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मंगलवार, जनवरी 07, 2014

दिल का पैगाम





















उनकी आमद से हसरतों को, मिले नए आयाम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

दिल दरिया है, रूप कमल है, सोच है आह्लम
हंसी ख़ियाबां, नज़र निगाहबां, ऐसी हैं ख़ानम
ख़ुदाई इबादत, इश्क़ की बरकत, जैसे हो ईमान
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

दिल अज़ीज़ है, अदा अदीवा है, मिजाज़ है शबनम
खून गरम है, बातें नरम हैं, शक्सियत में है बचपन
लड़ती रोज़ है, भिड़ती रोज़ है, जिरह उनका काम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम

जब से मिला हूँ, तब से खिला हूँ, बनते सारे काम
मुस्कुराहटें, सरसराहटें, रहती सुबहों और शाम
दुआ रब से, मांगी है कब से, मिल जाये ये ईनाम
सोच रहा है 'निर्जन' उनको दे, कैसे दिल का पैगाम

आमद : आने
आह्लम : कल्पनाशील
ख़ियाबां : फूलों की क्यारी
निगाहबां : देख भाल करने वाला
ख़ानुम(ख़ानम) : राजकुमारी
अज़ीज़ : प्रिय
अदा : श्रृंगार, सुन्दरता
अदीवा : लुभावनी
शबनम : ओस
जिरह : बहस

गुरुवार, जनवरी 02, 2014

बना करते हैं

















तेरी ज़ुल्फ़ के साए में जब आशार बना करते हैं
बाखुदा अब्र बरस जाने के आसार बना करते हैं

तेरे आगोश में रहकर जब दीवाने बना करते हैं
अदीबों की सोहबत में अफ़साने बना करते हैं

तेरी नेकी की गौ़र से जब गुलिस्तां बना करते हैं
ख्व़ार सहराओं में गुमगश्ता सैलाब बना करते हैं

तेरी निगार-ए-निगाह से जब नगमें बना करते हैं
अदना मेरे जैसे नाचीज़ तब 'निर्जन' बना करते हैं

आशार : शेर, ग़ज़ल का हिस्सा
अब्र : मेघ, बादल
आगोश : आलिंगन
अदीबों : विद्वानों
सोहबत : साथ
अफ़साने : किस्से
नेकी : अच्छाई
गौ़र : गहरी सोच
गुलिस्तां : गुलाबों का बगीचा
ख्व़ार : उजाड़
गुमगश्ता :  भटकते हुए
निगार : प्रिय
निगाह : दृष्टि
नज़्म : कविता
नगमा : गीत
अदना : छोटा
नाचीज़ : तुच्छ

नज़र उसकी











अदा उसकी
अना उसकी
अल उसकी
आब उसकी
आंच उसकी

रह गया फ़कत
अत्फ़ बाक़ी 'निर्जन'
बस वो तेरा, फिर तेरी

जान उसकी
चाह उसकी
वफ़ा उसकी
क़ल्ब उसकी
ग़ज़ल उसकी

जो कुछ बाक़ी
रहा हमदम
गोया मुस्कुराते
कर देगा

नज़र उसकी
नज़र उसकी ...

*अदा : सुन्दरता, अना : अहं, अल : कला, आब : चमक, आंच : गर्मी, अत्फ़ : प्यार, क़ल्ब : आत्मा, नज़र : समर्पण

मंगलवार, अक्तूबर 29, 2013

अनजाने जाने पहचाने चेहरे

चेहरा बेशक अनजान था पर दिल शायद अनजान नहीं था । टोटल ज़िन्दगी देने वाला और मुर्दे में जान फूँक देने वाले नयन नक़श थे । 

