अब तक के सभी भाग -
१,
२,
३,
४,
५,
६,
७,
८,
९,
१०
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गंगासरन जी नैराश्य भाव से ग्रस्त जड़ हुए खड़े रहे | चारों ओर क्या हाहाकार मच रहा था वे इस सब से अनभिग्य थे | अपने पिता के शिथिल तत्व तो अपने समक्ष देख उनके मस्तिष्क ने उनका साथ छोड़ दिया था | तभी कुछ लोगों ने आकर उनको झकझोरा और कहा,
"गंगा बाबू! आप यहाँ से लालाजी को लेकर निकल जाइए | दंगा भड़क गया है | बलवाइए कभी भी यहाँ आ सकते हैं | ऐसा न हो आप भी मुसीबत में पड़ जाएँ | घर पर औरतें अकेली हैं | जाकर उन्हें संभालिये |"
अचानक ही उनका मौन भंग हुआ और वो अपनी विषम परिस्थिति को सँभालते हुए बोले,
"कल्लू भाई! कुछ लोगों को ले कर आप मेरे साथ चलिए | पिताजी को मैं अकेले नहीं ले जा पाउँगा | कृपया आप मेरी मदद कीजिये | मुझमें साहस नहीं इतना के ऐसी स्तिथि में, मैं स्वयं माताजी का सामना कर सकूँ |"
कल्लू ने तुरंत कुछ लोगों को बुलवाया और पिताजी को उठा घर की तरफ रवाना हो गए | हवेली पहुँचते ही बहर आहते में जानकी बाबु के पार्थव शरीर को रख दिया गया | अन्दर से नौकर भागे भागे आए, बाबूजी की दशा देख शुब्ध रह गए | सबके चेहरे पीले पड़ गए | किसी ने ऐसे मंज़र की कभी परिकल्पना भी नहीं की थी |
गंगा बाबु की माताजी और अनारो देवी जैसे ही दरवाज़े पर पहुंची तो अपने समक्ष ऐसा हृदयविदारक दृश्य देख वहीँ स्थिर हो गए | माताजी के प्राण सूख गए | एकटक टिकटिकी बांधे वो अपने प्रिये को निहारती रहीं | खामोश अश्रुपूरित नयन, गंगा बाबु से सवाल कर रहे थे,
"मैंने पिताजी को तुम्हारे भरोसे भेजा था | ये क्या हो गया |"
गंगा बाबु की नज़रें भी पीड़ित ह्रदय से माताजी को देख रही थी और खामोश थीं | उनके मर्मस्पर्शी बैनो का सामना करने की क्षमता उनमें कहीं से कहीं तक बिलकुल भी नहीं थी | वे सर को झुकाए अपने अन्दर ही व्यथित दशा से ग्रसित खड़े रहे |
कल्लू नाई, ने सभी को खबर करने की ज़िम्मेदारी उठाई और घर घर जाकर सभी को इस दुखद समाचार से अवगत कराया | तुरंत ही एक कारिन्दा मुरादाबाद अनारो देवी के घर भी भेजा गया | धीरे धीरे लोग शोक व्यक्त करने आने लगे और अंतिम विदाई का सामान भी जमा होने लगा | समय की ऐसी हृदयस्पर्शी परिक्रिया के चलते सुबह होने को आई थी और लोगों का तांता लगभग लग चुका था |
जानकी बाबु को श्रधांजलि देने के लिए शहर का बड़े से बड़ा अलिफ़ कालिफ़ अफसर तो क्या छोटे से छोटा कारिन्दा भी पहुँच गया था | उनकी अकलमंदी, सेवाभाव, उदारता, भलमनसाहत, अपनेपन, खुशमिजाज़ और मिलनसार रवैये और आदत के कारण शहर भर के लोगों में उनकी उठ बैठ थी | हर एक इंसान उनका मित्र था | जिसको भी उनके बारे में मालूम हुआ वही उलटे पैरों उनके घर सांत्वना देने पहुँच गया |
वहां मुरादाबाद खबर मिलते ही साहू साब आनन् फानन में मेरठ के लिए निकल लिए | उन्हें सुनकर विश्वास नहीं हो रहा था के ऐसा कैसे हो गया | जैसे तैसे पौ फटने तक साहू साब भी पहुँच गए | अपने साथ में वो कुछ लोगों को भी लाये थे | पहुँचते ही उनकी बुज़ूर्गियत का तज़ुर्बा और ऐसी परिस्थिति में माहौल को सँभालने का अनुभव काम आया | उन्होंने तुरंत ही गंगासरन और उनके परिवार को सहारा और सांत्वना दिया और अंतिम क्रिया की तयारी पूर्ण करवाने हेतु कार्यवाही शुरू करवा दी |
बड़े ही भारी और शोकाकुल मन से जानकी बाबु की अर्थी को कन्धा दिया गया | कलावती देवी अभी भी खामोश थी | उनकी आँख के आंसू सूख गए थे और वो खुद भी शिथिल पड़ चुकीं थीं | जानकी बाबु को अर्थी पर अपने से दूर जाते देख उन्हें बहुत ही तीक्ष्ण ह्रदयघाती सदमा लगा और उन्होंने भी अपने प्राण वहीँ त्याग दिए | महिलाओं के बीच हाहाकार मच गया | शोक की लहर दौड़ गई | सभी आपस में कानाफूसी करने लगीं,
