देहलीज़ के उस पर एक दूसरी दुनिया थी | अनजान लोगों की भीड़ से भरी एक ऐसी दुनिया जिसकी परिकल्पना नीति ने कभी नहीं की थी | हर एक इंसान जो उस चौखट के पार खड़ा था एक नए रिश्ते का बोझ उस पर लादने तो तयार था | जैसे तैसे हिम्मत जुटा कर नीति ने ग्रहप्रवेश कर तो लिया लेकिन उन नए चेहरों की भीड़ में वो अभी भी उसी एक चेहरे को तलाश रही थी जिसकी ख्वाइश उसने हमेशा से की थी | सभी रीती रिवाज़ों और रस्मों को पूरा करते काफी रात हो गई थी | थकान के मारे चूर हो चुकी नीति अपने कमरे में पहुँचते ही बिस्तर पर निढ़ाल हो गिर पड़ी और कब आँख लग गई पता ही न चला |
एक नई सुबह के साथ ब्याहता जीवन का प्रथम दिवस आरम्भ हुआ | रंजीत ने उठते ही चाय की फरमाइश कर दी | नई नवेली दुल्हन की तरह वो चुपचाप उठी और जल्दी से रसोई घर में जा पहुंची | ललिता देवी उसकी सास ने टेडी निगाहों से उसकी ओर देखा और तुनक कर बोली,
"नीति, नहाये बिना हमारे यहाँ रसोई घर में कोई कदम नहीं रखता | तुमने रसोई को अपवित्र कर दिया | बेटा अब बहार जाओ और महाराज से बोल दो क्या चाहियें |"
"महाराज, सुनते हो महाराज, गंगाजल छिड़क कर रसोई को पवित्र कर दो और नीति को जो चाहियें दे दो |"
नीति "जी मम्मी, आगे से ख्याल रखूंगी | मुझे मालूम नहीं था |" कहते हुए रसोई से बहार जाकर खड़ी हो गई |
महाराज ने चाय उसके हाथों में थमा दी और वो अपने कमरे में चली गई | उसे इस बात का अंदेशा भी न था के जो उसने अभी अभी देखा था वो सिर्फ ट्रेलर था पूरी पिक्चर तो अभी बाकी थी | धीरे धीरे उस पर किन मुसीबतों का पहाड़ टूटने वाला है इससे वो पूरी तरह से अनजान थी | वो बेचारी तो प्रताप की यादों को भुलाकर रंजीत की दुनिया बसाने की कोशिश में ही उलझ कर रह गई थी | समय गुज़रा और ज़िन्दगी रोजमर्राह के कामों के साथ शुरू होने और खत्म होने लग गई | सुसराल के पचास काम और सुसरालईयों की फरमाईशों के चलते अब उसे अपने लिए वक़्त निकलना मुश्किल होने लगा था | सुबह से शाम और शाम से रात कब हो जाती पता भी नहीं पड़ता था | सभी के मूड को ठीक करने और सभी को खुश करने की कोशिश में वो गधे की तरह दिन रात काम में लगी रहती | पर फिर भी कोई उससे सीधे मुंह बात तक न करता था |
नीति के ससुर चमन लाल बहुत ऊँचे रसूक वाले व्यक्ति थे | पर वो दो मुहें सांप थे | समाज में दिखाने का चेहरा अलग था और घर पर कुछ और ही कलाकारी होती थी | ललिता देवी घर में कम और घर से बहार ज्यादा समय व्यतीत किया करती थी | उसे अपनी सोशल लाईफ से ही फुर्सत नहीं मिलती थी | नन्द इतनी नकचढ़ी के जिसका कुछ ठीक नहीं था | नंदोई भी अव्वल नंबर का छिछोरा था |
कुछ समय पश्चात नीति ने एक प्यारी और फूल सी बेटी को जन्म दिया | अभी वो पत्नी के रिश्ते के बोझ से उबर भी नहीं पाई थी के माँ के रिश्ते का भार भी उसके नाज़ुक कन्धों पर आ गया | बेटी का जन्म उसके लिए के नए तूफ़ान को साथ ले आया | बेटी के जन्म से वो बहुत खुश थी | एक नया खिलौना उसके जीवन में आ गया था | पर सुसराल वालों के भवें तन चुकी थीं | उस दिन के बाद फिर ज़ुल्मों को सहने और झेलने का एक नया दौर आरम्भ हुआ |
