गुरुवार, मार्च 14, 2013

जीवन चक्र

एक को तेरा मरण
तेरह दिन में
मिले नए सम्बन्ध
छूटे रिश्ते वो सब
जो तेरे अपने
जाने और अनजाने थे
क्यों मानव इस
चक्रव्यूह में
घूमता है
ये, अजीब सा सत्य
हे ईश्वर
एक, तीन का मिश्रण
शुन्य सा हुआ
हर मानव
कब तक
आता जाता
रहेगा
पृथ्वी की तरह
चाँद सूरज के पीछे
सुबह शाम
घूमता रहेगा
एक घर
एक परिवेश से
दुसरे परिवेश में
कभी जब
पुराने सम्बन्धी
आयेंगे यादों में
तब तू अपने
जन्म की
अनंत पीड़ा से
अपनी मृत्यु की
वेदना का अनुभव
करते हुए क्या
सुख की सांस भी
ले पायेगा ......

13 टिप्‍पणियां:

  1. अबूझ उलझी पहेली
    अभिज्ञ सुलझा लें
    तो अन्तर्हित
    ना रख प्रशंसा लें
    शुभकामनायें !!

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  2. darshnik rachna aur waise hi vichaar ..hmm ...bt sorry to say tushar mujhe to wo khana khajana aur holi ke rang udata tushar hi jyada pasand hai :-)

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  3. प्रश्न मोक्ष का है खड़ा, लेकर गजब तिलस्म |
    कई तीन-तेरह हुवे, चले अनवरत रस्म ||

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति ,जीवन की यही बिडम्बना है ,,,,,

    बीबी बैठी मायके , होरी नही सुहाय
    साजन मोरे है नही,रंग न मोको भाय..
    .
    उपरोक्त शीर्षक पर आप सभी लोगो की रचनाए आमंत्रित है,,,,,
    जानकारी हेतु ये लिंक देखे : होरी नही सुहाय,

    जवाब देंहटाएं
  5. जीवन चक्र को परिभाषित करती सार्थक प्रस्तुति !!

    जवाब देंहटाएं
  6. जीवन*दर्शन को रेखांकित करती सार्थक रचना ,तुषार जी
    साभार.......

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  7. yahi maya moh ka bandhan bhi .......bahut acchi prastuti.....

    जवाब देंहटाएं
  8. जीवन एक पहेली ,जिसका समाधान कहीं नहीं !

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