अब तक के सभी भाग -
१,
२,
३,
४,
५,
६,
७,
८,
९,
१०
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आजाद मुल्क़ | दिलकश फ़िज़ा | खुशनुमा माहौल | दुःख और सुख के बादलों के साथ साथ अनारो देवी के पारिवारिक सुख में समृद्धि और वृद्धी का जोड़ तोड़ चलता रहा | जहाँ उनके बेटे महेन्द्र प्रसाद उर्फ़ मानू की बाल्यकाल में अकस्मात् मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया और दुसरे बेटे योगेन्द्र उर्फ़ ‘योगी’ की जवान मौत ने सारे परिवार को तोड़ उनके सामने दुःख का विशालकाय पर्वत ला खड़ा किया था | वहीँ अपनी संतानों की तरक्की और शादी ब्याह से उनका आँगन ख़ुशी के रंगों से भी सराबोर भी होता रहा था |
घटना उस समय की है जब महेन्द्र प्रसाद कुछ सात या आठ बरस के रहे होंगे | गर्मियों के दिन थे | जेठ के दोपहरी | एक दिन अचानक पाठशाला से लौट कर उन्हें तेज़ कपकपी उतरी और ज्वर चढ़ आया | अनारो देवी ने घरेलू काढ़ा दे कर उन्हें आराम करने की सलाह दी | परन्तु बालक तो बालक हैं उन्होंने आज तलक किसी की सुनी है भला | माँ की बात न मानकर वे दोस्तों के साथ तेज़ ताप में भी खेलने चले गए | शाम तक उनकी हालत बहुत बिगड़ गई और खेलते खेलते चक्कर खाकर गिर पड़े | सभी बच्चे डर गए और उनके घर पर आकर ये बात बताई | साहू साब तुरंत नौकर को साथ ले उन्हें डाक्टर के पास ले गए | डाक्टर ने बच्चे की हालत देखते हुए उन्हें अस्पताल में भरती कर लिया | परन्तु दिन-बा-दिन बीतते गए और मानू की हालत सुधरने की जगह बिगड़ने लगी | काफी दवा-दारू के बाद भी कोई सूरत-ए-हाल समझ नहीं आया | शहर के बड़े से बड़े डाक्टर को साहू साब ने बुलवाया | पानी की तरह पैसा बहाया पर नतीजा कुछ न निकला | घर में भी सभी का बुरा हाल था पर सब हताश हुए बैठे थे | मंदिर, मस्जिद, गिरिजे, गुरूद्वारे, पीर, फ़कीर, लंगर, प्याऊ सब कर के देखा | हर तरह के नुस्खे अपनाये गए | घंटे-घड़ियाल, कर्म-कान, पूजा-अर्चना, यज्ञ-हवन भी कर देखे पर अगर ऐसे सुनवाई होती तो फिर बात ही क्या थी | आख़िरकार वो दिन भी आ गया जब मानु के विदाई की घडी सभी ने देखी | अपनी आँखों के सामने बिलांद भर के छोरे को काल के मुंह का ग्रास बनते देखते माँ का कलेजा फटे जा रहा था पर ऐसा कोई न था जो उनके लल्ला को जाने से रोक लेता | बुखार दिमाग पर चढ़ने की वजह से मानू कोमा में चला गया था और उसके धीरे धीरे उसकी सासें उसका साथ छोड़ गई |
जैसे तैसे मानू के दुःख से बहार आते आते सालों बीत गए | घर का चिराग बुझ चुका था पर सभी माँ के दिल को दिलासा देने में लगे रहते और संतोष करने को कहते और दूसरी संतानों के होने की दुहाई देते | लोग भगवान् की मर्ज़ी कह कर बात को आया गया कर देते और सुकून कर लेते | पर माँ का दिल कैसे तस्सली करता | जो टीस और पीड़ा उसके दिल के कोने में घर कर गई थी वो ता-उम्र साथ निभाने वाली थी | जीवन का चक्का बड़ा बलवान है और समय के हाथों घूमता है जिसमें इंसान पिस्ता है | अभी कुछ ही वर्ष गुज़रे थे के अचानक एक दिन योगेन्द्र भी मोहल्ले में सड़क पर चलते चलते गश खाकर गिर पड़े | उनकी उम्र तब कोई बीस के आस पास रही होगी | सभी मोहल्ले वाले तुरंत ही उठाकर उन्हें करीब के डाक्टर के पास ले गए | उन्होंने डाक्टर को सीने में दर्द होने की शिकायत बताई | डाक्टर ने तुरंत एक्स-रे निकलवाने का सुझाव दिया | तब तक घर से दुसरे लोग भी डाक्टर के यहाँ पहुँच चुके थे | गंगा सरन जी ने तुरंत ही निकट के अस्पताल में जाकर उनका एक्स-रे करवाया | उस समय एक्स-रे करवाना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी | वहां घर पर अनारो देवी और साहू साब को बहुत चिंता लगी हुई थी | कुछ समय के पश्चात सभी योगी को साथ ले घर पहुंचे और तब सबकी जान में जान आई | दो दिन के बाद डाक्टर रिपोर्ट लेकर साहू साब के घर पधारे | सभी बहुत व्याकुल और चिंतित थे के ऐसी क्या बात है जो के डाक्टर साब स्वयं चलकर आये | उन्हें सम्मान सहित बैठक में विराजने को कहा गया और सभी लोग थोड़ी देर में बैठक में हाज़िर हो गए | साहू साब ने पुछा ,
“क्या हुआ डाक्टर बेटा, ऐसी कौन सी बात है जो तुम चलकर आये | कहलवा दिया होता मैं वीरेन्द्र को रपट लेने भिजवा देता | खैर अब आ ही गए हो तो खान पान कर के जाना | बताओ क्या बात है ?”
