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शुक्रवार, जुलाई 08, 2016

एक शब्द
















सनक और जूनून
वासना और प्यार
अभीप्सा और देखभाल
तुम्हारी ग़ैरहाज़िरी खल रही है
तुम्हारे बारे में सोच रहा हूँ
और सब से बहुत ही ज़्यादा
हर एक तर्क से परे
है यह सारी सोच
ये प्यार जो जलता है
आग से भी ज्यादा गर्म
तपिश इसकी है जो
ज्वालामुखी से ज्यादा
ये इबादत है जो
बंदिश नहीं है
ये दर्द है जो
कम नहीं होता
ये पीड़ा है जो
कभी जाती नहीं है
ये वफ़ादारी है जो
सच में अंधी है
ये विश्वास है जो
हर किसी प्रकार से भिन्न है
ये है डर की भावना
श्रद्धा के साथ
कि यह व्यक्ति
शायद मेरा हो सकता है
मेरी आत्मा का आत्मसमर्पण
मेरा दिल तुम्हारा है
हमेशा के लिए
यह सब कुछ
सदा के लिए
संचित है
एक शब्द में
जिसे तुम शायद ही
समझ पाती हो
लेकिन शायद
कभी किसी दिन
तुम समझ जाओगी
यह एक शब्द:
'मोहब्बत - प्यार - इश्क़'

अभीप्सा - Longing

#तुषारराजरस्तोगी #निर्जन #एकशब्द #इश्क़ #प्यार #मोहब्बत #इबादत #समझ

रविवार, फ़रवरी 21, 2016

क्या अब ज़िन्दगी कुलबुलाने लगी है?














इश्क़ की कलियाँ खिलने लगी हैं
ख़्वाबों की अखियाँ भरने लगी हैं  
कोई मुझको भी तो बतलाओ
क्या अब ज़िन्दगी संवरने लगी है?

हसरत के तारे जगमगाने लगे हैं
उमंगों को रौशन सजाने लगे हैं
कोई मुझको भी तो बतलाओ
क्या अब ज़िन्दगी चमकने लगी है?

फूल और परिंदे भी थिरकने लगे हैं
नज़ारे ये दिलकश धड़कने लगे हैं
कोई मुझको भी तो बतलाओ
क्या अब ज़िन्दगी गुनगुनाने लगी है?

आसमां में अरमां कई उड़ने लगे हैं
उम्मीदों के बादल मन भरने लगे हैं
कोई मुझको भी तो बतलाओ
क्या अब ज़िन्दगी मुस्कुराने लगी है?

वादियों की धुन से प्यार होने लगा है
बहता ये नीर आत्मा भिगोने लगा है
कोई मुझको भी तो बतलाओ
क्या अब ज़िन्दगी समझाने लगी है?

बर्फीली हवाएं खूं में बहने लगी हैं
आग नसों में अब दहकने लगी है 
कोई मुझको भी तो बतलाओ
क्या अब ज़िन्दगी तड़पने लगी है?

चेहरे की चहक चहचहाने लगी है
उसकी ही कमी कसमसाने लगी है
कोई 'निर्जन' को तो बतलाओ
क्या अब ज़िन्दगी कुलबुलाने लगी है?

#तुषारराजरस्तोगी #प्यार #सपने #आरज़ू #कष्ट #विचार

Is it that, now the life is fidgeting?
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Love buds are beginning to bloom
Healing the dreamy eyes
Someone please let me know
Is it that, now the life is embellishing?

Stars of longing are beginning to twinkle
Lightning and decorating the emotions of passion
Someone please let me know
Is it that, now the life is shining?

Flowers and birds are beginning to jive
Entrancing views are palpitating
Someone please let me know
Is it that, now the life is humming?

Aspirations are now flying in the skies
Clouds of hopes are binding the soul
Someone please let me know
Is it that, now the life is smiling?

Falling in love with cadence of scenery
Running water moistens the soul
Someone please let me know
Is it that, now the life is explaining?

Winds of ardour are drifting in blood
Desire is now blazing in nerves
Someone please let me know
Is it that, now the life is agonizing?

Chirm of visage is now tweeting
Only her need is wriggling now
Someone please let 'Nirjan' know
Is it that, now the life is fidgeting?

#tusharrajrastogi #love #dreams #longing #agony #thoughts

रविवार, जनवरी 17, 2016

सार्थक अर्थ















प्यार,

किसी ने पुछा मुझसे, क्या है प्यार?, किसे कहते हैं इश्क़?
क्या यह अच्छा है, या फिर, क्या यह बुरा है?
क्या यह ग़ज़ब का है, या फिर, क्या यह ख़राब है?
सच कहूँ तो, मालूम मुझे भी नही है
इसका क्या जवाब दूं, फिर भी,
अंततः जो समझा, बस इतना, कि
प्यार सभी भावनाओं में
सबसे सरल होकर भी
सबसे ज्यादा जटिल है

प्यार भावनापूर्ण सोच है
प्यार असामयिक भूख है
प्यार शुष्क प्यास है
प्यार मोह पाश है
प्यार अपरिमित व्यास है
प्यार असीमित व्योम है
प्यार करुनामय होम है
प्यार आसक्ति है
प्यार मुक्ति है
प्यार शक्ति है
प्यार भक्ति है
प्यार दयालु है
प्यार कठोर है
प्यार रसदार है
प्यार जीत है
प्यार हार है
प्यार अनोखा है
प्यार भयानक है
प्यार एक बीमारी है
प्यार एक इलाज है
प्यार एक व्यवहार है
प्यार बस प्यार है
प्यार दोस्ती है
प्यार बैर है
प्यार सार्थक है
प्यार व्यर्थ है
प्यार द्रोह है
प्यार विद्रोह है
प्यार मुश्किल है
प्यार सुखदायक है
प्यार शांतिदूत है

प्यार सच बुलवाता है
प्यार झूठ कहलाता है
प्यार सब समझाता है
प्यार सब उलझाता है
प्यार जीवन बनाता है
प्यार ज़िन्दगी ढहाता है
प्यार आँखें चमकाता है
प्यार कितना हंसाता है
प्यार उतना रुलाता है
प्यार दिल तोड़ जाता है
प्यार गले से लगाता है
प्यार दुनिया घुमाता है
प्यार नीचे गिराता है
प्यार मारा मारा फ़िराता है
प्यार श्रेष्ठता दर्शाता है
प्यार दुष्टता दर्शाता है
प्यार मुमकिन बनाता है
प्यार नामुमकिन बनाता है
प्यार में हर शय लायक है
प्यार में हर शय नालायक है
प्यार होशियार बनाता है
प्यार बेवक़ूफ़ बनाता है
प्यार ज्ञान बढ़ाता है
प्यार अंधा कर जाता है
प्यार प्रोत्साहित करता है
प्यार में डर लगता है
प्यार झगड़े बढ़ाता है
प्यार गले मिलवाता है

...और इस सब से ऊपर
प्यार हमेशा इसके लायक है, क्योंकि
प्यार बेहतर इंसान बनने की वजह है
जब भी आप किसी से प्यार करते हैं
तो फिर चाहे वो
बुरे वक़्त में साथ निभाने वाले दोस्त के लिए हो
अंत तक दिल की गहराई से चाहने वाले महबूब के लिए हो
बिना शर्त प्यार करने वाले अपनों के लिए हो, या
प्रभु के प्रति जटिल प्रेम भावना हो
वहां...इश्क़ करने के लिए कोई अर्थ नहीं होता
वहां चाहत का मतलब...सब कुछ होता है

कुछ फ़र्क नहीं पड़ता
प्रेम में कितना दर्द होता है
प्रेम में इंसान कितना रोता है
प्रेम आत्मपरीक्षण करता है
प्रेम आत्मविभाजन करता है
प्रेम सदा इसके योग्य है, क्योंकि
जो आपको मारता नहीं है,
वो आपको मज़बूत बनाता है
वक़्त बेशक़ कितना भी लग जाये
यदि आप प्यार के साथ जी रहे हैं, तो
आप एक बेहतर इंसान ही बनेंगे, क्योंकि
आप फिर गलतियाँ करने से
कोशिश करने से
चुनाव करने से
डरेंगे नहीं
और...सब से ऊपर
यदि आप किसी को चाहते हैं, तो
कोई फ़र्क नहीं पड़ता लोग क्या सोचते हैं
आप उसके लिए जान दे सकते हैं, लेकिन
आप उसके लिए, उसके साथ ज़िन्दगी जियेंगे भी
यही है...'निर्जन' के विचार से
चाहत, प्रेमभाव, मोहब्बत, पसंद, वफ़ा,
प्यार, वात्सल्य, प्रणय, सुभगता, प्रियतमा,
प्रीति, प्रेम, मुहब्बत, रुचि, स्नेह, इश्क़
...का सार्थक अर्थ...

#तुषारराजरस्तोगी #इश्क़ #प्यार #सार्थक #अर्थ #भावनाएं #सोच

शुक्रवार, नवंबर 20, 2015

तेरा इश्क़


















तेरा आना ख़ुदा की रहमत है
तेरी बातें ज़िन्दगी की नेमत है

तेरा होना हर लम्हा त्यौहार है
तेरी मुस्कान जो मिलनसार है

तेरे क़दमों से घरोंदा पाक है
तेरी कमी से जीवन ख़ाक है

तेरा नखरा तो बजता साज़ है
तेरे दिल की सच्ची आवाज़ है

तेरा इश्क़ वो रूहानी दौलत है
'निर्जन' की जिस से शोहरत है

#तुषाररस्तोगी

गुरुवार, अक्टूबर 01, 2015

प्यार और सासें

वो कभी भी दिल से दूर नहीं रहा, ज़रा भी नहीं। बमुश्किल ही कोई ऐसा दिन बीता होगा जब उसकी याद में खोई ना रही हो। झुंझलाहट, बड़बड़ाना, अपने से बतियाना, अपनी ही बात पर ख़ुद से तर्क-वितर्क करना, अपने विचारों और भावनाओं पर नियंत्रण खो देना, खुद को चुनौती देना, अपने मतभेद और दूरी के साथ संघर्ष करना, सही सोचते-सोचते अपने विचार से फिर जाना, आत्म-संदेह करना और अपने चिरकालिक अनाड़ीपन में फ़िर से खो जाना - आजकल यही सब तो होता दिखाई देने लग गया था आराधना के रोज़मर्रा जीवन की उठा-पटक में।

