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गुरुवार, दिसंबर 31, 2015

फ़क़त शुक्रिया



















यह कविता मेरे उन मित्रों और मेरे अपनों को समर्पित है जिन्होंने मुझे प्रोत्साहन दिया, प्रेरणा दी, मेरी लेखनी को मान दिया, मुझे सम्मान दिया और मेरी रचनाओं को अपना आशीर्वाद प्रदान किया। यह कविता मेरा तोहफ़ा है मेरे उन तमाम दोस्तों के नाम जिन्होंने मेरे ब्लॉग और फेसबुक पेज को पसंद किया है और जो निजी ज़िन्दगी में मेरे अच्छे बुरे वक़्त में किसी ना किसी रूप से मुझसे जुड़े रहे हैं। मैं आप सबका तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ, आभारी हूँ और दिल से आप सबका मान करता हूँ। मेरे इस साल को यादगार बनाने के लिए, मेरी ज़िन्दगी को जिंदादिल बनाने के लिए आपके समक्ष नतमस्तक हूँ और कामना करता हूँ जीवन में आगे भी आप सभी का प्रेम और मार्गदर्शन ऐसे ही मिलता रहेगा। एक दफ़ा फिर से सभी यारों को नवाज़िश, ज़र्रानवाज़ी और प्यार वाली झप्पी। मेरे सभी दोस्तों को नव वर्ष कि हार्दिक शुभकामनायें। आप सभी के लिए आने वाला साल मंगलमय हो। जय हो – हर हर महादेव...

कुछ अपनों ने निगाह-ए-उल्फ़त बरसाई है
उनका उपकार जिन्होंने जिंदगानी बनाई है

महज़ लफ़्ज़ों में अदा ना होगा उनका सवाब
हसीं ख़्वाबों की रात जिन्होंने हिस्से सजाई है

नजरें झुका कर बैठूँगा मैं बंदगी में उनकी
दामन में सितारों की झड़ी जिन्होंने लगाई है

अब तो होने लगा है अपने होने का गुमान
कद्रदां हैं, ज़हन में उम्मीद जिन्होंने जगाई है

कितनी मायूसी थी कभी इस किरदार में
स्नेह से अपने जिन्होंने हर कमी मिटाई है

रूठ कर जा रही थी ज़िन्दगी हर पल जैसे
हाथ थाम इसका जिन्होंने इसे घर लाई है

खिलखिलाती है ख़ुशी बेधड़क इन आँखों में
हाथ थाम मेरा जिन्होंने दुनिया नई दिखाई है

फ़क़त शुक्रिया अदा करे क्या ‘निर्जन’ उनका
हर पल दिल से जिन्होंने यह दोस्ती निभाई है

#तुषारराजरस्तोगी #शुक्रिया #नववर्ष #शुभकामनायें

शनिवार, दिसंबर 19, 2015

दारूबाज़ों की रीयूनियन
















यादगार एक शाम रही, बिछड़े यारों के नाम
करत-करत मज़ाक ही, हो गया सबका काम

हो गया सबका काम, पीने मयखाने पहुंचे
बाउंसर कि बातें सुन, 'निर्जन' हम चौंके

कहें सैंडल नहीं अलाउड, नो एंट्री है अन्दर
सोचा मन ही में भाई, बन गया तेरा बन्दर

पीने आए दारु, जूते-चप्पल पर क्या ध्यान
कोई तो समझाए लॉजिक, दे इनको ये ज्ञान

खैर मामला सुलट गया, हम पहुंच गए अन्दर
साबू-चोपू को देख, बन गए हम भी सिकंदर

गले मिले और बैठ गए, बातें कर के चार
अब दारु कब आएगी, ये होता रहा विचार

होता रहा विचार, लफंडर बाक़ी भी आएं
संग साथ सब बैठ, फिर से मौज उड़ाएं

पहुंचे जौहरी लाला, रित्ति-सुब्बू के साथ
पीछे से चोटी आया, हिलाते अपना हाथ 

रित्ति भाई शुरू हो गया, ले हाथ में साज़
फ़ोटू चकाचक चमकाई, ये है सेल्फीबाज़

विंक है फ़ॉरएवर प्नचुअल, बंडलबाज़ है यार
प्रिंटर-फाइटर को लाया, इन इम्पोर्टेड कार

दो घंटा लेट से आए, बाबुजी खासमख़ास
मेहता दानव आकृति, फुलऑन बकवास

फुलऑन बकवास, करते बाबाजी बड़बोले
गला तर कर सियाल ने, हिस्ट्री के पन्ने खोले

मित्रों नॉसटेलजीया फ़ीवर, चढ़ गया रातों रात
इतनी थीं करने को सबसे, खत्म ना होतीं बात

हा हा-ही ही-हू हू करते, बस बीती सारी शाम
यारों, दारु, चिकन, मटन और सुट्टों के नाम 

मज़ा आ गया कसम ख़ुदा की, २० बरस के बाद
दारुबाजों की रीयूनियन, रहेगी जीवन भर याद


--- तुषार रस्तोगी ---