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मंगलवार, नवंबर 28, 2017

शर अर्ज़ है

तुमसे लफ्ज़ों का नहीं 'निर्जन'
रूहानी-रूमानी रिश्ता है मेरा
तुम तो तहलील हो सांसो में
इबादत की ख़ुशबू की तरह


रविवार, नवंबर 19, 2017

सोमवार, नवंबर 13, 2017

अर्ज़ किया है

जुगनुओं से क्या मिले हम भी चराग हो गए 
नाज़नीन दिलरुबा के दिल का ख्व़ाब हो गए 
यूँ तो अता किये उन्होंने नज़राने कई 'निर्जन'
कातिलाना इनायत से उनकी आबाद हो गए

#yqdidi #निर्जन #तुषाररस्तोगी #तमाशा_ए_जिंदगी #दिलरूबा #जुगनू #इश्क़ 

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शनिवार, नवंबर 11, 2017

अर्ज़ किया है

तिश्नगी अपनी दानिस्ता नाआश्ना 'निर्जन' हुआ 
नुक्तादानी करके भी नाशिनास साबित हुआ 

तिश्नगी : लालसा, अभिलाष
दानिस्ता : जानते हुए
नाआश्ना : अजनबी
नुक्तादानी : बुद्धिमानी
नाशिनास= अज्ञानी

#yqdidi #निर्जन #तुषाररस्तोगी #तमाशा_ए_जिंदगी #तिश्नगी #अजनबी #अज्ञानी 

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गुरुवार, नवंबर 09, 2017

अर्ज़ किया है

बेबस, बेकस, बेकार, बेकरार ऐसे क्यों हैं
ये लोग कुछ ज्यादा ही होशियार क्यों हैं
हर एक चेहरे पर एक मुखौटा है 'निर्जन'
इन लोगो के ज़हर में बुझे किरदार क्यों हैं

#तुषाररस्तोगी #निर्जन #तमाशा_ए_ज़िंदगी #लोग #मुखौटा #ज़हर #yqdidi 

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गुरुवार, नवंबर 02, 2017

अर्ज़ किया है

अबस बैठना बन गया अफ़सुर्दा होने का सबब 'निर्जन'
क़िस्मत भी कितनी बेरहम है इसने कहाँ लाकर पटका

अबस = बेकार
अफ़सुर्दा = उदासी
#yqdidi #निर्जन #तुषाररस्तोगी #तमाशा_ए_ज़िंदगी #किस्मत #बेरहम #अफ़सुर्दा 

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अर्ज़ किया है

तेरी नादानीयों की इन्तेहा क्या ख़ूब है हमदम
तेरी इरफ़ान से 'निर्जन' यहाँ मौसम बदलते हैं

नादानियों : बचपना
इन्तेहां : सीमा
इरफ़ान : प्रतिभा

सोमवार, मार्च 27, 2017

मोहब्बत होने लगी है



















लगता है मोहब्बत होने लगी है
ज़िन्दगी ये उनकी होने लगी है

चलते हैं साथ जिस रहगुज़र पर
जानिब-ए-गुलिस्ताँ होने लगी है

गुल-ऐ-विसाल है मुस्कान उनकी 
उफ़! जादा-ए-हस्ती होने लगी है

इश्क़ में उनके असीर हो गया हूँ
तौबा नज़र भी उनकी होने लगी है 

ख्वाबों में ही चाहे नींद मेरी अब
आगोश में उनके सोने लगी है

'निर्जन' है साहिल मंजिल वही है
ख़ुशबू में उनकी रूह खोने लगी है

लगता है मोहब्बत होने लगी है...

रहगुज़र - पथ
जानिब-ए-गुलिस्ताँ  - गुलाबों के बगीचे की तरफ़
गुल-ऐ-विसाल - मिलन के फूल
जादा-ए-हस्ती - ज़िन्दगी की राह
असीर - बन्दी
आग़ोश - आलिंगन

#तुषाररस्तोगी

सोमवार, फ़रवरी 06, 2017

सन्देश सदा ही देता है


















तृष्णा से बड़ा, कोई भोग कहाँ
सब पाने का लगा है, रोग यहाँ
अपने अपनों से क्या, बात करें
ख़ुदगर्ज़ हो गए, सब लोग यहाँ
पाषाणों में, जीवन को भरने की
कोशिश में, 'निर्जन' रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

है अंत तुम्हारा, उस चिट्ठी में
जो है, ऊपर वाले की मुट्ठी में
अब मान भी जा, ज़िद पर ना आ
कोई रहा ना बाक़ी, इस मिट्टी में
फिर क्यों, लड़ने की चाहत में
तू पल-पल बलता रहता है?
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

अब बाँध ज़रा, दिल को अपने
और थाम ज़रा, कल को अपने
अल्फ़ाज़ों को करके, मौन तेरे
और ढूंढ बचे यहां हैं, कौन तेरे
अब त्याग भी दे, इस अहम् को
जिसमें हर पल तू मरता रहता है
हर पल जीवन, जी भर जीने का
सन्देश सदा ही देता है...

