रविवार, दिसंबर 30, 2012

पहचान

मिलेगी बहार तब मुझे न सुहायेगी
मिलेगी जब दिवाली तब मुझे न सुहायेगी
तब...
कर्म में लग जा
सुख समृद्धि तुझे
स्वयं मिल जायेगी
और
जब कोई न
रहेगा
जिंदगी तुझे सताएगी
आएगी याद
तब
याद ही
तुझे तड़पाएगी
आनसो की कीमत को
जान
अपने को
तू
खुद पहचान
नहीं तो, तेरी ही
आत्मा तुझे
सताएगी
जब बहार आएगी
तब वो
भी तुझे
शायद
नहीं सुहाएगी
जीवन का मोती
तू
क्यों सोकर खोता है
अपने को पहचान
ये मोती
अनमोल है
जिसको हम
किसी कीमत पर
न खोते न पाते हैं
दिवस गंवाकर
फिर क्या हो
जो रो रो कर
गाते हैं
किस्मत दगा
किया करती है
गाते हैं, बतलाते हैं
अपने को तू जान रे, बंदे
मोती को पहचान
अपने परखी
तू स्वयं ही मान ...

शनिवार, दिसंबर 29, 2012

काश! वो जी पाती

सुबह सवेरे उठकर रोज़मर्रा की दिनचर्या के बाद जब लैपटॉप खोल कर बैठा और फेसबुक खोला तो धक् रह गया | हर तरफ़ा एक ही खबर थी के 'रेस्ट इन पीस् दामिनी' | तब पता चला के वो लड़की जिसके साथ अत्याचार हुआ था, वो ब्रह्मलीन हो गई  | खून में पढ़ते ही उबाल आया | दिल तो किया के उन दरिंदों को जिन्होंने यह काम किया है वही सज़ा मिले जो इस फूल सी बच्ची को मिली है | सरे बाज़ार बीच चौराहे पर मुह कला कर के, नंगा कर के उनके पिछवाड़े में भी गरम गरम दहकता हुआ सरिया डलवा देना चाहियें जिससे उन्हें भी ये एहसास तो हो जाये के दर्द किस चिड़िया का नाम है | परन्तु फिर आक्रोश और गुस्सा दोनों हताशा और निराशा में तब्दील हो कर धीरे धीरे शांत होते चले गए | सोचा घर बैठ कर चुप चाप फेसबुक पर स्टेट्स अपडेट करने से या फिर आपस में बात करने से क्या होने वाला है ? यही सोचने लग गया | क्या मैं कुछ कर सकता हूँ उसके लिए ? कुछ नहीं बस कुछ नहीं होगा अब | एक और केस बन कर रह जायेगा यह कांड भी | सरकारी दफ्तर में सालों दर सालों धुल में लिपटी पड़ी होगी उसकी फाइल और जो मुजरिम हैं वो मौज ले रहे होंगे |

फिर ख्यालों में रह रह कर एक और बात आती है के अब सिर्फ मौन रहकर या फिर मोम बत्तियाँ जलाकर, या मुह पर काली पत्तियां बांधकर, या सत्याग्रह करने से कुछ हस्सिल नहीं हो सकता | जिस तरह पिछले दिनों इंडिया गेट को जलियांवाला बाग बनाया गया उसको देखते तो आज क्रांति की ही ज़रूरत है | हाथ में मशाल लेकर आज ऐसी भ्रष्ट और नंगी सरकार को फूँक देने का समय है | जिस सरकार राज मैं  नारी का कोई अस्तित्व नहीं, कोई गरिमा नहीं, कोई सुरक्षा नहीं जबकि कहने को तो इस सरकार की मुखिया भी एक स्त्री ही है और फिर भी नारी के प्रति कोई पीड नहीं है उसके मन में | तो ऐसी सरकार का क्या अचार डालना है | गिरा दो ऐसी सरकार को, भस्म कर दो ऐसी दोगली मानसिकता वाली सत्ता की पुजारिन को |

बात भले ही ज़रा तीखी लग रही हो और काल्पनिक भी परन्तु आज भारत फिर से गुलामी की कगार पर है | किसी समय मैं ऐसा वीभत्स शासन मुग़ल और अंग्रेजो द्वारा किया गया था | वही समय आज फिर से लौट आया है | आज एक फिरंगी महिला अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए देश को दीमक की भांति धीरे धीरे अंदर से खोखला कर रही है और हम उससे बर्दाश्त कर रहे हैं और तमाशा भी देख रहे हैं और ताली भी बजा रहे हैं | यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब एक बार फिर से रोज कहीं नहीं कहीं खून की होली खेली जायेगी, अस्मतें लूटी जाएँगी और अराजकता का नंगा नाच होते देर नहीं लगेगी |

आज जागने का समय है | वो जिसे कहते थे दामिनी, वो जिसे कहते थे अमानत या निर्भया वो तो चली गई पर हमें जागने को कह गई | एक और लक्ष्मीबाई लड़ते लड़ते आज शहीद हो गई पर ज़ुल्म के आगे झुकी नहीं |  किसी भी स्त्री के साथ ऐसा दुर्व्यवहार न हो, कोई और दु:शासन पैदा ही न हो जो नारी का चीर हरण कर सके, उनके सम्मान को गरिमा को चोट पंहुचा सके | अब वक्त है जब की इन भेड़ की खाल में बैठे भेड़ियों को जड़ समेत उखाड फेंका जाये | खत्म कर देना चाहियें ऐसे नामर्द सोच वाले रंगे सियारों को, सरेआम सज़ा मिलनी चाहियें ऐसे सपोलों को जो अपना ही नहीं अपने माता पिता और देश दोनों का नाम खराब करते हैं |

मेरा ऐसा मानना है के यदि इंसान बेटे की कामना करता है, तो उससे जिंदगी के बुनयादी पाठ भी सिखाए | नारी जो एक माँ है, बेटी है, बहिन है, साथी है, दुर्गा सरस्वती का स्वरुप है  उसकी इज्ज़त करना भी सिखाए | उसे यह भी समझाना और एहसास करना चाहियें के समय आने पर नारी काली, कपाली और चंडिका का रूप भी धारण कर सकती है | अथ: उससे कमज़ोर समझने की गलती कभी न करे | और अपनी सोच पर काबू रखें |

बस ईश्वर से अब यही प्रार्थना है के उस बच्ची की आत्मा को शांति प्रदान तब हो जब उसके गुनाहगारों को उसी के जैसी सज़ा मिले और उसके परिवारजन को यह दुःख बर्दाश करने की शक्ति प्रदान करें और लड़ने की भी जिस से वो अपने इस अपमान के इन्साफ के लिए लड़ाई जारी रख सकें |

भगवान हिंदुस्तानियों को अब तो अक्ल दे और सोचने समझने की शक्ति दे | आँखें नम हैं और दिल में विद्रोह की भावनाओं के साथ यही विश्राम देता हूँ | बस यही आखरी भावना आती है मन मैं मेरे

काश! वो बच्ची बच जाती और ठीक होकर अपनी जिंदगी जी पाती....काश!

शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

दहेज़

हमें मिटाना है इस देश से दहेज़ का नामो निशान
क्योंकि इससे होती है मानवता बदनाम
जब वधु सुसराल में आती है
शुरुवात में वो बहुत सुख पाती है
फिर जब शुरू होते हैं उसके दुःख के दिन
अपमान, यातनाएं, शोषण वो पाती है
रोज़मर्राह की जिंदगी उसकी नासूर बन जाती है
फिर जब जाती है पुलिस और कोर्ट में वो
मुकदमा दायर करती है
अमानवीय व्यव्हार का सामना
वो वहाँ भी करती है
डरकर और चालाकी से फिर
वही सुसराल वाले
प्यार से उससे बुलाते हैं
सर को भी सहलाते है
घर वापस भी बुलाते हैं
फिर सुसराल वापस जाकर वो
घुट घुट कर जीते हैं
कुछ दिन सुखमय बीतते हैं
फिर वही कलह को पीती है
मर पिटाई गाली गलोच में
हर पर कुढती रहती है
झेल दुःख के पल कुछ और समय
वो षड्यंत्र का शिकार हो जाती है
मूक बधिर कमज़ोर बकरी की भांति
कसाई के हाथों मर जाती है
या जला दी जाती है 

गुरुवार, दिसंबर 27, 2012

भारतीय नारी

ये कविता लिखी गई थी मेरे शुरुवाती शिक्षा के दिनों में | स्कूल मैगज़ीन के लिए मेरा छोटा सा प्रयास था यह उम्मीद भी नहीं थी के यह प्रकाशित होगी परन्तु करिश्मा हुआ और मेरी कविता को छपने का मान मिला | इसलिए आपके साथ आज इसे साँझा कर रहा हूँ |

मुझसे पुछा किसी ने
क्या बताओगे तुम मुझे
मेरी कविता का क्या है विस्तार ?
मेरी कविता का कौन है आधार ?
व्यक्तित्व सम्मोहक
स्वाभाव में शीतलता
अस्तित्व जिसका ममतामयी
छवि भावनात्मक
हृदय में केवल प्रेम, प्यार और दुलार है
काया जिसकी कोमल
एहसास जिसका निर्मल
अपने में परिपूर्ण
चाहत और स्नेह का
जिसके पास भंडार है
जो औरों को समर्पित
जिसके अंचल में बचपन
बाहों में सुन्दर जवानी
जीवन के अंतर्गत में
इन आँखों का मायावी संसार है
क्रोध में ज्वाला
आंसू में शक्ति है
गरिमा मन सम्मान बनाये रखने के लिए
जो हर एक क्षण तलवार है
संसार में इतनी उत्क्रष्ट छवि
जो सचमुच ही महान है
बलिदानों की मूरत है
सत्य का पर्याय है
वो सिर्फ भारतीय नारी है
ऐसा मेरा विचार है 

Cable Mania

This is one poem from a old poetry hamper of mine when i was in school. That time Cable TV was introduced in the Indian market and the year was 1991 or 1992 i hardly remember it now. But i was really happy to have cable t.v at my home. I wrote this poem that during that time only. I hope it will help you recall your past days when you also like to enjoy the cable t.v and the teleserials. 

