तृष्णा से बड़ा, कोई भोग कहाँ
सब पाने का लगा है, रोग यहाँ
अपने अपनों से क्या, बात करें
ख़ुदगर्ज़ हो गए, सब लोग यहाँ
पाषाणों में, जीवन को भरने की
कोशिश में, 'निर्जन' रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...
है अंत तुम्हारा, उस चिट्ठी में
जो है, ऊपर वाले की मुट्ठी में
अब मान भी जा, ज़िद पर ना आ
कोई रहा ना बाक़ी, इस मिट्टी में
फिर क्यों, लड़ने की चाहत में
तू पल-पल बलता रहता है?
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...
अब बाँध ज़रा, दिल को अपने
और थाम ज़रा, कल को अपने
अल्फ़ाज़ों को करके, मौन तेरे
और ढूंढ बचे यहां हैं, कौन तेरे
अब त्याग भी दे, इस अहम् को
जिसमें हर पल तू मरता रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...
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