आज मेट्रो में कहीं से आ रहा था । मेट्रो को वातानुकूलक यंत्र यानी एअर कंडीशनर का शीत माप चरम पर था । खिडकियों पर ओस की तरह भाप जमी साफ नज़र आ रही थी । काफी लोग जिन्होंने या तो आधी बाज़ू के कपड़े पहन रखे थे या जो ज़रुरत से ज्यादा फैशन परस्त थे ठण्ड के कारण सिकुड़े जा रहे थे । भीड़ ठीक ठाक थी । आने वाले त्यौहार की गर्मी इस ठन्डे डिब्बे में रौनक बनकर छा रही थी । मैं भी थोड़ी बहुत ठण्ड बर्दाश्त कर रहा था क्योंकि अभी अभी बीमारी से दुआ सलाम कर के दुनिया के मैदान में हाज़िर हुआ था । सोचता था के कहीं दोबारा से रामा-शामा की नौबत न आ जाये।

मैं मस्ती से अपने नए मोबाइल पर कानो में हेडफोन लगाये 'होब्बिट्स' नामक फिल्म के रोमांच का आनंद प्राप्त करने में व्यस्त था कि तभी उस स्टॉप से एक बेहद सादी, मनोरम, सुन्दर सी लड़की डब्बे में चढ़ी और मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ गई । उसको एक बार नज़र उठा कर देखा फिर मैं अपनी फिल्म देखने में मशगूल हो गया । पर कुछ ही पल बाद दिल फिल्म की जगह उसे देखने को कर रहा था तो एक बार फिर से निगाह उठा कर उसका दीदार किया । कमाल की थी वो । सच ! इतनी आकर्षक लड़की अक्सर कम ही देखने को मिलती है । ऐसा चेहरा जिससे देख कर दिल गार्डन नहीं साला तुरंत ईडन गार्डन हो गया । एक दम साधारण होकर भी बहुत असाधारण थी । पर हम भी कौन सा कम हैं अपनी आदत से मजबूर, मेरा अंदरूनी अवलोकन यंत्र शुरू हो गया अर्थात मैं उसका चेहरा, हाव भाव, बैठने के तरीके और शारीरिक भाषा को पढ़ने का प्रयास करने लगा । दरअसल मुझे लोगों का बहुत ही बारीकी से निरूपण करना अच्छा लगता है । उन्हें पढ़ना और उनकी हरकतों से खुद को वाकिफ करना बेहद रोचक रहता है ।

वो बेहद सादा पहनावा नीली डेनिम की जीन्स पर, सफ़ेद टी-शर्ट, कानो में बड़ी गोल बालियाँ, माथे पर पसीने की कुछ बूँदें, कलाईयों पर  हल्का रुआं और टाइटन की सुनहरे डायल वाली घडी के साथ पैरों में कानपुरी चप्पल पहने थी । भीनी भीनी महक वाला डीओ भी अच्छा लगा रखा था । हल्का इवनिंग मेकअप, आईलाइनर, और खुले हुए बालों के बीच उसका चमकता साफ़, गोरा, सुन्दर, चंचल चेहरा और उस पर भूरी आँखें ऐसे झाँक रही थी मानो सागर में से कोई छोटी लहरें बहार आने को बेताब हो रही हो । महीन सी छिदी हुई नाक और बारीक लकीर जैसे उसके होंठ | तौबा ऐसी सुन्दरता को देख कौन न फ़िदा हो जाये । मैं तो सच देखता ही रह गया था । एक हाथ में मोबाइल फ़ोन और दुसरे में कुछ फइलें । सबसे कोने वाली सीट पर बैठी उसकी उदासी उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी । ऐसा लगता था मानो ज़िन्दगी की जंग हार के बैठी हो । डबडबाती आँखों में उमड़ते सैलाब को थामने का जतन करती वो अपने अगल बगल नज़रें झुकाए बार बार देखती फिर अपनी मोबाइल की स्क्रीन पर देखती और चुप चाप हथेलियों से नम आँखें पोंछ लेती । हजारों सवाल थे उसकी मासूम आँखों में और शायद कितनी ही शिकायतें रही होंगी उन कपकपाते होटों पर जिन्हें वो धीरे से बार बार दांतों के बीच दबाती और अपने में बुदबुदाकर धीरे से धक् करके रह जाती। उसको देखकर दिल में बस एक ही ख्याल आता था कि - "आँख है भरी भरी और तुम ठीक होने का दिखावा करती हो, होठ हैं बुझे बुझे और तुम मुस्कराहट का तमाशा करती हो" । 

