बुधवार, मार्च 13, 2013

शहीद सरदार उधम सिंह को मेरा शत शत नमन



भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह का नाम अमर है। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्होंने माइकल ओडवायर को मारा था, जो जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब का गर्वनर था | ऐसा भी माना जाता है के ओडवायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा।

२६ दिसंबर १८९९  को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह अनाथ थे। सन १९०१  में ऊधम सिंह की माता और १९०७  में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले। अनाथालय में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि १९१७ में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। १९१९ में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने १३ अप्रैल १९१९ को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे।

इतिहासकार डा. सर्वदानंदन के अनुसार ऊधम सिंह सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है। अमर शहीद उधम सिंह उर्फ राम मुहम्मद सिंह आजाद १३ अप्रैल, १९१९ को घटे जालियाँवाला बाग नरसंहार को अपनी आँखों के सामने होते देखा । कुछ घटिया राजनेताओं की साजिश के कारण जलियाँवाला बाग़ में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई परन्तु इस काण्ड से हमारे वीर उधमसिंह घायल शेर की भांति खूंखार हो गए और गुस्से से आग बबूला हो गए | तकरीबन १८०० लोग जो शहीद हुए थे उन्होंने मन ही मन उनके लिए लड़ने की ठानी और प्रतिशोध की अग्नि में जलने लगे |  ऊधम सिंह ने जलियाँवाला बाग़ की मिटटी को हाथ में ले और माथे से लगा प्रण लिया के वो इस दुष्कर्म के लिए ज़िम्मेदार माइकल ओ डायर को सबक ज़रूर सिखायेंगे |

देशप्रेम का यह सच्चा सपूत संकल्पित था ब्रटिश दुर्दांत हुकूमत द्वारा किये गए पाप और अपने देशवासियों के क्रूर अपमानजनक मौत का बदला लेने के लिए | अपनी इस मुहीम को अंजाम देने हेतु उन्होंने अलग अलग नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् १९३४ में हमारे उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां ९, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। यहाँ वहाँ यात्रा करने के लिए उन्होंने एक गाड़ी भी ख़रीदी | उसके साथ उन्होंने एक ६ गोलियों वाली पिस्तौल भी खरीद के रखी |

फिर वो सही समय का इंतज़ार करेने लगे | सिंह साब सही मौका मिलते ही कमीने माइकल ओ डायर को मारने की फ़िराक में थे और उचित वक़्त की बाट जोह रहे थे | १९४० में उन्हें जलियाँवाला बाग़ में शहीद हुए अपने सैकड़ों भाई, बहन, माताओं और देशवासिओं की मौत का बदला लेने का मौका मिला | उस काण्ड के २१ साल बाद १३ मार्च १९४० को | ब्रिटिश अख़बारों में प्रकाशित हुआ की लन्दन के कैक्सटन हाल में एक गोष्ठी आयोजित होने वाली है जिसमे ओ डायर के अलावा पूर्व भारत सचिव लार्ड जेटलैंड भी पहुंचेगा | दिन में दो बजे एक वकील की वेशभूषा में सज्जित उधम सिंह हाँथ में एक मोटी पुस्तक लिए पहुँच गए | मूलतः उसी किताब को भीतर से पिस्तौल के आकर में काट कर एक लोडेड पिस्तौल उसी में सुरक्षित रख दी थी | निश्चित समय पर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ | हाल खचाखच भरा हुआ था | ओ डायर ने यहाँ भी अपना भारत विरोधी जहर उगला | तालियों की गडगडाहट से पूरा हाल गूंज उठा | लेकिन तभी गोलियों की तडतडाहट ने तालियों की गडगडाहट को खामोश कर दिया | दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं । सूअर ओ डायर जमीन पर पड़ा तड़फ रहा था और उसकी तत्काल मौत हो गई | जेटलैंड के हिस्से की गोली भी उसे  मिल चुकी थी | पिस्तौल खाली हो चुकी थी किन्तु उधम सिंह का चेहरा संकल्प पूर्ण होने की दैवी आभा से चमक रहा था | बैठक के बाद उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला । अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

१ अप्रेल १९४० को केन्द्रीय आपराधिक ओल्ड बेयले मुकद्दमे की औपचारिता निभा कर ४ जून १९४० को उन्हें फांसी की सजा सुना कर उसी ब्रिक्सटन जेल भेज दिया गया जहाँ अमर शहीद मदन लाल धींगरा को भेजा गया था | जेल में उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब, कुरान और हिन्दू धर्म की पुस्तकों का अध्यन करने की कोशिश की किन्तु क्रूर ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें दस दिन में एक बार नहाने की छुट दी थी | अतः इन पवित्र पुस्तकों को स्नान कर छूने की भारतीय परम्परा के चलते उन्होंने इसमें आंशिक सफलता ही प्राप्त की | ३१ जुलाई को पेंटोंन विले जेल में फांसी का फंदा चूम कर उन्होंने जुलाई के महीने को पवित्र कर दिया | उनकी अंतिम क्रिया भी ब्रिटिश हुकूमत ने गुप्त रूप से कर दी | १९ जुलाई १९७४ को उधम सिंह के अवशेष भारत लाये जा सके और उन अवशेषों को हिन्दू-मुस्लिम-सिख समुदाय ने उधम सिंह की इच्छानुसार हरिद्वार में गंगा, फतेहगढ़ मस्जिद के साथ लगे कब्रिस्तान में और सिख भाइयों ने उनकी अंत्येष्टि आनंद साहिब में पूर्ण की | देशप्रेम के इस सच्चे सपूत को देशभक्तों का हार्दिक-हार्दिक अभिनन्दन अनिवार्य है | इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया |

मैं अपने देश के ऐसे सच्चे वीर बेटों, सेनानियों और शहीदों को शीश झुका कर शत शत नमन करता हूँ |

आप सभी देशवासियों से एक सवाल पूछना चाहता हूँ के देश को गंदे नेताओं से बचाने के लिए हमें आज ऐसा ही आदर्श देश पुत्र चाहिए ??? "सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,  मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए" | यदि आप इस सवाल पर सहमत हैं तो कृपया अपना जवाब और मत टिपण्णी के रूप ज़रूर ज़रूर दीजिये |

भारत माता की जय | जो बोले सो निहाल सत श्री आकाल | जय श्री राम | हर हर महादेव | जय कारा वीर बजरंगी का | यलगार हो | जयहिंद !!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. तुषार जी ...आपने भारत माँ के सच्चे सपूत उधम सिंह जी को अक बहुत अच्छी व सच्ची श्रद्धांजिली अर्पित की है ... बहुत बहुत आभार!

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  2. भारत माँ के वीर सपूत को शत शत नमन !!
    वंदे गौमातरम !!

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  3. देश के सच्चे सुपुत्र शहीद सरदार उधम सिंह को मेरा शत-शत नमन.... !!
    भारत माता की जय !!
    बहुत-बहुत आभार !!
    शुभकामनायें !!

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  4. नमन ऐसे वीरों को
    वन्दे मातरम्

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  5. ऐसे वीरों को नमन !
    और ऐसे कलंकी को धिक्कार जिसने स्वयं नायक बनने के लिए सहायता माँगनेवाले आये क्रान्तिकारी को धोखे में रख,उसे मारनेवालों को न्योत आया!

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