डाक्टर साब चुप चाप सब सुन रहे थे | उन्होंने धीरे से साहू साब का हाथ थामा और बोले,
“दद्दाजी, खबर अच्छी नहीं है | योगी भाई की हालत सही नहीं है | बात बहुत गंभीर और चिंताजनक है |”
उनकी बात सुनकर सभी सन्न रह गए | गंगा सरन जी ने पुछा,
“बेटे पर बात क्या है वो तो बताओ? ऐसी कौन सी विपदा आन पड़ी अचानक से | योगी तो भला चंगा है ये एक दम से हालत ख़राब | कुछ समझाओ डाक्टर साहब |”
डाक्टर साहब ने उत्तर दिया, “बाबूजी, योगी भाई के दिल में छेद है और दिल भी बढ़ रहा है | देर से पता चला है अब एडवांस स्टेज के करीब पहुँच चुकी है हालत | अगर इलाज भी करते हैं और लगातार दवाई भी करते हैं तो ज्यादा से ज्यादा चार पांच साल और खींच सकते हैं बस | इतना कहकर वो चुप हो गए |”
बैठक में सभी का दिल धक्क्क!!! कर के रह गया | ये कैसी विपदा आन पड़ी अचानक से | अभी सब लोग यही सोच रहे थे के इतना होनहार विद्यार्थी | पढाई लिखाई में अव्वल, हर एक कार्य में दक्ष योगी के साथ अचानक प्रभु ने ये क्या खेला रच डाला | तभी बैठक के दरवाज़े के पीछे से योगी निकल कर आये और बोले,
“अरे अभी पांच साल तो हैं | आप सब तो अभी से मातम मानाने लग गए | कम से कम पांच साल तो ख़ुशी से और अपनी तरह जी लेने दीजिये मुझे | आप सब ऐसे मुँह लटका कर बैठेंगे तो अम्मा को भी पता चल जायेगा | ऐसा में कतई नहीं चाहता के उन्हें ये सब पता चले और वो परेशान हों |”
उनकी बातें और विचार सुनकर सबकी आँखे भर आई और सभी ने उनकी बात का समर्थन करते हुए एक स्वर में हामी भरते बोले,
“हाँ, अम्मा को यह बात ना ही मालूम हो तो बेहतर होगा | अभी तो मानू के हादसे से ही न उभर पाई हैं अम्मा | ये बात पता चली तो न जाने क्या असर होगा |”
सभी ने एक सहमति से अनारो देवी को योगी की बीमारी के बारे में न बताने का फैसला लिया और डाक्टर साब को भी इसमें शामिल कर उनसे से विदाई ली |
देखने में बेहद सुन्दर योगेन्द्र उर्फ़ योगी, प्यार से यही कहकर बुलाती थी अनारो देवी उन्हें | व्यक्ति तो उच्चकोटि के थे ही साथ ही साथ वो पढाई लिखाई में भी अव्वल थे | अपनी बीमारी के चलते भी उन्होंने डबल एम्.ए किया और फिर वो कॉलेज में प्रोफेसर हो गए | उनका सारा समय पढाई लिखाई करने और अपने विद्यार्थीयों को पढ़ने में कैसे बीत जाता पता भी नहीं पड़ता था | साथ ही साथ चुपके चुपके वो अपने इलाज का भी ध्यान रख रहे थे | न ज्यादा हड्कल, न ज्यादा चढ़ना उतरना और न ही ज्यादा भाग दौड़ करते | साहू साब से कह कर उन्होंने बैठक के बगल वाला कमरा ले लिया था | बस सारा दिन वहीँ अपनी किताबों और बच्चों के साथ गुज़ार देते थे |
पर कहते हैं न माँ का दिल, माँ का ही होता है | उसकी आँखों से कुछ नहीं छिपता | क्योंकि वो बाहरी आँखों से नहीं मन की आँखों से देखा करती है | योगी की गिरती सेहत और बर्ताव ने अनारो देवी के मन में शंका उत्पन्न कर दी थी | काफी समय से वो योगी के खान पान, रहन सहन और आचरण पर निगाह कर रही थीं | घर के बाक़ी लोग भी उनकी शंका के घेरे में थे | समझदार को इशारा ही काफी होता है और समझदारी में अनारो देवी का कोई सानी न था | जीवन के अब तक अनुभवों और कटु सत्यों ने उन्हें स्तिथियों को समझने और परखने की ऐसी क्षमता प्रदान कर दी थी जिसके रहते वो किसी भी आनेवाली विपदा को पहले ही महसूस कर लेतीं थी |
