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शनिवार, अप्रैल 25, 2015

"हम" - एक सूर्योदय

इस तेज़ी से विकसित होती संभ्रांत और शिष्टाचारी नस्ल में बहुत से ऐसे शब्द हैं जिन्हें रोज़मर्रा की बोलचाल वाली ज़िन्दगी में यदा-कदा ही तवज्जो मिलती होगी। ऐसे असंख्य वचनों की श्रृंखला में कुछ ऐसे भी होते हैं जो दिल को छू जाते हैं और अपने वशीभूत कर मोहित कर लेते हैं। प्राय: उन्हें हम बातों में एक आदत के रूप में प्रयोग तो करते हैं परन्तु उनके कारण जीवन में उत्पन्न होने वाली सृजनात्मक शक्ति और उर्जा को कभी पहचान नहीं पाते। मेरा ऐसा मानना है कि ऐसे शब्दों के महत्त्व को उजागर करना बेहद ज़रूरी है, उनमें से दो शब्द 'मैं' और 'तुम' हैं - जब ये दो एक साथ मिलते हैं तब एक एतिहासिक, ओजस्वी, विकासशील और अपनत्व से लबरेज़ शब्द की रचना होती है जिसे कहा जाता है - 'हम'...

"हम" वैसे हौले से बुदबुदाये 'अगर' से ज्यादा कुछ नहीं है। या फिर काले घने अंधकार में बने धुंए के छल्ले की तरह है। यह पानी के होंठ पर उफ़नते साबुन के बुलबुले की भाँती है
यह तार्रुफ़ के नक़ाब के ज़रिए से स्पर्श और अनुभव करती चमकदार चमचमाती आँखें और लजाती उँगलियाँ है। "हम" पास-पास पर अलग-अलग, मगर फिर भी एक साथ, कंधे से कन्धा मिलाकर दौड़ती अलैदा क़िताबों का, गलियारा है, जो कभी एक दुसरे को पुकारते नहीं हैं परन्तु फिर भी एक दूजे की गूँज की अनुगूंज के कंपन में अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं। "हम" वो अजनबी है, जो अनजान होकर भी किसी के लिए अपरिचित नहीं है। एक परतदार कागज़ के टुकड़े पर अस्पष्ट लिखे वादे की तरह जिसे रात के अंधरे में दरवाज़े की दरार के बीचो-बीच धीरे से खिसका कर दुबका दिया गया है।

हमारे दरमियां आनंददायक चमकदार इन्द्रधनुषी संभावनाओं का सजीला संसार पनप रहा है, हमारी सजग आँखें स्पष्ट रूप से एक दुसरे के इर्द-गिर्द नृत्य का आनंद प्राप्त कर रही हैं। हमें एक ऐसे कमरे में धकेल दिया गया है जहाँ सूरज की किरणों की धुल छन-छन कर चहक रही है, होठ हथेलियों का रूप बना दुआ कर रहे हैं, उँगलियाँ सियाह काले गहरे तेल के छल्लों में फँसी हैं और धुंधले पड़ते गड्ढेदार गालों को तलाश रही हैं। शब्दों और शब्दांश के घुमावदार चक्रव्यू से भविष्य उधड़ रहा है, क्षणभर में सब कुछ बिख़र जाता है और हम सोचते हैं, हमें सब ज्ञात है कि हमारी ज़िन्दगी कहाँ, कब और कैसे आगे जाएगी।

हमारा पूरा वजूद एक परछाई के आगे छलांग लगाने की कोशिश में लगा है वो भी एक ऐसी शक्ति के साथ जो हर उस चीज़ को रौंदकर आगे बढ़ जाएगी जिसे कभी हमने सच समझा होगा। हमें अभी भी हमारे पैर नहीं मिले हैं लेकिन हम दोनों एक साथ उन्हें तलाश करने में जुटे हैं, लड़खड़ाते लुढ़कते कमज़ोर घुटनों और छिलते-छिपटे-चिरते टखनों के साथ ठोकरें खाते हुए, हँसते हुए उन्हें एक साथ खोज रहे हैं क्योंकि इसमें ना तो कुछ नया है और ना ही कुछ पुराना। हम तो बस अपने मिज़ाज, मनोभाव, धड़कन, नब्ज और नाड़ी के स्पंदन को दर्ज कर रहे हैं और उन्हें पूरी रात नाचने के लिए पुनरावृत्ति पर रख रहे हैं।

और अचानक, समस्त संसार में सबसे ख़ूबसूरत लफ्ज़ है 'यदि'... यकायक, सबसे आकर्षक, उत्कृष्ट, दिव्य, रमणीय शायद समूचे विश्वलोक में "हम" है।