इस दूरी ने दोनों के इश्क़ में एक ठहराव ला दिया था। उनका प्यार समय की तलवार पर खरा उतरने को बेक़रार था। प्रेम का जुनून पहले की बनिज़बत कहीं ज्यादा मज़बूत और सच्चा हो गया था। हर एक गुज़ारते लम्हात के साथ उनके अपनेपन का नूर निखरता ही जा रहा था।

वो दिन जब दोनों के बीच बातचीत का कोई मुक़म्मल ज़रिया क़ायम नहीं हो पाता था, उस वक्फे में वो अपने दिल को समझाने में बिता देती और पुरानी यादों में खो जाया करती और अपने आपसे कहती, "एक ना एक दिन तो हमारी मुलाक़ात ज़रूर होगी।" - फिर जितनी भी दफ़ा राज, आराधना की यादों से होकर उसके दिल तक पहुँचता उसे महसूस होता कि उस एक पल उसकी आत्मा अपनी साँसों को थामे बेसब्री से उसके इंतज़ार में बाहें फैलाए खड़ी है।

वो अपनी आत्मा को सांत्वना देते हुए उस अदृश्य ड़ोर का हवाला देती जो उन दोनों को आपस में जोड़ता है और उसके सपनो में दोनों को एक साथ बांधे रखता है। वो याद करती है उन मुलाकातों और बरसात के पलों को जिसमें उनका इश्क़ परवान चढ़ा था और दोनों एक दुसरे के हो गए थे। वो विचार करती है कि शायद राज भी अपने अकेलेपन में यही सब सोचता होगा या फिर क्या वो भी उसके बारे में ही सोचता होगा? असल में, वो इन सब बातों को लेकर ज़रा भी निश्चित नहीं थी। यह भी तो हो सकता है वो उसकी इन भावनाओं से एकदम बेख़बर हो और मन में उठते विचार बस संकेत मात्र हों क्योंकि वो शायद वही देख और सोच रही थी जो वो अपने जीवन में होता देखना चाहती थी। पर कहीं ना कहीं उसे विश्वास था कि राज भी उसे उतना ही चाहता है जितना वो उसके प्रति आकर्षित है और दीवानों की तरह उसे चाहती है। बस इतने दिनों से दोनों को कोई मौका नहीं मिल पा रहा  था अपनी बात को स्पष्ट रूप से एक दुसरे तक पहुँचाने का।

उसे सच में ज़रा भी इल्म ना था कि आख़िर क्यों वो राज के लिए ऐसी भावनाएं दिल में सजाए रखती है, जो उनकी पहली मुलाक़ात के बाद से ही उत्पन्न होनी शुरू हो गईं थी और जिन्होंने उसके दिल पर ना जाने कैसा जादू कर दिया था। उसका दिल अब उसके बस से बाहर था, ऐसा जैसे अचानक ही ह्रदय का कोई कोना इस सब के इंतज़ार में था और उसे पहले से ज्ञात था कि ज़िन्दगी में कहीं ना कहीं, किसी ना किसी मोड़ पर यह सिलसिला आरम्भ ज़रूर होगा। जो बात वो कभी सपने में भी नहीं सोचती थी आज, सच्चाई बन उसकी नज़रों के सामने थी और उसके हठीले स्वभाव पर मुस्कुरा रही थी। ऐसे समय में, उसके पास इन पलों को स्वीकारने के सिवा कोई और विकल्प नहीं था।

वास्तव में कहें तो उसे बस इतना मालूम था कि अब उसकी असल जगह राज के दिल में ही है, और उसने अपनी मधुर मुस्कान और मनोभावी प्रवृत्ति से उसके मन को मोह लिया है और वो दोनों के दिलों का आपस में जुड़ाव महसूस कर सकती थी क्योंकि आज उन दोनों के बीच की छोटी से छोटी बात भी उसे ख़ुशी प्रदान करती है और वो दोनों जब भी साथ होते, उस समय बहुत ही ख़ुशहाल रहा करते थे।

वो दोनों हर मायनो में एक दुसरे की सादगी, सीरत, खुश्मिजाज़ी, मन की सुन्दरता पर मोहित हो गए थे और निरंतर रूप से एक दुसरे के प्रति आकर्षित और मंत्रमुग्ध थे। आज वो मंजिल आ गई थी जब दोनों के लिए इश्क़ सांस लेने जैसा हो गया था।

फिलहाल तो दोनों की ज़िंदगियाँ इस एक लम्हे में रुक गईं है आगे देखते हैं ज़िन्दगी कैसे और क्या-क्या रंग बिखेरती है और दोनों के प्यार की गहराई किस मक़ाम तक पहुँचती है। 

#तुषारराजरस्तोगी

रविवार, जुलाई 26, 2015

मुलाक़ात

राज की मुलाक़ात आराधना से कन्याकुमारी जाते वक़्त पांच साल पहले बस में हुई थी और उसने बताया था कि वो अपने जीवन की उलझनों से भाग रही है। राज द्वारा क्यों? पूछने पर उसने जवाब दिया, "उसे मालूम नहीं क्यों - पर उसके जीवन में बहुत सी बातें ऐसी हैं जो उसके भागने के फैंसले को सही साबित कर देंगी।

उसने दायें हाथ में बड़ा कॉफ़ी का मग पकड़ा था और थोड़ी-थोड़ी देर बाद वो उसमें से उठती भाप को लम्बी सांस लेकर सूंघती और आह की ध्वनि के साथ निःश्वास होकर निश्चिंत हो जाती। देखने पर प्रतीत होता था कि उसे कॉफ़ी बेहद पसंद है और वह उसके स्वाद का भरपूर आनंद लेती हुई उसका लुत्फ़ उठा रही है। राज को अहसास हुआ कि उसने उसे एकटक ताड़ते हुए पकड़ लिया है जब उसकी नाक मग के सिरे को छू रही थी, और वो झट से बोल पड़ी कैफ़ीन मेरे दिल की तरंगों के जीवित होने का एहसास कराती है। उसकी आँखें अचरज से ऐसे चौड़ी और खुली हुई थीं जैसे मानो आज तक उसने कभी पलक झपकी ही ना हो, जैसे वो डर रही हो, जैसे...जैसे उसने कुछ खो दिया हो और सूरज उसकी पलकों पर चिड़ियों की भांति ऐसे बैठा था जैसे वो तारों पर बैठ झूलती हैं क्योंकि उसने बताया कि उसे रोना-धोना ज़रा भी पसंद नहीं आता है।

उसे चीज़ों को गिराने की आदत थी और वो चौथी मर्तबा सीट के नीचे झुककर कुछ उठाने के लिए ख़ोज-बीन कर रही थी के, अचानक से ज़ोर के चिल्लाई और उसकी फ़िरोज़ी टोपी राज के हाथ से टकराई और उसके कप से चाय बाहर छलक कर गिर गई। उसने बच्चों की तरह बड़ी मासूमियत भरी नज़रों से देखते हुए, दांतों से अपने नीचे वाले होंठ को काटते हुए माफ़ी मांगी और बोली, "वो ख़ुशी से इसलिए चीख़ी क्योंकि तुम्हारे टखने पर जो टैटू है बहुत प्यारा लगा।" - उसने बताया कि जब वो अट्ठारह बरस की हुई थी तब उसने अपनी कमर पर रंगीन तितली का टैटू बनवाया था और जब भी वो उसे आईने में निहारती है तब अपने आप से फुसफुसा कर सवाल करती है कि, "क्या वो इस तितली की तरह रंगीन,खुशमिजाज़ और चुलबुली है ?"

उस रात वो दोनों एक दुसरे के साथ में अपनी ज़िन्दगी से जुड़ी कहानियां ऐसे अदला-बदली करते रहे जैसे दो प्रेमी आपस में चूमते हुए अपने इश्क़ के शर्बतों को एक दुसरे की आत्मा में उतार देते हैं और जब राज ने उससे कहा, "बत्ति जला लेते हैं क्योंकि हम मुश्किल से ही कुछ देख पा रहे हैं।" - तब इस पर मना करते हुए उसने लाजवाब जवाब दिया कि, "सच्ची और अच्छी आवाज़ों का साथ देने के लिए कभी किसी चेहरे की ज़रुरत नहीं होती है।"

उसकी गुस्ताख़ियों के बावजूद, वो बिलकुल मायावी थी और उसका उत्साह, तत्परता तथा उत्सुकता उसे बेहद मनमोहक बना रहीं थीं; उसके बात करने के अंदाज़ और शब्दों को छनछनाहट में कुछ तो था - जिसे राज समझ नहीं पा रहा था और ना ही कोई नाम दे पाने में सक्षम था और जब ठंडी हवा की लहर में उसकी ज़ुल्फ़ों का लहराना देखा तब ऐसा लगा मानो गर्म सेहरा के कांटो भरे कैक्टस में से अमृत धारा आज़ाद होकर रेगिस्तान में बह निकली हो।

अभी राज अपनी बातों के मध्य में ही पहुंचा था, उसके परिवार और उनकी खैरियत के बारे में सवाल करने ही वाला था कि बस रुक गई और कंडक्टर ने आवाज़ लगा दी की जिन्हें इस गंतव्य पर उतरना है वो आ जाएँ और अपना सामान डिक्की से निकलवा लें। उसने तेज़ी के साथ बातों का रुख मोड़ते हुए अपने कैनवास से बने बैकपैक से पोलारोइड कैमरा निकालकर झटपट एक राज का चित्र और फिर अपना चित्र खींच लिया।

अभी वो चित्रों को हवा में पंखे की तरह हिलाते हुए सुखा ही रही थी, राज ने पूछा, "इस साथ के बाद आगे कभी बात करने या मुलाक़ात का कोई तरीका या ज़रिया होगा?" परन्तु उसने तुरंत मुस्कुराकर नहीं में सर हिलाते हुए सवाल को सिरे से ख़ारिज कर दिया और बोली, "मुझे लगा था तुम मुझे इस सब से बेहतर समझते हो।" और जोर के हंसने लगी

राज के चेहरे पर फ़ीका अप्रकट मायूसी का भाव देख वो बिलकुल दंग रह गई और अपनी रेशमी आवाज़ में उसको उलझाते हुए अपने विदाई के जादुई शब्दों के जाल उस पर डाल दिए। "सुनो, ये लो," उसने खिसककर राज के सीने पर एक तस्वीर रख दी और कहा, "अब तुम्हारे पास मेरी तस्वीर है और मेरे पास तुम्हारी। एक दिन, हम फ़िर से ज़रूर मिलेंगे और शायद हमें यह सब कुछ भी याद ना रहे, पर मुझसे एक वादा करो कि जब तक हो सकेगा तुम इस तस्वीर को अपने साथ रखोगे और वैसा ही मैं भी करुँगी। और किसे मालूम है? शायद किसी रोज़ अपने अंतर्मन के ज्ञान और आवाज़ को सुनकर हम एक दुसरे को ढूँढने में क़ामयाब हो जाएँ। सम्भवतः ये बचपन के खेल छुपन-छिपाई जैसा होगा और यह खेल एक दिन सच हो जाएगा, और वैसे भी बाक़ी सब कुछ छोड़कर पूरी दुनिया हमारे इस खेल का मैदान होगी।" - उसकी आँखें यह कहते हुए चमक रहीं थीं।