एक दिन उन्होंने योगी को अपने कमरे में बुलवाया | कमजोरी के चलते योगी बहुत ही धीरे धीरे सीढियां चढ़कर उनके कमरे में पहुंचे | ऊपर तक जाने में वो बुरी तरह से हांफने लगे | अनारो देवी ने उन्हें देखा तो उठ कर उनके सर पर हाथ फेरा और कहा,
“आ गया लल्ला | बैठ जा | इतना हांफ क्यों रहा है | देख कितना कमज़ोर भी हो गया है तू | अपने खाने पीने का ख्याल रखा कर | वैसे भी अब तेरी शादी की उम्र हो रही है तंदरुस्त नहीं दिखेगा तो कैसे काम चलेगा | लल्ला, तू सारा दिन बस कॉलेज और उसके बाद अपने कमरे में ही रहता है | कहीं आता जाता भी नहीं है | क्या बात है, क्या परेशानी है, कोई दिक्कत है तो मुझे बता मैं तो तेरी अम्मा हूँ | मैं सब ठीक कर दूंगी | बचपन में तू दिल की सारी अच्छी बुरी झट से आकर कह दिया करता था | और जब से तूने वो नीचे वाला कमरा लिया है तब से तो तू अपने में ही खो गया है | अब तो अम्मा से मिले भी तुझे पखवाड़ों बीत जाते हैं | खाना भी अब नीचे ही मंगवा कर खाने लगा है | चुपड़ी रोटी भी नहीं खाता | घी-दानी भी ऐसे ही वापस आ जाती है | पहले कम से कम चौके बैठ कर ठीक से खाना तो खा लिया करता था | ठाकुरजी की कृपा से चौके में तेरी शक्ल देखने को मिलती तो थी अब तो उसके भी लाले हैं | इतना भी क्या व्यस्त हो गया तू के अपनी अम्मा को ही भूल गया |”
योगी अम्मा की गोद में सर रखकर लेट गए | “न अम्मा ऐसी तो कोई बात न है | बस आजकल कॉलेज मैं काम थोड़ा ज्यादा है और बच्चों के इम्तिहान भी सर पर हैं | फिर उन्हें पढ़ना, समझाना, परीक्षा के लिए तयार करना होता है इसलिए समय बचाने के लिए ज़्यादातर नीचे ही रहता हूँ और खाना भी नीचे ही मंगवा लेता हूँ और कहीं आता जाता भी नहीं हूँ | एक बार इम्तेहान निपट जाएँ फिर बस फारिक़ | बस और कोई बात न है तू फ़िक्र न करा कर | मैं ठीक हूँ |”
अनारो देवी ने योगी का हाथ उठाया और अपने सर पर रख लिया, “खा मेरी कसम के सब ठीक है | इतने दिनों से देख रही हूँ | सब पर नज़र है मेरी | तेरी अम्मा हूँ मैं कुछ तो है जो मुझसे छिपाया जा रहा है | अब बात क्या है बता नहीं तो...|”
योगी ने झट से अम्मा के मुंह पर हाथ रख दिया और आगे कुछ भी कहने से रोक दिया | “वो बात ऐसी है अम्मा के मेरी तबियत कुछ ठीक न है | इलाज करा रहा हूँ जल्दी ठीक हो जाऊंगा |”
“सच बता! बात क्या है | अम्मा से कुछ मत छिपा |”
“अम्मा!!! मेरे दिल में छेद है और दिल भी धीरे धीरे फैल रह है | डाक्टर का कहना है के अब ज्यादा दिन ना हैं मेरे पास | ज्यादा से ज्यादा महीना दो महीना और हैं |”
अनारो देवी अपने आपको सँभालते हुए पूछती हैं “कब से है ये बीमारी? बता कब से भर रहा है तू ये दर्द? ये बात सबको पता है न? कब से छिपाया जा रहा है मेरे से यह सब?