#तुषाररस्तोगी #निर्जन #तमाशा-ए-ज़िन्दगी #हिंदी #कविता #सन्देश #जीवन #पीड़ा #तृष्णा #ख़ुदगार्ज़ #ज़िद #दिल #अल्फ़ाज़ #अहम्

गुरुवार, नवंबर 17, 2016

खुजली खांसी देश का दुश्मन























खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!
खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!

पी.एम्. और जनता - राज़ी
फिर भी ना माने - पाजी
पी.एम्. और जनता - राज़ी
फिर भी ना माने - पाजी
ये खुजली ना छोड़े, चल इसको फोड़े
ये बनने ना देगा देश को एक जुट मुकम्मल

देश को बेचे ना समझे
हाँ, ये देशद्रोही है समझे
देश के गद्दारों की ये
गोद में खेले
हाँ, मुंह जब भी खोले
ये,  घटिया ही बोले
हो जाए खुजली - हां जी
ख़ुदा को प्यारा - वाह जी
तब होगी दिल्ली की, खाना आबादी
सुलझ जाएगी पल में देश की उलझन
खुजली खांसी देश का दुश्मन
हाय! हाय!
मेरे देश का दुश्मन
हाय! हाय!
खुजली खांसी देश का दुश्मन
हाय! हाय!
मेरे देश का दुश्मन
हाय! हाय!

दैया रे दैया इसका हाल तो देखो
झूठे वादे कर, इसके सवाल तो देखो
अरे झांसे, धोखे, इसके बवाल तो देखो

अजी, कुछ बरसों में ऐसे
दाल कहाँ गलती है
अजी, कुछ बरसों में ऐसे
माल कहाँ मिलता है
सबको है मालूम, कैसे, कैसे
कैसे चंदे का ये माल जमा करता है
क्या हाल बताऊँ - अरे, हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ जी
सबूत दिखाऊं - अरे, हाँ हाँ हाँ हाँ हाँ जी
पलटू है दोगला कैसा रंग गिरगिट सा बदले ऐसे
गद्दारों को ऐसे ही रुसवा करते हैं मियां खों खों

खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!
खुजली खांसी है, देश का दुश्मन
हाय! हाय!
अपने देश का दुश्मन
हाय! हाय!

#तुषारराजरस्तोगी #खुजली #खांसी #पाजी #पैरोडी

रविवार, सितंबर 04, 2016

दिल-ए-नादां














दिल-ए-नादां देखता जा, ज़रा रुक तो सही
अभी इश्क़ होगा आबाद, ज़रा रुक तो सही

मजनू, महिवाल, फरहाद, सारे मरीज़-ए-इश्क़
आज होंगे सब कामयाब, ज़रा रुक तो सही

सजेगी डोली, महफ़िल-ए-हुस्न कद्रदां होंगे
ले देख, वो आई लैला, ज़रा रुक तो सही

सोहनी हो गई फ़िदा, मरहबा महिवाल पे 
शीरीं का होगा फरहाद, ज़रा रुक तो सही

ले वो आए रेशमा-शेरा, डाल हाथ में हाथ
ये दोनों भी हैं बेपरवाह, ज़रा रुक तो सही

देख अंजाम होगा यही, आरज़ू का तेरी, ए दिल
हौसला तू भी बनाए रख, ज़रा रुक तो सही

'निर्जन' क्या ख़ूब बनी जिंदगी तेरी इस नादां से?
चल करता जा पीछा, ना रुक, ज़रा रुक तो सही

#तुषारराजरस्तोगी #इश्क़ #दिल-ए-नादां #निर्जन

रविवार, अगस्त 14, 2016

असली स्वतंत्रता दिवस


















आज स्वतंत्रता दिवस है, पर,
दिल यह कहने को विवश है,
क्या यहाँ है सच्ची स्वतंत्रता?
हर पथ पर है बस परतंत्रता...

