हर ओर हैं आज दरिन्दे
कब तक तुम ऐसे रोओगी
भारत की धरती कब तक
अपने अश्कों से धोओगी
क्षत्राणी, वीरांगनाओं की
इस ओजस्वी भूमि पर
समर भयंकर सम्मुख सेना में
हैं लाखों रावण रणभूमि पर
हाथों उनके लाज तुम अपनी
ऐसे कब तक खोओगी
मस्तक झुका पिट पिट कर
चिर निद्रा में सोओगी
मान यदि रखना है अपना
चलो हाथ में खड़क उठा
इस दशहरा के अवसर पर
उद्घोष करो तुम बिगुल बजा
कर हुंकार लड़ो रावण से
दो तुम उसको धुल चटा
धूल-धूसरित मस्तक करने को
बढ़ो प्रत्यंचा पर तीर चढ़ा
रावण धराशायी करने को
चंडी बन आगे बढ़ना होगा
साध निशाना नाभि पर
संधान अचूक करना होगा
इस बार दशहरे पर तुमको
प्रकृति का नियम बदलना होगा
राम के हाथों मुक्ति ना पाकर
रावण को दुर्गा द्वारा मरना होगा