Has Cable TV really brought 
Entertainment and Fun
Let's peep into a house
Where Cable TV has just come
Oh Dear! Everyone is irritated
At Papa's love for 'BBC'
Didi wants to watch 'Channel V'
Dadi wants to make Pakwans with 'Khana Khazana'
Oh my! This Cable TV has driven everyone 'Deewana'
Mamma is afraid to see horror show in 'Raat'
But now Bhaiya always says 'Banegi Apni Baat'
There are quarrels and shouts
And now there is no 'Shanti' in the house
Books are waiting in their stand
Poor remote control jumps from hand to hand 
Now who will decide, if 
This Cable TV is a boon or a curse on this land

What are you ?

On the walls of many American walls hangs a plaque commemorating the statement of the late President John F. Kennedy: 

"Ask not what your country can do for you, But ask what you can do for your country"

This statement appeared in an article written by Khalil Gibran in Arabic, over fifty years ago. The heading of this article can be translated either as " The New Deal" or "The New Frontier". Gibran's words when translated from Arabic into English are as follows: 

"Are you a politician asking - What your country can do for you or A zealous one asking What you can do for your country".

If you are the first, then you are a Parasite;
If you are the second, then you are an Oasis in Desert. 

शर्मा से शर्मना नहीं

परीक्षा में नक़ल करते एक छात्र को
अध्यापक ने पकड़ा
हाथों में जकड़ा
फिर घुर्रा कर कहा
बदमाश नकल करता है
शर्म नहीं आती
पढाई के वक्त मरता है
हाथों से कापी ली झपट
लिखने लग गए रपट
छात्र ने पहले अपना नाम
फिर अपने पिताजी का नाम
बतलाया
अध्यापक चूँकि था शर्मा
इसलिए
पीछे शर्मा लगाया
शर्मा सुनकर
पहले अध्यापक घबराये
फिर
मुस्कराए और बोले
अरे तो तुम्ही हो
उन शर्माजी के लाल
जिनके हैं
दो कारखाने
तीन फक्ट्रियां
और
चार हैं निजी अस्पताल
तुमने मुझे
पहले क्यों नहीं बताया
माफ़ी चाहूँगा बहुत
समय गंवाया
लो बेटा किये जाओ नक़ल
अब न दूँगा मैं कोई दखल
कुछ चाहियें तो बतला देना
हिचकिचाना नहीं
शर्मा होकर
शर्मा से शर्मना नहीं...


मंगलवार, दिसंबर 25, 2012

जब प्रथम दिवस का कर्म हुआ

हे जीवनदाता
जब तुम्हारे
कर्म को
ज्ञात मैं
करता हूँ
एक असीम
आनंद को
प्राप्त होता हूँ
क्योंकि
सोचता हूँ
गति ही
जीवन है
गतिविहीन जल भी
सड़ जाता है
ये, तो
जीवन है
इसका
ठहरना
रुकना
मेरे लिए
शायद
मरण की
तारिख
लेकर आएगा 

सोमवार, दिसंबर 24, 2012

अंदर से कुछ टूट रहा है

अंदर से कुछ टूट रहा है
अपनापन अब छूट रहा है
कहते थे जिनको हम अपना
रिश्ता हर वो मूक रहा है
हालातों की बलि वेदी पर
अरमानो का खून बहा है
मानवता की गरिमा कर छिन्न-भिन्न
इंसान रिश्तों पर थूक रहा है
दुखी ह्रदय से कहता है "निर्जन"
अश्रु बन यह फूट रहा है
अंदर से कुछ...

एहसास मर गए

आज कुछ और
एहसास मर गए
जो बचे थे अरमान
वो भी कुचल गए
दिल में जगे जज़्बात
चिता चढ गए
अब उम्मीद क्यों करें
किसी से 'निर्जन'
जो कहने को थे अपने
वो किनारा कर गए
आज कुछ और
एहसास मर गए

सृजनहार

हे सृजनहार
क्या तूने
मेरी स्मृतियों
का भी सृजन
किया था
या फिर, मुझे
कठपुतली को
एक वेष में
एक रूप में
बार बार
जीवन के
रंगमंच पर
एक सा अधूरा नाटक
करने को
छोड़ दिया
क्या टू
अपनी सभी
कठपुतलियों को
शरीर से नहीं
आत्मा से
भेदन करने को
छोड़ देता है
उस पीड़ा का
शायद तुझे
अहसास नहीं
तभी तो
एक बार नहीं
बारम्बार
सूली पर
लटकाया है
तूने मुझे
जबकि
येशु भी
एक बार ही
सूली पर
लटके थे
हे ईश्वर
मेरे पहले रंगमंच का
अनायास ही मिलना
फिर दूसरे का
जिसकी मुझे
मिलने की कोई
आशा नहीं थी
और न ही स्वप्न
मिला है
कुछ छिन्न-भिन्न सा 

शनिवार, दिसंबर 22, 2012

Victory or Defeat


















A poem again from my old school days written during the times of Kargil War. Enjoy!

Victory, Victory, Victory
An all round victory - says Atal
A moral victory - says Nawaz 
A marvellous triumph - says Technology
but behind this jubiliations, weeps 
Mankind - desperate in the utter defeat.

Ask the mother - 
Yesterday, with hopes of life in her lap, 
Today, nurses the bodies of dead.

Ask the innocent child - 
Yesterday, the spark of happiess, 
Today, alone in the chilly darkness of fear.

Ask the man whose loyalties pledged - 
Yesterday, a father, a brother, a husband, a son, 
Today, lies unknown, admist unknowns.

Can you return their laughter, their hopes, 
Their precious lives, those dreams you stole?
Wash the blood stains with acid or alcohol?
Wash the tears with perfumed Arabian Kohl ?

When vanity, greed and ambition don the mantle of righteousness
When leaders drunk with power
Forget their roots, their fellomen
When weeds of death cover the garden of life
There in every land, in every heart looms
The dark cloud, the black hand of 
Defeat, Defeat, only Defeat!

कोई तो आंसू पोछ दे

बधाई हो दिल्ली वालो....साउथ दिल्ली में अब विदेशी लड़की से गैंग रेप
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चलती बस में गैंग रेप पर इतने हो-हल्ले के बीच देश की राजधानी में एक विदेशी लड़की से गैंग रेप की वारदात हुई है। पीड़ित लड़की अफ्रीकी मूल की बताई जाती है। गैंग रेप की वारदात शुक्रवार रात साउथ दिल्ली में मालवीय नगर इलाके के हौजरानी में हुई। खबर मिलते ही दिल्ली पुलिस के आला अफसरों में हड़कंप मच गया।

रात को ही पीड़ित लड़की को मदन मोहन मालवीय हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया। बताया जाता है कि युवती के प्राइवेट पार्ट्स में गहरी चोटें आई हैं। डीसीपी छाया शर्मा के मुताबिक, 'युवती से ठीक से बात नहीं हो पा रही है। उससे बात करने के बाद ही सही स्थिति का पता चलेगा। लड़की की भाषा समझने के लिए उसके साथियों को बुलाया गया है। वह यदि रेप का बयान देती है तो उसी हिसाब से ऐक्शन लिया जाएगा।'

अभी हाल में हुई इन घटनाओ के क्रम से दिल भर आया है और सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ के दिल्ली में यह क्या होता जा रहा है ? दिल्ली वालों की मानसिकता कहाँ जा रही है ? नारी का कोई अस्तित्व इन जैसे लोगों की नज़र में कुछ रह भी गया है या नहीं ? ऐसे दरिंदे समय आने पर अपनी भूक के लिए क्या अपनी माँ बहनों को छोड़ेंगे ? नारी का ऐसा अपमान ऐसा तिरस्कार कब तक होता रहेगा दिल्ली में ? प्रशासन मूक और बधिर बनी क्यों बैठी है ? यदि यह आज का कलयुग है तो आने वाला कल का कलयुग कैसा होगा ? क्या नारी दिल्ली जैसे शहर में सच में सुरक्षित है ?  इन्ही सवालों से जूझते हुए चंद पंक्तियाँ मेरे ज़हन में आई जो आपके समक्ष प्रस्तुत है | 

श्याम और श्वेत जैसे 
दिल्ली की नारी का जीवन 
हर तरफ से वीरान है  
रंग नहीं 
रौशनी नहीं  
बस धुंधला आसमान है 
ध्वनि नहीं 
शोर नहीं 
संगीत भी अनजान है    
मुस्कराहट नहीं 
धडकन नहीं 
हास भी तूफ़ान है  
पड़ी धरा पर है अकेली 
कितनी निष्प्रभ, कितनी गहरी 
दर्द में सिसकती रही 
रुदन सुनकर भी उसका 
आया अब कोई नहीं  
रोती रही 
बिलखती रही 
आया नहीं कोई पूछने 
काश आगे आये बढ़कर 
कोई तो आंसू पोछ दे 
कोई तो आंसू पोछ दे 

Friendship

This quote comes from my old school days diary. May be i must have noted it down in around 90's. 