जन गण मन अधिनायक जय,
शायद यह है भी, या नहीं है?
परन्तु क्या ७० वर्षों बाद भी,
अपने देश की जय है? नहीं है...

बरसों बाद भी हर एक शख़्स,
परेशानियों से लड़ रहा है,
झूठी सामाजिक अराजकता से,
चुपचाप नाक़ाम भिड़ रहा है...

यहाँ की व्यवस्था बड़ी निराली है,
जो करती चाटुकारों की रखवाली है,
जो आँखों के रहते हुए भी अंधे हैं,
कान-ज़बां रखकर भी गूंगे-बहरे हैं...

विकास तो बख़ूबी हो रहा है,
पर मज़े उसके कौन ले रहा है?
और यदि नहीं हो रहा है, तो,
कौनसा कोई ज़िम्मेदारी ले रहा है...

यहाँ गलत कोई भी नहीं है, क्योंकि,
हर बाशिंदा यहाँ समझदार-सही है,
बस, अब बचा एक लम्बा इंतज़ार है,
उसका जो देश का सच्चा पालनहार है...

जो अपने साथ सबका ख़याल रखेगा,
जो किसी की भी नोक पर नहीं रहेगा,
अपनी बनाई सही नीतियों पर चलेगा,
और इस भारतवर्ष का भला करेगा...

वो व्यक्ति हम सबके भीतर ही है,
बस जगाना है अपने इमान को,
आग जलानी है अपने दिलों में,
बाहर निकलना है अपने बिलों से...

फिर यही आग मशाल बन जलेगी,
परवाज़ देगी अधूरे सपनो को 'निर्जन',
जो दफ़न हो गए हैं सड़ी राजनीति तले,
उस दिन होगा असली स्वतंत्रता दिवस...

#तुषारराजरस्तोगी #स्वतंत्रतादिवस #१५अगस्त #७०वर्ष #निर्जन #राजनीति

समस्त भारतवर्ष को तुषार राज रस्तोगी 'निर्जन' की तरफ़ से स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें

बुधवार, जुलाई 27, 2016

सुना है























सुना है कि बारिशों जैसी हो
कुछ कहो बरसती कैसी हो
मैंने यह सुना है दुनिया से
सावन की बूंदों जैसी हो

सुना है कि गुलाब जैसी हो
कुछ कहो ज़रा तुम कैसी हो
मैंने यह सुना है दुनिया से
शायर के ख़्वाबों जैसी हो

सुना है कि इश्क जैसी हो
कुछ कहो बहकती कैसी हो
मैंने यह सुना है दुनिया से
रूबाई-ए-खय्याम जैसी हो

सुना है कि शर्म जैसी हो
कुछ कहो नाज़ुक कैसी हो 
मैंने यह सुना है दुनिया से
छुईमुई की डाली जैसी हो

सुना है कि आदत जैसी हो
कुछ कहो सआदत कैसी हो
मैंने यह सुना है दुनिया से
बेहतरीन शराबों जैसी हो

सुना है कि चाँद जैसी हो
कुछ कहों कि कहां रहती हो
मैंने यह सुना है दुनिया से
पूनम की चाँदनी जैसी हो

सुना है कि शेरनी जैसी हो
कुछ कहो गरज के वैसी हो
मैंने यह सुना है दुनिया से
रानी लक्ष्मीबाई के जैसी हो

जानता हूँ कि तुम कैसी हो
'निर्जन' की कल्पना जैसी हो
कुछ नहीं है सुनना दुनिया से
जीवन में प्राणों के जैसी हो

सआदत - Prosperity, Happiness, Good Fortune

#तुषारराजरस्तोगी #कल्पना #निर्जन #इश्क़ #मोहब्बत #जज़्बात #दुनिया #सुनाहै  #जीवन #प्राण

शुक्रवार, जुलाई 08, 2016

एक शब्द
















सनक और जूनून
वासना और प्यार
अभीप्सा और देखभाल
तुम्हारी ग़ैरहाज़िरी खल रही है
तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ
और सब से बहुत ही ज़्यादा
हर एक तर्क से परे
है यह सारी सोच
ये प्यार जो जलता है
आग से भी ज्यादा गर्म
तपिश इसकी है जो
ज्वालामुखी से ज्यादा
ये इबादत है जो
बंदिश नहीं है
ये दर्द है जो
कम नहीं होता
ये पीड़ा है जो
कभी जाती नहीं है
ये वफ़ादारी है जो
सच में अंधी है
ये विश्वास है जो
हर किसी प्रकार से भिन्न है
ये है डर की भावना
श्रद्धा के साथ
कि यह व्यक्ति
शायद मेरा हो सकता है
मेरी आत्मा का आत्मसमर्पण
मेरा दिल तुम्हारा है
हमेशा के लिए
यह सब कुछ
सदा के लिए
संचित है
एक शब्द में
जिसे तुम शायद ही
समझ पाती हो
लेकिन शायद
कभी किसी दिन
तुम समझ जाओगी
यह एक शब्द:
'मोहब्बत - प्यार - इश्क़'

