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बुधवार, नवंबर 25, 2015

ज़रा अंजाम होने दो



















अभी तारे नहीं चमके
जवां ये शाम होने दो
लबों से जाम हटा लूँगा
बहक कर नाम होने दो

मुझे आबाद करने की
वजह तुम ढूंढती क्यों हो?
मैं बर्बाद ही बेहतर हूँ
नाम ये बेनाम रहने दो

अभी मानी नहीं है हार
मुझे अंगार पे चलने दो
मैं हर वादा निभाऊंगा
ज़िद्दी हालात संवारने दो

मेरा इमान है अनमोल
उन्हें अंदाज़ा लगाने दो
मैं ख़ुद को बेच डालूँगा
नीलामी दिल की होने दो

इब्तदा-ए-इश्क में तुम 
हौंसला क्यों हार बैठे हो
जीत लेगा तुम्हे 'निर्जन'
ज़रा अंजाम होने दो

#तुषारराजरस्तोगी