मैं लगातार उसको बड़े ही गौर से पढ़ने की कोशिश कर रहा था । वो बार बार इधर उधर देखती, मेरी तरफ देखती, फिर घुटनों पर घुटने चढ़ा कर बैठती और कुछ मिनट के बाद अपने बैठने का तरीका बदल लेती या फिर टांगें बदल लेती । कभी अपनी फ़ाइल तो कभी मोबाइल को सँभालने में लग जाती । लगता था के जैसे या तो बहुत गहन उधेड़ बुन में है या फिर कहीं पहुँचने की बेहद जल्दी है । लगातार बार बार हर दफा अपने पैरों के अंगूठों को आगे पीछे करना, उसका उँगलियों को सिकोड़ना, हाथों की उँगलियों को बार बार हथेली से दबाना और फिर गर्दन का झटकना साफ़ इशारा करता था के उसके दिल में उथल पुथल चल रही थी । वो कुछ सोच रही थी पर निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पा रही थी । जो भी था उसके भीतर बहुत ही दर्दनाक और तकलीफ़देह था क्योंकि इतनी भीड़ में भी वो एक दम गुमसुम, अकेली, तनहा और अनजान नज़र आ रही थी । उसकी कालाईयों पर खड़े रोंगटे नए अंकुरित पौधे की भाँती सर उठा कर मानो ऐसे सवाल कर रहे थे कि आगे क्या होगा ? हमारा ख़याल कौन करेगा ? पता नहीं वो डर से था या फिर फ़िक्र से ?

इस सब के बीच उसकी नज़रें कई बार मेरे से मिलीं और हर बार उसने ऐसे देखा जैसे बात करना चाहती हो । वो जानती थी और समझ रही थी मैं उसे बहुत देर से देख रहा हूँ । उसकी एक एक हरकत पर मेरी निगाह है । उसकी नज़रें सवाल कर रही थी ? क्या है ? ऐसे क्यों पढने की कोशिश कर रहे हो मुझे ? क्या पूछना चाहते हो ? रहने दो मत देखो ? मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो ? प्लीज़ । उसने लपक कर मुझे नज़रन्दाज़ करने की बहुत कोशिश की पर शायद वो भी जान गई थी के जो सामने है वो उसको लगातार पढ़ने की कोशिश कर रहा है । उसने अपने भावों को और हरकतों को छिपाने की बहुत कोशिश की पर कामयाबी हासिल ना कर सकी । उसकी उन भूरी और दिल से बात कहने वाली आँखों ने सभी राज़ फ़ाश कर दिए । दिल का विरानापन चेहरे पर दस्तक देता नज़र आता रहा और वो हर लम्हा अपने अकेलेपन से लड़ती रही दूसरों की नज़रों से बचाकर।

कुछ समय बीता और उसका स्टॉप आ गया । वो उठी और गेट की तरफ आगे बढ़ी । मैं भी उसको एक टक देखता जा रहा था । सोच रहा था के काश! इसकी जो भी परेशानी है दूर हो जाये । इसके दिल में जो भी ग़म हैं वो सब फनाह हो जाएँ । इतने सुन्दर चेहरे पर सिर्फ मुस्कान ही अच्छी लग सकती है उदासी, ग़मज़दा तन्हाई और मायूसी नहीं । मैं फिर भी शीशे से परे उसको एकटक देखता रहा । फिर उसने अचानक एक दफा पीछे मुड़कर देखा और मेरी तरफ देखती रही । उसका मुड़कर देखना ऐसा था जैसे वो मेरे से सवाल करना चाहती हो तुम क्या जानना चाहते हो ? मेरे लिए ऐसे परेशान क्यों हो ? आखीर क्या पूछना चाहते हो ? क्या हम बात कर सकते हैं ? फिर अचानक प्लेटफार्म आया, दरवाज़े खुले और वो उतर गई । कुछ देर ऐसे ही खड़े खड़े मेरी ओर देखती रही फिर मेट्रो के दरवाज़े बंद होते ही लिफ्ट की ओर बढ़ गई ।