अभीप्सा - Longing

#तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #एकशब्द #इश्क़ #प्यार #मोहब्बत #इबादत #समझ

बुधवार, जून 01, 2016

मोहब्बत हो ही गई है















जादू-अदा बा-ख़ुदा ख़ूब उसकी
बाग़-ए-इरम ज़िन्दगी होने लगी है

ऐतबार-ए-इश्क़ ऐसा है उसका
आलम-ए-दीवानगी होने लगी है 

नज़राना-ए-शोख़ी नज़र ख़ूब उसकी
अज़ीज़-ए-दिल उल्फ़त होने लगी है

गुल-ए-विसाल मासूमियत उसकी
दीवार-ए-ज़िन्दगी होने लगी है

हसरत थामे आँचल अब उसका
जानिब-ए-गुलिस्ताँ होने लगी है

चलते हैं साथ जिस रहगुज़र पर
अब जादा-ए-हस्ती होने लगी है

लुत्फ़-ए-तसव्वुर रहता है उसका
चाँदनी अब हर रात होने लगी है

फ़िराक़-ए-यार सोचते भी अब
दहशत सी दिल में होने लगी है

लगता है 'निर्जन' रूह्दारी करते
तुझको मोहब्बत हो ही गई है

बाग़-ए-इरम - जन्नत का बागीचा
ऐतबार-ए-इश्क़ - प्यार पर भरोसा
आलम-ए-दीवानगी - दीवाने की स्थिति
अज़ीज़-ए-दिल - दिल को प्रिय
गुल-ए-विसाल - मिलन का फूल
दीवार-ए-ज़िन्दगी - ज़िन्दगी का सहारा
जानिब-ए-गुलिस्ताँ  - गुलाबों के बागीचे की तरफ़
रहगुज़र - पथ
जादा-ए-हस्ती - ज़िन्दगी की राह
फ़िराक़-ए-यार - प्रियेतम से बिछड़ना
रूह्दारी - लुका छुपी

--- तुषार राज रस्तोगी 'निर्जन' ---

#इश्क़ #ग़ज़ल #तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #रूह्दारी #मोहब्बत

रविवार, मई 22, 2016

यही तुम हो...यही मैं हूँ


 
















इस जीवन में कुछ बातें हैं
में जिन्हें बयां नहीं कर सकता
इस जीवन में कुछ रेज़गी* हैं
क्योंकि, सब समान नहीं रहता
इस जीवन में कुछ सपने हैं!
और लोग जो उन्हें जीते हैं
इस जीवन में कुछ अपने हैं!
और लोग जो उन्हें खो देते हैं

यही मैं हूँ! यही तुम हो!
यही हैं चीज़ें हम जो करते हैं!
यही है प्यार! यही है जीवन!
यही हैं चीज़ें हम जो चुनते हैं!
यही है ख़ुशी! यही है दर्द!
यही है जीवन जो हम
बिना शर्म जीते हैं!
यदि, सिर्फ़ तुम भी देख पाते
यह दुनिया, वैसी, जैसी मेरे लिए है

यही मैं हूँ!
यही तुम हो!

इस जीवन में एक समय था,
जब कई बार मैं रोया था
इस जीवन में कभी दिल ने,
ज़िन्दगी अधमरी महसूस की थी
इस जीवन में कुछ चीज़ें हैं!
जो मैं कभी साबित नहीं कर सकता
इस जीवन में ऐसी भी चीज़ें हैं!
बहुत सी चीज़ें, जो सच भी हैं!

यही मैं हूँ! यही तुम हो!
यही हैं चीज़ें हम जो करते हैं!
यही है प्यार! यही है जीवन!
यही हैं चीज़ें हम जो चुनते हैं!
यही है ख़ुशी! यही है दर्द!
यही है जीवन जो हम
बिना शर्म जीते हैं!
यदि, सिर्फ़ तुम यह देख पाते,
यह दुनिया, हमारे चारों ओर,
बिलकुल भी खाली नहीं है!

