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मंगलवार, अगस्त 11, 2015

आशारों पे जवानी आई















इंतज़ार जिसका था एक ऊम्र से यारों मुझको
नासाज़ तबियत का सुन दौड़ी वो दीवानी आई

रोज़ गुजरतीं थीं शामें मदहोश उसके पहलु में
साथ उसके सुकून और ख़ुशी की कहानी आई

जुम्बिश नहीं थीं जिन काफ़िर नसों में अब तक
देख उसको लहू में फ़िर से पुरज़ोर रवानी आई

लगता था बीत जाएगी ज़िन्दगी अब तनहा यूँ ही
बाद मुद्दतों के फिर एक नई शाम सुहानी आई

किया करता था बातें रोज़ ख़ुदसे उसके बारे में
मिलीं नज़रें तो बात नज़रों से भी न बनानी आई

अरसा बाद दिया मौका उसने ग़ज़ल बनाने का
'निर्जन' ख़ारे अश्कों से आशारों पे जवानी आई

#तुषारराजरस्तोगी  #ग़ज़ल  #इश्क़  #मोहब्बत  #इंतज़ार  #आशार

रविवार, जुलाई 12, 2015

यूं आशार बन जाते हैं



















जब खून के रिश्ते ही दर्द पहुंचाते हैं
तब दिल के ज़ख्म नासूर बन जाते हैं
खून-ए-जिगर भी रोता है ज़ार-ज़ार
रिसते खून से यूं आशार बन जाते हैं

जब अपने ही एहसासहीन हो जाते हैं
अपनों के दर्द से आँख मूँद कतराते हैं
कड़वे बोल भोंक देते हैं दिल में खंजर
दिल के घाव से यूं आशार बन जाते हैं

जब प्यार भरे हाथ साथ छोड़ जाते हैं
तब सरपरस्त ही राहों में भटकाते हैं
दर-ब-दर जब फिरता हैं मारा-मारा
अकेले पलों से यूं आशार बन जाते हैं

जब जन्मदाता बेपरवाह हो जाते हैं
और अपने खून के आंसू रुलाते हैं
हाल-ए-दिल बताएं ये किसे अपना
ऐसे दर्द से यूं आशार बन जाते हैं

--- तुषार राज रस्तोगी ---