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, दिसंबर 31, 2014

हे वृक्ष - २












जबकि हर व्यक्ति
अपनी पकड़
अपने अहं
अपनी विलासता, को
मज़बूती से
पकड़े रहना चाहता है
वो चाहता है
उसके सम्बन्धी
उससे सम्बंधित
हर व्यक्ति
उसकी दासता माने
क्यों, क्या उससे
अलग किसी के शरीर में
मन, आत्मा या चेतना नहीं
हे वृक्ष
तुम मानव से
कहीं अधिक श्रेष्ठ हो
तुम सिर्फ अपनी
जड़ के स्वामी हो
अपनी ताक़त से
जड़ों की रक्षा करते हो, ताकि
वृक्ष का विस्तार
दूर दूर तक फैलता रहे
और मैं तुम्हे एक बार और
महानता की उपाधि देता हूँ
तुम अपने पत्ते,
अपने फल, अपने फूल को
जब तक ही पकड़े
रहना चाहते हो
जब तक वो अपने
अस्तित्व में पूर्ण नहीं होते
उसके बाद
तुम उनकी
चिंता छोड़ नए पत्ते
नए फल, नए फूल की
रचना में लग जाते हो
'निर्जन तुम्हे परमात्मा का
दूसरा स्वरुप मानता है

--- तुषार राज रस्तोगी ---

बुधवार, नवंबर 26, 2014

हम भी बदल गए
















इन मुश्किलों की राह में, हम बढ़ते चले गए
सब कुछ बदल गया है, तो हम भी बदल गए

आवारगी की मय से, हम जाम भरते चले गए
सब कुछ बदल गया है, तो हम भी बदल गए

फुर्कते-ग़म के चराग, हम भी बुझाते चले गए
सब कुछ बदल गया है, तो हम भी बदल गए

इश्क़ में बदनाम, हम सरनाम होते चले गए
सब कुछ बदल गया है, तो हम भी बदल गए

अंजाम से बेपरवाह, हम अब चलते चले गए
सब कुछ बदल गया है, तो हम भी बदल गए

दर्द की दास्ताँ को, हम यूँ बयां करते चले गए
सब कुछ बदल गया है, तो हम भी बदल गए

यूँ ज़िन्दगी को 'निर्जन', हम भी जीते चले गए
सब कुछ बदल गया है, तो हम भी बदल गए

--- तुषार राज रस्तोगी ---

गुरुवार, अप्रैल 24, 2014

रे मुसाफ़िर














रे मुसाफ़िर चलता ही जा -

नहीं तो राहों से चूक जायेगा
पहुंचेगा कहाँ, वहाँ जहाँ तू
अपने आप को भूल जाएगा
तू तनहा राह में रह जायेगा

जीवन है काँटों की झाड़ी
उलझ अटक रह जायेगा
आधी को संजोने खातिर
तू पूरा जीवन गंवाएगा

छूट जायेगा अपने से तू
भूल जायेगा जीवन को तू
रे मुसाफ़िर मंज़िल को भी
तू, फिर छोड़ कर जायेगा

इस दुनिया से तू बेगाना सा
तेरे ख्वाबों के रंग उड़ जायेंगे
सब राहे होंगी अनजानी तब
सबसे छूटेगा अपने से टूटेगा

मंजिल कभी खत्म ना हो तेरी
मंजिल से कभी तू भटके ना
यही प्रार्थना करता हूँ मैं
लिए हाथों में यह दीपशिखा

राह में जब अंधियारा छाएगा
निर्भय होकर तू चलता चल
यह दीपशिखा तुझको पल पल
तेरा मार्ग दिखलाएगी

रे मुसाफ़िर तू चलता चल
नहीं तो राह में रह जायेगा
पीछे मुड़कर ना देख ज़रा
वरना जीवन में पछतायेगा

रे मुसाफ़िर चलता ही जा....

शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2014

सनम














इज़हार-ए-इश्क़ का आया मौसम
अरमां मचलते इस दिल में सनम

महफूज़ मुद्दत से रखा हमने इन्हें
आज क्यों ना कह दें तुमसे सनम

मालूम है फ़र्क पड़ता नहीं तुमको
हम जियें या मर जाएँ ऐसे ही सनम

हसरत दिल की दिल में ना रह जाये
यही सोच लिख बयां करते हैं सनम

तुम कब समझोगी ये अंदाज़-ए-बयां
हो ना जायें हम फनाह इश्क़ में सनम

सोचता 'निर्जन' थाम हाथ मेरा भी कभी
कहेगा हूँ मैं साथ तेरे यहाँ हर पल सनम

--- तुषार राज रस्तोगी ---

शनिवार, दिसंबर 14, 2013

मुक़म्मल इंसान हो तुम














गैरों के एहसास 
समझ सकते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

लोगों की परख 
रखते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

बेबाक़ जज़्बात 
बयां करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आँखों से हर बात 
कहा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ल्ब* को साफ़ 
किये चलते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

दिल से माफ़ी 
दिया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आशिक़ी बेबाक 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

लबों पर मुस्कान 
लिए रहते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

खुल कर बात 
किया करते हो, तो   
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़त्ल बातों से 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ौल* का पक्का 
रहा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

क़ायदा* गर्मजोशी
का रखते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

ज़बां पर ख़ामोशी
लिए रहते हो, तो  
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

आफ़त को बिंदास
हुए सहते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

गुज़ारिश दिल से 
किया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

ग़म को चुप्पी से 
पिया करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

जिगर शेर का  
रखा करते हो, तो 
मुक़म्मल इंसान हो तुम 

जज़्बा बचपन सा 
लिए जीते हो, तो 
'निर्जन' हो तुम...

मुक़म्मल - पूर्ण / Complete 
क़ल्ब - दिल
क़ौल - बात
क़ायदा - तरीका 

गुरुवार, दिसंबर 05, 2013

ज़िन्दगी












रज़ाई ओढ़े सर्दी में अलाव सेकती ज़िन्दगी
ठंडी भोर की बेला में बात सोचती ज़िन्दगी
देसी घी और मेवा का स्वाद देती ज़िन्दगी
बच्चों की ज़िद के जैसी है जिद्दी ये ज़िन्दगी

सुबह महकते एहसासों में लिपटी ज़िन्दगी
दिसम्बर की ठण्ड में कड़कड़ाती ज़िन्दगी
लोई ओढ़ बिस्तर में आराम करती ज़िन्दगी
सोच से सृजन बनाती है आज मेरी ज़िन्दगी

मुश्किलों को प्यार से गले लगाती ज़िन्दगी
तन्हाई में अपने ग़म का जश्न मानती जिंदगी
चुप्पी साधे खड़ी रही मज़बूत बन ये ज़िन्दगी
मुस्कान बनकर जीती है होटों पर ये ज़िन्दगी

खुशियों के सैलाब में गोते लगाती ज़िन्दगी
सनम जैसा प्यार मुझ पर लुटाती ज़िन्दगी
खिलती रही बेबाक सी हंसा कर ज़िन्दगी
मासूम बन मचलती रही बेहिसाब ज़िन्दगी

दिल की वादियों में खिलता गुलाब ज़िन्दगी
जवान धड़कनो में जलती आग है ज़िन्दगी
सावन में बरसती मीठी आग जैसी ज़िन्दगी
तपते सेहरा में जीने की आस भर ज़िन्दगी

खुद की पहचान की ललक लिए ज़िन्दगी
वादों में इरादों पर ऐतबार करती जिंदगी
जी रहा है 'निर्जन' जीने को तो ये ज़िन्दगी
तुझसे मिलने की फ़रियाद है यह ज़िन्दगी 

मंगलवार, फ़रवरी 05, 2013

वर्षा

बांधे हाथ, खड़ा 'निर्जन' मैं
मांगू सब की खैर
भीग चुका, वर्षा से तन मन
बह गया सारा बैर

कोई छतरी, रोक सके न
पीड़ा तनहा दिल की
भीगा दी जिसने आत्मा मेरी
चुभन है जीवन भर की

तेज़ तूफानी हवाएं मेरे
दिल को भेदती जातीं
मौन खड़ी उम्मीदें मेरी
फ़कत देखती जातीं

गिरता है वर्षा का पानी
बन खारा आँखों से
दुविधा सारी दूर हो गई
आने वाली राहों से

खोले बाहें बुला रहा है
नया सवेरा मुझको
कहता है मुझसे ये हर पल
आगे बढ़ना है तुझको

निकल अँधेरे भूत से तू अब
भुला दे पिछली बातें
घुट घुट कर काटीं हैं तूने
न जाने कितनी रातें

बांधे हाथ, खड़ा 'निर्जन' मैं
मांगू सब की खैर
भीग चुका, वर्षा से तन मन
बह गया सारा बैर

गुरुवार, जनवरी 31, 2013

स्त्री तेरी यही कहानी

बचपन में पढ़ा
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की  ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...

