सोमवार, अप्रैल 25, 2011

लिखता रहता हूँ

दिलों को पढ़ता
धडकनों को सुनता रहता हूँ
मैं भी कैसी कैसी तकरीरें
लिखता रहता हूँ

माज़ी की गलियों में
एक अस्क को देखा करता हूँ
तेरे मिलने की खुशफ़हमी
लिखता रहता हूँ

सभी साए अब
पेड़ों जैसे लगते हैं
और आहों को शाखें
लिखता रहता हूँ

तेरा दिल रखने के
मंतर भूल गया
आड़ी तिरछी हरकतें
लिखता रहता हूँ

तुझको ग़म देकर
मुझको क्या करना है
तेरे नाम यह नगमें
लिखता रहता हूँ

तेरी जुल्फों के साए
ध्यान में रहते हैं
तेरे जिस्म की खुशबू
लिखता रहता हूँ

तेरी नज़रें जैसे
फ़जर की ठंडक हैं
मैं सुबहों की शामें
लिखता रहता हूँ

तेरे इश्क के फूलों
से महकती राहों में
दुनिया की दीवारें
लिखता रहता हूँ

तुझसे मिलकर
अपना दर्द बतलाऊंगा
जुदाई के सारे किस्से
लिखता रहता हूँ

तडपाना तरसाना
ज़ख्म जुदाई के
तेरी यह सौगातें
लिखता रहता हूँ

तू भी आकर देख
मेरा हद से गुज़ारना
पल पल का मरना मैं
लिखता रहता हूँ

शायद तू समझे
शिददत-ए-जज़बातों को
मैं रातों की तन्हाई
लिखता रहता हूँ

मेंरी भीगी पलकें
खिलती रहती हैं
जब तक ऐसी यादें
लिखता रहता हूँ

उससे पुछा

उससे पुछा कैसे हो ?
तुम बदले हो, या वैसे हो 
रूप वही है, अंदाज़ वही
फिर मिजाज़ में क्यों आई कमी ?

माजी का आगाज़ क्या होगा ?
हिज्र का एहसास तो होगा
मैं बिछड़ा यह मजबूरी थी
कहाँ मंज़ूर मुझे दूरी थी

हर पल साया साथ था तेरा
मिल कर भी न मिलने पाया
देखा जब जब चाँद रात को
चेहरा तेरा सामने आया 

साथ तेरा यह कब छूटा है 
रूह का रिश्ता न टूटा है 
आँखों से जो आंसू बहते हैं 
तुमको खबर है 
क्या कहते हैं ?

मैं कहता आवाज़ तुम्हारी 
आज भी है हमराज़ हमारी 
फूल दिलों में खिल जायेंगे 
शायद एक दिन मिल जायेंगे
क्या वो दिन भी आ पाएंगे ?
क्या वो दिन भी आ पाएंगे ?





( हिज्र - seperation )

एक मुलाकात

एक तपिश सी थी
थोडा खौफ़ भी था
गुज़रे लाम्हातों की ताजगी थी
उमंगें थी
डर भी था
माज़ी के एहसास भी थे
सैकड़ों सवाल भी थे
धड़कने तेज़
बहुत तेज़ भी थी
जब तुमको
एक ज़माने के बाद
उस दिन छुआ था
तुम्हारी गर्म साँसों
को महसूस भी किया था
तुम्हारे दिल में
जो सवालों का सैलाब था
उसका अंदाज़ा भी था
एहसास था मुझको
के अब
अंजना - बेगाना
हो गया हूँ मैं
पर शायद
दिलों में चिंगारी
अभी भी बाक़ी थी
इससे पहले के हो जाते खाख
तुमने झटक दिया मेरा हाथ
अपने कंधे से
सोचा था दो पल शायद
साथ रहेंगे
उस अँधेरे गलियारे में
कुछ बात कहेंगे
गिले शिकवे मिटा लेंगे
अपने मन फिर मिला लेंगे
बस यही सोच लिए
खोया रहा हर पल
और न जाने कब
रौशनी से सामना हो गया ...

गुरुवार, अप्रैल 21, 2011

ख़्वाब














हर शब् आते रहे
बहके महके ख़्वाब
ज़हन में
तुम्हारा आवा दरफ्त
जारी रहा
बेचैन दिल में
सन्नाटे का शोर
चीख चीख कर
कहता रहा
क्यों देखता है ख़्वाब
इस नींद के खुमार में
कुछ सोच कर
जब वापस गया
तो सारे ख़्वाब
टूट चुके थे
खो गए थे
काली रात के अंधियारे में
बिस्तर की सिलवटों में
तकिये पर सर रख कर
'निर्जन' फिर से खो गया
एक नए ख़्वाब के
इंतज़ार में ....

