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बुधवार, जून 17, 2015

वो झाँसी की रानी थी



















बनारस में वो थी जन्मी, मनु सबकी दुलारी थी
मोरपंत, मां भागीरथी की, एकमात्र दुलारी थी

पिता छांव में बड़ी हुई, मां क्या है ना जानी थी
वीरांगना बन जाने की, बचपन से ही ठानी थी

हर कौशल में दक्ष रही, बहन नाना को प्यारी थी
राजा संग लगन हुआ, पर हाय भाग्य की मारी थी

सब गंवाकर भी अपना, हिम्मत ना उसने हारी थी
ज्वाला ह्रदय में रखकर, जिगर में भरी चिंगारी थी

सिंहनाद गर्जन कर वो, जब रणभूमि में हुंकारी थी
देह लौह जैसी थी उनकी, कर तलवार कटारी थी

छक्के दुश्मन के छूटे, बन चंडी जब ललकारी थी
शहादत दे अमर हुई वो, जां देश के लिए वारी थी

व्यक्तित्व अनूठा उनका, मन मोम की क्यारी थी
वीर सुपुत्री भारत माँ की, वो लक्ष्मीबाई न्यारी थी  

बुंदेले हरबोलों से सबने, उनकी सुनी कहानी थी
क्या खूब लड़ी थी मर्दानी, वो झाँसी की रानी थी

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, मई 25, 2015

सज़ा



















आज अपने दिल को सज़ा दी मैंने
पुरानी हर याद-बात भुला दी मैंने

बातें जिनपर वो खिलखिलाती थी
ज़हन से अल्फ़ाज़ मिटा दिए मैंने

बीता हर पल दफ़न कर दिया मैंने
गुलदस्ता यादों का जला दिया मैंने

दिल ये फिर खाख से आबाद हुआ
आतिश-ए-दिल को जला दिया मैंने

यादों की मज़ार पर फिर आई थी वो
मुंह फेर अजनबी उसे बना दिया मैंने

रिश्ता कोई नहीं दरमियां बाक़ी 'निर्जन'
एक नया रिश्ता ख़ुशी से बना लिया मैंने

--- तुषार राज रस्तोगी ---

मंगलवार, दिसंबर 02, 2014

क़िस्मत




















मैं तो हर शब् से एक
रिश्ता बनाता गया था यूँ ही
जहाँ से भी गुज़रा यादों का
दरिया बहाता गया यूँ ही
पर मेरी क़िस्मत का
लिखा भी अजीब था 'निर्जन'
गुनेहगार कोई और था, और
सज़ा मैं पाता गया यूँ ही
हाँ, आज मैं ये तस्लीम करता हूँ
कि मुझे मोहब्बत नहीं मिलती
मगर, ओ मेरी सोच के मेहवार
कभी यह भी ज़रा सोचो कि
जो तुम को याद करता हूँ
तो खुद को भूल जाता हूँ

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, सितंबर 18, 2014

ऐ जान अभी ना जा

ऐ जान अभी ना जा,
ज़रा कुछ देर तो ठहर "निर्जन",
अक्सर साथ तेरा पाया है मैंने,
तन्हाई मेरी मिटाने को,
अकेलेपन के इस विराने मे,
हक अपना जतलाने को,
गम से निजात दिलाने को,
इन होठों को हंसाने को,
दोस्ती अपनी निभाने को,
प्यार से गले लगाने को,
अपना कोई कहलाने को।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, सितंबर 12, 2014

मुझे इश्क़ क्यों न हो जाए तुमसे


तुम बन गई हो स्वभाव मेरा
तुम से जीवन है ख़ास मेरा
तुम अब रोजमर्रा की आदत हो
तुम ख़ुदा के मानिंद इबादत हो
तुम बेस्वाद ज़िन्दगी में स्वाद हो
तुम विनोदी घटनाओं में ख़ास हो
तुम मज़ेदार कहानी सा किस्सा हो
तुम ज़ोरदार लतीफ़े का हिस्सा हो 
तुम ही कहो ना परमप्रिय
मुझे इश्क़ क्यों न हो जाए तुमसे