पांच साल बाद भी, राज उसे दोबारा नहीं ख़ोज पाया पर उसने उम्मीद का दामन अभी तलक नहीं छोड़ा। वो जहाँ भी जाता उसे ढूँढने की कोशिश ज़रूर करता - हिन्दुस्तान, लंदन, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, मलेशिया, मॉरिशस, थाईलैंड, रोम, बुडापेस्ट, श्रीलंका, और भी ना जाने कहाँ-कहाँ पर अफ़सोस उस दिन के बाद से अब तक ऐसी कोई लड़की उसे नहीं मिली जो अपनी जुल्फों में रेगिस्तानी रेत की ख़ुशबू लिए चलती हो।

इतने साल बाद, राज टिकट काउंटर पर खड़ा पेरिस को जाने वाली रात की ट्रेन की टिकट बुक करा रहा था। ठीक उसके पीछे एक लड़की लाइन में खड़ी थी, उसके रेशमी बाल हवा में लहरा रहे थे और फिर गिरकर उसके गालों को चूम रहे थे। टिकट लेकर जैसे ही वो अपना बैग लेकर प्लेटफार्म की तरफ बढ़ रहा था उसके कानो में ये आवाज़ पड़ी और वो रुक गया। वो लड़की टिकट खिड़की पर झुकी हुई थी और अधिकारी को बता रही थी की वो अपने जीवन की उलझनों से भाग रही है और इसी प्लानिंग के तहत वो आज यहाँ पहुंची है। राज यह सब सुनता रहा, रुक गया और आसमान की तरफ देख चुपचाप खड़ा मुस्कुराता रहा।

#तुषार राज रस्तोगी  #कहानी  #राज  #आराधना #इश्क़ #मोहब्बत #मुलाक़ात #इंतज़ार  #बस  #सफ़र  #पेरिस

शुक्रवार, जुलाई 24, 2015

दोस्ती - दोस्ती ही रहती है














दोस्ती...

ज़िन्दगी का इम्तिहान है
धैर्य रुपी गरिमा महान है

सच्चे दिलों का ईमान है
धर्म का अद्भुत ज्ञान है

एक साथ मिल हँसना है
एक साथ मिल रोना है

उस प्रेम की तरह होती है
जो कभी बूढ़ा नहीं होता है

गर्म और सुखद रहती है
जब बाक़ी ठंडा पड़ जाता है

'निर्जन' तब भी दोस्ती रहती है
जब जीवन में प्रलय आ जाता है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जुलाई 18, 2015

एक सपना - एक एहसास

"तुम्हारे बेहद अदम्य, कोमल, नाज़ुक, मुलायम, नज़ाकत भरे हाथों के स्पर्श की छुअन बिलकुल वैसी है जैसी मैं हमेशा से चाहता था और जिनके लिए तरसता था। तुम बहुत ही शरारती इश्क़बाज़ हो और हमेशा मेरे साथ मीठी सी नई-नई शरारतें करती रहती हो जिनके लिए मैं अक्सर अपने आप को अचानक से तैयार नहीं कर पाता हूँ। तुम मुझे अपनी प्यार भरी बाहों में जकड़ लेती हो और मेरे से ऐसे लिपट जाया करती हो जैसे तुम्हारे लिए सिर्फ और सिर्फ बस मैं ही एक हूँ और जब मैं तुम्हे चूमता हूँ तब भी तुम मुझे हमेशा ही अप्रत्याशित रूप से विचलित कर देती हो। मैं तुम्हारे दिव्य प्यार को इन होठों की सरसराहट, छुपी हुई कसमसाहट, सिमटी हुई घबराहट और अनकहे कंपन में महसूस कर सकता हूँ। तुम्हारे आगोश में आते ही दिल में बहुत ही उग्र विचार उत्पन्न होते हैं परन्तु साथ ही तुम्हारे प्रेम की सहनशील स्नेही माधुर्यता, सुखदता और रमणीयता मुझे सहसा ही स्थिर और निश्चल बना देती हैं और तुम्हे मुझसे कसकर लिपटे रहने को बाध्य कर देती हैं साथ ही मेरे मन का एक छोटा सा हिस्सा इस आश्चर्य को मानते हुए मेरे दिल में उठती उमंगो पर क़ाबू पा लेता है जब तुम्हारे जोशीले हाथों का जिज्ञासापूर्ण स्पर्श मेरे तत्व में लीन होने की मनोकामना लिए और अधिक पाने की चाहत करते आलिंगन में इधर-उधर थोड़े पलों में बहुत कुछ तलाशता महसूस देता है। तुम्हारे भोले मनमोहक प्रेम की मोहकता, तुम्हारे व्यक्तित्त्व का तेज़, तुम्हारे गुणों की विशिष्टता, तुम्हारे चरित्र की सौम्यता, तुम्हारी देह की सुगंध, तुम्हारी निकटता की ताज़गी, तुम्हारी मुस्कराहट की मिठास, तुम्हारे अस्तित्त्व की मधुरता और तुम्हरी अंगार सी दहकती साँसों का सान्निध्य मुझे तुम्हारे इश्क़ में दुनिया से बेख़बर होने को मजबूर किए देता है। मेरे दिल के भीतर तुम्हारा भावुक, निर्मल प्रेम मुझे पूर्णता का एहसास करता है, तृप्त करता है, शांत करता है, मेरी बेचैनी और व्याकुलता को संतुष्ट करता है। आने वाले समय में भी मुझे उम्मीद है हमारा प्यार यूँ ही बढ़ता रहेगा और तुम्हारे दिल में मेरे और मेरे इश्क़ की लालसा और तड़प कल भी ऐसी ही बनी रहेगी और आह...! आज एक दफ़ा फिर से दोहराता हूँ कि मैं पूरी तरह अपने तन, मन, वचन से तुम्हारे इश्क़ में गिरफ़्तार हो चुका हूँ। मैं तुम्हारा था, तुम्हारा हूँ और सदा तुम्हारा ही रहूँगा।"

टिंग...टिंग...अभी राज मन ही मन यह सब आराधना से कहने की सोच ही रहा था और अपने ख्यालों में मग्न खोया हुआ था कि लिफ्ट रुक गई और घंटी बजने के साथ ही लिफ्ट का दरवाज़ा खुल गया। एक बार फिर, उसके मन की बात मन में ही रह गई। आराधना उसकी शक्ल देखकर हँस पड़ी और बोली, "कहाँ गुम हो हुज़ूर, किधर खोये हुए हो, घर जाने का दिल नहीं है क्या? मेट्रो स्टेशन आ गया चलो एंट्री भी करनी है।"

राज उसके सवालों को सुनता, चेहरे को निहारता, हाथ थामे मुस्कुराता हुआ साथ चल दिया।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, जून 21, 2015

रहती है














लोग मिलते ही हैं औ महफ़िल भी जवां रहती है
वो साथ ना हो तो हुस्न-ए-शय में कमी रहती है

ग़रचे ये नहीं है ख़ुशी मनाने का मौसम तो फिर
जो ख़ुशी मनाऊं भी तो पलकों में नमी रहती है

हर किसी दिल में उफ़नता नहीं सर-ए-उल्फ़त
कुछ दिलों पर सदा गर्द-ए-मायूसी जमी रहती है

इश्क़ मसाफ़त-ए-हस्ती है ज़माने को क्या मालूम
कब तलक किसकी हमसफ़री हमक़दमी रहती है

तू भी उस हूरान-ए-ख़ुल्द पर फ़नाह है 'निर्जन'
जिसके लिए खुदा की धड़कन भी थमी रहती है

सर-ए-उल्फ़त - Madness for Love
गर्द-ए-मायूसी - Trifle of Sorrows
मसाफ़त-ए-हस्ती - Journey of Life
हूरान-ए-ख़ुल्द - Houris of Paradise


--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, जून 06, 2015

दे देते














दिया पानी क्या आँखों का रवानी खून की देते
दिलाती याद उम्र भर निशानी दो जून की देते

जो देनी थी तो होठों की मुस्कराहट ही दे देते
कलाम-ए-पाक रच इश्क़ का तुम साथ दे देते

कोई यादों की नज़्म लिख ज़ुल्फ़ में टांक ही देते
बीते लम्हों की काट कर एक आदा फांक ही देते

छिपाकर दिल में जो संजोये वो एहसास दे देते
तनहा रातों की बेचैनी से भरे वो जज़्बात दे देते

देना ही था कुछ 'निर्जन' जिगर की आग दे देते
दम तोड़ती मोहब्बत का दीवान-ए-ख़ास दे देते

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, मई 09, 2015

उस रोज़












मुस्कुराते गुलाबों की महक वैसी ना होगी
तेरी शोख हंसी की खनक वैसी ना होगी

तितलियों जैसी शोख़ी तेरी वैसी ना होगी
ख्व़ाब लिए नैनों की चमक वैसी ना होगी

तेरी मीठी बोली की चहक वैसी ना होगी
अल्हड़ जवानी की छनक वैसी ना होगी

उस रोज़ तू होगी मगर ऐसी तो ना होगी

चांदी जैसे बालों से सर तेरा सजा होगा
दमकते चेहरे पर सिलवट का समां होगा

करारी इस बोली से गला तेरा रुंधा होगा
सूरज सी निगाहों पर चश्मे भी जमा होगा

तेज़ क़दमों में तेरे सुस्ती का आलम होगा
थक कर चूर पसीने में भीगा दामन होगा

उस रोज़ तू होगी मगर शायद ऐसी होगी

मगर उन सिलवटों में नूर तेरा यही होगा
ढ़लती आँखों में भी जवां इश्क यही होगा

सुस्त कदम सही मुझ तक ही आना होगा
गला रुंधा सही मुझे से ही बतियाना होगा

दिल से देखा सपना मेरा तब भी पूरा होगा
सांझ ढले मेरे हाथों में बस हाथ तेरा होगा

उस रोज़ भी तू ही होगी साथ तेरा मेरा होगा
तेरा और मेरा यह अब जन्मो का नाता होगा

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, अप्रैल 17, 2015

माई बैटर हाफ़ - वो कहाँ है ?