Friendship is the only 'Ship' with which one can reach other's thoughts and dreams. It is a two way street; if it 's not fed from both sides, it will atrophy. To dissolve loneliness we need friends and to have friends we need humility. A friend is not an object to be possessed but a subject to be cherished.

गुरुवार, दिसंबर 20, 2012

जीवन आंकलन

एक २३ वर्षीय सुन्दर युवती
दिन के उजाले में
जिसकी आँखें सूर्य के समान चमकती हैं
जिसकी हंसी से
सारा जग रोशन हो जाता है
जिसके अनेकों दोस्त है
जिसे पागलों की तरह चाहने वाला
एक प्रेमी है
किसी दिन वो भी ब्याह के
एक बड़ी घर में जाने का सपना संजोये है
जिस तरह वो अपने पिता के घर में
उनके साये पली बढी है
एक दिन वो अपनी पढाई पूरी कर
अपनी मनपसंद नौकरी करना चाहती है
या फिर अपनी पढाई पूर्ण कर
एक सजीले नौजवान के साथ
अपना जीवन व्यतीत करना चाहती है
जिसके साथ वो सदा सुखी रहे खुश रहे
उसके खूबसूरत संतान हो
और वो उन्हें पूरे दिल से चाहे
समय बीतने के साथ वो दादी बने, पड़दादी बने
और जब अंतिम समय आये
तब वो शांति के साथ
अपने प्यारे जीवन साथी के पास लेटे हुए
पञ्च तत्व में विलीन हो जाये
यही एक स्त्री की संपूर्ण जिंदगी की सोच होती है

इसके विपरीत पीड़ित

एक २३ वर्षीय युवती
चांदनी में चमकती सर्द रात में
रुदन करते हुए
अपनी तरह टूटी हुई और
मिथ्या मुस्कराहट लिए
एक दम अकेली
कुछ अनजान दरिंदों के बीच
एक अनिश्चित मानसिकता के साथ
संघर्ष करती है
अब वो बड़ा घर एक खालीपन से
भर गया है
सपने चूर चूर हो गए हैं
समाज में दूसरों की मुस्कराहटों को देख
उससे अपनी पुरानी जिंदगी का एहसास होता है
अब कोई राजकुमार नहीं है
जिसे वो सब कुछ सौंपना चाहती थी
जो उससे छिन गया है
उसके वो सुन्दर बच्चे अब नहीं होंगे
अब उसका वो चकना चूर दिल
कभी जुड नहीं पायेगा
वह अपनी माँ से कभी कह नहीं पायेगी
के उनकी वो परिपूर्ण और निपुण बेटी
हमेशा के लिए कहीं खो गई
वह सदा के लिए समाप्त हो चुकी है
अब सिर्फ एक शव समान रह गई है
उन लोगों ने उससे सब कुछ छीन लिया
और अब वो एक परछाई है जो कभी वो हुआ करती थी
उससे सब कुछ छिन्न चुका है
उसकी मुस्कान, उसकी जवानी और उसकी संपूर्ण जिंदगी

बुधवार, दिसंबर 19, 2012

रात के कुछ लम्हे

रात के कुछ लम्हे हैं 
जिन्हें भुलाया नहीं है 
दफनाया भी नहीं है
जो छूट गए हैं 
माज़ी की यादों में
या छोड़ दिए हैं  
उन गुज़री राहों पर 
जिन पर साथ चले थे कभी 
किये थे कुछ कसमे वादे
भूल गए जो अब हम तुम ..

रात के कुछ लम्हे हैं 
जिन्हें बनाया नहीं है 
सजाया भी नहीं है
जो शामिल होंगे शायद 
कल की उन यादों में 
जो बन सितारे बिछ जायेंगे 
आने वाली रातों में 
जिन राहों पर साथ चलेंगे हम तुम 
लेकर नई आशाएं ...

बलात्कार

दिल्ली में घटित एक घिनोनी घटना पर मेरा रोष कुछ इस तरह ज़ाहिर हो रहा है ।

बलात्कार
एक दहशतपूर्ण शब्द
एक डरावना सच
पर जब यह किसी के साथ घटता है
तब और भी ज्यादा भयानक, दहशतपूर्ण और डरावना
बन जाता है

आप सबने इससे फिल्मों में होते देखा होगा
लड़का लड़की पार्टी में मिले
कुछ जाम छलके
दोनों नशे में धुत्त
लड़का लड़की को बहला कर ऊपर ले गया
लड़की नहीं चाहती थी
पर लड़के को इससे कोई मतलब नहीं था
उससे बस वही करना था जो वो चाहता था

मैं ऐसा कुछ भी नहीं कहता
के ऐसा नहीं होता
क्योकि यह सब होता है
असलियत में भी
पर हर दफा यदि वो आपका कोई करीबी, दोस्त या मंगेतर हों तब ?
जो आपसे बदसुलूकी करता है
बलात्कार करता है

वो आपको अँधेरे में दबोच लेते हैं
गाडी में खीच लेते हैं
सड़क पर , बस में, कमरे में भीच लेते हैं
आपको अकेला पाकर
घात लगा कर आप पर हमला बोल देते हैं
क्योंकि भेडिये ऐसे ही शिकार करते हैं

फिर वो कोशिश करता है
आप वही सोचे जो वो चाह रहा है
वो आपको चूमता है गालों पर
वो आपको चूमता है गर्दन पर
फिर उसके अंदर का जानवर जाग जाता है
और वो सब कुछ करने लगता है
जो उससे नहीं करना चाहियें
क्योंकि जानवर ऐसा ही करते हैं
पर जबतक आपको समझ आता है
के यह हो क्या रहा है
तब तक बहुत देर हो चुकी होती है

आप चिल्लाती हैं
"नहीं नहीं!
ऐसा मत करो!
रुक जाओ!
मुझे यह नहीं चाहियें!
रुक जाओ!
पर
वो अपने हाथ से आपका मुंह बंद कर देता है
जिससे आपकी चीखें कोई सुन का सके
आप संघर्ष करती हो वो आपसे कहीं ज्यादा
ताकतवर है
वो जो चाहता है करता रहता है

एक बार वो सब कुछ कर लेता है
वो आपको छोड देता है
आप किसी तरह उठ खड़ी होती हैं
अपने अस्त व्यस्त कपडे बिजली की तेज़ी से ठीक करती हैं
सांस लेने की कोशिश कर रही होती हैं
तभी
"अगर किसी से कुछ कहा तो आगे इससे भी बुरा होगा"

आप बाहर आती हैं
अपनी गाडी में बैठ कर
दुगनी तेज रफ़्तार के साथ
सीधा अपने घर पहुच जाती हैं
सबसे पहले झट से आप
अपने स्नान गृह में जाती हैं
और शोवर के नीचे खड़ी हो जाती हैं
जिससे आप उसकी गंध को अपने से
अलग कर सकें

घंटा भर नहाने के बाद आप
रोना शुरू करती हैं
आपको विश्वास नहीं होता
यह जो कुछ भी आपके साथ घटा
वो सच था या नहीं
आप अपने आप से कहती हैं
"कैसे! वो सबसे प्यारा इंसान था जिसे मैं जानती थी....आदि इत्यादि"
और आप एक शब्द भी नहीं बोल पाती

अगले दिन
वो आपको फिर मिलता है
स्कूल में, कॉलेज में, ऑफिस में
सड़क पर, बस में, बस स्टैंड पर
आपकी ओर देखकर मुस्कराता है
आँख मरता है
आप उससे आँख चुराकर, घबराकर
दूसरी दिशा में भागने की कोशिश करती हैं
वो आपका पीछा करता है
और आपका हाथ पकड़ लेता है और फिर
कसकर चिपटने की कोशिश करता है
आप चिल्लाती हैं, "दूर हटो! नहीं तो मैं सबको बता दूंगी!"
वो आपके कानो में कुछ घिनोने शब्द कहता है
"मुझे पता है, तुम्हे वो सब अच्छा लगा था"
आप फिर से चिल्लाती हैं,
"नहीं, नहीं, मुझे अच्छा नहीं लगा! तुमने मेरा बलात्कार किया है!"

आसपास सभी आप दोनों की तरफ देखने लगते हैं
वो आपको छोड कर भागने की कोशिश करता है
पर सभी लोग उससे पकड़ कर उसकी पिटाई और अच्छे से धुलाई कर देते हैं

आँखों में आंसू लिए,
नाक और गाल लाल किये, आप
धीरे से कहती हैं, "और मारो, और मारो, जान ले लो इसकी"
फिर सभी उसे दबोच कर, बेतहाशा उसकी पिटाई करते हैं
आप जोर जोर से रोते रोते
ज़मीन पर गिरते एक एक आंसू के साथ
आगे बढ़ जाती हैं

और तब वो पल आता है
जब आपको एहसास होता है
ये तो किसी के भी साथ हो सकता है
किसी भी लड़की के साथ
कोई भी लड़का
किसी भी पार्टी, सड़क या किसी भी जगह

अगर यह बात आप बीती की बजाये
जब बीती से सीख ली जाए
और सतर्क हो जाया जाये
तो ज्यादा बेहतर होगा
होगा के नहीं ?
वो आपको सोचना होगा
ज़रा सोचें ???

