शनिवार, मार्च 30, 2013

एकाकी












एकाकी जीवन है
मेरा
पर्वत तेरे जैसा
कभी लगे
झरने तेरे जैसा
कभी लगे
बादल तेरे जैसा
उमड़ घुमड़ कर
दुःख आते हैं
मन को दुःख दे
छल जाते हैं
कभी अंतः
सुख बरसाते हैं
दिल कहता है
दुःख नहीं चाहियें
अंतः कहता
सुख नहीं चाहियें
अंतः
मन दोनों एकाकी है
जीवन
तन दोनों एकाकी है
तब मैं भी तो
एकाकी हूँ
जीवन डोर
प्रभु को सौंपी
मन, अंतः को
दिया भुलाय
बादल तुझसे
झरने तुझसे
अपना जीवन
लिया मिलाय
बहते रहना
बरसते नयना को
अब लिया है
अपनाय...

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ... बहुत ही बढिया ...

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  2. बहुत सुन्दर....होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।।
    पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...

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  3. बहुत ही बेहतरीन सुन्दर प्रस्तुति,आभार.

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  4. सुन्दर भावों से पूर्ण काविता!

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  5. एकाकी जीवन ही अनुभवों से गुजरता है .... अनुभव जीने के उपक्रम बन जाते हैं

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  6. बरसते नयन को अपनाना ही जीवन है। गहरी भावात्‍मक कविता।

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  7. अपने ही मन की सोच ....अनेको प्रश्न ..जिनका जवाब मिलना मुश्किल है

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह बहुत सही और सार्थक सच को व्यक्त
    करती रचना
    बहुत बहुत बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    jyoti-khare.blogspot.in

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  9. दिल ओर अंत: एक हो जाए तभी जीवन आसान होता है ... सब कुछ एक मन से, शरीर से, अंत: करन से ... बाह्य जगत से ...

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  10. एकाकी जीवन भी एकाकी कब रह जाता है .....यादों और अनुभव उसके संग चलते हैं ....जीवन की थाती

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  11. अनुभव...
    अनुभूति...
    बस केवल अपनी....!!

    जवाब देंहटाएं

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