संवर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
संवर लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

गुरुवार, सितंबर 17, 2015

संवर जाता है



















उसकी बातों से दिल बेक़रार हो जाता है
जब नहीं हों बातें दिल बेज़ार हो जाता है

उससे मिलने को जीया ये मचल जाता है
उसकी यादों में दूर कहीं निकल जाता है

जब इंतिहा में सदाक़त-शिद्दत दोनों हों
उस तपिश से पत्थर भी पिघल जाता है

उसके इश्क़ की गहराई में जब से डूबा
दफ़न है ये अहं, ग़ुस्सा संभल जाता है

जुदाई का उससे जब भी ख़याल आता है
सैलाब-ए-लहू इन आँखों में उतर आता है

इश्क़ का कोई मौसम होता नहीं 'निर्जन'
इश्क़ से हर एक मौसम ही संवर जाता है

बेक़रार - restless
बेज़ार - to be sick
इंतिहा - utmost limit, end, extremity
सदाक़त - truth, sincerity, fidelity
शिद्दत - intensity
तपिश - heat,

#तुषारराजरस्तोगी #इश्क़ #मोहब्बत #ग़ज़ल