दिन रात सास - ससुर के ताने | नन्द की नक्शेबाज़ी झेल झेल कर उसे डिप्रेशन रहने लग गया | नंदोई की अश्लील फब्तियों और घिनौनी नज़रों से वो मानसिक तौर पर घ्रणित महसूस करने लग गई थी | रंजीत तक उसके साथ ठीक व्यव्हार नहीं करता था | कभी इस चीज़ के लिए तो कभी उस चीज़ के लिए उसे प्रताड़ना झेलनी पड़ती | बुरी बुरी गालियों का, तानो का और भेद भाव का सामना करना पड़ता | कभी शादी में लाये सामान को लेकर कभी शादी के खान पान को लेकर कुछ न कुछ उसे सुनने को मिलता ही रहता था | कितनी ही दफा उससे इन डायरेक्टली पैसों की मांग की गई | कई बार तो रंजीत ने उसपर हाथ तक छोड़ दिया | पर वो घर की इज्ज़त और बेटी के प्यार के कारण सब बर्दाश्त करती रहती | सब कुछ चुप चाप सहती रही |
इस सब के चलते उसे अगर कुछ सुकून के पल मिलते थे तो वो उसकी बेटी के साथ होते | सुहानी नाम रखा था उसका | और सच में वो बहुत ही सुहावनी थी | मनमोहक थी | गोरी चिट्टी पटाखा से नयन नक्श | उसके साथ समय सागर की लहरों की तरह कैसे बह जाता मालूम ही नहीं पड़ता था | उसको नहलाना, तयार करना, खाना खिलाना, दूध पिलाना, उसके साथ खेलना मस्ती करना, इस सब में वो अपने सारे दुःख दर्द भुला देती थी |
यदा कदा नीति को दीपक की याद भी आ जाया करती थी | हालाँकि वो उससे नाराज़ थी क्योंकि वो नीति की शादी में शामिल नहीं था पर प्यार आज भी बरक़रार था | प्यार का रिश्ता सब गिले शिकवों से बड़ा होता है | अपने दिल का हाल वो और
किसी से बाँट भी नहीं सकती थी | जो बात वो दीपक को बतला सकती थी शायद माता पिता से भी न कर पाती | अपना हल-दिल और
किसी से इतना खुल कर नहीं कह सकती थी |
दीपक को शुरुवात से ही नीति के इस फैसले पर ऐतराज़ था | वो ज़रा भी खुश नहीं था | उसने नीति को समझाया भी था पर विपरीत हालातों के चलते वही हुआ जो नियति को मंज़ूर था | उसे न तो रंजीत ही पसंद था न उसका परिवार | यही कारण था के शादी के इतने सालों के बाद भी जो रिश्ता एक जीजा साले के बीच होना चाहियें था वो कभी बन ही नहीं पाया था | दीपक जब भी रंजीत से मिलता उससे एक खलनायक वाली फीलिंग आती और वो किसी तरह बहाना बना कर वहां से निकल जाया करता था | रंजीत की भी दीपक के सामने हवा संट होती थी क्योंकि उसकी शेखी बघारने की आदत दीपक के सामने कभी नहीं चलती थी | दीपक के जवाब सुनकर अक्सर सबके सामने उसकी झंड हो जाया करती थी | इसलिए वो भी दीपक के सामने संभल कर बात किया करता था |
समय पंख लगाये कैसे बीत जाता है पता ही नहीं पड़ता | ऐसे ही घुट घुट मरते जीते १४ साल गुज़र गए | बेटी बड़ी हो रही थी और सभी हालात समझने लगी थी | अब वो भी माँ के साथ देना चाहती थी | अपनी दादी, दादा और पिता की नाइंसाफी को देख कर वो भी सहमी रहती थी | पर उसके बस में भी कुछ न था | आखिर वो एक छोटी बच्ची ही तो थी |
एक दिन अन्याय की सभी सीमायें लाँघ दी गईं | सुसराल वालों ने किसी छोटी सी बात पर नीति को कमरे में बंद कर के मर पिटाई की | उसके कपड़े तलक फाड़ दिए | बेटी के सामने गला दबाने की प्रयास किया | वो तो नीति की ही हिम्मत थी के जो जैसे तैसे अपने और अपनी बेटी को बचाकर वहां से निकल भागी | उसने तुरंत दीपक को फ़ोन किया और आपबीती बयां की | दीपक ने पुलिस में शिकायत करने को कहा | पर वो डरी हुई थी | उसके साथ उसकी बेटी थी | ऐसे में दीपक ने उसका पूरा साथ दिया और उसे घर वापस ले आया |