मंगलवार, जनवरी 29, 2013

मुखौटा

मेरी तरफ़ा देख ज़रा
चेहरे पर एक मुखौटा है
मुखौटे का विश्वास न कर
मेरी बात को सुन ले ज़रा
मुझसे कोई सवाल न कर
मेरे झूठ का तू ऐतबार तो कर
जो लिखा है मैंने बस वही तू पढ़
मुझसे तू कोई सवाल न कर
बस शब्दों का ऐतबार तो कर

वो एक नज़र मेरे चेहरे पर
तूने जब जब भी है डाली
क्या पता कभी चलने दी तुझको 
दशा मेरे मन और जीवन की
जितनी हलचल, उतनी पीड़ा
दिल बिलकुल है खाली
सोच के तुझको भी दुःख होगा
हालत अपनी छुपा डाली
मौन सदा रहकर मैं बस
यही सोचता हर पल
शायद अब तो झाँकेगी तू
मेरे दिल के तल तक

मुझे अकेला छोड़ राह तूने भी बदली
जो था मेरा सच वो
तू कभी न समझी पगली
खुश रहे सदा तू
चहके, महेके, सूरज सी चमकाए
कोई अड़चन, कोई पीड़ा
अब निकट तेरे न आए

काश! किसी दिन वक़्त निकले
और मिले तू मुझसे
फिर कानो में धीरे से
ये पूछे तू मुझसे
काहे पहने हो मुखौटा ?
का चाहते जीवन से ?
तब आँखों को मूँद के अपनी
दिल को मैं खोलूँगा
बतलाऊंगा दर्द तुझे मैं
शब्दों में बोलूँगा

हाँ, माना के बहुत दुखद है
मुखौटे संग रहना
पर एही एक कला है बिटिया
जो के सिखलाती है
जियो सदा जीवन को हंस के
दुखी कभी न रहना
पड़े चाहे विपरीत परिस्थिति
में भी मर मर जीना

भक्ति

भक्ति
जबकि स्वयं
स्त्री स्वरुप है
फिर भी
भक्ति को
क्यों तलाश है
किसी बुत की
जो की
स्वयं में
एक अथाह सागर है
फिर क्या
उसे प्यास है
किसकी
चिरकाल में
अनंत समय तक
क्यों
कोई नहीं जानता

रविवार, जनवरी 13, 2013

खुशनुमा ज़िन्दगी जीने के कुछ आसान तरीके

आज मेरे एक बहुत ही अज़ीज़ मित्र, भाई, बंधू, भ्राता ने कहा के ज़िन्दगी में हमेशा खुश रहो | खुद को इतना मज़बूत रखो के कोई तुम्हे ग़मगीन न कर पाए । ज़िन्दगी ये सोच कर जियो के तुम ही तुम हो और तुम हर गम से ऊपर हो । यदि गम आये भी तो उससे ख़ुशी के साथ जीना सीखो | लिखो तो ख़ुशी के लिए लिखो | ऐसा लिखो जो मरते हुए मैं प्राण फूँक दे, सोते को उठा दे, रोते को हंसा दे, लंगड़े को भगा दे, अंधे को दिखा दे, दुबले को फुला दे और दुखी को सुखी कर दे | तभी लेखनी में जान आएगी | लेखन में वज़न की बहुत अहमियत है । तो वज़न लाना बहुत ज़रूरी है । तो आज से और अभी से ज़िन्दगी में यही कोशिश रहेगी के ख़ुशी का दामन थामे मस्ती की लहरों में गोते लगते हुए जीवन रुपी समुन्द्र को हंसी मजाक में तैर कर पार करूँ | लेखनी में और जान फूँक दूं और जो भी लिखूं वो आनंद देने वाला हो और दिलों को हर्षित करने वाला हो |

"भाई नुक्ते जो बतलाये थे वो दिल में नोट कर लिए हैं | और आगे भी ऐसे ही हिदायतों का और विचारों के आदान प्रदान का इंतज़ार रहेगा | जल्दी ही मिलते हैं | और जो कुछ भी आप मेरे लिए कर रहे हैं और किया है उसके लिए दिल से शुक्रिया | एक बड़े भाई की कमी हमेशा खली है मुझे | बजरंगबली ने आवाज़ सुनकर आज वो पूरी कर दी | और बजरंगबली के साथ उसमें किसी और का भी बहुत बड़ा योगदान है | आप भलीभांति जानते हैं जिन्हें मैं संबोधित कर रहा हूँ - फूपी-सा ;)  | एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद् आप सब को | "