उसने सोचा न था


उसने सोचा न था
जो भी उस पल हुआ
वो चिल्लाती रही
वो रोती रही
छोड दो छोड दो
वो भडिया न रुका
वो भेडिया न थमा
वो पुकारती रही
मदद करो मदद करो
वो दरिंदे सभी
राक्षस थे कहीं
दू:शासन थे वो तो
वो बढते रहे
वो चढ़ते रहे
वो कहती रही
नहीं नहीं नहीं
उसने सोचा न था
जिंदगी थमेगी यूँही
उसने सोचा न था
इंसान गिर जायेगा
इतना भी कभी
वो खोती रही
उसने खोना जो था
खून में लथपथ थी वो
रात भर से यूँही
रक्त भी न थमा
वो भी बहता रहा
उसने सोचा न था
वो छोड कर के उसे
ऐसी हालत में ही
गायब हो गए
ऐसी धुंध में कहीं
सुबह जागी तो वो
पर कभी भूली नहीं
वो रात न थी
एक सूली थी वो
जिसपे झूली थी वो
जिंदगी साथ ले गई
एक दर्द दे गई
उम्र भर के लिए
उसने सोचा न था
उसने सोचा न था

ज़रा सोचिये

इटालियन बाई का राज है और ऐसी छोटी मोटी वारदातें तो होती ही रहती हैं बड़े बड़े देशों में | बलात्कार, डकैती, मर पिटाई और भी न जाने क्या क्या सब आम बातें हैं | इनकी जड़ सिर्फ एक है निकम्मे और नाकारा नेता, भ्रष्ट शासन तंत्र और जनता जिसे इन सूअरों की गुलामी की आदत पड़ चुकी है | औरों को दोष देने से कुछ नहीं बदलेगा जब तक सभ्य और शिक्षित समाज आगे आकर अपने हक के लिए नहीं लड़ेगा और सही सरकार को चुनेगा | जिस सरकार में चोर उचक्के, डकैत, बलात्कारी, कातिल और माफिया के लोग भरे हो आप ऐसी सरकार के राज में ऐसी छोटी मोटी वारदातों के बारे में क्या तो सवाल करेंगे और क्या ही आप को जवाब मिलेगा | ज़रा सोचिये और आगे आने वाले चुनावों में सही को चुनिए | अपने हक के लिए आवाज़ बुलंद कीजिये |

दिल्ली की लड़कियों के साथ साथ सभी नारी जाती से मेरा निवेदन है के अब दब्बू बन कर चुप बैठने का समय गया | आप अपने पुर्से में हमेशा एक मिर्ची का स्प्रे, एक छोटा चाकू और एक कर्रेंट वाला छोटा हथियार ले कर चलें जिससे ज़रूरत पड़ने पर आप उसका उपयोंग अपनी रक्षा के लिए कर सकें | आज ज़रूरत है अपनी मदद अपने आप करने की | आत्म रक्षा के लिए आज युद्ध कौशल में पारंगत होना अनिवार्य है | मेरी गुज़ारिश है स्कूल में पढ़ने वाली छात्राओं से, कॉलेज जाने वाली लड़कियों से के कम से कम और कुछ नहीं तो आप लोग थोड़ी बहुत युद्ध कौशल तो ज़रूर सीखें चाहे वो कोई सा भी क्यों न हो | ये शिक्षा मेरी सोच के हिसाब से तो हर जगह अनिवार्य होनी चाहियें खास तौर पर लड़कियों के लिए |

भाषण देना, धरने देना, प्रोटेस्ट मार्च निकलना, मोर्चे करने से कुछ नहीं होगा अब ज़माना है भगत सिंह का, चंद्र शेखर आजाद का , उधम सिंह का | जब तक इस बहरी सरकार के कान पर एक ज़बरदस्त धमाका नहीं होगा तब तक इसके कान पर जू नहीं रेंगेगी | मेरी राय मैं तो इन बलात्कारियों जैसे भेदियों को हाथ के हाथ मौत की सजा होनी चाहियें वो भी जिसके साथ यह अभद्र व्यव्हार हुआ है उसी के हाथों | आप सबकी क्या सोच है इसके बारे में बताएं ?

मंगलवार, दिसंबर 18, 2012

Am I Lovable?


Why do we love someone else? What makes us do that?

While we constantly crib about the fact that no one loves me, how much thought we give about why would someone do it. What is so special or what have I done to make me worthy of affection.

Let’s take a look at examples close by.
















All of us love and adore our children, Why?
  1. They are made by nature that way. Cute little faces, tiny hands and feet, speech that makes you smile and a smile that just melts your heart like ice cream.
  2. They never lie. Say things as they are. You can trust them.
  3. You feel strong and they look vulnerable – physically and emotionally. One feels like its their duty and God’s will to protect them.
  4. If they like you they like you from their heart. If they don’t they will make it obvious with reasons. If you can improve and change you can be their friend.
  5. They never hold anything for a long time. One moment they will fight and the next moment they will be ready to play and laugh and run with you.
  6. They know nothing about jealousy, greed, hatred, contempt. We call it innocence but isn’t it natural for us to feel that way. If you really look at it these are absolutely unnecessary appendages to our mind.
  7. They are always ready to take help as they are always ready to offer it.

As we grow up we loose many of these simple yet powerful reasons so people can adore and like us. The worst part is that instead of consciously working on making ourselves child like we do just the opposite. In the name of growing up and being worldly wise we do everything that we do not want others to. And then we complain.

If you carefully observe a large part of the responsibility even power to make people love us lies with us.
  1. We hate everyone around us and then wonder why it’s coming back.
  2. Look at others with deceit and contempt. Lie at the drop of a hat.
  3. Do not want to take help. Do not want to give it either.
  4. In marriage we treat our partner with disrespect. Hurt to the extent of being revengeful. Take each other for granted.
  5. Hold our feelings as if it is the most important thing to die with a negative emotion or may be it helps you to live longer. Absolutely Wrong.
  6. Ridicule, Gossip and Make Fun to alleviate our own insecurity.
  7. Blame others to hide our guilt.
  8. Almost never use our heart. The tiny calculator keeps working non stop even if it is the closest of relationship.
I have two angles in my life, actually my lifeline and I have been observing their behavior with us, with others and with each other. What I have found is that whatever they do, they do it with spontaneity, with a natural flow. They are so happy with themselves that you want to enter their world to forget what you have been doing to others or what others have been doing to you.

I have come to realize that it is a mechanism that nature has adopted to ensure growth of species since we can observe a similar behavior in almost all other life forms. If it was not so we would have competed with our own off springs.

Just as you need to be employable to be employed, you need to be lovable to be loved.

So next time you feel that you are getting a raw deal or why no one really loves you ask yourself a question – Am I lovable ?

I am working on it and it’s not that difficult. Trust me.

Friendship

Friendship is the only 'Ship' with which one can reach other's thoughts and dreams. It is a two way street; if it not fed from both sides, it will atrophy. To dissolve loneliness as we need friends and to have friends we need humility. A friend is not an object to be possessed but a subject to be chrished. 

Life Is

Life is a 'Goal', reach it
Life is a 'Promise', fulfill it 
Life is a 'Opportunity', utilize it 
Life is a 'Journey', complete it
Life is a 'Game', play it
Life is a 'Duty', perform it
Life is a 'Struggle', accept it
Life is a 'Challenge', meet it
Life is an 'Adventure', dare it
Life is a 'Mystery', unfold it
Life is a 'Dream', realize it
Life is a 'Song', sing it
Life is a 'Flower', smell it
Life is a 'Beauty', worship it 
Life is a 'Love', enjoy it
Life is a 'Bliss', taste it
Life is a 'Battle', fight it
Life is a 'Test', pass it
Life is a 'Horrible', fear it
Life is a 'Problem', solve it
Life is a 'Trouble', face it
Life is a 'Joke', laugh on it
But still.....
Life is Life, so Live it.

ममत्व

इस रसहीन जगत में
इस मरुस्थल  जैसे जगत में
एक ममत्व का रस
शोरगुल में
खोया जाता है
माँ से या बच्चे से ?
नहीं जानती मैं
नहीं जानती
अधिकारों में
या
कर्त्तव्य की बेदी
पर मैं
खुद भी
आंसू लिए
खोजती हूँ
अपने ममत्व को
आशीर्वाद भरे
उस आलिंगन को
ममता के
उस हाथ को
जो फेरा था
कभी उसके सर पर
उस सिहरन को
जो मेरे लाल के
पास होने से
आती थी
उस चाँद को
जिसकी याद में
ये जीवन एक तड़प
एक प्यास ही रह जायेगा
कोई प्रश्न कोई उत्तर
किसी के पास
नहीं है
क्योंकि ममता
एक सपना तो नहीं
संतान का मोह
कहीं मोक्ष का
द्वार तो नहीं
नहीं जानती, नहीं जानती

आंसू

ए जिंदगी 
थोड़े आंसू
और उधर दे दे 
जिससे मैं
अपने आप पर 
या अपने जीवन की 
भाग्य विडंबना 
पर जी भर 
रो तो सकूँ 
ए जिंदगी 
मुझे जीवन नहीं 
प्यार चाहियें 

रविवार, दिसंबर 16, 2012

The Art of Bunking











From the curstal of my yester years i came across this article which i feel every student will like. It describes the art of bunking the classes, school, college and that each and every place where kids don't find things that can catch their attention and bound their hearts to follow the applied rules. They just like to bunk from that place and enjoy their life to its fullest. So here comes the article :

Suffering under the yoke of dictatorship of the teachers and the unbearable educational policy of the Indian Government, the students have little or no option but to 'Bunk'. This is an art which is developed only in the courageous minds with strong will power. 