उसके हाथ अब पहले जैसे दोषरहित नहीं रहे। उसके नाख़ूनों की शेप भी पहले जैसी नहीं रही और उनकी चमक भी फीकी पड़ गई है। वो घिस चुके हैं, ऊपर से थोड़े झुर्रीदार, बेहद थके-थके और पुराने से लगने लगे हैं। उसके नाख़ून एक दम सही तरह से कटे हुए हैं, पर उन पर अब कोई पॉलिश या नख प्रसाधन वो पहले जैसा आकर्षण और लावण्य नहीं ला पाते हैं।

उसकी ज़ुल्फ़ें अब नागिन सी लहराती लम्बी नहीं रहीं, ना ही लटें अब घनी घुमावदार पूरी तरह से गोल छल्ले बनाती दिखाई पड़ती हैं। अब तो ज़्यादातर बड़ी ही बेरहमी और लापरवाही के साथ क्लचर से बंधी नज़र आती हैं।

आज उसके होठों पर सारा दिन नम करने वाली चमकीली ग्लॉस की परत दिखाई देती है बनिज्बत उस मलाईदार लिपस्टिक की ख़ुशबू के जो सूरज की गर्मी में पके फल जैसी महक बिखेरती थी।

उसकी वो लोचदार वक्राकार सुन्दरता आज लुभाने के लिए नहीं परन्तु अब उसके शरीर के अनुपात के अनुसार बढ़कर सुख और हिफ़ाज़त देने के लिए ढल गई है।

पर उसकी नज़रों में आज भी वही चमक, चिंगारी, जोश, जीवंतता, हाज़िरजवाबी और शोभा कूट-कूट कर भरी हुई है और वो पहले से भी ज्यादा सजीव, स्पष्ट, उत्साहपूर्ण, तीक्ष्ण, दिलचस्प, रंगीन और रोचक हो गईं हैं। उसकी हंसी का संगीत चांदी की घंटी की खनखनाहट की तरह पूरे घर में भर जाता है, और फिर गुंजन कर बजता हुआ खिड़कीयों और दरवाज़ों से बहार निकल जाता है और सूरज की धुप बन घर में वापस आ जाता है।

हाँ! शायद यह वो लड़की नहीं है जिसे बरसों पहले घर ब्याह कर लाया था...पर यह वो स्त्री है जो हमेशा हर मुश्किल में साथ रही, भीषण तूफ़ान और तपती गर्मी भी उसके इरादों को डिगा नहीं पाए। जो हर परिस्थिति में हाथ थामे डटी रही जैसे असली हंसी तब्दील हो जाती है दाँतों के डाक्टर के चक्कर काटने में। जैसे खेल-कूद वाला जूता जॉगिंग वाले जूतों में बदल जाता हैं और फिर पैदल चलते समय पहनने वाले में...कुछ ही वर्षों में जैसे साइज़ मीडियम से बदलकर लार्ज और फिर एक्स्ट्रा लार्ज हो जाया करता है और बालों को संवारने वाली जैल, सफ़ेद होते बालों को छिपाने के लिए बालों वाले रंग में तब्दील हो जाती है।

यही है वो जो अनगिनत खूबसूरत जंगों और संजीदा वाद-विवादों के साथ, रूठने से ज्यादा मनाने के साथ, सिनेमाघर से ज्यादा बाज़ार के चक्कर लगाने के साथ, खाना पकाने की विधि पर ज्यादा ध्यान ना देकर अपने सहजज्ञान और स्वाभाविक प्रवृत्ति के अनुसार लाजवाब खाना बनाने की कला में निपुण होने के साथ, गुस्से से कहीं ज्यादा हंसी मज़ाक के साथ, अड़ियलपन से ज्यादा समझदारी के साथ, मक्कारों से बचकर सूझ-बूझ के साथ, अपने अपनों को दूसरों की नज़र से बचाने के साथ, ख़ुद से पहले परिवार को खिलाने के साथ, लड़की से औरत बनी है।

यह वही महिला है जिसकी झुर्रियां, मुरझाई त्वचा, लापरवाह बाल, अस्त-व्यस्त वेशभूषा, पसीने में लथ-पथ पल्लू, बिखरती-संभालती साड़ी, ज़िन्दगी में भागम-भाग और कभी-कभी साफ़ कटे नाखून कहते हैं - "मैंने इस चार दीवारी को मकां से घर बनाया है और अपने अस्तित्व के बाहर एक जीवन अपनाया है।" - वही है साया, साथी, शरीक़-ए-हयात, हमदम, ज़िन्दगी, बंदगी, चैन-ओ-सुकूं-औ-क़रार, जीवन का प्यार, रिश्ते का सार...गुड, बेटर, बेस्ट हाफ...

माई बैटर हाफ...ढूंढता हूँ...वो कौन है और कहाँ है ?...कहीं तो होगी...शायद मिल जाए...!

--- तुषार रस्तोगी ---

मंगलवार, अप्रैल 07, 2015

मी टू - एडिक्टेड टू यू एंड योर लव

ये मुझे क्या हो गया? तुमने देखा मुझे? तुम्हारी तरह मुझे भी इस इश्क़ की लत लग गई है और मैं इस प्यार का आदि हो गया हूँ। "येस! मी टू एडिक्टेड टू यू एंड योर लव", मुझे अपने इस प्यार में पड़ने से प्यार हो गया है। लो आज तुम्हारे सामने इसका इक़रार भी हो गया है। जो बात कल तक तुम्हारी जुबां पर थी आज मैं भी उस बात को कुबूल करने से अपने आप को रोक नहीं पा रहा हूँ । तुम जब उस तरह से नज़रे उठाकर मुझे देखती हो बस वही सम्मोहित करने और प्यार में बांधे रखने के लिए काफ़ी होता है। हमारे परवान चढ़ते, परवाज़ बुलंद करते, पंख पसारते, स्वछंद हवा से बहते, घने हरे पेड़ों से झूमते लहलहाते, परिंदों से चहचहाते, बचपन से खिलखिलाते, तारों से झिलमिलाते, फूलों से महकते, बादलों से बरसते, मिटटी से ठंडे, घास से कोमल, झरने से निर्मल, नदी से तेज़, पहाड़ से अडिग, चांदनी से चमकते, सूरज से दमकते, इश्क़ की वो पहली मुलाक़ात की यादें दोनों को ताउम्र साथ रखने के लिए काफ़ी हैं। अपनी बड़ी-बड़ी हिरनी सी आँखों से जब तुम मुझे निहारती हो, तब मैं सब कुछ भूल जाता हूँ। गहरी, शांत, रहस्मय, नशीली निगाहों के पैमानों में डूब जाता हूँ और जिस पल अदा से तुम अपनी मोहब्बत का इज़हार करते हुए, "आई लव यू", कहती हो उसी पल मेरी सारी तकलीफ़, दुःख, उदासी, अवसाद, पीड़ा उड़न छू हो जाती। तुम्हारा इतना कहना, "मेरी जान एक टाइट झप्पी तुम्हे" मेरे सारे ग़म काफ़ूर कर देता है। तुम मेरी सोच का नूर हो, मेरा फ़ितूर हो, तुम्हारा साथ होने पर ज़िन्दगी जीने के मायने कुछ और ही हो जाते हैं। ज़िन्दगी जीने में लुत्फ़ आने लगता है और चेहरे पर एक ख़ुशी का माहौल बना रहता है। आख़िरकार तुमने मुझे भी इस नशे का आदि बना दिया ना - "यू हैव मेड मी आ लव एडिक्ट लाइक यू" - :)

जब तुम बेहद नज़ाकत, हिफ़ाज़त और चाहत के साथ मेरी बाहों में चली आती हो, मेरे दिल को कितना क़रार आता है। अपने आगोश में तुम्हारा कांपता जिस्म और करुणामय मन दोनों को पिघलते देखता हूँ और उस के साथ  तुम्हारा मुझसे ये इक़रार करना, "तुम्हारी बाहों में समाकर ऐसा क्यों होता कि वो इंतज़ार के लाम्हातों में बहते आंसू थम जाया करते हैं। इसका क्या राज़ है? बोलो ना। जिस तरह तुम हलके से, कोमलता के साथ मुझे चूमते हो, मैं सोच में पड़ जाती हूँ, काश! मैंने तुम्हे पहले ही ढूंढ लिया होता। तुम्हारे मज़बूत, चौड़े और अटूट सीने से लगकर ऐसा एहसास होता है कि क्यों ना समय अभी, यहीं, इसी वक़्त, हमेशा के लिए थम जाए और मैं तुम्हारे आलिंगन में सदा के लिए ऐसे ही समा जाऊं। मुझे तुम्हारा साथ होना बहुत सुकूं देता है। जिस तरह से तुम्हारा ऊपर वाला होंठ हरकत करता है ना, वो जब तुम मेरे चेहरे को देखकर अपनी मुस्कान रोकने की कोशिश करते हो, मुझे बेक़ाबू कर देता है, मुस्कुराने और सोचने पर मजबूर कर देता है, और मेरा दिल गाने लगता है। तुम्हारी संजीदा, महासागर जैसी अनंत भूरी आँखें जिनसे तुम हमेशा एकटक नज़र लगाये मेरे अन्दर मेरी आत्मा तक झांकते हो वो तुम्हारी शख़्सियत का सबसे ख़ूबसूरत हिस्सा है, जो मैंने ख़ोज निकाला है। जिस तरह से तुम मेरा नाम लेकर पुकारते हो, और मुझे प्यार भरे उन ख़ास नामो से बुलाते हो, मैं जानती हूँ और समझती भी हूँ कि तुम भी हमारे प्रेम की गहनता को उतना ही महसूस करते हो जितना मैं करती हूँ। जिस तरह से तुम किसी भी बजते हुए गाने के साथ अपनी भारी आवाज़ में उस गाने को गाने की नाकाम कोशिश करते हो, वो भी मुझे हंसने और तुम्हारे साथ गाने को उत्साहित करती है, जबकि मुझे पता होता है की तुम सुर से और सुर तुम से कितने दूर हैं। तुम मेरे चेहरे पर आई मुस्कराहट का कारण हो, तुम मेरी हंसी हो, मेरा गीत हो, संगीत हो, सोच हो, साज़ हो, आवाज़ हो, तुम ही हाँ सिर्फ़ तुम और तुम और तुम ही मेरा प्यार हो, सब कुछ हो। तुम्हारा इश्क़ मेरी दवा है, दुआ है, हाँ है, ना है, ज़िन्दगी है, बंदगी है, जुनून है, सुकून है, खून की रवानी है, मासूम सी कहानी है, धडकनों की हरक़त है, आरज़ू की बरक़त है, ख़ुदा की नेमत है, अफसानों की ताबीर है, कायनात की जागीर है, दिल में मचलता अरमान है, ख़्वाबों का फ़रमान है, रंगों की रंगीनी है, लज्ज़तों का स्वाद है, एहसासों की मिठास है, जीने की राह है, उमंगो की चाह है, साज़ों की आवाज़ है, उतरता-चढ़ता मिजाज़ है और इससे ज्यादा क्या कहूँ कि तुम्हारा और केवल तुम्हारा जुनूं-ए-इश्क़ मेरे हर लम्हे का आगाज़ है। तुम हो तो मैं हूँ, मैं हूँ तो तुम हो। मेरे और तुम्हारे होने से ही हम हैं। मुझे तुम्हारी आशिक़ी की बहुत बुरी आदत लग गई है।  सुनो ना, सुन रहे हो तुम, 'आई एम् एडिक्टेड टू यू एंड योर लव'"... और बस ये ही तो है अपनी "छोटी सी लव स्टोरी"...

