यादगार एक शाम रही, बिछड़े यारों के नाम
करत-करत मज़ाक ही, हो गया सबका काम
हो गया सबका काम, पीने मयखाने पहुंचे
बाउंसर कि बातें सुन, 'निर्जन' हम चौंके
कहें सैंडल नहीं अलाउड, नो एंट्री है अन्दर
सोचा मन ही में भाई, बन गया तेरा बन्दर
पीने आए दारु, जूते-चप्पल पर क्या ध्यान
कोई तो समझाए लॉजिक, दे इनको ये ज्ञान
खैर मामला सुलट गया, हम पहुंच गए अन्दर
साबू-चोपू को देख, बन गए हम भी सिकंदर
गले मिले और बैठ गए, बातें कर के चार
अब दारु कब आएगी, ये होता रहा विचार
होता रहा विचार, लफंडर बाक़ी भी आएं
संग साथ सब बैठ, फिर से मौज उड़ाएं
पहुंचे जौहरी लाला, रित्ति-सुब्बू के साथ
पीछे से चोटी आया, हिलाते अपना हाथ
रित्ति भाई शुरू हो गया, ले हाथ में साज़
फ़ोटू चकाचक चमकाई, ये है सेल्फीबाज़
विंक है फ़ॉरएवर प्नचुअल, बंडलबाज़ है यार
प्रिंटर-फाइटर को लाया, इन इम्पोर्टेड कार
दो घंटा लेट से आए, बाबुजी खासमख़ास
मेहता दानव आकृति, फुलऑन बकवास
फुलऑन बकवास, करते बाबाजी बड़बोले
गला तर कर सियाल ने, हिस्ट्री के पन्ने खोले
मित्रों नॉसटेलजीया फ़ीवर, चढ़ गया रातों रात
इतनी थीं करने को सबसे, खत्म ना होतीं बात
हा हा-ही ही-हू हू करते, बस बीती सारी शाम
यारों, दारु, चिकन, मटन और सुट्टों के नाम
मज़ा आ गया कसम ख़ुदा की, २० बरस के बाद
दारुबाजों की रीयूनियन, रहेगी जीवन भर याद
--- तुषार रस्तोगी ---