रविवार, फ़रवरी 24, 2013

श्रीमती अनारो देवी - भाग ५

अब तक के सभी भाग - १०
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शाम होने तक अनारो देवी उनकी बाट जोहती रहीं | और सांझ ढलते ढलते गंगा सरन जी बेला और चमेली के गजरे लिए घर पर पधार चुके थे | घर पहुँचते ही उन्होंने अनारो देवी से पुछा,

"सुनिए क्या आप तयार हैं चलने के लिए ?"

अनारो देवी तैयार थीं | उन्होंने गंगा सरन जी द्वारा भेंट में दी हुई साड़ी बाँध रखी थी | कानो में झुमके, आँखों में काजल, माथे पर कुमकुम की बिंदिया, मांग में सिन्दूर, गले में मंगल सूत्र, कमर में सोने की तगड़ी, हाथों में जडाऊ कड़े और पाँव में छम छम करती पाज़ेब पहने वो एक दम महारानी लग रही थीं | उनके मुखमंडल पर तेज तो था ही परन्तु प्यार और दुलार की आभा ने उनके ललाट को और भी ज्यादा प्रकाशमान कर दिया था | उनके व्यक्तित्व का तेज दिव्यज्योति बन चारों ओर विद्यमान हो रहा था | उन्होंने मंद सी मुस्कराहट के साथ बड़ी ही शिष्टता और शालीनता से बिना कुछ कहे सर झुका दिया | वो समझ गए और बोले,

"आज तो आप क़यामत बरसा रही हैं | आपके रूप में साक्षात परीलोक की देवी की आभा झलक रही है |  आज तो अगर भगवान् भी आपको देख लें तो उनका भी ईमान डोल जाये | इससे पहले के मैं आपके सौन्दर्य के सैलाब में बह जाऊं और मेरा ह्रदय परिवर्तन हो जाये चलिए चलते हैं | कहीं मैटनी न छूट जाये |"

अनारो देवी शर्म से लाल होते, लजाते और आँखे चुराते हुए हौले से बोलीं, "रहने भी दीजिये | क्यों ठीठोली करते हैं | ऐसी बातें शरीफ घर के कुमारों को शोभा नहीं देतीं | जाइए माताजी और पिताजी से आज्ञा ले लीजिये | उन्हें अभी तक घूमने जाने के बारे में कुछ नहीं बताया है |"

वो बोले, "उन्हें तो मैंने कल ही सब कुछ बता दिया था | पिताजी ने ही तो अपने मित्र चौधरी साहब से कहकर टिकटें मंगवाई हैं | वो मैटनी हाल के मालिक हैं न | अब चलें वरना देर हो जाएगी |"

उस शाम दोनों ने ज़िन्दगी की पहली सांझ साथ बिताई | इसी तरह ज़िन्दगी का सुनेहरा वक़्त गुज़रता चला गया | महीनो बीत गए | समय हवाई घोड़े पर सवार सरपट दौड़ता रहा | अचानक एक दिन अनारो देवी ने माताजी को वो खबर बतलाई जिसका किसी को भी अंदेशा न था | खासकर इतनी जल्दी तो नहीं | अनारो देवी उम्मीद से थीं | खबर के सुनते ही सबके दिलों में अरमानो के चिराग जल उठे और सभी लोग उन्हें और ज्यादा प्यार, आदर और सम्मान देने लगे | साथ ही साथ हर एक तरह से उनका ख्याल रखा जाने लगा |

आखिर ख़ुशी का दिन आ ही गया | अब अनारो देवी पंद्रह वर्ष की आयु में प्रवेश कर चुकी थी | इसी आयु में उन्होंने अपनी पहली संतान एक चाँद सी और सुन्दर फूल सी कोमल बिटिया को जन्म दिया | हर तरफ खुशियाँ और प्रसन्नता की लहर दौड़ गई | घर में सभी की लाडली आ गई थी | दादा और दादी की नज़रें तो कभी भी उसके चेहरे से हटती ही न थीं | कहते हैं न मूल से ज्यादा ब्याज प्यारा होता है | तो अब तो ब्याज की किलकारियां, मुस्कराहट, अदाएं, रुदन, हंसी से समस्त आँगन भर गया था | किसी राजकुमारी की तरह से उसका लालन पालन हो रहा था |

तुरंत ही ये खबर एक सन्देश वाहक के ज़रिये उनके पिता साहू साहब के यहाँ भिजवा दी गई |