History

It is generall believed that bunking startedin abot 3000 B.C. with man learning how to count on an ABACUS. In later years, with innovations, inventions and technological know-how, it became more and more popular and spread throughout the world. Recently, it covered the small but prestigious school like mine 'Vidhyapeeth'. It even made headlines in the 'ASYLUM TIMES - BUNKING STRIKES VIDHYAPEETH'.

Conditions

  1. Teacher present in class.
  2. Period si educational. 
  3. Full knowledge of class conditions to bunker. 
  4. There should be ready made excuses.
  5. Excuses should be convincing
Advantages
  1. Pressure on desks and chairs i.e. school property is reduced.
  2. Tension of teachers is reduced.
  3. Bunking is economical - Paper and other stationary is saved thus the national income is increased.
  4. A healthy approach - As students remain fresh and always on the move. 
  5. Promotes friendship and fraternity among those who bunk or want to bunk. 
Disadvantages
  1. None
  2. Can't think of any
  3. I don't know
  4. None, What-so-ever
At this moment I am bunking my class to write this article. If you want consultation on this topic or have any problems, contact - 

I, Me, Myself a.k.a Johny Bhai
A.B - Artium Bunking
Bu. D - Doctor of Bunking
MBA - Masters of Bunking Association
MBBS - Member of Bureau of Bunking Students

शनिवार, दिसंबर 15, 2012

एक बूँद : जीवन

एक बूँद
सागर से अलग
अपने अस्तित्व को बनाने
निकली सागर से दूर पर
बूँद बूँद ही रह गई
न बना सकी वह
उस तरह के
सागर को
न भुला सकी
अपने सागर को
दूर आकर ही
उसे एहसास हुआ
की वह वापस
सागर में जाकर
मिलना भी चाहे तो
दूर हो चुकी है वह
अब कुछ जिनसे वह
अलग होकर कुछ अपने
को बनाने की चाह में थी
बूँद बूँद ही रही
अब चाह कर भी वह
सागर में नहीं जा सकती
क्योंकि वह बूँद
सागर से दूर
विष की या अमृत की
उसमें जाकर
सागर को दूषित
नहीं करना चाहती
बूँद बूँद ही रहना चाहती है
अपने उतावलेपन के लिए
या ईश्वर के कोप को
या भाग्य की विडंबना को
नहीं जान सकती
पर सागर-सा वह घर
सागर-सा घर का वह सपना
जो उसने संजोया था
टूट गया
अब सब कुछ उस से छूट गया
अब बूँद आँखों में
अब बूँद मन में
अब बूँद मस्तिष्क में
रहेगी जीवन पर्यन्त
क्योंकि जीवन बूँद की तरह
सागर से अलग
ईश्वर की रचना
जिसके मिटने पर
नया नाम
नया ढंग
नया रूप
नया आकार
ग्रहण करना होगा
सागर की, नदी की, तालाब की
एक बूँद
पानी है पानी क्यों नहीं
कहते हैं हम
क्यों नया नाम मिलता है
कोई नहीं जानता
इस भूल भुलैया को
एक भटकन को, जो
मन मस्तिष्क को
सदा सदा
कुरेदती रहेगी
कभी सागर में जाकर
कभी नदी में
कभी तालाब में
अपने को खोजती रहेगी
जीवन पर्यन्त, अपने को
वह बूँद...


WANNA PUFF? HERE ARE THE FACTS

An article that i wrote for my school magazine during my golden days of life. Now i think did i myself followed this? I also used to smoke around 7-8 years back but somehow i realized my mistake and corrected it. I talked about the number of deaths in 2012. So see, I just found my diary in 2012 merely just to read this article and find out if the percentage of deaths have increased or decreased. Or just to make myself realize what i was actually and later on what i have become. I myself made that mistake of taking up this habit of smoking but God gave me enough mental strength and power that i could leave that bad habit. I request to all my fellow friends and blog readers who smoke that please try to quit smoking. It just only "KILLS".


"Dum Maro Dum, Mit Jayen Gam"
Or
"When a Cigarette is in my Hand, I felt like a Man"

These enchanting lines have enravished the minds of present generation. They are gradually putting a full stop to their lives by inhaling this pure unadulterated poision. 

Had a smoke lately? Were you able to impress your friends? Do you really felt the same? Yes?

But did they realise that what you have enjoyed will lead you towards the path of erebus. If they really had been your friends they would have turned away in disgust. 

"The longest and painful way to committing 'Suicide' is 'Smoking'". It gradually engulfs the entire internal body organs and slowly burns them up in smoke leaving just a hollow exterior.

As for the future, by the time you are seeking for a job, most of the big companies, specially government owned ones, would have banned smoking in their offices and if you happen to be enslaved by smoking then your placement choices would be very limited. 

Well, by the time being with about fifteen year history of smoking when you attain thirty five of your life your lungs would be in a pretty hazardous condition suffering from royal diseases like tuberculosis, asthma, bronchitis, high blood pressure and a weakened heart. After a twenty year experience degree in smoking, after a decade at the age of forty five you will be accompanied  by wheezing and at regular intervals you would be coughing. As you step forward after your golden jubilee you will be spending your time being shunted between hospitals, x-ray labs and pathology labs.

All these years you will be murdering your dear ones too by forcing them to be a passive smoker as they inhale the second hand smoke.

Most probably you started smoking as a fashion trend, to attract your friends, to catch attention or were feeling lonely or to prove that you were grown up or might be any other one. But all these are signs of inferiority complex and an insecure mind

According to the latest survey covered by the "National Organization for Tobacco Eradication" the number of deaths due to smoking will increase from 10 lakhs to 30 lakhs by the year 2012. That will conquer that caused by the disease AIDS.

Recently a journal published that the profits made by the tobacco merchants during the year 1986-87 were just 4% that has increased to 29% in 1996-97. This is due to the new policies and rebates that were given to the cigarette manufacturers. The annual tax collection from this source is around 4500 crores. Can our country work without this income? I feel it can. 

So, at last but not the least I would like to say that never ever try to smoke, even on an experimental basis. But if you have become addicted to it immediately leave it by adopting substitutes like chocolates (then take care of your teeth) or chewing gums. Alternately you can chain yourself to a bed to be out of reach of cigarettes. 

Remember, smoking does not allow to eviate your worries only agravates them.

शुक्रवार, दिसंबर 14, 2012

हे ईश्वर

हे ईश्वर
एक चोट
एक पीड़ा
तुम्हारे मन
मस्तिष्क में
सदा ही रहेगी
क्योंकि तुम्हारे
धारा प्रवाह
जीवन में
एक पत्थर
तुम्हारी धारा
को रोकता हुआ
सदैव
स्मृति की
धारा को
रोकता रहेगा
कहता रहेगा
तुम कहीं रहो
पाओगे
अपने आप में
अपने धारा प्रवाह में
एक सुखद  अनुभूति
एक सुखद स्पर्श
उस पत्थर से
जो देखने में
पत्थर है पर
है कोमल
ममता भरा
ममता भरी
छाँव में
सोना और जागना
एक स्वर्णिम दिवस में
जहाँ कर्म
और उन्नति
तुम्हारा पथ
निहारती हैं

गुरुवार, दिसंबर 13, 2012

Theme for a Dream

One more poem written during the yester years of school days. Don't exactly remember the date now. Might be in 1998 or so. 

I sit down to write...
Gosh ! I don't have to fight!
Drowned in the pool of imagination, 
I feel fright; pain, futility, 
Everything, but inspiration!

Prosperity seems so far...
Whimpering over the far pavilions, 
For poverty is all pervading, and above par;
a smile weighed against a lifetime, 
as for tears, even a life is so little a time!

I think about health...
And chide myself, for inacccessible is that wealth, 
Failing everywhere, not leaving
Any trace anywhere
Distancing itself from this realm of reality!

The darkness deepens...
Time runs out, the day is out;
Human efforts counts not, and neither does luck...
The sun was so pale, the moon so frail, 
No guiding light!

I have now attained such a state;
In front of me, Happiness lies prostrate, 
Despair, Erect with it s welcoming bondage
Disillusioned; I need a theme 
even for a 'DREAM'!

The Newspaper - 1997

Early in the morning with the tea
You are holding it in your hand
Reading it 
You will have an idea
Of happenings of different lands
Formed with the letters N, E, W, S --
North, East, West and South
On reading it with full concentration 
You can pass all the examinations
It talks of political leaders in action
And contains good news of sports too 
State of affairs of the ocuntry
And the work which citizens do 
It is this good Newspaper
Which everyone must read 
For sharp general knowledge
anyone can surely trust

My School - Class XI

A poem written about my school, class and friends. Those were the best days of my life. Still miss my class XI - XII and all my friends.

I study in Vidhyapeeth 
But i feel everybody there is stupeed
There are nice and beautiful teachers 
But they are more or less preachers
My principal is nice 
But i always have to wish him 'Good Morning' twice
I'm in class eleven 
I always think my class is a heaven 
My seat is in the middle 
So i don't have to fiddle
My partner is always sitting on my lap
I feel like giving him a tight slap
We don't have any monitor
Otherwise he would have been a man eater
My best friend's name is 'Choty'
And he always seems to be naughty
We have eight classes
So, most of the time i have to wear glasses
I am nearly always taking a rest
But i like my school and its the best

School Function Speech - 1997

14th November 1997, Children's day speech for school function. Today, when i was reading it and just thinking about it, a small question just striked my mind, was it all worth ? was it all true ? did our education system and the preaching were based on facts from the history or everything was just rubbish ? I don't have answers for these question now. But in those times here is what i used to think seriously but as the time passes by the mode of thinking changes. That's what i have realized so far. 

