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शनिवार, जुलाई 18, 2015

एक सपना - एक एहसास

"तुम्हारे बेहद अदम्य, कोमल, नाज़ुक, मुलायम, नज़ाकत भरे हाथों के स्पर्श की छुअन बिलकुल वैसी है जैसी मैं हमेशा से चाहता था और जिनके लिए तरसता था। तुम बहुत ही शरारती इश्क़बाज़ हो और हमेशा मेरे साथ मीठी सी नई-नई शरारतें करती रहती हो जिनके लिए मैं अक्सर अपने आप को अचानक से तैयार नहीं कर पाता हूँ। तुम मुझे अपनी प्यार भरी बाहों में जकड़ लेती हो और मेरे से ऐसे लिपट जाया करती हो जैसे तुम्हारे लिए सिर्फ और सिर्फ बस मैं ही एक हूँ और जब मैं तुम्हे चूमता हूँ तब भी तुम मुझे हमेशा ही अप्रत्याशित रूप से विचलित कर देती हो। मैं तुम्हारे दिव्य प्यार को इन होठों की सरसराहट, छुपी हुई कसमसाहट, सिमटी हुई घबराहट और अनकहे कंपन में महसूस कर सकता हूँ। तुम्हारे आगोश में आते ही दिल में बहुत ही उग्र विचार उत्पन्न होते हैं परन्तु साथ ही तुम्हारे प्रेम की सहनशील स्नेही माधुर्यता, सुखदता और रमणीयता मुझे सहसा ही स्थिर और निश्चल बना देती हैं और तुम्हे मुझसे कसकर लिपटे रहने को बाध्य कर देती हैं साथ ही मेरे मन का एक छोटा सा हिस्सा इस आश्चर्य को मानते हुए मेरे दिल में उठती उमंगो पर क़ाबू पा लेता है जब तुम्हारे जोशीले हाथों का जिज्ञासापूर्ण स्पर्श मेरे तत्व में लीन होने की मनोकामना लिए और अधिक पाने की चाहत करते आलिंगन में इधर-उधर थोड़े पलों में बहुत कुछ तलाशता महसूस देता है। तुम्हारे भोले मनमोहक प्रेम की मोहकता, तुम्हारे व्यक्तित्त्व का तेज़, तुम्हारे गुणों की विशिष्टता, तुम्हारे चरित्र की सौम्यता, तुम्हारी देह की सुगंध, तुम्हारी निकटता की ताज़गी, तुम्हारी मुस्कराहट की मिठास, तुम्हारे अस्तित्त्व की मधुरता और तुम्हरी अंगार सी दहकती साँसों का सान्निध्य मुझे तुम्हारे इश्क़ में दुनिया से बेख़बर होने को मजबूर किए देता है। मेरे दिल के भीतर तुम्हारा भावुक, निर्मल प्रेम मुझे पूर्णता का एहसास करता है, तृप्त करता है, शांत करता है, मेरी बेचैनी और व्याकुलता को संतुष्ट करता है। आने वाले समय में भी मुझे उम्मीद है हमारा प्यार यूँ ही बढ़ता रहेगा और तुम्हारे दिल में मेरे और मेरे इश्क़ की लालसा और तड़प कल भी ऐसी ही बनी रहेगी और आह...! आज एक दफ़ा फिर से दोहराता हूँ कि मैं पूरी तरह अपने तन, मन, वचन से तुम्हारे इश्क़ में गिरफ़्तार हो चुका हूँ। मैं तुम्हारा था, तुम्हारा हूँ और सदा तुम्हारा ही रहूँगा।"

टिंग...टिंग...अभी राज मन ही मन यह सब आराधना से कहने की सोच ही रहा था और अपने ख्यालों में मग्न खोया हुआ था कि लिफ्ट रुक गई और घंटी बजने के साथ ही लिफ्ट का दरवाज़ा खुल गया। एक बार फिर, उसके मन की बात मन में ही रह गई। आराधना उसकी शक्ल देखकर हँस पड़ी और बोली, "कहाँ गुम हो हुज़ूर, किधर खोये हुए हो, घर जाने का दिल नहीं है क्या? मेट्रो स्टेशन आ गया चलो एंट्री भी करनी है।"

राज उसके सवालों को सुनता, चेहरे को निहारता, हाथ थामे मुस्कुराता हुआ साथ चल दिया।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

रविवार, फ़रवरी 02, 2014

तुम्हारे लिए





















मेरी कविता, मेरे अलफ़ाज़
मेरी उम्मीद, मेरे उन्माद
मेरी कहानी, मेरे जज़्बात
मेरी नींद, मेरे ख्व़ाब
मेरा संगीत, मेरे साज़
मेरी बातें, मेरे लम्हात
मेरा जीवन, मेरे एहसास
मेरा जूनून, मेरा विश्वास
सब तुम्हारे लिए ही तो है
फिर क्या ज़िन्दगी में
तुमसे कह नहीं सकता
मेरे जीवन का हर क्षण
तुम्हारे लिए ही तो है
तुम भी अपनी साँसों में
मेरी हर एक सांस को
बसा सकते हो क्या ?
इस ज़िन्दगी में तुम
हर पल हर क्षण यही
गीत गा सकते हो क्या ?

एक गीत एक कविता
फिर कहानी सुनाएगी
कहेगी, बतलाएगी
मेरी मस्ती में तुम भी
शामिल हो जाओगी
निश्छल निर्मल
अनोखी सरल
शरारती दिल्लगी
तुम्हारे जीवन में
संचार करेगी तिश्नगी
जब तुम पा जाओगे
इश्क की मंजिल वही
ज़िन्दगी के हर लम्हे में
हर मोड़ पर हल पल में
फैल जाएगी सुगन्ध
महक मेरे पागलपन की
तसव्वुर में तुम्हारे
तब बेचैन हो उठोगे
अपने आप को
मेरी पहचान में
शामिल करने को.....