मंगलवार, फ़रवरी 26, 2013

मुक्ति

हे प्रभु
यह जीवन बहुत
विस्तृत है
और कठिनाइयाँ
अनेक हैं
अथाह मुसीबतों का
सागर सामने हैं
कितने ही
आस्तीन के सांप
फन फैलाये बैठे हैं
इन सब के
स्थूलकाय अम्बुधि से
क्या मैं
मुक्त्त हो पाउँगा
जो अनंत काल से
स्मृति और कुटुंब  बन
सम्बन्धी और नातेदार बन
पीछे दौड़ते हैं
आईना दिखाते हैं
तरह तरह के
जिसमें अपने आप को
अपने मूल स्वरुप को
बदलता हुआ देख
घबरा जाता हूँ
आत्मा तक बेचैन
हो जाती है
कहीं आँखें
छलिया तो नहीं
मझे इस
स्मृति भरे
आयुर्बल से
न जाने कब
मुक्ति मिलेगी... 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति ...

    आप भी पधारें
    ये रिश्ते ...

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति,सादर आभार.

    जवाब देंहटाएं
  3. अताह = अथाह
    अतीत भूलो
    जीवन पुलकित
    क्षमा करो !!
    शुभकामनायें !!

    जवाब देंहटाएं
  4. जो प्रभू के चरणों में रहता है वो ऐसी बातों से जरूर मुक्त हो जाता है ...

    जवाब देंहटाएं

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