मंगलवार, अप्रैल 19, 2011

ज़िन्दगी क्या है

उसके जाने के बाद
ज़िन्दगी क्या है 
समझ आ गया 
खुशियाँ उन्ही से हैं 
जो अपने हैं 

एक छोटी सी बात पर
मुह फुला कर
गुस्से में 
मैंने कुछ बोल दिया
उसने भी उस बात को 
इतना बड़ा बना कर
बेकार मोल दिया
किसकी गलती ?
कौन जाने 
बस नज़र बाट जोहती है 
शायद कोई दस्तक दे कभी 
मेरे दरवाज़े पर 

और क्या कहूँ ? 
क्या लिखूं ?
क्या करूँ ?
किस से बात करूँ ?
आस पास भीड़ है बहुत 
पर फिर भी रह गया हूँ अकेला
थक गया हूँ 
रोज़ खुद ही से 
लड़ते लड़ते 
उसके बिना ज़िन्दगी के पल भी अधूरे हैं 
उसके बिना प्याले भर चाय में भी मिठास कहाँ 
जब वोह होगी सामने तो ज़िन्दगी कट जाएगी 
न भी हो तो 'निर्जन'
एक दिन तेरी 
मौत पर तो ज़रूर 
तशरीफ़ लाएगी 
ज़रूर लाएगी ......

तेरे आने पर

शायद तेरे आने पर 
तुझसे लिपट कर 
कंधे पर सर रखकर 
रो लेता 

कुछ बोलता नहीं
अपनी गीली आँखों से 
तेरी आँखों में झांक कर 
हौले से सब कुछ 
कह देता 

तू फिर 
सहलाकर मेरे बालों को 
धीरे से कुछ कह देती 
और में कहता 
मैंने सुना नहीं 
पर तू नहीं थी 
दिन भर चलता रहा यह सिलसिला 
तेरी आहट के इंतज़ार में, मैं 
बैठा रहा, बैठा रहा

शायद गर होतीं 
कुछ नजदीकियां बाकी 
तो वो पल 
तेरे दमन के साये में गुज़र जाता 
एक बार मरने से पहले ही सही 'निर्जन' 
जन्नत तो हो आता 

शायद तेरे आने पर ....

एहसास

दिल में एहसास 
अब बदल रहे हैं
बदलते हालातों का असर है
शायद
यह सिलसिला यूँ ही हर दफा
ऐसे ही चलता रहेगा 
जब तक अंजाम  पर 
न पहुच जाये ज़िन्दगी 
अकेले बैठ कर देख रहा हूँ 
अपने हाथों की लकीरों को
कोई नहीं है यहाँ 
जो मेरी  पेशानी को चूम ले 
उस सोंधे से एहसास का 
दीदार करा दे 
कोई तो हो कहीं 
जो मेरे दिल को समझ सके 
दिलों में बदलते एहसास को 
अब क्या कहूँ 
वक़्त बदलता रहता है 
उम्र भी ढलती रहती है मुसलसल 
यह फलसफा मालूम है सबको 
मगर इस सूने से 
कमरे में बैठ कर
हर वक़्त यही सोचा करता हूँ 
यह सिलसिला कब तक और चलेगा
कोई शायद कभी तो आएगा और
फिर अपने सोच के गलियारों से 
मैं बहार आ पाउँगा
नहीं देखूंगा
अपने हाथ की रेखाओं को 
बस उसके एहसास में डूब जाऊंगा 
अपनी इस वीरान ज़िन्दगी से 
बे-परवाह हो जाऊंगा ...... 

Beyond Forgetting

I just felt that i need to share this with you...it is such a beautiful poem by Rolando Carbonnel which dates back in the 70s. I hope you'll like it...

For a moment I thought I could forget you. For a moment I thought
I could still the restlessness in my heart.
I thought the past could no longer haunt me nor hurt me.
How wrong I was!
For the past, no matter how distant, is as much a part of me as life itself.
And you are part of that life.
You are so much a part of me, of my dreams,
my early hopes, my youth and my ambitions
that in all my tasks I can't help but remembering you.
Many little delights and things remind me of you.
Yes, I came. And would my pride mock my real feelings?
Would the love song, the sweet and lovely smile on your face,
be lost among the deepening shadows?
I have wanted to be alone.
I thought I could make myself forget you in silence and in song...
And yet I remembered.
For who could forget the memory
of the once lovely, the once happy world such as ours?
I came because the song that I kept through the years is waiting to be sung.
I cannot sing it without you.
The song when sung alone will lose the essence of its tune,
because you and I had been one.
I have wanted this misery to end, because it is part of my restlessness.
Can't you understand?
Can't you define the depth and the tenderness of my feelings towards you?
Yes, can't you see how I suffer in this even darkness without you?
You went away because you mistook my silence for indifference.
But silence, my dear, is the language of my heart.
How could I essay the intensity of my love
when silence speaks a more eloquent tone?
But, perhaps, you didn't understand...
Remember, I came because the gnawing loneliness is there
and will not be lost until the music is sung, until the poem is heard,
until the silence is understood....until you come to me again.
For you alone can blend the music and memory
into one consuming ecstasy.
You alone...

