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रविवार, अप्रैल 10, 2016

एक कहानी


सुनो सुनो - एक कहानी
सच्ची सी थोड़ी, अच्छी सी
एक ठगने वाले लुच्चे की
सुनो सुनो - एक कहानी

हिन्द नाम के गोले पर
है एक अदभुत जंगल
जंगल के थोड़े से प्राणी
भैया हैं बहुत ही मेंटल

गत वर्ष वो पगलेट हुए
चुनकर लाये रंगा सियार
फ़र्ज़ी बातों की खाकर लातें
सर चढ़ा लिए किसको यार

बिना बात के बैठे-बैठे
ख़ुद का ही उल्लू बनाया
रंग लपेट ईमानदारी का
सियार मंद-मंद मुस्काया

खुजली वाला रंगा सियार
है सच में दुर्लभ कीड़ा
साल भर से बाँट रहा वो
नित नई असहनीय पीड़ा

सबको दे धोखा सियार ने
चंदे में टाका बहुत कमाया
युटीलाईज़ेशन कर चंदे का
अपना बेलबांड भर आया

भ्रष्ट पुलिस की भ्रष्ट जेल में
अगले को जाना नहीं गंवारा
हाथ आई जंगल सत्ता पर है
अब तो एकाधिकार हमारा

चाहता तो देकर सबूत वो
जुगनू मौसा को फँसवाता
सबूतों का देकर वो फंदा
मौसा के गले में कसवाता

पर बचा लिया मौसा को
सुधरने का मौका बताया
जैसे लोमड़ी ताई को पहले
रुसवा होने से था बचाया

बूढ़े जानवर इस गोले के
समझाकर गए हैं गहरी बात
तुम नफरत करो बुराई से
ना देखो तुम बुरे की ज़ात

खुजली खुजली करते करते
खुजली की चुभ गई है फाँस
खुजा खुजा बंजर हुई धरती
अब कब उगेगी नई हरी घास ?

भैया पिछले एक वर्ष से
नाटक हो गया यह ख़ास
धूर्त सियार की ईमानदारी पर
टिक गई है सबकी आस

शिष्ट व्यवहार, मीठे वचनों से
इस सियार ने दिए हैं झंडे गाड़
कोई जिये या कोई मरे अब
इसकी बला से सब गए भाड़

कोटि कोटि नमन 'निर्जन' का
ऐसे सत्यानाशी सियार को यार
बदल दिया जिसने ख़ुद के ही 
वचनों-कसमें-वादों, का सार

धन्य हो गया गोला-ए-हिन्द
चरण धूलि से इनकी आज
ऐसे रंगे सियारों औ मूर्खों से
कौन बचाएगा हिन्द की लाज?

#तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #राजनीति #कहानी #व्यंग #रंगासियार #गोला #जंगल #मूर्ख

शनिवार, जनवरी 02, 2016

इमोशनल फूल













कुछ अपने हुए नामाकूल
टॉक्स हैं इनकी जैसे शूल
माइंड में मतलब की चूल
अक्ल से हैं ये बैल से लूल
करें प्यार का टैक्स वसूल

भाड़ में जाएँ नियम उसूल
अपनेपन की बात फ़िज़ूल
अपने अपनों को देते हूल
पराये अब लगते जो कूल
पैसा बन गया आज रसूल

हिस्ट्री-फ्यूचर में रहे हैं झूल
प्रेजेंट में ये करते है डरूल
हसरत इनकी उल जुलूल
'निर्जन' कहते हैं ये सब से   
नही हैं ये इमोशनल फूल

भैया अपन भी गए थे भूल
सब हैं अपने में ही मशगूल
चढ़ी आज जज्बातों पर धूल
जीवन जीने का नया ये रुल
प्रक्टिकैलिटी में है अनकूल

#तुषारराजरस्तोगी #प्रैक्टिकल #इमोशनल #फूल

शनिवार, अगस्त 01, 2015

गुलाबो भैंस भाई सा













कुंठित सी भैंस भाई सा, देखी हमने ख़ास
सब पर करूँगी राज मैं, इत्तूसी है बस आस
इत्तूसी है बस आस, बात-बात में रमभाए
कुंठा इनकी देख, दुनिया यह त्रस्त हो जाए

कलयुग के बाज़ार में, दिखा विचित्र सा भेस
लगा गुलाबी रंग, झूमती फ़िरे गुलाबो भैंस
झूमती फ़िरे गुलाबो भैंस, बुद्धि कतई ना पाई
मंदमति वीरांगना ये, बस पूँछ हिलाती आई

सींग हैं अदृश्य इसके, घिनौना सोच विस्तार
माथे पर बस सजा रहे, बेचैनी का अम्बार
बेचैनी का अम्बार, विचलित हस्ती इसकी
ख़ुदा अक्ल दिलाए, बुद्धि कुंद हो जिसकी