"अरे ये क्या हो गया | कोई डाक्टर को तो बुलाओ | ये तो एक दम ठंडी पड़ गईं | अरे देखो इनमें तो जान ही नहीं बची | जानकी बाबु के साथ कलावती देवी भी स्वर्ग सिधार गईं | इतना प्यार था दोनों में के पति के जाने का सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाई | पति के साथ ही निकल गए इनके प्राण भी |"
हवेली से आते शोर को सुनकर सभी रुक गए | एक आदमी ने जाकर देखा तो जानकी देवी के बारे में मालूम हुआ | उसने तुरंत आकर सबको यह मर्मस्पर्शी खबर सुनाई | गंगा बाबु तो सुनते ही अचेत हो गए | साहू साब ने आगे बढ़कर स्तिथि का संचालन किया और सब कुछ संभाला | जैसे तैसे गंगा बाबू को होश में लाया गया | दोनों अर्थियां तैयार थीं | गंगासरन तो अब पूरी तरह से टूट चुके थे | उनके शोक का अंदाज़ा कोई नहीं लगा सकता था | एक ही रात में माता पिता और व्यापार के खत्म होने का दुःख उनके ऊपर हावी होता साफ़ नज़र आ रहा था | पिताजी से विच्छेदन की पीड़ा क्या कम थी जो माता जी भी | ऐसी अवस्था में सिर्फ साहू साब का ही सहारा था | उन्होंने गंगासरन को ढाढस बंधाया और उन्हें शांतिपूर्वक माता पिता की अंतिम क्रिया करने के लिए हिम्मत दिलाई |
बहुत ही शोकाकुल परिमंडल में मातापिता का देह संस्कार हुआ | परन्तु इतने कम समय में भी इंतज़ाम में कोई कमी नहीं थी | टनों के हिसाब से चन्दन की लकड़ियाँ, देसी घी के टिन और बाकि ज़रूरियात का सामन मुहैया करने में साहू साब और गंगा बाबु ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी | बहुत ही भव्य तरह से माता पिता को अंतिम विदाई देकर और उनकी अस्थि विसर्जन संस्कार से निवृत होकर अब गंगा बाबु अपनी हवेली पर वापस आ चुके थे |
माता पिता का तीजा और तेहरवी के लिए पंडितों को भुलावा भेजा जा चुका था | भव्य भोज का आयोजन किया गया था | गरुड़ पुराण का पाठ आरम्भ करवा दिया गया था | शहर में सभी को सूचित करवा दिया गया था के गंगा बाबु की हवेली पर तेहरवी के दिन सभी को शिरकत करनी है | हर प्रकार से अपने माता पिता को स्वर्ग में स्थान दिलाने के लिए उन्होंने जो बन पड़ा किया | साहू साब के मार्गदर्शन में सभी काम शांति के साथ निपट गए थे | माता पिता भले ही अकस्मात् गंगा बाबु को बीच मंझधार छोड़ गए थे परन्तु उनका आशीर्वाद हमेशा उनके साथ बना हुआ था | अब तो साहू साब का हाथ भी उनके सर पर था |
समय ने सारे दुखों को भर दिया | मंद गति से समय भी पंख पखेरू हो गया | पीड़ा से बहार आते आते और काम को फिर से सँभालते साल गुज़र गया | परन्तु गंगा बाबु का व्यापार दोबारा उस तरह से जुड़ नहीं पाया | एक तरफ तो स्वदेशी आन्दोलन दूसरी तरफ भारत के विभाजन और भारत को स्वतंत्र करने की योजनाओ के चलते हुए दंगे फसाद ने कारोबार को एक दम ठप्प कर दिया था | उधर गंगा बाबु भी अकेले कब तक मशक्कत करते और हालातों से झूझते और लड़ते | उन्होंने इस मामले में साहू सब की राय लेना उचित समझा | उन्ही की सलाह पर और समझाने पर उन्होंने मेरठ छोड़ कर मुरादाबाद जाकर बसने का फैसला कर लिया |
धीरे धीरे गंगा बाबु ने सब कुछ बेच दिया | कारोबार, गोदाम, ज़मीन जायदाद, खेत खलिहान और आख़िरकार हवेली का सौदा भी हो गया | कार्तिक मास की पूर्णमासी का दिन था | गंगा बाबु ने अपने पुरखों की भूमि मेरठ को सदा के लिए अलविदा कहा | अनारो देवी, बिटिया और साहू साब के साथ हमेशा के लिए मुरादाबाद में जा बसे | क्रमशः
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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |
All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.