--- तुषार रस्तोगी ---

शनिवार, मार्च 28, 2015

ये कहानी है













बारिश आग सी लग रही है क्या रवानी है
अनगिनत खुशियों से लिखी ये कहानी है

इस दिल में आज भी सुलगता है इश्क़ तेरा
हर एक सुकूं आरज़ू की वजह ये कहानी है

दिल दहकता है बारिश की हर बूँद के साथ
मेर परवान चढ़ते इश्क़ की भी ये कहानी है

तसल्ली होती है तेरे ख़याल से रूह को मेरी 
उफ़नती साँसों की रवानी की ये कहानी है

काश कोई पूछे उस दिल से जुड़ने की वजह
इश्क़ में फिसलते मेरे वजूद की ये कहानी है

माँगा है उसने मुझसे इस बेचैनी की सुराग़
इस राज़ को राज़ ना रखने की ये कहानी है

इन लबों पर सजी हैं दुआएं उसके ही लिए
हर पनपती ख्वाहिश की अब ये कहानी है

दो हाथ जब भी उठते हैं अब दुआ के लिए
'निर्जन' मैंने से माँगा है तुझे ये कहानी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, मार्च 27, 2015

मैं हमेशा साथ रहूंगी

वो मेरे करीब सट कर बैठी, मुस्कुरा रही थी। मैं उसकी दहकती गर्म साँसों के उतार चढ़ाव के साथ उनकी आवाज़ भी महसूस कर सकता था।

मैं उसकी गहरी भूरी आँखों में उबलती चमक देख रहा था और उस दीवार की उस महीन दरार से छनती रौशनी की किरण में सोने की तरह जगमगाती उसकी ज़ुल्फों की घुमावदार लटों को धीरे-धीरे झूमता देख निहार रहा था।

"तुमने कुछ सुना क्या?" उसने फुसफुसाते हुए पुछा, मैं उसकी आवाज़ में छिपे भावों को पढ़ रहा था क्योंकि वो बहुत असहज, उत्तेजित और उत्साहित सुनाई पड़ रही थी।

"मैंने सुना? नहीं तो, क्या? कुछ भी तो नहीं है। क्या - कुछ ख़ास है क्या?" शायद मैं ग़लत था।

"उफ़ ओ! चुप करो।" वो खीज कर बोली, "क्या तुम्हे ये सरसराहट सुनाई नहीं दे रही? ध्यान से सुनो।" उसने ज़ोर देते हुए कहा

मैंने ये सोचकर हांमी में सर हिलाया कि वो मेरे इशारे को समझ जाएगी। "इस अँधेरे और सन्नाटे में सरसराहट की आवाज़, अजीब लगती है क्या तुम्हे? मुझे लगता है शायद चूहा है?" उसने पलट कर मुझे इशारा करके टोहका और शांत रहने के लिए कहा।

"मुझे लगता है...." कहते कहते वो रुक गई और सोचने लगी, फिर बोली, "सच कहूँ, मुझे लगता है वो भूत हैं।"

हम कमरे में मेज़ के नीचे, दोहर से ढके, मुंह सिये दुबके हुए हैं। मतलब ये, हम भूतों को नज़र नहीं आ रहे हैं। "ये छिपने के लिए एक दम सही जगह है", उसने धीमे से कहा। क्योंकि जब तक हम उन्हें नहीं देख सकते हैं, वो भी हमें नहीं देख पाएंगे। यह एकदम लॉजिकल बात है।

मैंने हंसी दबाते हुए, विश्वास के साथ, हिम्मत कर पूछने की हिमाक़त की और कहा: "व्हाट - भूत? आर यू सीरियस?" और उसने अपने होठों पर ऊँगली रख मुझे ख़ामोश रहने को कहा।

"शशश! यू डॉग - चुप रहो, बी-कुआईट", वो सांप की तरह फुफकारती हुई बोली, "वरना उन्हें मालूम हो जायेगा हम कहाँ हैं।" बिलकुल, "सॉरी हाँ" और हम दोनों खामोश हो गए।

मैं सोच रहा था और कितनी देर मुझे यहाँ ऐसे ही दुबक कर रहना पड़ेगा पर जब तक ऐसे में वो मेरे साथ थी तब तक सब अच्छा लग रहा था। अभी सोचालय में ही था कि वो धीरे से सरक कर मेरे क़रीब आ गई और पूछने लगी, "तुम्हे क्या लगता है, क्या वो सभी सच में बुरे होते हैं?"

मैं हिचकिचाते हुए बोला, "शायद नहीं, मुझे दरअसल ऐसा नहीं लगता।"

फिर हम दोनों के बीच कुछ देर चुप्पी छा गई पर उसका चेहरा देख कर लगता था वो कुछ पूछना चाह रही है - "क्या है - पूछो, बोल भी अब, ऐसा मुंह मत बनाओ, कहो?"

"ईशशश...तुम्हे पता है...अगर सच में वो, जैसा तुम कह रहे हो, सच में अच्छे वाले हुए, तो क्या में एक रख सकती हूँ अपने पास?"

"चुपकर - जंगली बिल्ली" मैंने ईरीटेट होते हुए जवाब दिया, "क्या अटपटा सवाल है! ओ अच्छा...हाँ बेशक़ हो सकता है - क्यों नहीं - एक क्यों दो, तीन, चार जितनी मर्ज़ी हो उतने रख ले।" इतना कहकर मैं चुप हो गया।

"वैसे नाम क्या देगी उसको अगर कोई अच्छा वाला रखने को मिल गया तो?"

मुझे तुरंत बिना देरी तपाक से जवाब मिला: "शोना!"

"शोना? - हम्म"

एक बार फिर उसके और मेरे बीच ख़ामोशी पसर गई।

"तो फिर, क्या तुम देखना नहीं चाहोगी?", मैंने पुछा

"क्या देखना नहीं चाहूंगी?, बोल?"

"अरे! बाहर जाओ, देखो तो सही, टेक-अ-लुक, देखो कोई अच्छा वाला है भी या नहीं। शायद कोई प्यारा वाला मिल जाए। यहाँ बैठे बैठे थोड़ी ना मिलने वाला है कोई।"

"जी नहीं! कोई ज़रूरत नहीं है। मैं क्यों देखूं।" बिना कुछ सोचे समझे वो ज़ोर के चिल्लाई और पीली पड़ गई। उसकी आवाज़ में डर और घबड़ाहट साफ़ झलक रहे थे।

"ओह हो - पर क्यों नहीं? - देखो तो, बिना देखे मालूम कैसे चलेगा।", मैंने चुटकी लेते हुए पुछा

"अच्छा मैं क्यों - अगर वो बुरे वाला हुआ तो...? मैं इतनी बेवकूफ़ थोड़ी हूँ।" पागल ही थी मैं, जो ये सवाल किया

अब हम एक दुसरे के पास लेटे हुए थे; वो हौले से सिमट कर मेरी बाहों में आ गई। में उसके दिल की सुरीली धड़कनो की तान को बख़ूबी सुन सकता था और उसको सुरक्षित महसूस कराने के लिए कुछ भी कर सकता था। हमारे बीच एक दफ़ा फिर ख़ामोशी का आलम था, अगर कुछ सुनाई देतीं थी तो वो सिर्फ धीमी-धीमी माध्यम आवाज़ में सरसराहटें और ख़ामोशी।

"क्यों वो मुझे पकड़ कर अपने साथ ले जायेगा? - मुझे किडनैप तो नहीं कर लेगा ना?"

दोबारा फिर मैंने अपनी हंसी रोकते हुए मज़ाहिया लहज़े में जवाब दिया, "मुझे तो लगा था 'तुम' एक को पकड़ कर अपने साथ ले जाने वाली हो? - क्या हुआ?"

उसने घूर कर टेड़ी कनखियों से गोली चलाती दुनाली की तरह मेरी ओर देखा, "कभी कभी किसी को कोई बात बिलकुल समझ नहीं आती है, सही कह रही हूँ ना मैं - बोलो - जल्दी जवाब दो?"

"औबवियसली, मैं बुरे वाले भूत की बात कर रही थी।"

"आह...अच्छा, खैर - ठीक है, मुझे नहीं लगता वो तुम्हे अपने साथ ले जायेगा।"

"ओके..." कहकर वो थोडा शांत हो गई फिर, "क्यों नहीं?"

मैंने बड़े प्यार और दुलार से उसके सुनहरे दमकते मखमली बालों में उँगलियाँ फेरते, उसकी नाक को चुटकी से पकड़ हिलाते हुए फ़रमाया, "वो इसलिए, क्योकि मैं तुम पर नज़र रख रहा हूँ। मेरे होते वो तेरे पास आने की हिमाक़त कभी नहीं कर सकेगा, डोंट वरी।"

वो फिर चुप रही, असहज हुई, हिचकिचाई, और, "वो इसलिए क्योंकि तुम मेरे दोस्त हो?"

