मांगू सब की खैर
भीग चुका, वर्षा से तन मन
बह गया सारा बैर
कोई छतरी, रोक सके न
पीड़ा तनहा दिल की
भीगा दी जिसने आत्मा मेरी
चुभन है जीवन भर की
तेज़ तूफानी हवाएं मेरे
दिल को भेदती जातीं
मौन खड़ी उम्मीदें मेरी
फ़कत देखती जातीं
गिरता है वर्षा का पानी
बन खारा आँखों से
दुविधा सारी दूर हो गई
आने वाली राहों से
खोले बाहें बुला रहा है
नया सवेरा मुझको
कहता है मुझसे ये हर पल
आगे बढ़ना है तुझको
निकल अँधेरे भूत से तू अब
भुला दे पिछली बातें
घुट घुट कर काटीं हैं तूने
न जाने कितनी रातें
बांधे हाथ, खड़ा 'निर्जन' मैं
मांगू सब की खैर
भीग चुका, वर्षा से तन मन
बह गया सारा बैर
बढ़िया है भाई-
जवाब देंहटाएंबैर सैर हित गैर घर, तैर तैर के प्राण |
गम-वर्षा में ले बचा, कर जाती कल्याण ||
रविकर जी आभार |
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति,,,,
जवाब देंहटाएंयह चमन यू ही रहेगा ,यूँ ही रहेगी बुलबुले,
अपनी-अपनी बोलियाँ,सब बोलकर उड़ जायेगें,,,,
RECENT POST बदनसीबी,
आपका हार्दिक आभार रविकर जी | आपसे और दुसरे वरिष्ठ लेखकों से बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है प्रतिदिन | सादर धन्यवाद |
जवाब देंहटाएंवाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय भाई
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