नीति लौटकर अपने पिता के घर वापस तो आ गई | पर मायके में रहना आसान नहीं था | हज़ार लोग लाखों सवाल | पिताजी और माताजी की तबियत भी बिगड़ रही थी | अभी कुछ अरसा ही हुआ था उसे वहां रहते | अपने साथ हुए हादसे से वो उबर भी न पाई थी के एक और वज्रपात से वो चकना चूर हो गई | उसके माता पिता के अकस्मात् निधन ने उससे पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया | और कहते हैं न के भेड़िये हमेशा मौके की ताक में रहते हैं तो यहाँ भी ऐसा ही हुआ | उसके सुसराल वालों ने ऐसे समय पर उसके ज़ख्मों पर नमक और लाल मिर्ची रगड़ दी | उसके ऊपर तलक का केस कर दिया |
नीति का धैर्य भी अब जवाब देने लग गया था | उसे रातों को नींद नहीं आती थी | वो धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार होने लगी थी | हल पल चिड़िया के जैसे चहकने वाली लड़की अब बिस्तर से भी नहीं उठती थी | अँधेरे कमरे में अकेले बैठी रोती रहती | उसकी आँखें सूज कर लाल हो गई थी और उनके नीचे काले धब्बे उबरने लग गए थे | अब वो भी किस्मत से हार मान लेने को तयार थी | पर भगवान् में उसकी आस्था ने उसे कभी ऐसा करने नहीं दिया | दीपक भी हमेशा उसके होसले को बढ़ावा देता रहता था | ऐसे समय में उसके पास सिर्फ यही कुछ सहारे थे | एक अपनी बेटी का प्यार, भगवन में उसकी अटूट भक्ति और दीपक का साथ उस पर भरोसा |
लेकिन साहब वो कहते हैं न भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं | इन सब हालातों के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी | वो इतवार का दिन था | बेटी के साथ वो रिलायंस फ्रेश में साग सुब्ज़ी लेने गई थी | भीड़ काफी थी | उसने देखा के आलू के भाव बहुत कम हो गए हैं | तो सबसे पहले वही लेने आगे बढ़ गई | भीड़ में से उसने के व्यक्ति के कंधे पर थपथपाया और कहा,
"एक्स-क्यूज़ मी प्लीज़, क्या आप थोडा साइड देंगे ? मुझे भी आलू लेने हैं | वह धीरे से साइड हो गया और नीति ने सुब्ज़ी ली और काउंटर पर जाकर पेमेंट के लिए खड़ी हो गई | पेमेंट करते वक़्त काउंटर पर उससे पांच रूपये खुले मांगे | उसने पर्स देखा तो छुट्टे पैसे नहीं थे | उसने आस पास देखा शायद किसी के पास चेंज हो | अचानक उसे वही इंसान नज़र आया जिससे उसने पहले रिक्वेस्ट की थी | उसकी कमर नीति की तरफ थी | एक बार फिर होसला जुटा कर वो आगे बढ़ी और उसकी पीठ पर धीरे से हाथ लगाया और कहा,
" एक्स-क्यूज़ मी, सॉरी फॉर ट्रबल | कैन यू प्लीज़ हेल्प मी ? डू यू हैव चेंज फॉर टेन रुपीज़ ?"
वो व्यक्ति धीरे से मुड़ा | उसका मुस्कराता हुआ चेहरा अब नीति की ओर देख रहा था | नीति ने जैसे ही नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा तो सन्न रह गई | वो प्रताप था | क्रमशः
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पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या
जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |
All
the characters, incidents and places in this blog stories are totally
fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or
place is purely coincidental.
रुचिकर धाराप्रवाह सुंदर कहानी,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST शहीदों की याद में,
शुक्रिया जी
जवाब देंहटाएंसुंदर चित्रण किया है पात्र एवं घटनाक्रम सभी कुछ अपने साथ उड़ा के ले जा रहे हैं ...फिर क्या होता है ...?
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर चित्रण,मानो घटनाये सामने घटित ही रही है।
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