मैंने सर हिलाकर मंज़ूरी में 'हाँ' का इशारा किया, "सही है, क्योंकि मैं तेरा दोस्त हूँ।"

दीवार की दरार से आते ओज से उसका मुस्कान भरा मासूम सा चेहरा लाल हो रहा था और मैं अपनी आँखों से टकटकी बांधे एक टक उसे प्यार से निहार रहा था। फिर वो एकदम से संजीदा हो बोल पड़ी, "अगर ऐसी बात है तो - इस मामले में तो मैं भी तेरी दोस्त हूँ - यू डॉग, यू आर माय बेस्ट फ्रेंड, टू।"

मैंने अपने होठों पर मुस्कान ले उसकी पेशानी को चूमा, "हाँ हाँ! मेरी जंगली बिल्ली, मुझे दिल से ख़ुशी है की तू यहाँ मेरे साथ है - वरना पता नहीं मेरा क्या होने वाला था।"

वो भी मुस्काई और झप्पी देकर मेरे गले से लिपट गई। मैं दिल ही दिल में सोच रहा था, "काश! ये लम्हा हमेशा के लिए यहीं ठहर जाता तो कितना अच्छा होता।"

कुछ पल बाद वो फिर से बेचैन होते हुए बोली: "पर भूत..."

"हाँ?" मैंने हैरानी से देखा

"मुझे कैसे मालूम होगा कि अच्छा वाला भूत मेरा पीछा करते घर तक तो नहीं आ जायेगा? मेरा मतलब है वो तो दिखाई नहीं देता है ना !"

मैंने फिर मुस्कान के साथ सर हिलाया, "मेरा अंदाज़ा है कि जब तक तुम उसे देख नहीं लेती हो तब तक तुम्हे यकीन नहीं होगा।"

"क्या मैं उसे कभी देख पाऊँगी?"

"क्या पता, मुझे नहीं मालूम। अगर वो तुम्हे पसंद करता होगा तो, शायद? क्या मालूम तुम्हे वो सपने में मिलने आ जाए, क्योंकि शायद वो आज रात तुम्हारा ख़याल रखने वाला है? मुझे यकीं है, पूरे दावे के साथ कह सकता हूँ की वो भी बेहद शर्मीला है, तुम्हे मालूम है? फ़िलहाल तो तुम मुझे ही देख लो मुझसे बड़ा भूत आज यहाँ कोई नहीं है - सच्ची।

"लगता तो कुछ ऐसा ही है - तेरा लॉजिक भी ठीक सा ही लग है।"

अचानक, फिर से  झनझनाहट, सरसराहट की आवाज़ें तेज़ होने लगती हैं - एक चूहा बड़ी ही तेज़ी से भागता हुआ मेज़ की तरफ़ लपकता है।

वो डर के मारे, घृणापूर्वक बचते हुए, ठिनठिना कर पीछे हटती है।

"अरे! क्या हुआ, स्वीटू?" मैंने पीछे जगह देखकर खिसकते हुए पुछा और कमर के बल आरामतलब होकर लेट गया। उसने मेरे सीने पर अपना सर रख लिया।

"तुम्हे उनसे डर नहीं लगता?" - मैं समझ रहा था वो चूहों की बात कर रही है, भूतों की नहीं।

मैं जवाब देने से पहले, मन ही मन खुश हो रहा था और अपना समय ले रहा था। "हाँ - शायद ज़रा सा, मुझे ऐसा लगता तो है। मैं मानता हूँ।" मेरा प्रसन्नता वो समझ नहीं पाई, मैं खुश हूँ; मुझे ज्ञात है वो सोचती होगी शायद मैं उसका मज़ाक़ बना रहा हूँ।

"तुझे डरने की क्या ज़रूरत है - यारा।" वो बोली

मैंने उत्सुकता पूर्वक अपना सर उठाकर उसकी तरफ देखा और इंतज़ार करने लगा कब वो अपनी कही बात का मतलब समझाएगी।

"ओहो - ऐसे क्या देख रहे हो जनाब, मैं तेरी दोस्त हूँ, याद है ना? तुझे बिलकुल भी डरने की ज़रूरत नहीं है।" वो कहती रही और मैं सुनता रहा।

मैंने मुस्कान के साथ आँखों में उम्मीद की लहर लिए पूछा, "और भला वो क्यों?"

वो उस पल ख़ामोश रही, हमारे चारों तरफ सब कुछ ठहर गया था। वो लम्हा, वो पल बीत नहीं रहा था। वो आँखें झुकाए जवाब सोच रही थी तभी अचानक धीमे से आँखें उठा, मुझसे नज़रें मिला, मेरे हाथों को अपने हाथों में थाम, मेरी रूह में झांकती हुई बोली, "क्योंकि मैं तेरे साथ हूँ और हमेशा रहूंगी - कमीने - यू डॉग।"

और फिर जिस तरह हम दोनों झप्पी देकर अपने में खो गए वैसे ही वो शाम भी हम दोनों के साथ हमारे हंसी-ठहाको में डूबती चली गई।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, मार्च 26, 2015

एक सवाल ?


















सांस लेना
प्रार्थना करना
बोलना
खाना
पीना
उठना
बैठना
हँसना
रोना
नाचना
गाना
पढ़ना
लिखना
लड़ना
बहस करना
खेलना
काम करना
कलाकारी
रंग भरना
प्यार करना
शोक करना
चोट लगना
खून बहना

जीना
मरना

यह समस्त प्राणीयों में
स्वाभाविक है

'निर्जन' प्रश्न सभी से यही कि
जाति,
रंग,
ऊँच,
नीच,
कामुकता,
धर्म,
लिंग,
के आधार पर
हम आपस में
एक दुसरे को
इतना अलग कैसे करते है ?

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, मार्च 25, 2015

जीवन क्या है ?









जीवन, प्रभु की लिखी सुन्दर कविता है
जीवन, ख़ुद के लिए स्वयं लिखी गीता है

जीवन, गर्मी की रात में आती कपकपी है
जीवन, मुश्किलातों में मिलती थपथपी है

जीवन, कानों के बीच का अंतरिक्ष है
जीवन, गालों के बीच खिलता वृक्ष है

जीवन, गीत है जिसे हर कोई सुनता है
जीवन, सपना है जो हर कोई बुनता है

जीवन, मधुर यादों का बहता झरना है
जीवन, प्यारी बातों को जेब में भरना है

जीवन, अपनों से जी भर कर लड़ना है
जीवन, सही के लिए ग़लत से भिड़ना है

जीवन, झूठमूठ का रूठना - मानना है
जीवन, ज़्यादा सा खोना ज़रा सा पाना है

जीवन, स्थान है जिसे सिर्फ आप जानते हैं
जीवन, ज्ञान है जिसे सिर्फ आप मानते हैं

जीवन, बर्फ़ के बीच से उगती कुशा है
जीवन, बहकते पल में मिलती दिशा है

जीवन, प्रियेसी के हाथों का छूना है
जीवन, पान पर लगा कत्था चूना है

जीवन, रेत में पिघलता एक महल है
जीवन, इंसानी क़िताब की रहल है

जीवन, गले में अटकी एक मीठी हंसी है
जीवन, जान में लिपटी बड़ी लम्बी फंसी है

जीवन, दमदार हौंसलों से दौड़ती रवानी है
जीवन, मासूम बच्चों से बढ़ती कहानी है

जीवन, कभी ख़ामोश ना रहने वाली ख़ुशी है
जीवन, 'निर्जन' युद्ध है जहाँ योद्धा ही सुखी है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शुक्रवार, मार्च 20, 2015

इज़हार-ए-मोहब्बत

उन दोनों का मिलना समझो एक संयोग मात्र ही था।

फुटपाथ पर पैदल चलते हुए अचानक ही उसकी सैंडल की एड़ी के दरार में फंसने से उसका पैर मुड़ गया। अपने आपको सँभालने के चक्कर में उसके हाथ से किताबें फिसलकर बड़े ही लयबद्ध तरीके से ज़मीन पर जा गिरीं। हालाँकि ये पढ़ना और सुनना बड़ा घिसा-पिटा और फ़िल्मी सा प्रतीत होता है पर वो बिलकुल ऐसा ही सोचता था कि ज़िन्दगी में किसी से मिलने का ये सबसे उत्तम तरीक़ा है।

उसकी ज़िन्दगी ऐसे रोज़मर्रा के प्रसंगों से भरी पड़ी थी जिन्हें, वो या तो जीवन भर याद रख सकती थी या फिर भूल सकती थी, पर फिर भी उसने इस एक घटना के बारे में थोड़ा बहुत सोचने की ज़हमत उठा ही ली।
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सच पूछो तो उसने, उसके बारे में ज़रा-ज़रा सोचना शुरू कर दिया था। वो स्वभाव से बहुत ही उदार और सभ्य पुरुष मालूम देता था पर उसके साथ पहली मुलाक़ात, उफ़-तौबा! सरासर उबाऊ थी पर ये बात भी अलग थी कि, अब उस उबाऊपन में उसे विशेष रूचि होने लगी थी, उसे, उसी बोरियत में अपनी ज़िन्दगी के नए मायने मिलने लगे थे और इसलिए वो दोनों एक दफ़ा फिर से मिले और फिर मुलाकातों का सिलसिला लगातार पायदान चढ़ता चला गया।
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उसे कभी भी इस बात का कतई अंदाज़ा नहीं था, वो कितना वक़्त उसके साथ गुज़ारती है जब तक उसने उस रात बिना किसी बात फ़ोन मिलाया और कुछ नहीं बोली, सिर्फ उसकी आवाज़ सुनने के लिए। अपने अन्दर के खौफ़ के कारण, वो ख़ुद, इस असलियत को स्वीकार करने से इनकार करती रही, जिसे पूरे दिल से वो मानना तो चाहती थी और जब उसने पहली ही घंटी पर फ़ोन उठाया तब उसने बिना सोचे समझे, "माफ़ कीजिये, गलती से आपका नंबर मिल गया" कहकर झट से फ़ोन काट दिया।

बाद में, उसे एहसास हुआ कि शायद वो जानता था ये उसका ही फ़ोन था, क्योंकि अगली मुलाक़ात के वक़्त वो चुपचाप उसे निहार रहा था और मिलते वक़्त उसके होठों पर एक ख़ास तरह की मुस्कान सजी हुई थी जिसे उसने बड़ी ही मशक्कत, जद्दोजहद और मुश्किलात के बाद नज़र अंदाज़ किया था।
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उसे पहेलियाँ सुलझाना बेहद पसंद था। बचपन में उसकी माँ उसे जासूसी उपन्यास पढ़कर सुनाया करती थीं हालाँकि उसे हमेशा इस बात का शक बना रहता था कि उन्होंने शब्दों में हेर फेर कर कहानी के कुछ भाग को इधर-उधर कर बताया है जिससे कहानी के रहस्य उसे समझ आ सकें। यहाँ तक कि उन्होंने उसके जन्मदिन पर उपहार में क्रिकेट बैट देने की जगह एक जासूसी विडियो गेम भेंट में दिया था।

उसे सहसा ही, साफ़ अंदाज़ा हो गया था कि वो उसके साथ इतना सारा वक़्त बिताना क्यों पसंद करती है।
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वो उसके साथ पुस्तकालय जाया करता, रास्ते भर उसका सामन उठाकर चलता और उसके साथ बातों में खोया रहता। एक बार जब वो दोनों साथ लाइब्रेरी में थे तब उसका सामना, उसके असल जज़्बातों के साथ हुआ। किताबों के साथ उसका रिश्ता और लगाव ऐसा था जैसे शायद कभी किसी और के साथ नहीं था। उसके दिल के तहख़ाने तक जाने का ज़रिया किताबें ही लगती थीं। वो नई-पुरानी किताबों को उठाकर, उनके कवर को अपनी कोमल उँगलियों से एक समान स्पर्श करती, उन्हें छूकर उसकी आँखें आनंद से चमक उठतीं और उसके चेहरे पर उफनती लहरें उसकी उँगलियों के नीचे बहते अनगिनत शब्दों के महासागर में उठते ज्वार-भाटे को बयां कर रही थीं।

"ये कमाल हैं," उसने एक बार उससे कहा था। "देखो ना, आप एक ही समय में शब्दों से स्वेच्छापूर्वक सब कुछ कह सकते हो, पर ठीक उसी समय में दूसरी ओर इनके साथ सीमा का बंधन भी रहता है। 'प्यार' शब्द लिखने से हर कोई उस प्रेम के एहसास को महसूस तो नहीं कर सकता ना!"

