आज का युग बहुत ही बेढंगा युग है 
कलयुग है गुरु जी घोर कलयुग है 
बताओ तो - 
आज प्यार भी एक मलिन व्यापार बनता जा रहा है 
आज इसमें लड़की क्या लड़का भी मात खा रहा है 
८० की उम्र में ३० की कली से निकाह पढ़वा रहा है 
कब्र में लटक रहे हैं पाँव जान मर्दानगी दिखा रहा है 
मर्यादा को त्याग हर कोई मद में धंसता जा रहा है 
पाखंड दिखा निन्न्यांवे के फेर में फंसता जा रहा है 
चार दिवारी छोड़ सड़क पर कामुकता दिखा रहा है
इंसानियत को हैवानियत का जामा ये पहना रहा है 
अश्लीलता का नंगा नाच चैनलों पर होता जा रहा है 
ओछेपन की चसक में मनुष्य ज्ञान खोता जा रहा है 
अपना, अपनों को यहाँ बेख़ौफ़ धोखा दिए जा रहा है 
जोंक बनकर अपनों के प्यार का खून पिए जा रहा है 
धन के लोभ में इंसानियत छोड़ मन मारे जा रहा है 
तन के मोह में गरिमाओं की अस्मत हारे जा रहा है  
मतिमंद है वो जो रोज़ इनको समझाता जा रहा है 
जन्तु भी मानस की हरकत से घबराता जा रहा है 
'निर्जन' सोचे देश में ये क्या अनर्थ होता जा रहा है
अश्व को नसीब ना घास गधा ज़ाफ़रान उड़ा रहा है 
--- तुषार राज रस्तोगी ----