तो नुक्से कुछ इस प्रकार से हैं :
  1. अपने ज़िन्दगी को दूसरों की ज़िन्दगी के साथ तोलना बंद कर दें | जितना है उतने में संतुष्ट रहें |
  2. मेहनत करें, कोशिश करें, उपाय करें और सकारत्मक सोच के साथ जीवन व्यतीत करें |
  3. ज़िन्दगी में परेशानियों को ढूंढना छोड़ दें और जीवन में जो चीज़ें गज़ब है अदभुत है उन्हें देखने आरम्भ कर दें | 
  4. पूजा पाठ, हवन आदि घर में ज़रूर करें ।
  5. तनाव देने के लिए बहुत कुछ मिलेगा | अपना समय उन पर बर्बाद न करें | उन्हें ज़िन्दगी से जाने दें |
  6. दूसरों की तरक्की और ख़ुशी में खुश रहिये भले ही आप उनसे इर्षा करते हों |
  7. ज़िन्दगी सम्पूर्ण नहीं है | इस बात को स्वीकार करें |
  8. आप अनोखे और खूबसूरत है | इस पर विश्वास कीजिय | आप जैसे हैं वैसे ही अपने आप को प्यार करना सीखिए |
  9. ख़ुद की मदद करने का सबसे आसान तरीका है दूसरों की मदद करना |
  10. दूसरों से दिल खोल कर मिलें | नए रास्ते बनते जायेंगे |
  11. दूसरों की बात को सुनना सीखें |
  12. बुरी से बुरी समस्या में भी कम से कम, दिल में एक सकारात्मक ख्याल ज़रूर लायें |
  13. समस्याओं का समाधान भद्रता से करें | अभद्रता केवल आग में घी का काम करेगी |
  14. अपनी ऊर्जा  लड़ाई लड़ने में प्रयोग न करें | अपितु उससे अपने मनपसंद कार्य में उपयोग करें |
  15. एक के बाद एक गलती का नाम ही जीवन है | इसलिए अपने आप पर इतने सख्त न हों |
  16. जो लोग आपसे शालीनता की अपेक्षा रखते हैं उनके साथ शालीन रहें |
  17. ख़राब मिज़ाज में धैर्य से काम लें | अच्छे मिज़ाज के आने का इंतज़ार करें |
  18. अपना गुस्सा, तनाव, कुंठा, निराशा, निष्फलता को खेलकूद और व्यायाम कर के निकलें |
  19. अपने जीवन का अच्छा पहलू सदा यार रखें | उन लम्हों को अपने साथ अपनी डाईरी, डेली जर्नल, ब्लॉग या कहीं भी लिख कर सुरक्षित रखिये |
  20. तकनीक हमेशा साथ नहीं रहती इसे कबूल करें |
  21. किसी भी कार्य को भरपूर उत्साह के साथ करें |
  22. सड़क पर चलते समय राहगीरों को, अनजान चेहरों को देख कर मुस्कराएँ और दोस्तों और अपनों से फौली भरकर मिलें |
  23. कम बोलें | आलोचना तथा अप्रिय शब्दों का प्रयोग न करें |
  24. तनावपूर्ण स्तिथि में दिमाग ठंडा रखें | शांत दिमाग में जवाब आसानी से आ जायेंगे |
  25. जल्दबाजी न करें | जो भी कार्य करें बहुत सोच समझकर और अपना समय लेकर करें |
  26. हमेशा जीवन में अच्छाई के बारे में सोचें | बुराई के बारे में सोच कर अपना दिन नष्ट न करें |

बुधवार, जनवरी 09, 2013

वीणा

मेरे मन मस्तिष्क
के तारों को
वीणा मत बनने देना
भगवन
क्योंकी वह वीणा 
जो स्वर निकलती है
ये परिवेश उसे
नहीं स्वीकार पायेगा
स्वयं मैं भी
पथराया सा
अनजान रास्ते
पर बिना स्वर के
उस वीणा को
छेड़ देता हूँ
जिसके स्वर से
ईश्वर तुझे भी रोना
न आ जाये
वो दर्द तेरी
पत्थर की बुत
को भी तोड़ देगा
देख अपनी वीणा को
जो तूने मुझे सौंपी है
बजाने के लिए
एक नियत
स्वर दे
जिससे मैं
आठों पहर
तेरी वीणा से
तेरे ही राग
गया करूँ
मेरे मन मस्तिष्क
को आयाम दे
जिससे मैं कोई
मंजिल देख सकूँ