कितनी ही बातें की हैं मैंने तुमसे
कितने जज़्बे, इरादे कहे हैं तुमसे
कितने दर्द सहे हैं रहकर दूर तुमसे
कितनी ही बातें अनकही हैं तुमसे
कितने अरमां बाक़ी है कहने तुमसे
कितनी अधूरी है जुदा ज़िन्दगी तुमसे
कितनी उन्सियत है दिल को तुमसे
कितना भी कहूँ हमेशा कम है तुमसे
तुम ही कहो ना परमप्रिय
मुझे इश्क़ क्यों न हो जाए तुमसे

साथ हमने जीवन का रंग देखा है
साथ तुम्हारे हर मौसम चहका है
साथ तुम्हारा महकती कस्तूरी है
साथ नहीं जो ये ज़िन्दगी अधूरी है
साथ चलते शाम-ए-हयात आएगी
साथ मोहब्बत का पैग़ाम लाएगी
साथ का तेरे यकीन है हमदम
साथ हर पल है तेरे प्यार का बंधन
तुम ही कहो ना परमप्रिय
'निर्जन' इश्क़ क्यों न हो जाए तुमसे

--- तुषार राज रस्तोगी ---

सोमवार, सितंबर 08, 2014

कल्पना तू ही
















तुझसे हैं सुबहें मेरी
तुझेसे ही शामें मेरी
तुझसे रातें दहकती मेरी
तुझसे हैं बातें मेरी
जिस्म में दिल की जगह
अब तू ही तू धड़कती है
आईना देखूं जो मैं
मेरे अक्स में तू झलकती है
जो तू नहीं तो कुछ भी नहीं
जो तू है तो सब कुछ यहीं
तेरा हूँ मैं और तू मेरी
‘निर्जन’ की है कल्पना तू ही
तुझसे हैं...


--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, अगस्त 29, 2014

मेरा अंदाज़ नहीं














मालूम है, आज कोई मेरे साथ नहीं 
मालूम है, दूर तक कोई आवाज़ नहीं
मालूम है, अनजाने ये हालात नहीं
ये तो वक़्त ने ऐसी हालत कर दी है
नहीं तो ऐसे जीना मेरा अंदाज़ नहीं

सवेरा कब हो चला कुछ मालूम नहीं
शाम कब ढल गई कुछ मालूम नहीं
गुज़ारा कैसे हुआ कुछ मालूम नहीं
ये तो सोना जागना ऐसे हो गया है
नहीं तो ऐसे घुलना मेरा अंदाज़ नहीं

मालूम है, दूर तक आज रौशनी नहीं
मालूम है , रहता बहुत कुछ याद नहीं
मालूम है, मैं हूँ आज भी गलत नहीं
ये तो ज़माना है जो बातें बनाता रहता है 
नहीं तो ऐसी बर्बादी मेरा अंदाज़ नहीं

ये वक़्त भी निकल जायेगा 'निर्जन'
क्योंकि घने अँधेरे के बाद सुबह नहीं
ईश्वर ने बनाई ऐसी कोई रात नहीं
मालूम है, आज कोई मेरे साथ नहीं 
नाराज़गी अपनों से मेरा अंदाज़ नहीं

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, अगस्त 28, 2014

जानबूझकर















सिलसिला-ए-गुफ़्तगू चलता रहा तुमसे
इत्तफ़ाक नहीं करता था मैं जानबूझकर

साथ चलते यूँ ही छू जाता है हाथ तुमसे 
या तुम छू लेती हो मेरा हाथ जानबूझकर

जानता हूँ सड़क पर चलना आता है तुमसे 
थामता हूँ हाथ तुम्हारा मैं भी जानबूझकर

बस गुज़र रहा था, मिलने चला आया तुमसे
मुलाकातें चाहता हूँ मैं मुसल्सल जानबूझकर

'निर्जन' हाल-ए-दिल मेरा छिपा नहीं है तुमसे
ना जाने क्यों करता हूँ इनकार मैं जानबूझकर