So here goes the speech :)

Today is Children's Day i.e. the birthdate of Pandit Jawaharlal Nehru, first Prime Minister of free India. The whole world is very excited today not only the children but the elders too. Functions must being organised at every level of the society and each class will enjoy the happiness of this day according to his caliber. But i am not at all participating in any of these happenings and feel myself neglecting my duties towards the nation. But i can't do anything because i am really full of complexes inside me. Whenever i thought of doing something my complex comes against me and grabs my feet so that i could fall morally and changes my mind due to the compression of my feelings and thoughts that are always negative in nature. Yes i am really a negative thinker. 

I just want to come out of this problem and i have tried many times but i am overpowered by my heart. I don't know why i listen to my heart than my mind. 

I don't know what will i do in my future but i know that i and my house mates are ruining my present life. 

Oh God ! Please show me the path on whcih i could get the goal of my life and attain the power of self confidence which is not at all present in my attitude. 

I am really feeling very sad and helpless because i am getting bored while sitting at home and just getting glued to the TV set from morning till my eyes and mind becomes tired to bear it any more. 

I don't know which way i should go. I have become a 'Trishanku' who is fastened between the earth and the sky. 

So, please God show me the orbit on which i could revolve on to achieve my sky of success and touch the sun. 

Thank You....

खोया खोया

मेरा एक और पुराना चमत्कार .... हा हा हा... आज इससे पढता हूँ तो बेहद हंसी आती है क्योंकि यह कविता नतीजा थी मेरे और मेरे कुछ दोस्तों के दिमाग में उपजे एक ख्याल का जो की सारी जिंदगी ख्वाब बनकर ही रह गया | किस्सा यूँ है के एक लड़की हुआ करती थी हमारी क्लास में और मुझे बेहद पसंद भी थी | अब आपको तो सब पता है के दिल तो बच्चा है जी तो फिर बस उस लड़की को पटाने की हर मुमकिन कोशिशें होने लग गईं | परन्तु शुरू में तो हर प्रयास विफल रहे फिर धीरे धीरे उनसे जान पहचान बढी और दोस्ती का दौर शुरू हुआ पर जैसे आपको पता है उन दिनों क्या होता था और दोस्त कैसे होते थे | टांग खीचने में नम्बर एक | तो फिर क्या था हम भी ठहरे अपनी खोपड़ी से अलबेले चढ गए बांस पर और शुरू कर दिये नए नए ख्वाब बुनने | दोस्तों द्वारा भाभी भाभी का संबोधन सुन सुन कर मस्त हो जाते और स्वपन लोक में विचरण करने निकल पडते | उसी किसी एक विहार के दौरान यह कविता लिखी गई थी | लिखने के पीछे जो सोच थी वोह यह थी के यारों को यह सुनायेंगे और अपना वर्चस्व स्थापित करेंगे अपने गुट में | और यह भी पूर पूरा आभास था के कोई न कोई मित्र जाके अपनी भाभी को इस कविता के बारे में बतला ज़रूर देगा | क्योंकि दोस्ती जितनी अच्छी होती है उतना ही ज्यादा कमीनापन आपस में होता है | तो उसी कमीनपने कोई ध्यान में रखते हुए यह रचना कर डाली - "जस्ट टू इम्प्रेस दा फ्र्न्ड्स एंड दैट गर्ल"....और हुआ एक दम उल्टा...यारों न उसने हाँ कही और न न कही और जो थोड़ी बहुत यारी दोस्ती थी वोह भी जाती रही समय के साथ | खैर अपने तो मलंग थे और मलंग हैं  कौन आया कौन गया कुछ सोचते नहीं - बस जिंदगी जीना सीखा है तो जी रहे हैं | तो आइये पढ़िए मेरे सपनो में लिखी गई दास्ताँ और आनंद लीजिए -

आज कल मैं खोया खोया रहता हूँ
वो भी कुछ खोई खोई रहती है
मैं उससे कुछ कहना चाहता हूँ
वोह भी कुछ कुछ कहना चाहती है
लेकिन बीच में है एक दीवार
खुद से ही किये कुछ प्रश्नों की बौछार
वो मुझे क्या समझती है ?
कैसा समझती है ?
क्या वो मुझसे मुहब्बत करती है ?
क्या वो भी दिल ही दिल में मुझपर मरती है ?
मैंने भी देखा है
उससे कुछ सोचते हुए
मुझसे झिझकते हुए
लेकिन मैं समझ नहीं पाता
के यह इंकार है या इकरार
इसलिए ही
शायद इसलिए
मैं सोया सोया रहता हूँ
दिन रात उसी के सपनो में
बस खोया खोया  रहता हूँ
बस वो भी इसी तरह
ख्वाबों में खोई खोई रहती हो
इल्तजा है रब से के वो भी
मेरी तरह गम-ए-जुदाई सहती हो
पर क्या मैं भी हूँ उसके सपनो में ?
क्या मैं ही हूँ उसके दिल में ?
यह जान नहीं पता हूँ मैं
इसलिए मैं खोया खोया रहता हूँ

आज भी यह कविता पढ़ी तो सारा मंज़र आखों के सामने घूम गया | शायद मेरी तरह और भी बहुत से लोग होंगे जिनके साथ कुछ इसी तरह का वाकया हुआ होगा | शायद इस कविता के माध्यम से मैं अपने आप को उनके साथ जोड़ पाउँगा और वोह मेरे साथ जुड पाएंगे | 

नाखुश

बीते दिनों की धरोहर सन १९९८, कक्षा ११ शायद तभी लिखी थी यह कविता और उसी संकलन से एक और मोती आपके पेश-ए-खिदमत है | गौर फरमाएं....

आज मैं नाखुश हूँ खुद से
भटक गया हूँ अपनी मंजिल से
आज मैं भटक गया हूँ अपनी राहों से
भूल गया हूँ वो मार्ग
जिसकी आकांशा कुछ लोग करते थे मुझसे
लेकिन कसूर सिर्फ मेरा नहीं है
वो भी इसमें शामिल हैं
मैं बचपन से जीतता आया था
उनका प्यार पाता आया था
लेकिन
जब एक बार गया हार
सहनी पड़ी सब की दुत्कार
मन को शांत करने के लिए
मैं ढूँढने लगा मार्ग
लेकिन वो मार्ग मुझे कहाँ ले जा रहा है
ये मैं नहीं जानता हूँ
आज मैं नाखुश हूँ खुद से
भटक गया हूँ अपनी मंजिल से
कुछ दोस्त मिले नए
सब लगे अच्छे
उन्ही के चलते अपना कुछ
गम भुला पाया हूँ
लेकिन मेरे अपनों को मुझ पर
नहीं है विश्वास
वे नहीं करते मेरा एतबार
इसलिए मैं आज भटक गया हूँ
अपनी मंजिल से
आज मैं नाखुश हूँ जिंदगी से...


धोखा

अपने पुराने पिटारे से एक और कविता नज़र है आपके उम्मीद है पसंद आएगी...

मेरा मन कितना कहा था
मत कर तू दोस्ती
क्योंकि
बचपन से ही तू धोखा खाता आया है
लेकिन मैंने भी कर ही ली दोस्ती
हाँ तुम से दोस्ती
और आज तुम ही
ठुकरा कर जा रहे हो
मेरा मन कितना कहा था
करो न किसी से दोस्ती
लेकिन
आखिर ये दिल तुमसे लगा ही लिया
लेकिन
आज तुम भी यह दिल तोड़ कर जा रहे हो
आज पता लग रहा है
दुनिया कैसी है
कोई किसी का नहीं है
सब कुछ बस पैसा है
आज तक मैं समझता था
अभागा अपने को
लेकिन यह दुनिया तो
अभागों से भरी पड़ी है 

उलझन

आज अलमारी की सफाई करते वक्त एक पुरानी डाईरी हाथ आ गई । कुछ पुराने पल और कुछ पुरानी कवितायेँ मन मस्तिष्क में तरो ताज़ा हो गए । वही पल और यादें आपके साथ बाँट रहा हूँ अपने इस ब्लॉग पर और आपकी क्या सोच है इनके बारे में जानना चाहूँगा । यह कविता मैं कक्षा ११ में लिखी थी जब मैं बैक बेन्चेर  हुआ करता था और ज़्यादातर पेरिओड्स में सोया रहता था । या दो ऐसे ही कुछ न कुछ उट पटांग कुछ भी लिखता रहता था अपनी डाईरी में या फिर अध्यापक की रोचक किस्म की तस्वीरें बनाता रहता था । ज़्यादातर इसीलिए डांट खाता था या कक्षा से बाहर कर दिया जाता था ।

ये उम्र का कौन सा मोड है मेरे जीवन का
जिसे जितना समझना चाहता हूँ
उतना ही उलझ जाता हूँ
कोई समझता नहीं है मुझे
मेरी भावनाओं को
यह कौन सा मोड है
मेरे जीवन का
जिसे जितना समझता हूँ
उतना ही उलझ जाता हूँ

कोई काम करो, तो बड़े हो गए हो
दूसरा कोई करना चाहो तो, अभी बहुत छोटे हो
चारों तरफ से मिलती हैं नसीहतें
यह दुनिया मुझे समझती क्यों नहीं ?
कितना भी समझाओ
कुछ समझना ही नहीं चाहती है

ये उम्र का कौन सा मोड है मेरे जीवन का
जिसे जितना समझना चाहता हूँ
उतना ही उलझ जाता हूँ

तलाश

हे इश्वर
हर मानव
अपने अधिकारों को
बचाने के लिए
क्या दूसरों की
आत्मा का
हनन करता है ?

