बुधवार, फ़रवरी 06, 2013

दिल की दास्ताँ – भाग २

लालाजी भी आदत से बाज़ आने वालों में से नहीं थे | उन्होंने भी सुधांशु के गाल पर तमाचा रसीद करने में ज़रा भी वक़्त जाया नहीं किया | उसके कोमल मन पर बारम्बार ऐसे आघात उसके स्वाभाव को और ज्यादा विद्रोही बनाते जा रहे थे | उसको एहसास होने लगा था के उसके साथ गलत हो रहा है पर बताता कैसे और किसको | न कभी उसकी किसी ने सुनी, पढाई में अव्वल आने पर न कभी शाबाशी मिली न कोई इनाम, न कभी खुद ही घुमने गए न उसे घुमाने ले गए, कूप मंडूप से हर समय घर में पड़े रहो और बैठे रहो | वो आसमान का पंछी बनना चाहता था और यहाँ सब उसके पर कतरने में लगे थे | उसकी परवाज़ को पंख देने की जगह उसे पिंजड़े में क़ैद कर रहे थे | बस यही पीड़ा और कसक उसके जीवन में हमेशा हर पर चलती रहती थी | बड़े बुज़ुर्ग बिना बोले ही अपने खून की भाषा समझ लेते हैं | उसने किताबों और ज़िन्दगी में, फिल्मों में यही देखा था | पर यहाँ तो निज़ाम ही उल्टा था | इतने सब के बाद भी मन से वो आज भी बहुत कोमल और सोम्य था | उसके मन में कोई पाप कोई बैर भाव नहीं था | अगर कुछ था तो वो थे उसके सवाल और उसका दर्द जिन्हें समझने और बांटने वाला कोई नहीं था | अकेले में वो बहुत रोता, इन सभी बातों पर बहुत विचार करता, अपने आप से सवाल पूछता और खुद ही जवाब ढूँढने की कोशिश करता | पर एक कृष्ण विवर के सिवा उसके हाथ कुछ न लगता | सैकड़ों ख़यालों और सवालों से वो अकेला ही लड़ता रहता और जब थक जाता तो हताश होकर बैठ जाता | वो सिर्फ एक अकेला तनहा प्राणी था जो ये सब बचपन से बर्दाश्त किये जा रहा था | परन्तु किसी के सामने अपने दर्द को ज़ाहिर नहीं होने देता था | एक कठोर बाहरी अनावरण बनाता जा रहा था अपने चारों ओर सबको दिखने के लिए | वो कहते हैं न के यदि इंसान स्वाभाव से कोमल ह्रदय हो तो वो अपने को ऊपर से कठोर दिखाना शुरू कर देता है | बात बात पर झुंझला जाना, तुनक कर जवाब देना, अनाप शनाप जवाबदेही करना, हर समय चिडचिड़ाहट से भरा रहना, छोटी छोटी बातों पर गुस्से से आग बबूला हो जाना, खाने पर गुस्सा निकलना, कमरे में बंद रहना  और अपनी कमजोरियों को सवालों और बहानो में छिपाना उसकी सामान्य ज़िन्दगी में शामिल हो चुका था | मैं बहुत बुरा हूँ और सब मुझसे दूर रहो | मेरे पास आए तो मैं और बुरा बन कर दिखा दूंगा | उसे लगने लगा था के उसके नर्म स्वाभाव और विनर्म वाणी को सुनकर सब उसे दब्बू समझेंगे | उसका नाजायज़ फायदा उठाएंगे | क्योंकि आजकल का ज़माना ऐसा ही है | यदि आप चुप चाप सब कुछ सहते रहते हैं तो लोग आपको कमज़ोर समझने लगते हैं | और कहीं स्वभाववश आपने अपनी गलती मान ली या अपनी कमजोरी को दिखा दिया तो सभी आपके ऊपर राशन पानी लेकर चढ़ जाते हैं | एक गुस्सैल और कठोर वाणी वाले इन्सान से सभी डरते हैं और उसके समक्ष चूं भी नहीं करते या अपना रास्ता बदलकर कन्नी काट लेते हैं | उसने भी वही रास्ता अख्तियार किया | अपनी माँ से विरासत में मिले निर्मल और कोमल दिल को उसने कठोर और सक्थ कवच से ढांक दिया |

इसी कारणवश उसका कोई दोस्त भी न था | जो रवैया और बोलचाल उसकी घर में थी बहार भी वो वही दिखने लग गया था | उसे डर था के कहीं बहार भी उसके साथ वैसा ही बर्ताव न हो जैसा घर में होता था | जो थोड़े बहुत यार दोस्त बने भी थे उनको कभी लालाजी ने घर आने नहीं दिया तो धीरे धीरे उनका साथ भी छूट गया | दूसरा कारण यह भी था के वो स्वाभाव से मक्कार, चंट चालाक नहीं था और न ही ये सब बातें उसे पसंद आती | पर आजकल की दुनिया में यदि जीना है तो इन गुणों से आपको लैस होना स्वाभिक है क्योंकि किसी भी गंभीर, भावुक, जज्बाती, दयामय, कोमल ह्रदय और भावप्रधान जीवन जीने वाले प्राणी को आजकल इमोशनल फूल की उपाधि से तुरंत सम्मानित कर दिया जाता है | और लोग उनका फायदा अपने मतलब के लिए उठाते हैं | 