परेशां औरों से रहती, ढूंढती सब में ख़ामी
धारणा बनाए रहती, करती सबकी बदनामी
करती सबकी बदनामी, जुबां कड़वी चलाए
सीधा सादा इंसान हो तो, बस पगला जाए

लोमड़ी सी है चालु, बकरी सी है दुखियारी
शातिर बड़ी गुलाबो, फैलती द्वेष की बीमारी
फैलती द्वेष की बीमारी, अजी सब बचके रहना
चक्कर में जो आए, फ़िज़ूल दुःख पड़ेगा सहना

देता 'निर्जन' ये टिप, भैंस भाई सा तुम लेना
मरखने जंगली बैल से, ज़रा बचकर ही रहना
ज़रा बचकर ही रहना, पड़ ना जाए पछताना
अपनी सोच का गोबर, अपने मुंह पर लगाना

#तुषारराजरस्तोगी  #गुलाबो  #हास्यव्यंग  #भैंसभाईसा  #नसीहत  #हैप्पीफ्रेंडशिपडे

गुरुवार, जनवरी 22, 2015

खुजलीमैंन एंड पार्टी













दिल्ली के चुनावों में, लो नौटंकी सजाए
खुजली मैंन मौकापरस्त, रायता फलाए

मफलर, टोपी, चश्मा ये, धारण कर आए
गाल बजा बजाकर, नित नए गान सुनाए

मानहानि जोड़ कर, ग्यारह केस बनाए
करोड़ो की पूँजी में, इत्तू सा लौस दिखाए

लोकसभा के लालची, लार सदा टपकाए
बिन सबूत दूजे पर, इलज़ाम ख़ूब लगाए

भ्रष्टाचार का बाजा, हरदम ख़ूब बजाए
भ्रष्टाचारी आप ही, धुल में लठ हिलाए

स्वराज-लोकपाल की, धज्जियाँ उडाए
पागल थी जनता जो, घर यूँ ही लुटवाए

चंदापार्टी ख़ूब है, झट सेक्युलर बन जाए
दुबई जा शेखों से, माया झोली में पाए

इरादा क्या खूब है, लोमड़ माइंड फरमाए
भोली जनता को, बीस हज़ारी डिनर कराए

पांच सौ में सेल्फी, साथ जो चाहे खिंचवाए
आम आदमी बन, गोरख धंधा खूब चलाए

बेशर्मी के पेंच ये हरदम, ऊँचे खूब उड़ाए
26/11 के नाम पर चंदा, कैसे मांगे जाए

टिकट लेने जो गए, पहले जेब ढ़ीली कराए
मूर्ख बना ऐसों को, ऊँगली पर खूब नचाए

लंपट बाबा खुद को, बस कॉमन मैंन बताए
बिज़नेस क्लास में कैसे, फिर ये मौज उड़ाए

बाबा ड्रामेबाज़ है, नित नए खेल रचाए
माया पाने के लिए, भिखमंगा बन जाए

चुनाव निकट देख कर, युक्ति नई लगाए
मुंह मुखौटा लाद ये, हाथ जोड़ दिखलाए

झाड़ू टोपी धार कर, गली गली चिल्लाए
मैं युगपुरुष महान हूँ, वोट मुझे ही आए

बुलेट हाथ थमाए के, कार्यकर्ता बनाए
एवज़ में नेता जी, प्रचार अपना करवाए

प्रचार के नाम पर, ये भूखे पेट घुमाए
गिलास भर पानी को, बंदा तरसा जाए

नीतियाँ खोटी इनकी, इनको ही सुहाए
विरोध होता देख कर, भृकुटी तन जाए

बेवक़ूफ़ है वो जो, साथ इनका निभाए
लात ये धरे हैं, जो मतलब निकल जाए

खुदगर्जों की जमात है, चूना खूब लगाए
दिल्लीवासी को 'निर्जन', प्रभु जी ही बचाए

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, नवंबर 13, 2014

आज का इंसान



















बाहर से आलोकनाथ है अन्दर शक्ति कपूर
आज का इंसान कितना कमीनेपन से भरपूर

सबक सैंकड़ों सीख कर भी आदत से मजबूर
लोभ, ईर्ष्या, द्वेष, ग़द्दारी, चालाकी से भरपूर

पीढियां बीत गईं इसकी पर तहज़ीब है काफ़ूर
कुत्ते की दुम सी फ़ितरत है टेढ़ेपन से भरपूर

चलती फिरती नौटंकी है ये दुनिया में मशहूर
दिखावे खूब दबा कर करता ये झूठ से भरपूर

"निर्जन" कहता ऐसों से बेटा बनो नहीं तुम सूर
घड़ा पाप का जब भर जाए तब दंड मिले भरपूर

--- तुषार राज रस्तोगी ---