मेरी तन्हाई
बस यही है
अब मेरी अपनी
इस तन्हाई में
मैं कितने
मौसम सजाता हूँ
सब कुछ
भूल कर मैं
तुझसे मिलने
आता हूँ
तेरी यादें
तेरी बातें
तेरे सपने
सजाता हूँ
फिर जब
आँख खुलती है
मुस्करा कर
सर हिलाता हूँ
तेरे ख्वाबों को
दिल से
लगाकर मैं
मुड़कर तन्हाई
में अपनी वापस
लौट जाता हूँ
मैं इस तन्हाई से हूँ
और मेरा
जादू ये तन्हाई
बस अब एक
तनहा मैं
और फ़कत
मेरी ये तन्हाई.....
सुन्दर प्रस्तुति है भाई तुषार-
जवाब देंहटाएंशुभकमनाएं
गुरुवर प्रणाम | आपकी टिपण्णी हमेशा सुखद एहसास देती है | धन्यवाद |
हटाएंएक तनहा मैं
जवाब देंहटाएंऔर फ़कत
मेरी ये तन्हाई
रचयिता बना गई
उम्दा रचना रच गई
शुभकामनायें !!
माँ आपका आशीर्वाद मिलता रहता है तो बस किसी तरह रचनाये भी बन जाया करती हैं शब्दों के जुड़ने से |
हटाएंसुंदर भाव, अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
अनुपम भाव संयोजित किये हैं आपने ... आभार
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण है आपके अहसास,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर पोस्ट!
जवाब देंहटाएंसाझा करने के लिए आभार!
तनहाई तनहाई तनहाई.....आपको सपनों में और वहां से लौटा ले आई...तनहाई। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंतनहाई कब तनहा रहने देती है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
साभार !
अनुपम भावाभिव्यक्ति तुषार जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
आभार..........