या फिर अपनी
झूठी शान, अहंकार
और घमंड के लिए
अपने ही खून का खून
करने को तयार रहता है ?
क्या उम्र भर
सबके अधिकार
उसमें सिमटे रहेंगे ?
कब निकल पायेगी ?
एक सय्याद के हाथों से
एक निर्बल की जान
जिसे उसने अपनी
वसीयत में से
सिर्फ आंसू ही
के रखे हैं
जिसकी साँसे तक
सय्याद के पास
क़ैद हैं

अब जीवन किसी की
क़ैद से मुक्त
खुले आकाश में
विचरते पक्षी की तरह
उड़ना चाहता है
अनंत जीवन की
तलाश में
फिर वापस
एक सुन्दर संसार
एक सुन्दर घर
जो मानव समाज के लिए
कल्याणकारी हो
किसी सय्याद की
छाया से दूर 

बुधवार, दिसंबर 12, 2012

अतीत

ये दिल भी
मेरा है
मेरा है 'निर्जन'
एक चीख
आत्मा
ने की
एक दिल यथार्थ का
होते हुए भी
अतीत के
पुराने यथार्थ
को खींच
लाया
मेरे समक्ष
क्या अतीत
ज्यादा सुखद था ?
क्या अतीत ज्यादा कोमल था ?
तभी तो चिपका रहा
मुझ से
पुराने रोग की भांति
एक समय  से
दूसरे समय तक
ये रोग (स्मृतियाँ)
किस प्रकार का है ?
नहीं जानता
नहीं जानता
पर रोग अब
बहुत पुराना होने पर भी
पुराने अन्न की भांति
अधिक पचन
शक्ति वाला
प्रतीत होता है
या मुझे
अच्छा  लगता है
मेरी भ्रान्ति
आत्मा को
भ्रमित किये हुए है ??

महक

ये संकरी गलियां
क्यों
मुग़ल उद्यान की
सुगंध की तरह
अपने में
खींचे चली
जाती है
नहीं जानता था
जब तक
तब भी
एक शराबी
के बहके
क़दमों की
भांति
उस पर दौड़ा
चला जाता था
वो अपरिचित
सुगंध
किसकी है
वो मेरे
बिछुडे हुए
अतीत के
गुलिस्तान की
महक है

तू ही है

आब-ए-चश्म भी तू ही है
दरीचा-ए-फ़िरदौस भी तू ही है
मेरे दिल-ए-बेहेश्त की हूर भी तू ही है
तूने मेरे जज्बातों की सदाक़त को न पहचाना
अब मेरी रफ़ाक़त को तरसती भी तू ही है
इश्किया मफ्तूनियत से गुज़र किसका हुआ है 'निर्जन'
चांदनी शब् में
सितारों से सजी
पालकी में झूमते अरमान लिए
तू मेरे और करीब आ जाएगी
महकते जज़बातों के फरमान लिए
रहीम-ओ-करीम तू ही है
दिल-ए-हबीब तू ही है
तेरे अबसार वही हैं
आरिज़ भी वही हैं
तेरे सिफ़त भी वही हैं
तेरी खराबे भी वही हैं
तेरी लफ्फाज़ी का लहज़ा-ए-तरीक़ा भी वही है
जो अलफ़ाज़ कहे थे मेरी तन्हाई पे तूने
मेरे फ़वाद पे आज तलक नक्श वही हैं
तू ही है जिसने दिए दर्द-ए-दिल्दोज़ मुझे
विसाल-ए-यार-ए-इज्तिरात में बन आब-ए-तल्ख़
दीद से मेरे बरसा भी वही है....

[आब-ए-चश्म - tears;
दरीचा-ए-फ़िरदौस - window to paradise;
दिल-ए-बेहेश्त - hearty paradise and heaven;
हूर - beautiful woman of paradise;
जज्बातों - feelings;
सदाक़त - sadness;
रफ़ाक़त - closeness;
इश्किया - love and excessive passion;
मफ्तूनियत - madness;
चांदनी -  moonlight;
शब् -  night;
गुज़र - a living;
रहीम-ओ-करीम - kind and generous;
दिल-ए-हबीब - heartly beloved;
अबसार - eyes;
आरिज़ - lips;
सिफ़त - talents;
खराबे - craziness;
लफ्फाज़ी - talktiveness;
लहज़ा - accent, tone;
तरीक़ा - manner, style;
अलफ़ाज़ - words;
फ़वाद - heart;
नक्श - mark;
दर्द-ए-दिल्दोज़ - heart piercing pain;
विसाल-ए-यार - meeting/union with beloved;
इज्तिरार - helplessness;
आब-ए-तल्ख़ - tears;
दीदः - eyes;]

रविवार, दिसंबर 09, 2012

Laud Someone Home

Today i am expatiating
During the wee hours
Of todays' chilling sunday winters
I am actually thinking nothing

My mind is totally empty
My heart is totally filled with affliction
But still i miss someone
Maybe that smile
The way they fills my soul with prosperity

Years have gone past
That have made my heart and myself
Grow despondent

May be someone out there
Can put it back together
I really miss those days
I really miss those people
I really miss the ways
They make me laugh and smile

My real smile
Is now buried under
My big shoddy laugh
But i know that
There is someone 
Still out there 
Have been on the 
Long, 
Flinty road 
To my heart
And 
Will peer at the stars

And i will 
Laud that someone home

शनिवार, दिसंबर 08, 2012

मैं भी शायद जल्द ही गिर जाऊँगा

इन सर्दियों की सियाह रातों में
आज
मैं देख सकता हूँ
अपने अतीत के अवशेषों को
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

अगरचे केवल तकदीर ने
मेरे लिए यह चुना है
तो एक बार फिर
मैं तकदीर से लडूंगा
और फिर से एक
आज़ाद मौत मर जाऊंगा
अपनी ख्वाइशों को
बंदिशों में बांध कर
और सिसक सिसक कर
जिंदगी बिताना 
क्या इस तरह जीने को
जिंदगी कहते हैं ?
क्या इस तरीके से
जीवन जीना मैंने चुना है ?
अपने सपनो के लिए
अपनों के लिए
मर मिटना
और दिल मैं कोई
अफ़सोस न रखना
यही मेरे जीने का मकसद है
कोई भी इस उत्साह
कोई इस उमंग को
मुझ से छीन नहीं सकता
मेरे मज़बूत इरादों को
अब कोई तोड़ नहीं सकता
चाहे अरमानो के
खून की नदियाँ बह जाएँ
चाहे मुस्कराहटों पर
अँधेरा छा जाये 
चाहे जिंदगी तीरों की बौछार करे
या फिर गोलियों की बारिश
अपनी जिंदगी की आखरी जंग
मैं मरते दम तक लड़ता रहूँगा
जब तक सांस में सांस है
जिंदगी
तेरे से ऐसे ही भिड़ता रहूँगा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

गोकि हारने का गम
अब दिल से जाता रहा
जिसपे रोता हूँ
वो हालात नज़र आता रहा
वो लोग जिन पर
दिल-ओ-जां लुटाए थे कभी
वो नासूर बनकर चोट करते हैं अभी
फिर भी लड़ना तो मुझे है
आखरी दम तक मेरे
इसलिए मैं, मैं हूँ
और यही है तरीका मेरा
हथियार डालूँगा नहीं
है खुद सी ही
यह वादा मेरा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

अगर कभी मैं स्वर्ग पाउँगा 
तो उन लम्हों को जीना चाहूँगा
जिंदगी के वो पल
जो कहीं खो गए हैं
जिनमें मेरे मिजाज़ के अनुकूल
लम्हे हुआ करते थे
जिन्हें मैं जीता था
और
हमेशा जीना चाहता था
पर अब वो पल
शायद ही वापस आयेंगे
पर सोचने में क्या जाता है
कोई न कोई तो है
जो उन्हें
खुद ही वापस लौटाएगा 
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

आखरी दरवाज़ा सिर्फ एक ही है
वो सिर्फ जीत की दस्तक देता है
आगे आने वाली पीढ़ी को
यह बात दीगर है के पीढ़ी
मेरी हो या किसी और की
खुद से लड़ कर
खड़े होने की प्रेरणा देता है
आज मेरे सपने शायद हार जाएँ
मेरी उम्मीदें ध्वस्त हो जाएँ
मेरे होंसलें पस्त हो जाएँ
पर अंत में तो विजय ही है
विचारधारा कभी हार नहीं सकती
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

कल कुछ लोग देख्नेगे
मेरी जीत के जश्न को
वो एक बेहतरीन पल होगा
जब मैं जीतूंगा और
वो हार जायेंगे
मैं खड़ा रहूँगा सामने
स्वाभिमान
आत्मसम्मान
गौरव
और मानसम्मान
के साथ
वो वक्त तो ज़रूर आएगा
इतना तो मालूम है मुझे
बेशक मैं गिर जाऊंगा
पर मेरे होसलों को कोई
छु भी नहीं पायेगा
पर आज
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

इन सर्दियों की सियाह रातों में
आज
मैं देख सकता हूँ
अपने अतीत के अवशेषों को
आंसू बह कर गिरते हैं
मेरे गालों से
वैसे मैं भी शायद
जल्द ही गिर जाऊँगा

गुरुवार, दिसंबर 06, 2012

Game Called Life

I'm not very good
At this Game called Life
For I've not learned to see children crying
Without feeling pain
For I've not learned to watch animals destroyed
Without wondering why
For I've not yet met a king or a celebrity
That I would bow down to
Or a man so insignificant
That I would use for a stepping-stone
For I've not learned to be a 'yes man'
To narrow minded bosses
Who quote rules without reason
And I've not learned to manipulate
The feelings of others
To be used for my own advantages
Then cast aside as I see fit
No, I'm not very good
At this Game called Life
And if everything goes well
Maybe I never will be...