पूर्ण पुरुष

मानव जन्म 
क्या
एक बुदबुदा है 
और 
उसका जीवन 
एक कर्म 
कर्म 
अपूर्व कर्म 
पर 
जब यह कर्म 
अधूरा रह जाता है 
किसी के प्रति 
तब
एक तड़प
मन मस्तिष्क 
में लिए 
वोह बुदबुदा 
नया रूप लिए 
फिर आता है 
क्यों क्या 
कर्म पूरा 
करने को 
या 
किसी को 
कर्म में लगाने को 
नहीं जानता
जीवन 
तू अपने नाम 
में पूर्ण है 
लेकिन 
आत्मा में 
पूर्ण नहीं 
वोह 
तुझसे
कहीं परे 
अपने विस्तार
को बढ़ाये हुए
होने पर
सिमटी है 
तुझ में 
छिपी है 
तुझे, शायद 
यश देने को 
उस की 
आवाज़ सुन 
उस की बात गुन
तभी तू 
पूर्ण जीवन 
कहलायेगा 
कहलायेगा 
पूर्ण पुरुष ||   

मंगलवार, अप्रैल 12, 2011

ज़ख़्म

कहते हैं 
समय हर ज़ख़्म 
को भर 
देता है 
पर, क्या ?
समय 
उस ज़ख़्म के 
निशानात को 
मिटा भी देता है ?
ऐसा 'निर्जन'
नहीं सुना है 
समय
तू अगर 
ज़ख़्म भरता है 
तो उस पर
एक एहसान 
और कर 
उसके निशानात 
को भी 
मिटा दे 
तब सब कहेंगे 
समय बलवान 
ही नहीं 
ग़मसार भी है .....

एक हकीकत अधूरा सपना

मैं
आया
एक अपरिचित
से मिलने
अपरिचित, अपरिचित
नहीं था
वो था मेरा
जन्म भर का
सपना - सपना
जब सपना
सच
हुआ था
उससे
मिलकर तब
एक अपरिचित
सपने ने
हकीकत में
मिलने से
इनकार
किया था
क्यों ?
क्या वो
अपने को
कभी खोना
नहीं
चाहता था ?
या
फिर वो
अपने,
अतीत में
लौटने को
तयार
नहीं था ?
ऐसी
पूर्णिमा, जिसको
खोया
उसने, अपने
सुख को
और अब
अमावस्या
वो दिवाली
उसे
मिलने आई
ऐसे मिली, वो
प्रथम
परिचय,  में
उस
चिर परिचित
अपने से
अपने से
अपने
'निर्जन' से ....

मंगलवार, अप्रैल 05, 2011

आंसू

आँखों से छूटा एक आंसू 
घरती पर जब गिर पड़ा
पछताया क्यों बिछड़ा नैनों से  
घबराया मैं क्यों टूट गया
समझ बूझ कर सोया होता 
क्यों अपनों से छूट गया 
आँख का वोह मोती आज 
मिटटी में खो गया 
आँखों से निकला एक आंसू 
अस्तित्वा विहीन हो गया

जीवन क्या है ?

कोई मुझे समझा दे
जीवन क्या है ?
विष का प्याला 
जीवन क्या है ?
बहता दरिया 
जीवन क्या है ?
मृग तृष्णा 
जीवन क्या है ?
सूनेपन सा 
क्या, कभी किसी ने जाना है ?
क्या इसको पहचाना  है ?
जीवन क्या है ?
दर्द का प्याला 
जीवन क्या है ?
एक दहकती ज्वाला 
एक दिन सबको भस्म हो जाना है
जीवन क्या है ?
एक सुन्दर धोखा 
जीव उसमें फंसा होता है 
धोखा खाना 
धोखा देना
क्यों यह अजब तमाशा है 
कभी कुछ पाता
कभी कुछ खोता 
क्यों जीव माया का दीवाना है ?
जीवन क्या है ?
कोई मुझे समझा दे....