मंगलवार, जनवरी 08, 2013

पीड़ा के तोशक

चंद कोमल सासें चुराकर
भवितव्यता से भौहें भिगोकर
हारते खेल की बाज़ी खेलकर
इश्क में परवाह का जुआ लगाकर

कसक की रजाई ओढ़क्रर
ग़म-ए-ज़िन्दगी की नुमाइश
धोखा देते ज़िन्दगी के साल
खोई युवावस्था के दाग़
परिपक्वता की अभिरंजित सरसराहटें

विद्युन्यय तरंगे
व्यंग्यात्मक फुसफुसाहट
पानी का चटकना
बुखार में तेज़ तपना

शठ कड़कड़ाहट
सरकती झनझनाहट
निष्प्रभ अश्रु
बायां खयाल

मायावी मृगतृष्णा
मतिभ्रम उपभोगन
दिमाग़ी शस्त्राभ्यास
विस्फ़ोटक धडकन

अंततः संगीतमय
अंतिम आकलन
फिर निस्तब्धता
कुछ रुकी श्वास
ख़ामोश वृन्द

इस सबका क्या अर्थ है?

पीड़ा के तोशक ओढ़े
हताशा में भी शांत रहना

रविवार, जनवरी 06, 2013

हे स्त्री

हे स्त्री
तुझे
आर्थिक रूप से
सामाजिक रूप में
कब तक
दासता में
जीना होगा
जगत धारिणी
जगत जननी
नाम से तुझे
सभी जानते हैं
तुलसी भी
सीता का
पुजारी पर
ढोल, गंवार
पशु के साथ
उसने भी
जोड़ा था
तुझे
क्यों
क्या तू
कोई चल अचल
संपत्ति है
एक सवाल
हर स्त्री
पूछती है
पर
पुरुष प्रधान
समाज में
कोई भी
तुझे
मुक्ति नहीं देगा
कभी पिता, पति
कभी पुत्र
कभी भी
दासता से
नहीं छोड़ सकते
शायद तेरे से
ग़ुलाम ही
बेहतर हैं
एक स्तिथि तक...

पुत्र मोह या मोक्ष मोह

हे पुत्र तुम्हारे कंदन में
शायद
किसी के
सहारे की
या
किसी को
कर्त्तव्य एहसास
करने की
शक्ति थी
तभी तो
मैं
अपनी समृद्धि
के बाद भी
न भूल
पायी
वो आँखें
वो सपना
वो घर
जिसका खोजना
शायद
भगवन के
लिए भी
मुश्किल था
जहाँ
सूरज को भी
आते जाते
शाम हो जाती है
पर उस
उत्तम घर का
स्वामी एक
रत्न है
जिसकी चमक शायद
सूरज से
ज्यादा भी
तभी तो, मैं
अनजाने
परिवेश में
उस को पा गई
तुम्हारे कंदन में
मेरे हृदय की धड़कन
मानो खुद भी
कंदन करने
लगती है
आँखे पथराई सी
धड़कन को
देखना चाहती हैं
सुनना चाहती हैं
पर पुत्र वो
चाहती हैं, अपना
छोड़ा हुआ, वो
सलोना सा मुखड़ा
जिसमें मेरे
दोनों जहाँ थे
अब अपने
कंदन को
कर्म बना डालो
दे दो मुक्ति
मेरे ह्रदय की
धड़कन को
जो शरीर के
रहते भी
उसको विचलित
किये रखती है
मन मस्तिष्क को
मैं तुम्हें
अपार स्नेह स्वरुप
उपहार में देती हूँ
क्योंकि ये शरीर
तुम्हारी ममतामयी का नहीं है

गुरुवार, जनवरी 03, 2013

पराजय, नुकसान, असफलता, द्वेष, इर्ष्या के लक्षण

वो सर्वप्रथम स्मरण शक्ति को प्रभावित करता है | आप भूल जाते हैं आप क्या कर रहे थे, क्या किया था तथा क्या करने वाले थे | विचार शीघ्रगामी तरीके से मस्तिष्क छोड़ने लगते हैं जब तक खालीपन की प्रतिध्वनि सुनाई नहीं देने लगती | फिर सपने | फिर विलम्ब, सम्मिश्रण, प्रतिगम - परिवर्तन | फिर अनुभव | फिर भाषा | फिर सन्तुलन | और इसके पश्चात आपकी मृत्यु |