यही मैं हूँ!
यही तुम हो!

इस जीवन में कुछ लोग भी हैं,
जिन्हें ज़रुरत है...
इस जीवन में कुछ लोग भी हैं,
जो खून बहाते हैं...
इस जीवन में कुछ लोग भी हैं,
जिन से अभी मिलना बाक़ी है
इस जीवन में, ऐसे हालात भी हैं
जब तुम्हे बस लड़ना ही होगा!
इस जीवन में, ऐसे पल भी हैं,
जिनमें जो सही है बस
वही करना होगा...!

यही मैं हूँ! यही तुम हो!
यही हैं चीज़ें हम जो करते हैं!
यही है प्यार! यही है जीवन!
यही हैं चीज़ें हम जो चुनते हैं!
यही है ख़ुशी! यही है दर्द!
यही है जीवन जो हम
बिना शर्म जीते हैं!
और, यदि भरोसा है तुम्हे
तो तुम भी वो देख सकती हो
जो 'निर्जन' देखता है सदा!
आश्चर्य होता है कभी
कि यह दुनिया,
क्या से क्या हो सकती है?

यही तुम हो...
यही मैं हूँ...
यही ज़िन्दगी है...

 रेज़गी - परिवर्तन / Change

#तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #परिवर्तन #जीवन #सपने #दर्द #सच #शर्म #दुनिया #तुम #मैं #ज़िन्दगी

गुरुवार, मई 19, 2016

बातों बातों में













बातों बातों में ही सही
बात तो कहता है
'निर्जन' फ़क़त दिल के
हालात कहता है
नहीं मुमकिन नज़र से
खूं ज़रा सा बह जाए
ये तो शब्दों में
बयां-ए-जज़्बात कहता है
यूँ ही लग जाती है कभी
दिल की लगी दिल को
ये ख़ामोश बंद होठों से
बस एहसास कहता है

#बातोंबातोंमें #एहसास #जज़्बात #बसयूँही #तुषारराजरस्तोगी #निर्जन

बुधवार, अप्रैल 20, 2016

वो दुर्गा बनती रही

उसको ज़मी पर रौंदता
वहशीपन जब रगों में कौंधता

करती रही कोशिशें सभी
रोती बिलखती सिसकती तभी

वस्त्र कर उसके तार तार
अस्मिता पर करता रहा वो प्रहार

लड़-लड़ चलाये हाथ और लात
भिड़ती गई कुछ तो हो एहसास

चीखता रहा वो उस पर तब भी
चिचियती रही वो भयभीत सी

कलाई जकड़ निचोड़ दीं उसकी
मौन छटपटाती व्यथित नज़रें उसकी

जान जितनी बची थी डाल दी
मिटाने को कहानी उस काल की

जूँ तक ना रेंगी उसके कान पर
रोके रुका ना वो जंगली जानवर

गिड़गिड़ाती रही करहाती रही
अहम् को ठहरता रहा वो सही

चेहरे पर था उसके वो मारता
हवस को था अपनी वो सहारता

मुहं उसका हाथों से ढांपता
रोम रोम था उसका फिर काँपता

इससे पहले वो कुछ कह पाती ज़रा
ज़हर उसने था यौवन में उसके भरा

बेशर्मी कुकर्मी फिर उठ भी गया
लड़खड़ाता दरवाज़े तलक बढ़ता गया

छोड़ अधमरा अकेला नाज़ुक जां को
पटक कर दरवाज़ा वो चलता बना

बैठी सिकुड़ी कोने में वो जलती रही
एक आशा की लौ फिर भी बलती रही

शायद कोई आएगा मरहम ले हाथ में
लगाकर गले ले जायेगा उसे साथ में

टूटकर अधूरे सपनो में बिखरती रही
हर एक आहाट पर वो सिहरती रही

पीड़ा आंसू बन आँखों से छनती रही
तेज़ाब-इ-अश्क़ से वो दुर्गा बनती रही

#तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #रेप #बलात्कार #पीड़ा #नारी #सम्मान

रविवार, अप्रैल 10, 2016

एक कहानी


सुनो सुनो - एक कहानी
सच्ची सी थोड़ी, अच्छी सी
एक ठगने वाले लुच्चे की
सुनो सुनो - एक कहानी

हिन्द नाम के गोले पर
है एक अदभुत जंगल
जंगल के थोड़े से प्राणी
भैया हैं बहुत ही मेंटल

