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सोमवार, अप्रैल 13, 2015

फेसबुकिया आशिक़

कल एक फेसबुक मित्र के साथ एक ऐसी घटना घटी जिसके कारण मेरा दिल यह रचना लिखने के लिए विवश हो उठा। मैं पहले तो कुछ संजीदा और उपदेशात्मक बनाकर कहने की सोच रहा था क्योंकि मुद्दा बड़ा ही गंभीर था और नारी के मान-मर्यादा से भी जुड़ा था। परन्तु फिर मैंने इस बात को बड़े ही सहज रूप से प्रस्तुत करने का विचार बनाया क्योंकि जैसे मेरे ज़्यादातर मित्र मेरी आदत से वाकिफ़ हैं मुझे बातों को पेचीदा बनाकर पेश करने में ज़रा भी मज़ा नहीं आता और ना ही बड़े-बड़े जटिल अल्फाज़ों और लफ़्ज़ों को पढ़ने का कोई शौक़ रहा है और ना ही दूसरों को पढ़ाने में कोई लुत्फ़ आता है तो सोचा इस बार भी अगर जूता मारना ही है तो क्यों ना हास्य की चाशनी में लपेटकर, हंसी की तश्तरी में सजाकर परोसा जाए। तो हाज़िर है जनाब-ए-आली आप सबके सामने एक आचार संबंधी, विचारशील मुद्दे पर, लिखी मेरी अपरिहासी और विचारवान रचना। आशा है मेरी कोशिश कुछ तो रंग लाएगी। एक नवचेतना का आगाज़ कर कुछ ख़ास खारिश-खुजली वाले वर्ग के लोगों में आत्मज्ञान का एक नया सूर्योदय कर पायेगी। शायद इसे पढ़कर उन्हें अपनी गलती का एहसास हो जाए, उनकी आत्मा चित्कार कर उन्हें धिक्कारे और वो सही राह पर आ जाएँ। ऐसी उम्मीद के साथ प्रस्तुत है :














देखो मित्रों, बला सरनाम
फेसबुक है, जिसका नाम
कायरों को, मिला वरदान
आते हैं सब वो, सीना तान

अकाउंट बना, मारें वो एंट्री
प्रोफाइल ऑफ़, हाई जेन्ट्री
छोड़-छाड़ के, अपना काम
चिपके हैं सब, सुबहों-शाम

देखी लड़की, दिल लो थाम
रिक्वेस्ट भेजो, करो सलाम
आशिक़ी का, नया आयाम
भेजो मेसेज, हो गया काम

छुरी बगल में, मुंह में राम
शोशेबाज़ी है, इनका काम
ओछापन कर, हैं बदनाम
आवारा छिछोरे, घसीटाराम

बनते हैं, दर्द-ए-दिल का बाम
पढ़ते हैं झूठा, इश्क़ कलाम 
इनबॉक्स में, करते हैं मैसेज
मंशा रख, क्लियर हो पैसेज

रेस्पोंस में जब, खाते ये जूती
नर्वसनेस में, बज जाती तूती
देख बिदकते, अपना अंजाम
पीठ दिखा, भग जाते ये आम

पोक की कोक, है इनको भाती
इनकी दुनिया से, भिन्न प्रजाति
बेहया बेशर्म, ये लिप्सा के मारे
सूतो इन्हें, दिखाओ दिन में तारे

'निर्जन' सुनो, हर ख़ास-ओ-आम
आरती उतार, दो नेग सरेआम
ब्लाक करो, औ बेलन लो हाथ
करो धुनाई, दो इनको सौगात

लातों के भूत, बातों से ना माने
तार दो बक्खर, लगो लतियाने
उधेड़ने पर ही, शायद ये माने
मजनू के भाई, लैला के दीवाने

--- तुषार रस्तोगी ---

गुरुवार, अक्टूबर 31, 2013

लफ़्ज़ों का जूनून - एक्सटेमपोर मुशायरा







कल 'लफ़्ज़ों का जूनून ग्रुप' की एडमिन अंजू वर्मा द्वारा आयोजित ऑनलाइन एक्सटेमपोर मुशायरा में भागीदारी करने का अवसर प्राप्त हुआ | बहुत ही बढ़िया तजुर्बा रहा मुशायरे में शिरकत करने काम, अपने जैसी सोच वाले दुसरे गुणीजन से मिलने का, उनके विचार और शेर पढने का | कार्यक्रम तकरीबन एक घंटा चला शाम ७.०० बजे से ८.०० बजे तक और सच कहूँ हो मौसम बहुत ही खुशमिजाज़ रहा | मैं शुक्रगुजार हूँ अंजू वर्मा का जिन्होंने मुझे इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए दावत दी और मेरा मान बढ़ाया | कार्यक्रम में सहभागिता  लेने वाले अन्य व्यक्तियों के नाम हैं नीना शैल भटनागर, और विशाल शुक्ला |  मुशायरे का आगाज़ अंजू वर्मा के मिसरा-ए-सानी देने के साथ हुआ जो था - 

मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली....

कार्यक्रम में मेरे द्वारा लिखे कुछ क्षणिक शेर आपकी नज़र कर रहा हूँ |

लक्ष्मी माँ करें कृपा तब मिट जाती बदहाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

संग साथ में रहें सभी सजाएँ पूजा की थाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

सुख और दुःख भूल मनाओ रात मतवाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

प्रेम प्रसंग को तड़पाती आई रात यह काली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

दिल में जब झंकार उठे गाए दिल क़व्वाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

भर कर सितारे मांग में झूमती है घरवाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

तीख़े बाण चलायें दिल पर बतियाँ तेरी मतवाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

खूब लगाओ पेड़ और पौधे करो ज़रा हरियाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

अन्ताक्षरी चले धमाधम बैठे हों जीजा साली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

बालक बूढ़े खूब हँसे खिलखिला बजाएं ताली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

ह्रदय की नदिया से बहे प्रेम की धार निराली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

अगरबत्तियों से महकाए आज रात यह काली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

छोड़ धमाके रिश्तों में चलाओ प्रेम दुनाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

कड़वाहट सब दूर करें खाएं मीठी सुआली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

नशा, मसाले सब बंद करें त्यागो ये जुगाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

जुआ-जुआरी से कहो न करो जेब तुम खाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

लक्ष्मी माँ को नमन करो पाओ अनुकंपा लाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

द्वेष भाव को त्याग कर खिलाओ भूखे को थाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

मेरी बातों पर गौर करें बन जाएँ खुद सवाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

पटाखों में आग लगा करते रात क्यों काली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

बंद करो पटाखे दिये से करो रात उजियाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

एक दूजे को समझ कर बजाएं साथ में ताली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

बज गए हैं आठ अब गएँ मिल सब क़व्वाली
मन से मन के दीप जलें तब होती है दीवाली

सिलसिले चलते रहें यूँ ही,
चमके कलम की धार निराली,
मन से मन के दीप जलें,
तब होती है दीवाली ....

कुल मिला कर शाम मज़ेदार रही | उम्मीद है ऐसे मुशायरे और कार्यक्रम जल्दी जल्दी आयोजित होंगे और मुझे उनमें सहभागी बनने का अवसर प्राप्त होता रहेगा | दीपावली सभी की मंगलमय हो, खुशियों से भरी हो और सुरक्षित हो | 

जय श्री राम | हर हर महादेव | बजरंगबली महाराज की जय