"ये तो पढ़ने वाले पर निर्भर करता है" उसने किसी बड़े दार्शनिक की तरह जवाब दिया और जैसे-जैसे वो किताब के पन्नो के बीच उँगलियाँ घुमा रही थी, वो लगातार उसके चेहरे पर उमड़ते अनगिनत भावों को पढ़ता जा रहा था और खुश होता रहा।

वो मन ही मन सोचता, "काश! जिस तरह वो उन किताबों को देखती है कभी उसे भी ऐसे ही देखे और उसके साथ सब कुछ भूल कर बातें करे।" अब इसमें कोई रहस्य नहीं रह गया था, वो बिना किसी अस्पष्टता के उसका साथ चाहता था। उसके साथ खुलकर हँसना चाहता था, उसको बाहों में भरना चाहता था, उसके आगोश में खो जाना चाहता था, देर तक उसको चूमना चाहता था, घंटो उसके साथ समय बिताना चाहता था। वो जानता था की सिर्फ किताबघर ही एक ऐसी जगह है जहाँ उसके चेहरे पर ऐसे कोमल, शांतिपूर्ण और स्थिर भाव देखने को मिलते हैं।

उसके साथ रहते हुए, उसे एहसास हुआ कि किताबों, कागज़ और स्याही के सिवा वो किसी पर भी भरोसा करने में असमर्थ है। उसने बड़ी सहजता के साथ उसे समझाया कि लोगों पर भरोसा किस तरह किया जा सकता है, हर इंसान सिर्फ खून और मांस का पुतला नहीं होता है, उनमें से शायद कोई ऐसा भी हो जो उसके ह्रदय को पढ़ सके, विचारों को समझ सके, भावनाओं को पूर्ण कर सके और जिसका साथ सदा स्वच्छंद, आनंदप्रद और सुखद एहसास दे। उसे इस बात का बहुत आश्चर्य था की आख़िर ऐसे कितने लोगों ने उसका ऐतबार तोड़ा होगा जिसकी वजह से उसे, उसपर ज़रा सा यक़ीन जमाने में इतना समय लगा रहा है।
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"मैंने कल रात तुम्हारे बारे में सपना देखा," वो उसे बताती है। वो मुस्कान के साथ ख़ुशी का इज़हार करता है और व्यक्तिगत रूप से इसे एक सफलता मानता है, एक ऐसी क़ामयाबी जिसके बारे में वह अभी भी अनिश्चित था।

"क्या वो एक अच्छा सपना था ?" उसने छेड़ने के अंदाज़ में पूछा, और उसकी बांह पर अपनी उँगलियाँ फेरने लगा, सिर्फ उसे शांत करने और उसे अपने खुद के बुने प्रतिबंधित चक्र से बहार निकलने के लिए। वो भी कुछ नहीं बोली सिर्फ हलके-हलके मुस्काती रही।

उस समय, उसका मुस्कुराना, उसे एक अच्छा संकेत प्रतीत हुआ परन्तु बाद में उसे एहसास हुआ कि वो जब बहुत उदास होती है सिर्फ तभी मुस्कुराती है।
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वो उसके कमरे में प्रवेश करता है और देखता है वो एक कुर्सी पर डरी, सहमी और सिकुड़ कर बैठी है और उसकी गोद में क़िताब है। वैसे इस दृश्य में कुछ भी असामान्य नहीं था; इस मुद्रा में उसे पहले भी अक्सर बैठे देखा था, यही एक कारण था कि ना चाहते हुए भी वो, उससे नाराज़ हो जाया करता। अब ये राज़ और भी गहराता जा रहा था, वो जानने को आतुर था आख़िर इस तरह से बैठे रहने के पीछे क्या कारण था?

"उफ़ ख़ुदाया! आख़िर तुम इतनी अड़ियल और ज़िद्दी क्यों हो? हमेशा किस दुनिया में खोयी रहती हो जबकि ज़िन्दगी के पास कितना कुछ है तुम्हे देने के लिए, बोलो?," वो अकस्मात् ही उसकी तरफ बढ़ा और मंद स्वर में पूछने लगा। उसकी तरफ गर्दन उठा कर देखते हुए मुस्काई और इस गहन सोच में खो गई कि, "इस पल ,ये मेरे कितने पास खड़ा है।"

"ये मुझे ख़ुशी देता है," बड़े ही अड़ियल मिजाज़ से, उसने आँखे चुराते हुए, उसे बताया। "मैं तुम्हारे बताए ख़ुशी पाने की तरीक़े क्यों अपनाऊं, जब मुझे उनमें ज़रा भी सहजता महसूस नहीं होती है, बताओ?"

"मैं समझ सकता हूँ।" उसने बड़ी शालीनता से, उसके कान के पास जाकर फुसफुसाते हुए जवाब दिया; अब वो उसके इतना करीब था की पास रखी किताब के पन्नो को पढ़ने में सक्षम था। "पर तुम ख़ुशी पाने के लिए तो नहीं पढ़ रही हो। तुम पढ़ रही हो - दुनिया को चुप कराने के लिए। और...तुम ख़ुश भी तो नहीं दिखाई दे रही हो।"

वो कुछ नहीं बोली, बस कस कर मुट्ठी भींच अपनी गोद में किताब को इतनी जोर से जकड़ा के उसकी उँगलियों के पोर सफ़ेद पड़ गए।
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कभी कभी वो सोचती कि किताबों में इतनी लापरवाही के साथ बयां किये गए ख़ूबसूरत इश्क़ के बारे में पढ़-पढ़ कर कहीं वो असल ज़िन्दगी में प्यार करना भूल तो नहीं गई।

उसे ताज्जुब था कि क्या जिन लोगों को उसने आज तक अपनी ज़िन्दगी से बहार किया था दरअसल उन्होंने कुछ ग़लत किया भी था, या फिर ऐसा तो नहीं था की वो कुछ ज़रुरत से ज्यादा ही उम्मीद कर रही थी?

पर अंत में, हमेशा की तरह, वो इन सभी ख्यालों को अपने दिमाग से बाहर निकालकर फ़ेंक देती है।
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अब वो उसे समझना शुरू करता है, पर इससे ज़्यादा ज़रूरी बात है उसकी ख़ामियों को जानना, पर वो उसे अकेला छोड़ दे, बस इससे ज्यादा वो कुछ नहीं  चाहती थी। वो अपने दुःख, अपनी अप्रसन्नता, अपनी खीज, अपने क्रोध, अपनी हताशा को बर्दाश्त में असमर्थ थी और यही कारण था जो वो इस सब से छुटकारा पाने के लिए, अपने आपको सब से बचाने के लिए, उन लम्हों में जिन्हें वो संभाल नहीं सकती थी अपने आप को किताब के पन्नो में क़ैद कर लिया करती थी।

अब तक, वो उसे पूरी तरह से समझ चुका था और एक अच्छा दोस्त और हितकर व्यक्ति के नाते वो उसकी हर प्रकार से मदद करना चाहता था।

पर वो यह भी नहीं चाहता था कि वो उससे नफ़रत करने लगे।
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कभी कभी उसे उन परीलोक वाली प्रेम कथाओं से घृणा होने लगती जो उसे, उस महत्वपूर्ण इंसान के लिए तरसने और तड़पने को मजबूर करतीं, वो नायाब हीरा जिसको ढूँढना उसके लिए ना के बराबर था।
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एक पूरा साल, ३६५ दिनों का समय निकल गया, उसको सिर्फ इतनी सी बात समझने के लिए कि वो, ये नहीं चाहती, के वो उसे कभी भी उसका साथ छोड़ कर जाए।

अपनी ज़िन्दगी में, उम्र के लम्बे गुज़रे समय में, पहली बार उसने किताब को बंद कर नीचे रखा और अपने फ़ोन को हाथ में उठाया था।
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वो बचपन में भी अपनी माँ के जासूसी कहानियां ख़त्म करने से पहले ही उनका अंत ज़ोर ज़ोर से चिल्लाकर बता दिया करता था। वो आश्चर्यजनक रूप से अपने इस कार्य में बहुत निपुण था, और समय के साथ उसके इस कौशल की क्षमता एक विशेष योग्यता के रूप में परिवर्तित हो गई थी। वैसे भी, ख़ास तौर पर, उसे प्रेम उपन्यास पढ़ना नापसंद था और वो इन्हें असल ज़िन्दगी के सामने बड़ा ही तुच्छ और अपमानजनक समझता था।

"किसी भी प्यार के अफ़साने को खत्म करने के सिर्फ ये दो ही तरीक़े हो सकते हैं।" वो कहता, "या तो बे-तहाशा सच्चा प्यार या बे-दर्द भयानक दुखद त्रासदी"

हालाँकि उसे बिलकुल भी मालूम नहीं था कि क्या वो इस बात में यकीन रखती है कि प्रेम इतना सरल है, पर उसने स्वीकारा कि जब वो अपना दृष्टिकोण इतने दावे के साथ बतलाता है, उसे ये सब सुनना बहुत भाता है और वो उसकी बातों से इनकार नहीं कर पाती है।
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हालाँकि, उसको मालूम नहीं था, वो दोनों आपस में एक दुसरे के साथ कहाँ तक समन्जस्य बिठा पायेंगे।

और यदि वह जोर से चिल्लाकर अपनी प्रेम कहानी के अंत को बता सकता, उस सूरत में उसे मालूम था उसे क्या चुनाव करना है। उसे मालूम था इस रिश्ते से उन दोनों के लिए उसकी क्या अपेक्षाएं हैं, वो इस बंधन से क्या चाहता है, पर आज एक समय के लिए जीवन में पहली बार, वो स्वयं परिणाम को लेकर अस्पष्ट और अनिश्चित था।

फिर एक दिन अकस्मात् ही उसने पूरे ज़ोर से चिल्लाते हुए वो तीन चमत्कारी शब्द उसेके सामने कह दिए क्योंकि उनको ना बोल पाने की टीस और अफ़सोस को लेकर वो अपना सारा जीवन नहीं गंवाना चाहता था।

"आई लव यू - मैं तुमसे प्यार करता हूँ - बहुत प्यार करता हूँ..."