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, मार्च 05, 2014

मैं पगला लगता हूँ















सजदे में तेरे झुकता हूँ
कलमा मैं तेरा पढ़ता हूँ

राहों में तेरी फिरता हूँ
ज़िक्र मैं तेरा करता हूँ

यादों में तेरी बसता हूँ
अरमां मैं तेरा रखता हूँ

नाम तेरा सदा जपता हूँ
क़ौल मैं तेरा करता हूँ

ख्वाबों में तेरे चलता हूँ
ग़़जल मैं तुझपर लिखता हूँ

वो कहते हैं,
"तू क्या है" 'निर्जन'
उनको मैं पगला लगता हूँ 

शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2014

सनम














इज़हार-ए-इश्क़ का आया मौसम
अरमां मचलते इस दिल में सनम

महफूज़ मुद्दत से रखा हमने इन्हें
आज क्यों ना कह दें तुमसे सनम

मालूम है फ़र्क पड़ता नहीं तुमको
हम जियें या मर जाएँ ऐसे ही सनम

हसरत दिल की दिल में ना रह जाये
यही सोच लिख बयां करते हैं सनम

तुम कब समझोगी ये अंदाज़-ए-बयां
हो ना जायें हम फनाह इश्क़ में सनम

सोचता 'निर्जन' थाम हाथ मेरा भी कभी
कहेगा हूँ मैं साथ तेरे यहाँ हर पल सनम

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014

गुलपोश














गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है

अदा उसके इतराने की
दिल में वाबस्ता रहती हैं
सोच कर क्या मैं लिख दूं
हसरतें मेरी जो कहती हैं

उन्स की खुशबू ओढ़ कर
फ़ना हो जाऊं इस इश्क में
शोला-बयाँ आरज़ू कर तर
जवां हो जाऊं इस इश्क़ में

सदा जा-बजा आती है
'निर्जन' सुनता रहता है
आज भी गुलाबों के दिन
सपने बुनता रहता है

गुलपोश : फूलों से भरे
रुखसार : गाल
शुमार : शामिल
वाबस्ता : संलग्न
हसरत : कामना
उन्स : लगाव
फ़ना : नष्ट
शोला-बयाँ : आग उगलने वाली
सदा=आवाज़
जा-बजा=हर कहीं 

रविवार, फ़रवरी 02, 2014

तुम्हारे लिए





















मेरी कविता, मेरे अलफ़ाज़
मेरी उम्मीद, मेरे उन्माद
मेरी कहानी, मेरे जज़्बात
मेरी नींद, मेरे ख्व़ाब
मेरा संगीत, मेरे साज़
मेरी बातें, मेरे लम्हात
मेरा जीवन, मेरे एहसास
मेरा जूनून, मेरा विश्वास
सब तुम्हारे लिए ही तो है
फिर क्या ज़िन्दगी में
तुमसे कह नहीं सकता
मेरे जीवन का हर क्षण
तुम्हारे लिए ही तो है
तुम भी अपनी साँसों में
मेरी हर एक सांस को
बसा सकते हो क्या ?
इस ज़िन्दगी में तुम
हर पल हर क्षण यही
गीत गा सकते हो क्या ?

एक गीत एक कविता
फिर कहानी सुनाएगी
कहेगी, बतलाएगी
मेरी मस्ती में तुम भी
शामिल हो जाओगी
निश्छल निर्मल
अनोखी सरल
शरारती दिल्लगी
तुम्हारे जीवन में
संचार करेगी तिश्नगी
जब तुम पा जाओगे
इश्क की मंजिल वही
ज़िन्दगी के हर लम्हे में
हर मोड़ पर हल पल में
फैल जाएगी सुगन्ध
महक मेरे पागलपन की
तसव्वुर में तुम्हारे
तब बेचैन हो उठोगे
अपने आप को
मेरी पहचान में
शामिल करने को.....