कभी कभी जीवन में ऐसा भी होता है कि बिना कहे भी किसी अनजान से आप इतनी बातें कर लेते हैं जितनी शायद आप किसी से बोल कर भी और समझ कर भी नहीं कर पाते । ईश्वर ऐसे खूबसूरत चेहरों के दिल को सुकून दे । ऐसे माहताबी, रौनक लगाने वाले चेहरों को रोने और उदास होने का कोई हक नहीं है । मेरी बस इतनी सी इल्तज़ा है लड़की की जो भी मुश्किलें हों वो दूर हो जाएँ । वो सिर्फ़ और सिर्फ़ हंसें, खिलखिलाएं, मुस्कुराएँ, नफासत बरसायें और दूसरो के जीने की प्रेरणा बन जाएँ । उनका काम बस यही होना चाहियें सुन्दरता को कभी रोना नहीं चाहियें । ऐसा मेरा सोचना है औरों से मुझे कुछ लेना देना है वो क्या सोचते हैं । 

खुदा आगे भी मुझे ऐसे ही सुन्दर और अविस्मृत चेहरों के नज़ारे देखने को मिलते रहें ।  आमीन 

रविवार, सितंबर 08, 2013

दिल मेरा तुझ पर मरता है













तेरी मुस्कराहट में मेरा अक्स झलकेगा
नज़रें झुकेंगी तेरी तब अश्क छलकेगा
पलट के देखेगी सरे राह मुझको पायेगी
तू जो छोड़ेगी मेरा साथ बहुत पछताएगी

हर एक आहट एहसास मेरा करवाएगी
मेरी साँसों की हवा दिल तेरा छु जाएगी
बहते दरिया रोज़ किस्सा मेरा सुनायेंगे
तू ना चाहेगी तब भी मेरी याद आएगी

आज ग़म है तो कल ख़ुशी भी आएगी
रोते रोते ज़िन्दगी कभी तो मुस्कराएगी
आज हालात हैं तू भीड़ में भी है तनहा
कहता है दिल जुदा तू भी जी न पायेगी

तेरे दिल में रहूँगा मैं बस यादें बनकर
तेरे होटों पर रहूँगा मैं मुस्कान बनकर
तू रोकेगी फिर भी मैं आ ही जाऊंगा
तेरे सपनो को आसमान बन सजाऊंगा

सियाह रातों में मैं चाँद बन कर देखूंगा
अपनी चांदनी को तेरे दिल तक भेजूंगा
मोहब्बत 'निर्जन' सोच कर नहीं करता
दिल मेरा यूँ ही तो तुझ पर नहीं मरता 

सोमवार, सितंबर 02, 2013

मेरी तौबा

















गल्बा-ए-इश्क़ के गुल्ज़ारों में
खिला गुलाबी रुखस़ार तौबा

दमकता हुस्न बेहिसाब तेरा
रात में खिला महताब तौबा

खिज़ा रसीदा सहराओं में
हसरतें दिल-कुशा तौबा

आब-ए-जबीं पे परिसा जुल्फें
दमकते चेहरे पे नक़ाब तौबा

उससे मुलाक़ात यकीनन बाक़ी
है अधूरा ख्वाब 'निर्जन' तौबा

भरे हैं आब-ए-चश्म से सागर
आतिश आब-ए-तल्ख़ सी तौबा

इश्तियाक़ हसरत-ए-दीदार ऐसी
अफ़साने लिख जाएँ तो तौबा

लिखो इख्लास अब तुम मेरा
मैं कहता हूँ मेरी तौबा ....

