अनंत काल की
जन्मो जन्मो से
तरसती है
मैं कौन हूँ
क्या हूँ
सब जानते हुए
हर जन्म में
नई मोह माया के
उधड़े बुने जाल में
फंसती है
मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
किसी चाहत को
तड़पती है
कभी श्राप है
कभी आशीर्वाद है
नौका विहार की भांति
लहरों से मुझे
मिलाती है
गहन अन्धकार
दिव्य प्रकाश
हर जन्म में मुझे
धरोहर में मिलता है
मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
कुछ ना
पाने को की
मचलती है
बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंअत्यधिक सुन्दर भाव!
सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंमेरी मृगतृष्णा
जवाब देंहटाएंअनंत काल से
कुछ ना
पाने को की
मचलती है
हैरान हूँ !!
tushar ..kahin gehre antarman ko chu gai tumhari ye rachna meri mrigtrishna ..bahut arthpoorn :-)
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