बुधवार, जनवरी 15, 2014

देखे होंगे


















मेरी तरह उसने भी तो रातों में
चाँद से लिपटते तारे देखे होंगे
चांदनी के आगोश में सिमटते
वो मदहोश नज़ारे देखे होंगे
रात के आसमान में धीरे से
खिसकते बादल देखे होंगे
छत की मुंडेर को थामे वो
रातों में मुझे ढूँढ़ते तो होंगे
सियाह रात के सर्द कुहरे में
बंद होठ धीरे से मुस्कुराते होंगे
अनकहे अनछुए एहसास उसके
दिल में भी धड़कते मचलते होंगे
बस कह नहीं पाता है वो
दिल की बात 'निर्जन' तुझसे
ये बात दीगर है कि सपने तो
उसने भी वही देखे होंगे...

मंगलवार, दिसंबर 31, 2013

रिश्ते















कुछ ऐसे रिश्ते होते हैं
जो दिल में बस जाते हैं
आदत बनकर रहते हैं
छूटे से छूट ना पाते हैं

ख़ुशबू बन कर जीते हैं
गुलशन जैसे महकते हैं
गुलाब से खिल जाते हैं
कांटो में साथ निभाते हैं

'निर्जन' बस ये कहता है
ऐसे रिश्तों को खो न देना
जीवन को यही सजाते हैं
वो दिल से जहाँ बनाते हैं 

सोमवार, दिसंबर 30, 2013

मेरा रहबरा














ओ रे मितवा, तू है मेरा रहबरा
बन रहा है, तुझसे मेरा राबता

दिल से मेरे है अब, तेरा वास्ता
तू ही दिखा दे अब, आगे रास्ता

तू रहगुज़र-ए-दिल-ए-खुशखीरां
लग रहा है तू ही, मेरा कहकशां

खुदा हो रहा 'निर्जन' पर मेहरबां
मिलते हैं उसकी रहमत से कद्रदां

गुरुवार, दिसंबर 26, 2013

यह किसकी दुआ है
















ऐ मेरी तकदीर बता
किसकी दुआ है
दिल में उमंग
जिगर में तरंग
यह किसकी दुआ है

मेरे जीवन की
मेरे मन की
चमक दमक तो
संवर गई अब
जुगनू सा
प्रकाशमय जीवन
जगमग सितारों सी
रौशनी है
यह किसकी दुआ है

मन को मोड़ा
तन को जोड़ा
साँसों की तारों
को झकझोरा
यह किसकी दुआ है

एक आवाज़
ह्रदय को हर्षाती
प्रार्थना को भेदती है
आत्मा के यौवन को
खुशियों से प्राणों
से जोड़ती है
यह किसकी दुआ है

अपनों के बंधन
सच्चे और मीठे
साँसों का
हर कतरा झूमा है
यह किसकी दुआ है

पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा
एक-एक करके
मेरे मन मस्तिष्क में
हर क्षण, हर पल
कुछ ना कुछ
गाता है, गुनगुनाता है
पूछता है कहता है
'निर्जन'
यह किसकी दुआ है

यह किसकी दुआ है 

गुरुवार, दिसंबर 05, 2013

ज़िन्दगी












रज़ाई ओढ़े सर्दी में अलाव सेकती ज़िन्दगी
ठंडी भोर की बेला में बात सोचती ज़िन्दगी
देसी घी और मेवा का स्वाद देती ज़िन्दगी
बच्चों की ज़िद के जैसी है जिद्दी ये ज़िन्दगी

सुबह महकते एहसासों में लिपटी ज़िन्दगी
दिसम्बर की ठण्ड में कड़कड़ाती ज़िन्दगी
लोई ओढ़ बिस्तर में आराम करती ज़िन्दगी
सोच से सृजन बनाती है आज मेरी ज़िन्दगी

मुश्किलों को प्यार से गले लगाती ज़िन्दगी
तन्हाई में अपने ग़म का जश्न मानती जिंदगी
चुप्पी साधे खड़ी रही मज़बूत बन ये ज़िन्दगी
मुस्कान बनकर जीती है होटों पर ये ज़िन्दगी