गल्बा-ए-इश्क़ - प्यार का जूनून
गुलज़ार - उपवन
रुखस़ार - ग़ाल
खिज़ा - पतझड़
रसीदा - मिला है
सहरा - रेगिस्तान
दिल-कुशा - मनोहर
जबीं- माथा
आब-ए-चश्म-आंसू
आब-ए-तल्ख़ - शराब
आतिश-आग
इश्तियाक़-चाह, इच्छा, लालसा
हसरत-ए-दीदार - ललक , आरज़ू
अफ़साने - कहानियां, किस्से
इख्लास= प्यार, प्रेम

शुक्रवार, अगस्त 30, 2013

थी वो





















कभी लगता है ज़िन्दगी थी वो
दिल ये मेरा कहे अजनबी थी वो

वो कहती थी अजनबी हम थे
गुनाह था खुद से लापता हम थे

सोचा शरीक-ए-ग़म थी वो
कभी मुझसे मिलके हम थी वो

बावफा उम्मीद में हम थे
किस ज़माने से आशिक हम थे

दिल से बेज़ार बेज़ुबान थी वो
आरज़ू तार तार बदगुमान थी वो

घने अँधेरे में कभी हम थे
घनी रातों के चाँद भी हम थे

दिल से जुड़े लोगों में थी वो
मेरी आँखों में ज़िन्दगी थी वो

शनिवार, जून 29, 2013

नमाज़ में वो थी















नमाज़ में वो थी, पर ऐसा लगा कि
दुआ हमारी, कबूल हो गई
सजदे में वो थी, पर ऐसा लगा कि
खुदा हमारी, वो रसूल हो गई
आयतों में वो थी, पर ऐसा लगा कि
ज़िन्दगी हमारी, नूर हो गई
तज्बी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
मुख़्लिस हमारी, हबीब हो गई
मदीने में वो थी, पर ऐसा लगा कि
तसव्वुफ़ हमारी, मादूम हो गई
ज़िन्दगी में वो थी, पर ऐसा लगा कि
'निर्जन' ज़िन्दगी, ज़िन्दगी से
महरूम हो गई, महरूम हो गई

मुख़्लिस - दिल की साफ
हबीब - दोस्त
तसव्वुफ़ - भक्ति
मादूम - धुंदली हो गई 

मंगलवार, जून 04, 2013

चाँद पूनम का

















चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा

रात चाँद की चांदनी में सिसकता बदल देखा
मैंने रात की आँखों से पिघलता काजल देखा

काजल सी रात में तेरी बातें करता रहा खुद से
गूंजते रहे अलफ़ाज़ तेरे जुदा हो गया मैं खुद से

घुमड़ आई यादों की घटा बदली बन दिल पर
भीगता रहा रात भर मैं अपने लब सिल कर

हौसला छीन लिया मुझसे ग़म-ए-जिंदगानी ने
ख़ाक कर दिया दिल जलाकर रात तूफानी ने

आबाद हो जायेगा 'निर्जन' फिर शायद मर कर
जो फकत देख लेती तू कजरारे नयनो से मुड़ के

चाँद पूनम का सियाह रात में मुकम्मल देखा
सितारों को भी चांदनी में मुज़म्मिल देखा 

गुरुवार, अप्रैल 25, 2013

क्या लिखूं क्यों लिखूं





















स्याह ज़िन्दगी मेरी, कलम-ए-दर्द से कहूँ
जो लिखूं तो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

सोच कर तो कभी, कुछ लिखता नहीं
वो लिखूं सो लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

एक फ़क़त सोच पर, जोर चलता नहीं
हाँ लिखूं ना लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

ग़म-ए-ऐतबार को, खून-ए-रंज से कहूँ
दिल लिखूं जां लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

तेरी बेवफाई का, हर सबक मैं कहूँ
कब लिखूं अब लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

फ़नाह 'निर्जन' कभी, दुःख से होगा नहीं
जी लिखूं मर लिखूं, क्या लिखूं क्यों लिखूं

रविवार, अप्रैल 14, 2013

क्या कहता

ख़ुदा जाने मैं क्या कहता, जो कहता मैं क्या कहता
सही के लिए क्या कहता, ग़लत के लिए क्या कहता