आपका मस्तिष्क कुतूहलपूर्ण ढंगे से जल्दी जल्दी आपको विचलित करेगा | अलगाव की भावना सामान्यतः प्रारम्भिक प्रतीक है: आपने अपने आप को बिसूरना प्रारंभ कर दिया है | जैसे जैसे मर्ज़ अग्रगमन करता है, आप नुक़सान करने लगेंगे और पराजित होने लगेंगे | आप मुलाक़ात और मेल मिलाप में असफल होने लगेंगे जो आपकी ज़िन्दगी की तरक्क़ी में अहमियत रखती हैं | आपक निजी जीवन अस्त व्यस्त होने लगेगा | आपका मंजन आपके घर की चाबी और चाबियाँ आपकी बीवी और बीवी आपकी दुश्मन और दुश्मन आपके माता पिता बन जायेंगे |

इस परिस्थिति की सम्पूर्णता एक अनाम वियोग के इन्द्रियज्ञान से अधिकृत होगी | आप संभवतः समझेंगे और प्रतीत होगा जैसे आप भूतग्रस्त, आत्मसात्, अपहृत, मृत, बदले हुए इंसान हैं | आपके ज़िन्दगी के ज़ायके पुनर्भिविन्यासित होंगे | आप नई उत्कट इच्छाओं, अधिहृषता, अंधभक्ति की उधारना करेंगे | इसी समय आपकी अरुचि विसर्जित होने लगेगी | समस्त संसार से विच्छेद होने लागेगा | आपके विचार स्वयं प्रभावशून्य होते प्रतीत होंगे |

प्रारंभिक आसार अहानिकर होंगे; सामान्य परिणाम जैसे तनाव और हार्मोनल असंतुलन: हलकी अन्यमनस्कता, एकाग्रता में कठिनाई, स्तब्ध भावनाएं, कुत्सित स्मृति | लपस के लिए आकस्मिक उत्तेजना | काल्पनिक विचारधारा का सत्याभास होना | ख्वाबों का अत्यंत आक्रामक होना और सपनो को स्मरणशक्ति द्वारा याद करने में क्षीर्ण होना | अनिश्चितता के भाव द्वारा अनुसरण अन्यथा प्रत्यक्ष वस्तुएं के लिए जैसे स्पष्ट सरूपता | संदेह, सामान्य स्तिथि में सभी वस्तुओं पर |

सनकीपन - ज़बर्दस्त प्रवृत्ति उत्पन्न होना | विश्वास, क्रियापद्धति तथा अन्य ज्ञानरहित आचरण - जिसमें बढ़ी हुई आध्यात्मिकता - असामान्य नहीं है | संभवतः आप अंतर्निहित दिमाग़ी संवेदना से त्रस्त - खाना, पीना, सोना, करना, धोना सभी निष्फल होंगे |

आप प्रायः तुच्छ तथा निरर्थक वस्तुओं से, सम्भावित वस्तुओं से और पूर्वकालिक वस्तुओं से भयभीत होंने लगेंगे | आपके विचार जो अपने दिमाग में दौड़ रहे होंगे - ऐसे प्रतीत होंगे जैसे किसी बंद परिपथ पर रफ़्तार से दौड़ रहे हों | और समय के साथ वो विचार अस्पष्ट, अस्पृश्य और सहभागी करने योग्य नहीं रहेंगे | आपकी चित्त वृत्ति का प्रकृति प्रत्यक्षीकरण का भी यही हाल होगा जब तक वो गूढ़ नहीं होते और फिर बाद मे वह धुंधले पड़ने लग जायेंगे |

ध्यान केन्द्रित करने, तर्क सिद्ध निष्कर्ष निकलने, संचारण करने, जानकारी ग्रहण करने में कठिनाई उत्पन्न होगी | दूसरों के सुझाव, वार्तालाप, व्याख्यान सभी व्यर्थ लगेंगे | आपको कुछ भी याद नहीं रहेगा | आपकी सोचने, समझने, सुनने, देखने, जानने की क्षमता कुंद हो जाएगी | आप रंग भेद का फर्क भी अलग दिखने लगेगा | ये भी हो सकता है के इस स्तिथि में आप पढ़ना-लिखना, चेहरे पहचानना भूल जाएँ | यह भी मुमकिन है और सत्याभास है के आप मतिभ्रम हो जाएँ या आगे जाकर पूर्ण रूप से दृष्टिहीन हो जाएँ | आप दूसरों पर चढ़ने लगें, उन्हें गिराने लगें, ठोकरें खाने लगें तथा आखिर में पूर्ण रूप से ध्वस्त हो जाएँ |