रुचिकर है प्रियवर -
जवाब देंहटाएंशुक्रिया गुरुवर |
हटाएंआज की यह कड़ी बहुत ही मार्मिक है,आभार.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजेंद्र भाई |
हटाएंNice post.....
जवाब देंहटाएंMere blog pr aapka swagat hai
धन्यवाद् संजू | आपका ब्लॉग देखा अच्छा है | आपका ब्लॉग फॉलो कर रहा हूँ |
हटाएंमर्म हो जहाँ ... वही असली ज़िन्दगी की कहानी है - पात्र काल्पनिक,पर सत्यता से पूर्ण
जवाब देंहटाएंशुक्रिया दी | आपकी टिपण्णी पढ़कर अच्छा लगा | आभार |
हटाएंबाँधे हुऎ है । अब आघे भी बताओ?
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद् शशिल जी | जल्दी ही अगल भाग प्रकाशित करूँगा |
हटाएंबहुत सुंदर .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मदन भाई |
हटाएंतुषार जी आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा कहानी का आज का अंक पढ़ा तो आगे भी जानने कि इच्छा हुई पिछले अंक भी वक्त मिलते ही पढ़ूँगी बहुत-बहुत बधाई इस प्रस्तुति हेतु
जवाब देंहटाएंशुक्रिया राजेश जी |
हटाएंतुषार जी आपका ब्लॉग देखा, अच्छी प्रतीति हुई। पहले भी आपकी बसंत की एक कविता पर टिप्पणी कर चुका था। पर मेंबर लिस्ट में शामिल नहीं हो पाया था। इस कारण आपकी कई नई महत्वपूर्ण रचनाएं पढ़े बिना ही रह गईं। अब मेंबर बन गया हूं आपके ब्लॉग का। इसलिए जो भी नया आप पोस्ट करेंगे वह मुझे दिखाई देगा। श्रीमती अनारो देवी भाग-६ अत्यंत अच्छा है। क्या यह उपन्यास का कोई अंश है या एक कहानी है। प्रयत्न होगा कि पूर्व के पांचों भागों को भी शीघ्र पढ़ूंगा और तत्पश्चात टीका करुंगा।
जवाब देंहटाएंआभार विकेश भाई | आगे की कहानी जल्द ही लिखने का प्रयास करूँगा | ब्लॉग अनुसरण के लिए आभार |
हटाएंबढ़िया लेखन। आपके ब्लॉग का हमने भी अनुसरण कर लिया है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंनये लेख :- एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) ब्लॉगवार्ता।
राष्ट्रीय विज्ञान दिवस पर विशेष : रमन प्रभाव।
आभार बंधू |
हटाएंआप ब्लॉग पर तशरीफ़ लाये बहुत अच्छा लगा | आभार |
जवाब देंहटाएंbahut acchi kahani......
जवाब देंहटाएंदुख ही दुख है.. :((( शायद ज़िंदगी के तमाशे ऐसे ही होते हैं...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
आभार अनिताजी |
हटाएंआपने बहुत बढ़िया कहानी साझा की है हर भाग का इन्तजार करेंगे वैसे में आपके ब्लॉग के साथ जुड़ा हुआ हि हूँ और आता भी हूँ लेकिन कभी शायद टिप्पणी नहीं कर पाता हूँ इसलिए आपने समझ लिया कि में आपके ब्लॉग पर आता नहीं हूँ !!
जवाब देंहटाएंआभार !!
पूरण भाई धन्यवाद् |
हटाएंVERY NICE NARAATION OF STORY
जवाब देंहटाएंशुक्रिया रमाकांत भाई |
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