खुशियों के सैलाब में गोते लगाती ज़िन्दगी
सनम जैसा प्यार मुझ पर लुटाती ज़िन्दगी
खिलती रही बेबाक सी हंसा कर ज़िन्दगी
मासूम बन मचलती रही बेहिसाब ज़िन्दगी

दिल की वादियों में खिलता गुलाब ज़िन्दगी
जवान धड़कनो में जलती आग है ज़िन्दगी
सावन में बरसती मीठी आग जैसी ज़िन्दगी
तपते सेहरा में जीने की आस भर ज़िन्दगी

खुद की पहचान की ललक लिए ज़िन्दगी
वादों में इरादों पर ऐतबार करती जिंदगी
जी रहा है 'निर्जन' जीने को तो ये ज़िन्दगी
तुझसे मिलने की फ़रियाद है यह ज़िन्दगी 

शुक्रवार, नवंबर 01, 2013

कैसी अधूरी यह दीवाली












जो बसते परदेसों में हैं
घर उनके आज हैं खाली
धनतेरस, दिवाली पर
सबकी रातें बस हैं काली

घर आँगन तुम्हे बुलाता है
दिल मिलने को कर जाता है
माँ जाये अपनों की चिंता में
दिल माँ का रो-रो भर आता है

दिल को कितना समझती है
पर चिंता से मुक्ति ना पाती है
वो अपने आँचल के पंखे से
नयनो के आंसू सुखाती है

तू भी कितना खुदगर्ज़ हुआ
पैसों की खातिर खर्च हुआ
अपनों का दिल दुखाने का
तुझको ये कैसा मर्ज़ हुआ

दिल तो तेरा भी करता है
वापस जाने को मरता है
क्यों व्यर्थ तू चिंता करता है
मजबूरी की आहें भरता है

अब दिवाली के धमाको में
एक सन्नाटा सा परस्ता है
कैसे कहे दिल उसका भी
मिलने को बिलखता है

आँखें नम हैं यह सुबह से
हाथ भी दोनों हैं खाली
घर से दूर इस जीवन की
कैसी अधूरी यह दिवाली

माँ, मेरा आँगन भी सूना है
आँखों में मेरे भी है लाली
बस हाथ तेरा सर पर है तो
हर दिन जीवन में है दिवाली

सोमवार, अक्टूबर 28, 2013

कौन निभाता किसका साथ















कौन निभाता किसका साथ 
आती है रह-रह कर यह बात 

मर कर भी ना भूलें जो बातें 
कोई बंधा दे अब ऐसी आस 

गुज़रे लम्हों को लगे जिलाने  
रो रो दिनभर कर ली है रात

सूना यह दिल किसे पुकारे 
दया ना आती जिसको आज 

आना होता अब तो आ जाता 
अपनी कहने सुनने को पास 

कह देता इतना मत रो अब 
यह अपने आपस की बात 

झूठी हसरत सुला कब्र में 
सुबह हुई 'निर्जन' अब जाग 

आती है रह-रह कर यह बात 
कौन निभाता किसका साथ 

सोमवार, अक्टूबर 21, 2013

धोखेबाज़ दोस्त

















अब ऐतबार के लायक रहा नहीं जहाँ
दोस्त बन के देते हैं धोखा कहाँ कहाँ

दर्द-ए-दिल बताओ जो अपना जान के
दो मुंहे डसते हैं ये फन अपना तान के

ना करना भरोसा दुनिया पर तुम कभी
दुखेगा दिल तुम्हारा सोचो ये तुम अभी

छिपा कर दिल के घाव रखो सबसे जुदा
दुनिया में मिलेगा पगपग पर नया खुदा

बातों में उनकी आकर पछताओगे तुम
सीने में खंजर घोंप के हो जायेंगे ये गुम

गुज़ारिश 'निर्जन' करता तुमसे है यही
भरोसा न करना ऐसों पर रहेगा सदा सही