इस साल के दिन जाने लगे हैं
नए साल के दिन आने लगे हैं
नए दिन देखो क्या आने लगे हैं
बीते दिन सब भूल जाने लगे हैं
बिछड़े बच्चे गुम जाने लगे हैं
अपनों के ग़म सताने लगे हैं
बाढ़ और प्रलय तड़पाने लगे हैं
पीड़ितों को बाबू जताने लगे हैं
सीमा पर आहुति चढ़ाने लगे हैं
उजड़ी मांगों को तरसाने लगे हैं
चुनावी दिवस अब आने लगे हैं
नेता भी अपनी खुजाने लगे हैं
चील गिद्ध बन मंडराने लगे हैं
ज़ख्मों को नोच खाने लगे हैं
गले सब के फड़फड़ाने लगे हैं
मौकापरस्त मेंढक टर्राने लगे हैं
सबको ग़लत गिनवाने लगे हैं
करनी अपनी छिपाने लगे हैं
दूसरों में दोष दिखाने लगे हैं
सब दूध से अब नहाने लगे हैं
भाषण से जनता बहलाने लगे हैं
टोपी सभी को पहनाने लगे हैं
दर्द और टीस के आने लगे हैं
'निर्जन' दाम पकड़ने लगे हैं
आदमखोर कितने सयाने लगे हैं
इंसा के दुःख को भुनाने लगे हैं
ज़ख्म पुराने यूँ भर जाने लगे हैं
ज़ख्म नए आवाज़ लगाने लगे हैं
--- तुषार राज रस्तोगी ---