अंत में वो घूम फिर कर आपकी याददाश्त में वापस आता है | आप भूल जाते हैं आप कौन हैं | आप किस तरह ज़िन्दगी जीते हैं | किस तरह कार्य करने में विश्वास रखते हैं | इस बीमारी के कुछ विशेष निर्धारित लक्षण होते हैं जो अच्छे से अच्छे व्यक्ति की स्मृति, प्रवीणता, कौशल, विवेक, निपुणता, विद्या, हुनर तथा गुण को नष्ट कर देते है | आपको जकड़ लेते हैं | यदि आप इसकी ओर ध्यानाकर्षित करते हैं, इसका इंतज़ार करते हैं तो समझिये आप ख़त्म और उसके आगे, उसके बाद कुछ नहीं है |

अतः इन लक्षणों से सदा ही बच कर जीवन जियें |

बुधवार, जनवरी 02, 2013

नव वर्ष की शुभकामनायें


नया साल

मतलब

नयी आकंशायें
उन सभी चीज़ों के लिए
जिनकी मैंने कामना की है
और जो मुझे चाहियें

अपने हर सपने
अपनी हर सुखद धारणा
को बिना डरे प्रवाहित करना

ज़िन्दगी को एक बार फिर से
नयी उमंगों से भर कर
जीने का मौका देना

उन सभी गलतियों को
फिर से न दोहराना
जो मैंने अपने जीवन के
अब तक के अनुभवों से
सीखी हैं

अपने समाज को
सुरक्षित महसूस करवाना
और किसी भी अनहोनी का
मिलकर सामना करना

थोडा और बुद्धिमान
थोडा और सुदृढ़
बनकर जीवन के
नए पथ पर चलना

नव वर्ष
आरम्भ हो चुका है
अब समय है
पीछे मुड़कर न देखने का
केवल आगे देखकर
विजय पथ पर बढ़ने का
इस सोच के साथ के
ये साल मेरी ज़िन्दगी में
सर्वश्रेष्ठ समय लेकर आएगा

मेरी ओर से
मेरे सब मित्रगण
मेरे सभी शत्रुगण
मेरे सभी सहयोगी
मेरे सभी असहयोगी
मेरे सभी परिचित
मेरे सभी अपरिचित
मेरे सभी ज्ञानियों
मेरे सभी अज्ञानीयों
मेरे सभी चाहनेवाले
मेरे सभी नाचाहनेवाले
मेरे सभी देशवासियों
मेरे सभी विदेशवासियों
को नव वर्ष की
शुभकामनायें

आप सभी का नया साल मंगलमय हो ...!

Happy New Year 2013

Yes welcoming another new year in the calendar of our life and saying goodbye to another one. But i don't think anyone has given it a thought from this angle as i see it. It's days like today that make me realize how little I am concerned with what year it happens to be. I see poems, stories, movies, art, paintings, articles, people, friends, enemies, websites, facebook statuses, listen to songs and so much more all about how 2013 is some amazing phenomenon, a new god or goddess to be ushered in and worshiped. But in reality, it's just a number, a human contrivance. An imaginary concept, an arbitrarily set number to an arbitrarily set date; 2013 is nothing more than a marker for human organization of time and history. And yet, we seem to view it as a natural occurrence, some great transformation of the earth and time itself, the chance to change ourselves as people. But the earth still spins as it did yesterday, the plants and creatures know that we're still in winter and that the snow won't stop falling for this imaginary phenomenon of ours; all while we're celebrating what we call a life-changing turnover in time.

शुक्रवार, दिसंबर 28, 2012

दहेज़

हमें मिटाना है इस देश से दहेज़ का नामो निशान
क्योंकि इससे होती है मानवता बदनाम
जब वधु सुसराल में आती है
शुरुवात में वो बहुत सुख पाती है
फिर जब शुरू होते हैं उसके दुःख के दिन
अपमान, यातनाएं, शोषण वो पाती है
रोज़मर्राह की जिंदगी उसकी नासूर बन जाती है
फिर जब जाती है पुलिस और कोर्ट में वो
मुकदमा दायर करती है
अमानवीय व्यव्हार का सामना
वो वहाँ भी करती है
डरकर और चालाकी से फिर
वही सुसराल वाले
प्यार से उससे बुलाते हैं
सर को भी सहलाते है
घर वापस भी बुलाते हैं
फिर सुसराल वापस जाकर वो
घुट घुट कर जीते हैं
कुछ दिन सुखमय बीतते हैं
फिर वही कलह को पीती है
मर पिटाई गाली गलोच में
हर पर कुढती रहती है
झेल दुःख के पल कुछ और समय
वो षड्यंत्र का शिकार हो जाती है
मूक बधिर कमज़ोर बकरी की भांति
कसाई के हाथों मर जाती है
या जला दी जाती है