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बुधवार, दिसंबर 31, 2014

हे वृक्ष - २












जबकि हर व्यक्ति
अपनी पकड़
अपने अहं
अपनी विलासता, को
मज़बूती से
पकड़े रहना चाहता है
वो चाहता है
उसके सम्बन्धी
उससे सम्बंधित
हर व्यक्ति
उसकी दासता माने
क्यों, क्या उससे
अलग किसी के शरीर में
मन, आत्मा या चेतना नहीं
हे वृक्ष
तुम मानव से
कहीं अधिक श्रेष्ठ हो
तुम सिर्फ अपनी
जड़ के स्वामी हो
अपनी ताक़त से
जड़ों की रक्षा करते हो, ताकि
वृक्ष का विस्तार
दूर दूर तक फैलता रहे
और मैं तुम्हे एक बार और
महानता की उपाधि देता हूँ
तुम अपने पत्ते,
अपने फल, अपने फूल को
जब तक ही पकड़े
रहना चाहते हो
जब तक वो अपने
अस्तित्व में पूर्ण नहीं होते
उसके बाद
तुम उनकी
चिंता छोड़ नए पत्ते
नए फल, नए फूल की
रचना में लग जाते हो
'निर्जन तुम्हे परमात्मा का
दूसरा स्वरुप मानता है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, दिसंबर 19, 2014

हे वृक्ष



















हे वृक्ष! तेरे पत्ते
हर शिशर के बाद
क्यों नए आते हैं
क्यों तू पुरानो का
नवीनीकरण करता
तुझे भी
बदली ऋतू में
नए ढ़ंग का
जीवन चाहियें
क्यों पुराने पत्तों को
पूरी तरह गिरा देता है
एक पत्ता भी क्यों नहीं रखता
स्मृति मात्र के लिए
एक अरसा तेरे साथ
रहने पर भी तू
उससे मोह नहीं करता
तेरे लिए एक वर्ष
एक युग के समान है
तभी सभी एक साथ
बदल देता है

हे वृक्ष! तेरे पक्षी
तुझे कभी नहीं छोड़ते
जो तेरी हरियाली में
तेरे साथ रहते हैं
वो तेरे ठूंठ पर भी
बैठे तेरी ख़ुशहाली की
शायद कामना
करते रहते होंगे
क्यों नहीं छोड़ते
वो तुझे पतझड़ में
तू, तेरे पत्ते, तेरे पक्षी
सब मानव सृष्टि और
परमात्मा का स्वरुप हैं
या सिर्फ़
सांसारिक चक्र का
मुझे बता आज
क्या है ये राज़
क्या इसमें भी कोई
मर्म छिपा है, या इसकी भी
कोई दर्द भरी कहानी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

Hey Vraksh
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Hey vraksh! tere patte
Har shishr ke baad
Kyon naye aate hain
Kyon tu purano ka
Naveenikaran karta
Tujhe bhi
Badli ritu mein
Naye dhang ka
Jeevan chahiyen
Kyon purane patton ko
Poori tarah gira deta hai
Ek patta bhi kyon nahi rakhta
Smriti maatr ke liye
Ek arsa tere sath
Rehne par bhi tu
Usse moh nahi karta
Tere liye ek varsh
Ek yug ke smaan hai
Tabhi sabhi ek sath
Badal deta hai

Hey vraksh! tere pakshi
Tujhe kabhi nahi chhodte
Jo teri hariyali mein
tere sath rehte hain
Wo tere thoonth par bhi
Baithe teri khushhaali ki
Shayad kaamna
Karte rehte honge
Kyon nahi chhodte
Wo tujhe patjhad mein
Tu, tere patte, tere pakshi
Sab manav srishti aur
Paramatama ka swaroop hain
Ya sirf
Sansarik chakr ka
Mujhe bata aaj
Kya hai ye raaz
Kya ismein bhi koi
Marm chhipa hai, ya iski bhi
Koi dard bhari kahani hai

--- Tushar Raj Rastogi ---