जैसे तैसे कर करा के सुधांशु ने स्कूल की पढाई तो पूरी कर ली परन्तु कॉलेज में जाने के स्थान पर उसने एक प्रोफेशनल कोर्स में दाखिला ले लिया | वह जल्दी से जल्दी कोर्स कर के खुद कमाना चाहता था | अब तक उसके और लालाजी के बीच काफी फासलें आ चुके थे | वो ज़्यादातर अपने में खुश रहता बनिस्बत इसके के वो घर पर किसी से भी खुल कर बात करे | उसकी दुनिया अब उसके कमरे तक सिमट कर रह गई थी | पढने का शौक उसे बचपन से था, तो जो कुछ हाथ आता वो पढ़ डालता | उसकी छोटी सी दुनिया उसके सपनो के पास ज्यादा और अपनों के पास कम घूमती थी | उसके पास अपना एक छोटा सा निजी पुस्तकालय बन चुका था जिसमें नोवेल्स, साहित्य, कहानियां, कॉमिक्स, सामान्य ज्ञान और बहुत सी किताबों का कलेक्शन था | किताबों के साथ उसकी दोस्ती सबसे पहले उसकी माँ ने करवाई थी और तभी से वो उसकी सबसे करीब साथी थी | इस दौरान चंद दुसरे मित्रों से भी उसकी दोस्ती हो गई थी | वो उसके प्रोफेशनल इंस्टिट्यूट की छात्र और छात्रा थे | उसके ग्रुप में एक लड़की थी जो उसे बेहद पसंद थी | उसने लालाजी से अपनी शादी की बात करने का फैसला किया परन्तु लालाजी के सामने आते उसकी बोलती बंद हो जाया करती थी | अपनी माँ से अपने हाल-ए-दिल को बयां तो कर लेता था पर अब उसे भी पता था के माँ उसकी किसी प्रकार की मदद नहीं कर सकती हैं सिर्फ इश्वर से प्रार्थना और सर पर हाथ फेर कर आशीर्वाद दे सकती हैं | पर फिर भी माँ से बात कर के उसे बेहद सुकून मिलता था |

कोर्स ख़तम होते होते उसकी नौकरी लग चुकी थी | अपने खानदान में वो पहला लड़का था जो इतनी कम उम्र में नौकरी में गया था | उसके साथ के बाकि सारे बच्चे मौज मस्ती में लगे हुए थे या अपने बुजुर्गों के साथ उनका व्यवसाय सँभाल रहे थे | लालाजी ने कभी भी इस बारे में सोचा नहीं था | उन्हें बस परवाह थी तो अपनी और अपनी झूठी शान और आडम्बर की | अन्दर भले ही वो कितना भी चाहते हों परन्तु जब दिखने का वक़्त आता तो वो हमेशा फेल हो जाते | अपने पोते को कितना चाहते हैं कभी नहीं बता पाए और सब कुछ सही होते होते गलत हो जाया करता था | बात बनते बनते इतनी बिगड़ जाती की पूरे घर में तनाव हो जाता | इसमें काफी बड़ा हाथ उसकी दादी उर उनकी बेटियों का भी था | हर समय लालाजी को भड़काना और चुगली करके कान भरना यही उनका काम था |

नौकरी लगते ही सुधांशु ने अपने आपको उसमें झोंक दिया | मशीन की भाँती वो दिन में १८-२० घंटे काम में लगा रहता | कई कई दिन तो ऐसे होते के वो ऑफिस से घर ही न आता | जो थोडा बहुत समय वो घर पर बिताता था अब वो भी खत्म होता जा रहा था | खासकर लालाजी के साथ उसकी बातचीत पूर्णतः समाप्त ही हो गई थी | महीनो बीत जाया करते एक दुसरे की शक्ल देखे हुए | लगाव तो था परन्तु वो रोष और गुस्सा भी था जो इतने सालों से दिल में भरता जा रहा था | एक ही खून होने की सबसे बड़ी विडंबना यही थी के “मैं” दोनों में एक समान था | दोनों में से कोई भी उसका साथ नहीं छोड़ना चाहता था | लालाजी सोचते के सुधांशु आकर उसने पहले बात करेगा और सुधांशु भी जवान खून था और उसपर लालाजी का पोता | उसने भी सोच रखा था के जब तक लालाजी उससे सीने से लगा कर प्यार से बात नहीं करते और उसका हाल चाल नहीं पता करते तब तक वो भी बात नहीं करेगा | हर दफा मैं ही क्यों झुकूं | मेरी गलती क्या है | बस इसी अना के चलते जो छोटी सी डोर बची थी वो भी टूट गई | क्रमशः

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

4 टिप्‍पणियां:

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