These lines are not mine. Read them somewhere and really liked them because they relate to me, my feelings and my thinking. It seems that there is someone somewhere who is like me. So just published them on my blog. 

In My Dreams

I hear her whispers in my ears in my dreams
I hear her murmuring my name when i love her in my dreams
I hear her moans and groans in my dreams
I hear her saying make love to me in my dreams
I hear her telling me that i am the only one for her in my dreams
I hear her everyday and i love it so much

I see her falling into my arms in my dreams
I see her glowing face lightning up my darkness in my dreams
I see her fighting my problems in my dreams
I see her wiping off my tears in my dreams
I see her facing my fears in my dreams
I see her everyday and i love it so much

I smell her body fragrance, as i hold her in my dreams
I smell her hair conditioner, as i hug her in my dreams
I smell her mouthwash, as i kiss her in my dreams
I smell her excitement, as she cuddle in me in my dreams
I smell her aroma, as she looses herself in my arms in my dreams
I smell her everyday and i love it so much

I feel her fingers in my hair in my dreams
I feel her hot breath on my neck in my dreams
I feel her body pressed so close to mine in my dreams
I feel her lips on my throat in my dreams
I feel her hands move on my body in my dreams
I feel her everyday and i love it so much

I taste her lips in my dreams
I taste her tongue in my dreams
I taste her moistness in my dreams
I taste her salts in my dreams
I taste her love, passion and kisses in my dreams
I taste her everyday and i love it so much

I hear her in my dreams
I see her in my dreams
I smell her in my dreams
I feel her in my dreams
I taste her in my dreams
I do all this everyday and i love it so much

I am finally with her
She is finally with me
I love this so much
I love her all my life
Till i die, Till i die.

बुधवार, दिसंबर 05, 2012

मुझे नफरत है खुद से

मुझे नफरत है खुद से, उस सब के लिए जो मैंने आज तक किया
मुझे नफरत है खुद से, जिंदगी जीने के कोशिश करने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने जज़्बात दिखने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, प्यार करने की कोशिश करने के लिए

मुझे नफरत है खुद से, इस कामोन्माद में जलने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, जो कुछ भी मैं हूँ उसके लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने आँखों को आंसू देने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, खुद खड़ा होने की कोशिश के लिए

मुझे नफरत है खुद से, अपने वादों को पूरा न कर पाने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने अपनों को दुखी देखने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने एहसासों को मार देने के लिए
मुझे नफरत है खुद से, अपने कर्मों को पूरा न कर पाने के लिय

मुझे नफरत है खुद से, जो कुछ बदल नहीं सकता
मुझे नफरत है खुद से, अपनी जिंदगी जीने से
मुझे नफरत है खुद से, खुदखुशी के विचारों से
मुझे नफरत है खुद से, अपने डर के एहसासों से

मुझे एहसास है, मैं जकड़ता जा रहा हूँ
अपनी खुद की नफरत में
एहसास है उस खुदा के ठन्डे हाथ का
एहसास है उसकी कठोर पकड़ का
एहसास है उसके निकृष्टतर मिजाज़ का
उसने मुझे एक खुश मिजाज़ जिंदगी से
उठा कर इस अकेली सडन भरी मुर्दा जिंदगी में ला पटका

मुझे नफरत है इस जिंदगी की वजह से
मुझे नफरत है अपने इस छुपने की वजह से
मैं सच में यही सोचता हूँ, इससे अच्छा तो मौत मिल जाये
ऐसी बेनाम, रूखी, बेनूर, बेकार, सूनी, अकेली, लाचार, अत्याचारी जिंदगी से तो बेहतर
मौत क्यों न आ जाये, मौत क्यों न आ जाये, मौत क्यों न आ जाये

एहसास

जिंदगी रेत की तरह
हाथों से फिसल रही है
हर एक लम्हा बीत रहा है
तेरी यादों में
बिना जाने किस तरह
तुझको चाहूँ मैं
किस तरह से तेरी
उन सोई पलकों को
छु लूं मैं

सपने बदल रहे हैं यहाँ
तेरे साथ पाने को बेताब है रात

किसी सूखे दरख़्त के नीचे
छनते सूरज की गर्माहट

साँसों का हौले से आना जाना
एक कब्र खोद रहा हूँ मैं
अपने माज़ी की
तेरे साथ अपने मुस्तकबिल की
और खुद की भी

इतनी जल्द
इतनी तेज़ी से

कुछ पूर्वाभास
या मेरी किस्मत
या सब कुछ जो है
वो मतलब से है

ओझल कभी कुछ नहीं होता
अपना नामोनिशां छोड़े बिना

अपनी हथेलियों पर निराशा लिए
शायद अब नाच भी नहीं सकता
बिना नीचे गिराए उसे

नीचे जिंदगी के गलीचे पर 
कहीं रिस कर
उनमें न समां जाये

पर तेरे हाथ में देखा है
मैंने
मेरी जिंदगी को सोकने के लिए
वो सफ़ेद तौलिया
और वो तेरी हंसी की आवाज़
जैसे कागज की चिड़ियाँ
चहक रही हों शाखों पर
और वो पेड उग रहा है
मेरे दिल से

ये एक एहसास
दम तोड़ रहा है
धीरे धीरे...

मंगलवार, नवंबर 27, 2012

मुझे नफरत है के मैं तुम्हे प्यार करता हूँ...

मुझे नफरत है के तुम
मेरे हर ख्याल में रहती हो
मेरी सुबह तुम्हारे साथ होती है
मैं सोता हूँ तुम्हारी हंसी को सोच कर

मुझे नफरत है के मैं
तुम्हे इतना पसंद करता हूँ
तुम्हारी सुन्दर आँखें
तुम्हारे नमकीन होटों
को चखने के लिए
मैं तरसता हूँ

मुझे नफरत है
जिस तरह से तुम मुझे
महसूस करने को मजबूर करती हो
जैसे मुझे तुम्हारी ज़रूरत है
जीवित रहने के लिए
जैसे तुम्हारे बिना सांस लेना
अत्यंत कष्ट दायक है

मुझे नफरत है के मैं
तडपता हूँ तुम्हारे लिए
मुझे तृष्णा है तुम्हारे स्पर्श की
हर लम्हा
हर दिन

मुझे नफरत है
जिस तरह से मैं तुम्हे
चाहता हूँ
अपने अधम ह्रदय
के हर एक धडकन के साथ
तुम्हे चाहना
मुझे जीवित रखता है
फिर भी अकेला रखता है मुझे....

समाज नाज़ेबा है...मैं नहीं

समाज नाज़ेबा है
मैं नहीं

सुंदरता परिभाषित होती है
हमारे व्यवहार से
नाकि पैमाना पर खुदे अंकों से

भूखे रहना काम नहीं करता
परिष्करण काम नहीं करता
गोलियाँ काम नहीं करती

जो इंसान का अक्स
तुम देखते हो
आईने में
संपूर्ण है वो
हर तरह से
जिस तरह भी वो है
अभी

अब खफा क्या होना
यदि वो खरा नहीं उतरा
आपकी अन्तरंग
उम्मीदों पर

उपमार्ग काम नहीं करता
रुदन काम नहीं करता
मरना काम नहीं करता

याद है मुझे
समाज नाज़ेबा है
मैं नहीं

दोस्त किसे चाहियें ?

प्यारे अकेलेपन,
क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे ?
क्योंकि मैं देख रहा हूँ एक दौर,
मेरी दुनिया बिस्तर तक सिमट गई है |

प्यारे ग़म,
क्या तुम मुझे मेरी मुस्कान दे पाओगे ?
क्योंकि खुशियाँ मुझसे मीलों दूर हैं,
जैसे हर एक चीज़ जो मैंने सोची थी |

प्यारे निराशावाद,
क्या तुम मेरी मदद करोगे ?
क्योंकि आशाएं मेरी जिंदगी से फिसल गई हैं,
कुछ अपनों का अपनापन सह सह कर |

प्यारे कष्ट,
क्या तुम मुझे मजबूती दे पाओगे ?
क्योंकि एक तुम ही हो जो मुझे रोक पायेगा,
वो करने से जो मैंने सोचा है अरसे से |

प्यारे निधन,
क्या तुम मुझे जिला पाओगे ?
क्योंकि मैं और जीवित रहना नहीं चाहता,
ऐसे संसार में जो मेरी इतनी परवाह करता है |

प्यारे यमलोक,
क्या तुम मुझे साधू बना पाओगे ?
क्योंकि मैं योग्य नहीं हूँ, दिव्य सुखों का,
अपने कर्मों से मैं दोषी बन चुका हूँ |

प्यारे दोस्तों,
क्या तुम मुझे अपनी भावुकतापूर्ण कथा बनाओगे ?
क्योंकि आपको चाहियें अपनाअहंकार और वैभव
जिंदगी में जहाँ कभी मैं गिरा था |

मंगलवार, नवंबर 20, 2012

सर्दियों का आगाज़

बहकता हुआ मौसम
कोहरे की रात
माज़ी का वक्त
कुछ भूली बिसरी याद
वो पुकारती आँखें
वो शरारत भरा साथ
मुझे याद है अब भी उन
सर्दियों का आगाज़...