गत वर्ष वो पगलेट हुए
चुनकर लाये रंगा सियार
फ़र्ज़ी बातों की खाकर लातें
सर चढ़ा लिए किसको यार

बिना बात के बैठे-बैठे
ख़ुद का ही उल्लू बनाया
रंग लपेट ईमानदारी का
सियार मंद-मंद मुस्काया

खुजली वाला रंगा सियार
है सच में दुर्लभ कीड़ा
साल भर से बाँट रहा वो
नित नई असहनीय पीड़ा

सबको दे धोखा सियार ने
चंदे में टाका बहुत कमाया
युटीलाईज़ेशन कर चंदे का
अपना बेलबांड भर आया

भ्रष्ट पुलिस की भ्रष्ट जेल में
अगले को जाना नहीं गंवारा
हाथ आई जंगल सत्ता पर है
अब तो एकाधिकार हमारा

चाहता तो देकर सबूत वो
जुगनू मौसा को फँसवाता
सबूतों का देकर वो फंदा
मौसा के गले में कसवाता

पर बचा लिया मौसा को
सुधरने का मौका बताया
जैसे लोमड़ी ताई को पहले
रुसवा होने से था बचाया

बूढ़े जानवर इस गोले के
समझाकर गए हैं गहरी बात
तुम नफरत करो बुराई से
ना देखो तुम बुरे की ज़ात

खुजली खुजली करते करते
खुजली की चुभ गई है फाँस
खुजा खुजा बंजर हुई धरती
अब कब उगेगी नई हरी घास ?

भैया पिछले एक वर्ष से
नाटक हो गया यह ख़ास
धूर्त सियार की ईमानदारी पर
टिक गई है सबकी आस

शिष्ट व्यवहार, मीठे वचनों से
इस सियार ने दिए हैं झंडे गाड़
कोई जिये या कोई मरे अब
इसकी बला से सब गए भाड़

कोटि कोटि नमन 'निर्जन' का
ऐसे सत्यानाशी सियार को यार
बदल दिया जिसने ख़ुद के ही 
वचनों-कसमें-वादों, का सार

धन्य हो गया गोला-ए-हिन्द
चरण धूलि से इनकी आज
ऐसे रंगे सियारों औ मूर्खों से
कौन बचाएगा हिन्द की लाज?

#तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #राजनीति #कहानी #व्यंग #रंगासियार #गोला #जंगल #मूर्ख

मंगलवार, मार्च 29, 2016

तू ही रहे साथ मेरे



















आह! दुनिया नहीं चाहती मैं, मैं बनकर रहूँ
वो जो चाहती है, कहती हैं, बन चुपचाप रहूँ
होठ भींच, रह ख़ामोश, ख़ुद से अनजान रहूँ
रहकर लाचार यूँ ही, मैं ख़ुद से पशेमान रहूँ

बनकर तमाशबीन मैं क्यों, ये असबाब सहूँ?
कहता हूँ ख़ुद से, जो हूँ जैसा हूँ वही ज़ात रहूँ
नहीं समझे हैं वो, कोशिशें उल्टी पड़ जाती हैं
मैं मजबूर नहीं, टूटना ऐसे मेरा मुमकिन नहीं

महसूस करता है हर लम्हा, दिल-ओ-दिमाग मेरा
ख़त्म हो रहा है मुझमें, धीमे-धीमे हर एहसास मेरा
दर्द से क्षत-विक्षत है, कहने को मज़बूत शरीर मेरा
चुका रहा है कीमत जुड़े रहने की, हर जज़्बात मेरा

दिल करता है कभी, लेट जाऊं और निकल जाऊं
ले आत्मा को साथ, ऊँचे नील-गगन में विचर जाऊं
पर समय अभी आया नहीं, तो जल्दी क्यों तर जाऊं
काज ज़िम्मे हैं कई जीवन में, छोड़ इन्हें किधर जाऊं

तो जब तक मुकम्मल ना हो जाएँ, सभी मस्लहत मेरे
तुम ही संभालो 'निर्जन', पल-पल उलझते लम्हात मेरे
उम्मीद छोटी सी, अमन पसंद ज़िन्दगी की है यारा मेरे
दूर रहे दुनिया मुझसे, फ़क़त एक तू ही रहे साथ मेरे

पशेमान - repentent, ashamed
तमाशबीन - spectator
असबाब - scene, stuff
मुकम्मल - complete
मस्लहत - policy
लम्हात -  moments


#तुषारराजरस्तोगी #दुनिया #बदलाव #अहसास #जज़्बात #निर्जन #मस्लहत #उम्मीद