“अरी अम्मा, छोड़ यह सब सवाल जवाब, देख मैं हूँ तो तेरे सामने एक दम तंदरुस्त और हाँ आज सारी रात तेरी गोद में सर रखकर ही सो जाऊंगा |”
अनारो देवी अब समझ गईं थी के तबियत बिगड़ गई है और बात हाथ से निकल चुकी है | अनारो देवी भी अपनी आँखों पर एहसासों का बाँध बना अपने आंसुओं को बहने से रोकती रहीं और योगी से सर पर ममता का हाथ फिराती रहीं | एक सियाह रात अम्मा और लल्ला के बीच होती अनकही बातचीत में आँखों आँखों में गुज़र गई | रात की तन्हाई और कमरे की खामोश दीवारें अपने अनकहे शब्दों से सन्नाटे को गुंजायमान करती रही | सभी चिरागों की रौशनी को समेटे सुबह की लाली ने फिर से एक बार घर के आँगन का रुख किया | बस वही आखरी पल थे जो अनारो देवी और योगी ने साथ बिताये थे |
उस दिन के तकरीबन दो महीने बाद फागुन मास, दुलेहंडी वाले रोज़ योगेन्द्र अपने कमरे में कुर्सी पर बैठे के बैठे रह गए | डाक्टरी रिपोर्ट के अनुसार उनका दिल पूरी तरह से फैल गया था जिसके चलते वो ब्रह्मलीन हो गए | उस समय उनकी आयु बत्तीस वर्ष के आस पास रही होगी | आख़िरकार उन्होंने डाक्टर के कहे को सिरे से झुठला दिया था और उम्र के तकरीबन बारह साल उस बीमारी से लड़ते गुज़ारे | घर में सभी इस सदमे के लिए तयार थे | कहीं न कहीं अनारो देवी भी इस दिन को देखने के लिए दिल मज़बूत किये ठाकुरजी से अपने लल्ला की सलामती की दुआएं माँगा करती थीं | उनकी आँखों से गिरते खून के कतरों का एहसास सिर्फ गंगा सरन जी ही लगा सकते थे | लाड, प्यार और दुलार से सींची हुई बगिया से ऐसे फूलों के उजड़ने का गम माली ही जान सकता है |
जीवन पथ अंतहीन है | यहाँ चलते ही रहना है | जो आता है वो जाता भी है | यह एक शाश्वत सत्य है | परमपिता परमेश्वर का लिखा कोई नहीं बदल सकता | जीवन में उसने जो पात्र, घटनाएँ और वृत्तान्त लिख कर भेजे हैं उनका सञ्चालन वह स्वयं ही करता है | किसी को जल्दी बुलावा आता है किसी को देर से | यही सोच अपने दुःख और पीड़ा को साथ लिए अनारो देवी और उनका समस्त परिवार जीवन के कठिन पलों का सामना करते हुए आगे बढ़ता रहा |
संतान भी बड़ी हो रही थीं | हालाँकि उम्र का अंतर संतानों में काफी ज्यादा था लेकिन आपस में प्यार, आदर और सम्मान एक दुसरे के लिए स्पष्ट था | सबकी आंखो की सच्चाई और आचरण में उनका एक दुसरे के प्रति व्यक्तिगत स्नेह और प्रेम निहित था | अब अनारो देवी को अपनी संतानों के ब्याह की चिंता सताने लगी थी | हालाँकि उनकी बड़ी बेटी गार्गी का ब्याह उन्होंने पंद्रह बरस की आयु में ही कर दिया था | समय गुज़रते बाक़ी की संतानों के भी हाथ पीले होते गए और वो अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होती चलीं गईं | क्रमशः
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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |
All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.
सुन्दर कथा-प्रवाह..
जवाब देंहटाएंकहानी की एक एक पंक्ति सिहरन पैदा करती है .....
जवाब देंहटाएंएक बेटे की मौत तो मेरी माँ नहीं सह सकीं ......
अनारो के लिये तो मुझे कोई शब्द ही नहीं मिले .....
इस कहानी के अंश पर क्या टिप्पणी करूँ ..............
शुभकामनायें !!
बहुत ही सार्थक कथा प्रवाह है,पूरी कहानी पढ़े बिना रहा नही जाता,आभार.
जवाब देंहटाएं"स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल"
रोमांच यथावत् है....अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी।
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