जब वो यह इज़हार-ए-मोहब्बत कर रहा था तब उसकी इंतज़ार भरी सूनी आँखें नम थीं।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, मार्च 18, 2015

ये

















ये पकड़ता है इंसान
ये पालता है आत्मा
ये लांघता है सीमा
ये सताता है कर्म

बर्फ़ सा ठंडा, अग्नि सा गर्म, श्याम-श्वेत एहसास,
अनोखा, अनदेखा, आज़ाद, अनियंत्रित

ये बहाता है आग
ये जनता है आकांक्षा
ये पालता है मरुस्थल
ये थामता है तूफां

घने सपनो के कोहरे में, चित्कार कर पुकारता
हर पल भेदता ह्रदय, फिर तोड़ता अपार

ये कुचलता है अविश्वास
ये निचोड़ता है बंधन
ये चौंकाता है जीवन
ये बांधता है आस

चीनी सा मीठा, नीम सा कड़वा
मिर्ची सा तीखा, नींबू सा खट्टा

ये रति देवी सा ललचाता है
ये वशीभूत कर तड़पाता है
ये बातों से बहलाता है
ये शिकार बना फंसाता है

नसों में रेंगता, ह्रदय में घूमता
स्वेच्छा को दबाता, भावों को सताता

ये गलाता है अहं
ये दफनाता है गुमान
ये चुभाता है चिंता
ये गिराता है झूठ

काम देव के धनुष-बाण सा
किसी भी पल चल जाता है

ये आत्मा गिरफ़्त में लेता है
ये काल से जीवन खींचता है
ये मध्यरात्री में सिसकता है
ये सूर्योदय में कूंजन करता है
ये महासागर शांत करता है
ये सुस्थिर लहर लाता है

गोधूलि बेला के आगमन पर
ख़ुशियाँ घर में भर लाता अपार

ये जमाता है विश्वास
ये रिझाता है एहसास
ये ढांकता है उम्मीद
ये छिपाता है जज़्बात

सौभाग्य नयन भिगाता, आंसू-मुस्कान के साथ
नित नव गीत सुनाता भूल पुरानी बात

ये पीछा करता है
ये ढूँढ ही लाता है
ये भीतर समाता है
ये गुदगुदाता है
ये ख़ुद से, 'निर्जन'
ख़ुद को मिलवाता है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, मार्च 15, 2015

प्यार का अस्तित्व

"सुनो ! ये तुम अपनी कॉपी पर क्या लिख रही हो ?"

"कुछ भी तो नहीं "

"चलो भी यार! तुम्हारा हमेशा कुछ नहीं होता है। अरे! बता भी दो अब।" इतना कहते के साथ ही उसने, झट से अचानक ही उसके हाथ से कॉपी झपट ली। अभी वो शुरू के कुछ ही शब्दों को पढ़ पाई थी कि उसने तुरंत ही, उसके हाथ से कॉपी वापस छीन ली।

"प्यार का वजूद नहीं है ?" उसने बड़ी व्याकुलता से उससे सवाल किया

"ओह हो! कुछ नहीं है, सब ठीक है।"

"नहीं...कुछ तो है। तुम मुझसे कुछ छिपा रहे हो...बताओ ना क्या नहीं बताना चाहते हो मुझे ?"

"मैंने कहा ना...कुछ नहीं है।" उसने गुस्से से रोष भरी आवाज़ में दनदनाते हुए जवाब दिया।  उसके क्रोध को देख कर वो दंग रह गई और डर के मारे सहम कर चुप हो गई।

कुछ पल मौन के बाद, आख़िरकार उसने जवाब दिया।

"मुझे माफ़ कर दो, प्लीज़...मुझे ऐसे, इतनी बुरी तरह से पेश नहीं आना चाहियें था। ऐसे आपा खोकर गुस्से से रियेक्ट नहीं करना चाहियें था। आई ऍम सॉरी।“

"ठीक है।  कोई बात नहीं। इसमें तुम्हारी गलती नहीं है।"

"दरअसल...बात ऐसी है कि, मैं नहीं चाहता के लोग इस बारे में जानें कि मैं कुछ चीज़ों और बातों के बारे में कैसा महसूस करता हूँ।"

"तुम मुझसे बात कर सकते हो। मुझसे हाल-ए-दिल बयां कर सकते हो। तुम्हे मालूम है, मैं भरोसे के क़ाबिल हूँ। प्लीज़ बताओ मुझे। मैं तुम्हारी मदद करना चाहती हूँ। तुम्हारी कड़वाहट को दूर करना चाहती हूँ।  तुम कैसे कह सकते हो कि प्रेम का कोई वजूद नहीं होता ? तुम्हारी माँ - उनके बारे में क्या ? एक माँ तो हमेशा अपनी औलाद को दिल से चाहती है। फिर ऐसा क्या है जो तुम बताना नहीं चाहते ? बोलो ना - प्लीज।"

"मेरी माँ ने मुझे और मेरे पिता को तब छोड़ दिया था जब मैं सिर्फ पांच बरस का था वो भी किसी दुसरे आदमी के लिए।" उसका जवाब एकदम रूखा और ठंडा था।

"आह! मुझे माफ़ कर दो। मेरा दिल दुखाने का इरादा नहीं था और ना ही तुम्हारे ज़ख्मों को कुरेदने की मंशा से मैंने ऐसा कहा था। मुझे...मुझे इसके बारे में कुछ नहीं मालूम था। बस तुम्हारी फ़िक्र रहती है इसलिए पर तुम्हारे पिता...वो तो तुम्हे बहुत चाहते हैं ना ? सही कह रही हूँ ना ?"

"माँ के जाने के बाद से सब बदल गया। पिताजी भी पहले जैसे नहीं रहे। वो भी बदल गए। मुझसे कभी बात नहीं करते। सच कहूँ तो मैं उनको माँ की याद दिलाने वाला सिर्फ़ एक अनचाहा ज़रिया हूँ। अगर कभी भूले से वो मुझसे बात करते भी हैं तो वो मेरी गलतियाँ निकालने के लिए, मारने पीटने के लिए या फिर गलियां देने के लिए, इसलिए मैं ज़्यादातर अपने दादा-दादी के साथ रहता हूँ।

"तो तुम्हारे दादा-दादी तो तुम्हारी देखभाल करते होंगे ? तुमसे प्यार करते होंगे ?"

"नहीं ऐसा नहीं है! मेरी दादी की तबियत बहुत ख़राब रहती है, मेरे दादा का सारा वक़्त उनके सिरहाने बैठे रहने में बीत जाता है। वो लोग अपनी परेशानियों में इतने व्यस्त रहते हैं कि मेरे बारे में किसी को ख़याल तक नहीं रहता।"

"अच्छा तभी...इसलिए तुम प्यार में यकीन नहीं करते ? किसी पर भरोसा नहीं करते ? क्यों ?"

"हाँ"

"देखो मेरी एक सुनो, तुम्हारे पिताजी तुम्हारी माँ से बेहद मोहब्बत करते थे इसलिए वो कभी पहले जैसे नहीं हो सके और अपने साथ अपनी परिस्थितियों को भी संभाल नहीं पाए। इसका सिर्फ एक ही कारण है कि वो तुम्हारी माँ से बेतहाशा प्रेम करते हैं और तुम्हारे दादा इतने बरसों के बाद भी तुम्हारी दादी को पूरे दिल से चाहते हैं। तुम देख ही नहीं पा रहे हो, अगर ध्यान से देखोगे तो तुम्हे नज़र आएगा कि तुम्हारे आसपास कितना प्यार है। हाँ! अपनी आँखें खोलो और देखो प्यार का अस्तित्व है, और क्या तुम्हे पता है ? कोई है जो तुमसे भी दीवानों की तरह, पागलों की तरह इश्क़ करता है। कम से कम उसको एक मौका देकर तो देखो जिससे वो तुम्हे दिखा सके, जता सके, बता सके कि असली सच्चा प्यार कैसा होता है। तुम कोशिश तो कर ही सकते हो, नहीं ?"

"उसे मालूम था वो किसके बारे में बात कर रही थी। "तो क्या वो सच में मुझसे इतना प्यार करती है ?" वो अपने आप से ये सवाल करता रहा और बैठा उसके चेहरे को ताकता रहा।

"हाँ - यही तो है वो - बिलकुल यही है"

"आज, अभी, इसी वक़्त, खुल कर बता दे उसको - तू भी उसे उतना ही चाहता है। तू भी तो दीवाना है उसके लिए। तू भी तो हर पल उसी के सपने बुनता है।" यही सोचते हुए वो जीवन में पहली बार वास्तव में मुस्कुराता रहा।

दुनिया में हर व्यक्ति के लिए प्यार मौजूद है। एक तरह से नहीं तो दूसरी तरह से, ऐसे नहीं तो वैसे ये हर किसी को मिल ही जाता है। उम्मीद का दामन कभी भी छोड़ना नहीं चाहियें। ज़िन्दगी और प्यार दोनों से कभी हार नहीं माननी चाहियें। यदि आपको ऐसा एहसास होता है कि आपसे कोई प्यार नहीं करता, आपको कोई नहीं चाहता, तो बस इतना याद रखना कि भगवान् आपको चाहता है आपसे बेंतेहा प्यार करता है और जिसे वो चाहता है उसे सारी दुनिया चाहती है, प्यार करती है। किसी ना किसी दिन, कहीं ना कहीं, कभी ना कभी वो नीली छतरी वाला आपकी मुलाक़ात आपके प्यार से करवा ही देगा। प्यार का अस्तित्व हमेशा से था, है और रहेगा और प्यार हर किसी को मिलता है बस ज़रा सा भरोसा और विश्वास बनाए रखने की ज़रुरत होती है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---