाल' | 

जैसे गुरु साहब ने मेरे ऊपर मेहर रखी वैसे ही सभी पर कृपा करते हैं | 

शुक्रवार, मार्च 15, 2013

ज़िन्दगी से मुलाक़ात


आओ बतलाऊं दिल की बात
आज दिन था कितना खास
ज़िन्दगी से एक मुलाक़ात
बढ़ी गुफ्तगू की सौगात
कैसे सुबह से शाम हो गई
दिल की बातें आम हो गईं
जादू झप्पी से हुआ आगाज़
कितना सुन्दर रहा रिवाज़
शब्दों को भी पकड़ जकड़
दिए उलाहने अगर मगर
सवालात कुछ आम हुए
मियां मुफ्त सरनाम हुए
कुछ तस्वीरें कुछ तकरीरें
मिल बांटी हाथों की लकीरें
थोड़ी खुशियाँ थोड़े ग़म
सांझे किये कर आँखें नम
फिर आगे ये गज़र चली
कुदरत संग ये जा मिली
नदी, फूल, तितली के रंग
साथ खिले बातों के संग
गपियाने के जब दौर चले
जाने किस किस ओर चले
विचार, सुन्दरता, आकर्षण
अनावरण, भावना, विकर्षण
कर जीवंत आत्मा का मंथन
क्या खूब किया था विश्लेषण
हृदय द्वार जब खोल दिये
अस्तित्व शब्दों में बोल दिये
उन अपनेपन की बातों ने
जीवन में नवरस घोल दिए
द्रुतवाह अग्नि का खेल हुआ
बौद्धिक क्षमता का मेल हुआ
एक पड़ाव फिर ऐसा आया
पकवानों को सम्मुख पाया
शौक़ भोजन व्यंजन का
हृदय क्षुधा संबद्ध दर्शाया
हंसी ठीठोली खूब रहीं
कवितायेँ भी खूब कहीं
धारावाहिक, फिल्में, गाने
चर्चा इन पर ख़ास हुई
माज़ी से चुनकर लम्हात
शरीक हुए अब जज़्बात
वाह वाही भी खूब कही
ऐसे ही सारी शाम बही
वक़्त बिछड़ने का आया
दिल अपना मुंह को लाया
लम्हा काश ये थम जाता
जीवन यूँ ही चल पाता
कब होता है ऐसा यार
जाना लाज़मी उस पार
हाथ छुड़ा निमिष का
मिलने का वादा कर
निश्चल मन हुए जुदा
बिछडन के लम्हे पर
दागा गया कड़ा गोला
सवाल था बड़ा भोला
दिन पूरा कैसा गुज़रा ?
शब्दों में बतलाओ
भावनाओं को दर्शाओ
हमने कहा बतलायेंगे
हम भी कुछ जतलायेंगे
गौर थोडा फरमाएंगे
तब ही कुछ दिखलायेंगे
लो कहा दिनभर का सार
अब तुम करते रहो विचार
ज़िन्दगी से एक मुलाक़ात
दिन बना मेरा यह खास....