वो यादें गुज़रे लम्हों की
जिस पल यारों साथ रहे
वो अनजानी दुनिया थी
खुशियों से आबाद रहे
वो उम्र गुज़ारी थी हमने
जब रोते रोते हँसते थे
बस कहते थे न सुनते थे
हम तुम जब मिलते थे
वो अपने चेहरे खिलते थे
पुर्लुफ्त वो आलम होता था
जब रातों को बातें करते थे
मैं सोच के कितना हँसता हूँ
उन बातों पर बचपन की
बस यही पुरानी याद बनी
'निर्जन' बातें उन लम्हों की
लड़ लड़ कर हम साथ रहे
ये यादें है उस अपनेपन की
वो यादें गुज़रे लम्हों की ....