रहती है दूर क्या कहता, मिलने को ही क्या कहता
मिलते रहना ही क्या कहता, क्या है दिलमें क्या कहता

सूरज और चंदा क्या कहता, दोनों हैं वीरां क्या कहता
तेरे संग दिन क्या कहता, तेरे संग रातें क्या कहता

तुझ बिन जीवन क्या कहता, तुझ बिन मौसम क्या कहता
तुझ बिन तारें क्या कहता, तुझ बिन इतवारें क्या कहता

तेरे जाने पर क्या कहता, तेरे आने पर क्या कहता
पूरब से पश्चिम क्या कहता, उत्तर से दक्षिण क्या कहता

आखरी क़दम है क्या कहता, जीवन मरण है क्या कहता
जन्नत से पृथ्वी क्या कहता, मौला और चिस्ती क्या कहता

लोग और जगहें क्या कहता, यादें और बातें क्या कहता
हंसी मजाक जब क्या कहता, ह्रदय वेदना अब क्या कहता

तुझसे कहने को क्या कहता, तुझसे सुनने को क्या कहता
कहता तो बस कहता रहता, ‘निर्जन’ दिल से दिल कहता

गुरुवार, अप्रैल 11, 2013

मत सोचा कर

फ़रहत शाहज़ाद साहब द्वारा लिखी उनकी कविता 'तनहा तनहा मत सोचा कर' को अपने अंदाज़ में प्रस्तुत कर रहा हूँ। क्षमा प्रार्थी हूँ, मैं उनका या उनकी नज़्म का अपमान करने या दिल को ठेस पहुँचाने की गरज़ से यह हास्य कविता नहीं लिख रहा हूँ। सिर्फ़ मज़ाहिया तौर पर और हास्य व्यंग से लबरेज़ दिल की ख़ातिर ऐसा कर रहा हूँ।

अगड़म बगड़म मत सोचा कर
निपट जाएगा मत सोचा कर

औंगे पौंगे दोस्त बनाकर
काम आयेंगे मत सोचा कर

सपने कोरे देख देख कर
तर जायेगा मत सोचा कर

दिल लगा कर बंदी से तू
सुकूं पायेगा मत सोचा कर

सच्चा साथी किस्मत की बातें
करीना, कतरीना मत सोचा कर

इश्क विश्क में जीना मरना
धोखे खाकर मत सोचा कर

वो भी तुझसे प्यार करे है
इतना ऊंचा मत सोचा कर

ख़्वाब, हकीकत या अफसाना
क्या है दौलत मत सोचा कर

तेरे अपने क्या बहुत बुरे हैं
बेवकूफ़ी ये मत सोचा कर

अपनी टांग फंसा कर तूने
पाया है क्या मत सोचा कर

शाम को लंबा हो जाता है
क्यूँ मेरा साया? मत सोचा कर

मीट किलो भर भी बहुत है
बकरा भैंसा मत सोचा कर

हाय यह दारू चीज़ बुरी है
टल्ली होकर मत सोचा कर

राह कठिन और धूप कड़ी है
मांग ले छाता मत सोचा कर

बारिश में ज़्यादा भीग गया तो
खटिया पकडूँगा मत सोचा कर

मूँद के ऑंखें दौड़ चला चल
नाला गड्ढा मत सोचा कर

जिसकी किस्मत में पिटना हो
वो तो पिटेगा मत सोचा कर

जो लाया है लिखवाकर खटना
वो सदा खटेगा मत सोचा कर

सब ऐहमक फुकरे साथ हैं तेरे
ख़ुद को तनहा मत सोचा कर

उतार चढ़ाव जीवन का हिस्सा
हार जीत की मत सोचा कर

सोना दूभर हो जाएगा जाना
दीवाने इतना मत सोचा कर

खाया कर मेवा तू वर्ना
पछतायेगा मत सोचा कर

सोच सोच कर सोच में जीना
ऐसे मरने का मत सोचा कर

शनिवार, अप्रैल 06, 2013

चाँद तारे हो गए

रात आई, ख्व़ाब सारे, चाँद तारे हो गए
हम बेसहारा ना रहे, ग़म के सहारे हो गए

तुम हमेशा ही रहे, बेगुनाहों की फेहरिस्त में
तुम्हारे जो भी थे गुनाह, अब नाम हमारे हो गए

