शनिवार, फ़रवरी 23, 2013

सजदे में उसके जाऊं क्यूँ

सजदे में उसके, मैं नहीं गया
बंदगी पे उसकी, मैं फ़िदा नहीं
न इबादत में, न जमात में
शिकवा भी तो, किया नहीं
मैं हूँ नहीं, खुदा परस्त
यारों मैं हूँ, बेवफा सही
मुझको नहीं
फ़िदा'ऎ-दिल अज़ीज़
दीन-ओ-दिल, की मुझको
परवाह नहीं  
फिर उसके, बाब जाऊं क्यों
मुझे जिससे कोई, गिला नहीं
या ख़ुदा, मैं हूँ काफ़िर अगर
ये उसको मैं, बतलाऊं क्यूँ
'निर्जन' तेरे न होने से भी
किस के काम बंद हैं
अब रोये बार बार क्या
तू करता हाय हाय क्यों
बस अपने में जीता जा तू
और अपने में मरता जा तू
कर के याद किस बेवफा को तू
है अपना दिल, जलाये क्यों
मैं हूँ नहीं, खुदा परस्त
सजदे में उसके, जाऊं क्यूँ

12 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति बधाई ...

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  2. बहुत खूब ... पर उसके सजदे में खुदा समझ के ही क्यों जाऊं ... अपना प्यार समझ के भी सदका किया जा सकता है ...
    बहुत ही भावपूर्ण प्रस्तुति ...

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  3. मै हूँ नहीं खुदा परस्त,
    सजदे में उसके जाऊं क्यू ,,,,उम्दा भाव लिए सुंदर पंक्तियाँ ,,


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  4. बहुत बहुत शुक्रिया अरुण भाई |

    जवाब देंहटाएं
  5. अत्यंत भावपूर्ण रचना, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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