यह जीवन बहुत
विस्तृत है
और कठिनाइयाँ
अनेक हैं
अथाह मुसीबतों का
सागर सामने हैं
कितने ही
आस्तीन के सांप
फन फैलाये बैठे हैं
इन सब के
स्थूलकाय अम्बुधि से
क्या मैं
मुक्त्त हो पाउँगा
जो अनंत काल से
स्मृति और कुटुंब बन
सम्बन्धी और नातेदार बन
पीछे दौड़ते हैं
आईना दिखाते हैं
तरह तरह के
जिसमें अपने आप को
अपने मूल स्वरुप को
बदलता हुआ देख
घबरा जाता हूँ
आत्मा तक बेचैन
हो जाती है
कहीं आँखें
छलिया तो नहीं
मझे इस
स्मृति भरे
आयुर्बल से
न जाने कब
मुक्ति मिलेगी...
उत्कृष्ट.....
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार |
हटाएंबढ़िया है -
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें
ये रिश्ते ...
बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति,सादर आभार.
जवाब देंहटाएंअताह = अथाह
जवाब देंहटाएंअतीत भूलो
जीवन पुलकित
क्षमा करो !!
शुभकामनायें !!
जो प्रभू के चरणों में रहता है वो ऐसी बातों से जरूर मुक्त हो जाता है ...
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