आज हम भी जुड़ गए, रोटी को निकली भीड़ में
किस्मत के मारे जो थे हम, सड़कों के मारे हो गए

बंट गया वजूद अपना, कितने ही रिश्तों में अब
तन एक ही रह गया है, दिल के टुकड़े हो गए

तैराए दुआओं के जहाज़, उम्मीदों के समंदर में
हम तो बस डूबे रहे, बाक़ी सब किनारा हो गए

कल किसी ने नाम लेकर, दिल से पुकारा था हमें
अब तक थे जो अजनबी, अब जानेजाना हो गए

कहते थे जब हम ये बातें, पगला बताते थे हमें
आज वे बतलाने वाले, खुद ही पगले हो गए

दिल के ये जज़्बात तुमको, नज़र करने थे हमें
गाफ़िल मोहब्बत में रहे, हम खुद नजराना हो गए

इश्क जो करते हो तुम, आज बतला दो हमें
अब तलक बस हम थे अपने, अब से तुम्हारे हो गए

नींद भी गायब है अपनी, चैन भी टोके हमें
अश्क जो रातों में बहे थे, जुल्फों में अटके रह गए

है अधूरी ये ग़ज़ल, मुकम्मल तुम करदो इसे
वो चंद जो आशार थे, बहर से भटके रह गए

रात आई, ख्व़ाब सारे, चाँद तारे हो गए
हम बेसहारा ना रहे, ग़म के सहारे हो गए

यह  ग़ज़ल शैली नामक कविता श्रद्धोन्मत्त के साथ मिलकर सम्पूर्ण की गई | 

बुधवार, मार्च 27, 2013

होली की ख़्वाहिशें ऐसी



अपने कुछ दोस्तों के लिए होली पर लिखी ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ | उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी |

हजारों, ख़्वाहिशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले,
वो बच निकले,
लेख प्यारे,
लेकिन,
बच कहाँ, निकले

निकलना, बच के,
पिचकारी, से मेरी
पारुल, शैली, सोचे थे
मगर, रंग डाला
जो मैंने, हाय
गुलाबी
होके वो निकले

होली में नहीं है
फर्क लड़के
और लड़की का
पकड़ रंग देता हूँ
मैं हरा, जहाँ नेहा,
सचिन, दिव्या, विनय
मिल जाएँ

हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले,
वो बच निकले,
अभीलेख प्यारे,
लेकिन,
बच कहाँ निकले

चंदा के वास्ते
लाया हूँ पीला
नीला, रचना के
सुर्ख टेटी के
बैंगनी, प्रीती
के लिए

समीर, विष्णु,
को रंग दूं नारंगी
सोचे बैठा हूँ,
मैं भूरा, मृदुला दी
को रंगून
ये कब से सोचे बैठा हूँ

हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले,
वो बच निकले,
ऋतुराज प्यारे,
लेकिन,
बच कहाँ निकले

सुनहरा, ख़ाकी, भूरा
सफ़ेद, मैरून, सलेटी
कत्थई, चमकीला रंग दूं
सभी से
खेलूं मैं होली
सभी दोस्तों से
है गुज़ारिश,
‘निर्जन’ बस इतनी
जो खेलें
होली हम मिल के
दिल भी अपने
मिल जाएँ
जहाँ भी रहे
हम दुनिया में
याद, एक दूजे को आयें

हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले.....
बहुत निकले मेरे अरमान 
लेकिन रंगीन ही निकले 
हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले.....