साहू साहब भी कहाँ रुकने वालों में से थे | तुरंत नौकरों को आदेश दिया,

"बाज़ार जाओ और हलवाई से कहना साहू साब नाना बन गए | अनारो के बिटिया आई है | उसकी सुसराल जा रहे हैं | उनके यहाँ मिठाई जाएगी | इक्कीस तरह की जो भी सर्वश्रेष्ट मिठाइयाँ है सभी पांच पांच सेर बंधवा दो | ध्यान रहे के उन सभी मिठाइयों में काजू की कतली, पिश्ते की कतली, मेवा पाक, करांची का हलवा, सोहन हलवा, कड़ाके का हलवा, जलेबियाँ, गुलाब जामुन, कालाजाम, मलाई चाप, चम् चम्, गाय के दूध की खुरचन, ताज़ा बना अंगूरी और केसरी पेठा ज़रूर हो | ताज़े फलों के ग्यारह टोकरे भी लगवाओ और ध्यान करना के कोई भी फल रखने से रह न जाये | ग्यारह थाल सवा सेर मेवा के भी सजवाओ | ग्यारह देसी घी के टिन, ग्यारह सेर ताज़ा बना हुआ गुड़, ग्यारह सेर केले, इक्कीस पानी वाले नारियल बड़े और बढ़िया वाले, पांच सेर नौरंग लाला के यहाँ का मेवा वाला नमकीन, छब्बन के यहाँ से ग्यारह तरह का अचार और ग्यारह तरह के मुरब्बे तुरंत बंधवा लाओ | मैं जाकर कपडे और गहने लेकर आता हूँ | समय बिलकुल नहीं है फ़ौरी तौर पर ही निकलना है |"

थोड़े ही समय में नौकर ने सारा सामान बंधवा दिया |

लालाजी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी | अपनी नातिन के लिए इक्यावन जोड़ी के कपड़े, ग्यारह जोड़ी नज़रिए, सोने के कंगन, चांदी की पाज़ेब, कमर की तगड़ी, नज़र का कला धागा और सोने की नाक की नालकी खरीद ली | समधीयों के लिए कपड़े और पांच तोले का सोने का सिक्का | दामाद जी के लिए ग्यारह जोड़ी कपड़े और दस तोले सोने की चैन | अनारो के लिए ग्यारह जोड़ी कपडे और गहने उन्होंने आनन फानन में खरीद डाले थे |"

सभी सामान एक गाड़ी में रखवा कर उन्होंने सन्देश वाहक और एक नौकर को उसमें बैठा दिया और स्वयं अपनी गाडी में बैठ कर सन्देश वाहक को साथ ही निकल पड़े |

सुसराल पहुँच कर उन्होंने सबसे पहले अपने समधी से मुलाक़ात की और उन्हें बधाई दी | उनके साथ आया नौकर पीछे से बोल पड़ा,

"हुज़ूर यह सामान कहाँ रख दूं ?"

साहू साब मिजाज़ से गुस्सैल तो थे ही बोले, "अबे मेरे सर पर रख दे | जा अन्दर जाकर हवेली की रसोई में खाने पीने का सामान रखवा दे | बाकी का सामान मैं खुद अनारो को दूंगा |

साहू साब ने एक एक कर के लाये उपहार बाइज्ज़त सबके हाथों में दिए | इतना सारा सामान और मिठाइयाँ आदि देख कर जानकी प्रसाद जी बोल पड़े,

"साहू साब आप आए इससे बड़ी बात और क्या होगी पर इतना सामान कुछ ठीक नहीं लगता | "

"साहू साब ने फ़रमाया, अजी साब क्यों तकल्लुफ वाली बातें करके शर्मिंदा किया करते हैं आप | हम तो बेटी वालें हैं, देना तो हक बनता है | और फिर अभी तो देवी माँ ही पधारी हैं अगली दफा ज़रा नन्दलाल को आने दीजिये फिर रौनक देखिएगा |"

और फिर दोनों दिल खोल कर हंसने लगे | जानकी प्रसाद जी बोले, "आप अनारो से मिल लीजिये और हाथ मुंह धो लीजिये फिर आराम से वार्तालाप और गपशप करते हैं |"

साहू साब को सामने देख अनारो की आँखें छलक गई, भाग कर अनारो उनके गले लिपट गईं और उन्होंने रुंधे गले से पुछा, "कैसे हैं पिताजी ? आपकी बहुत याद आई | "

साहू साहब सँभालते हुए बोल पड़े, "पगली! रोती क्यों है | देख मैं तो भला चंगा हूँ | अब तो ख़ुशी से और भी फूल गया हूँ | देख मैं तेरे लिए क्या क्या लाया हूँ | अपने साथ लाये सभी उपहार, गहने और कपडे अनारो को देने के बाद पूछा,

"मेरी छोटी अनारो कहाँ है ?"

अनारो ने पालने की तरफ इशारा किया और बोली, "वहां आराम फरमा रही हैं मोहतरमा |"

साहू साब आगे बढे और बिटिया को गोद में उठा लिया | थोड़ी देर नज़र भर के उसे निहारा और फिर पलने में वापस लिटा दिया | अनारो की आँख से थोडा सा काजल ऊँगली पर लेकर बच्ची माथे पर लगा दिया | फिर जेब से इक्यावन हज़ार रूपये निकले और उसके सिहराने रख कर बोले,

"गुडिया, ये नानाजी का आशीर्वाद है | जल्दी से बड़ी हो जाओ फिर लेने आऊंगा | फिर नाना का घर भी अपनी चांदनी से आबाद करना | अरसा हुआ, हवेली में किसी की किलकारी सुने हुए | पिछली दफा बस तेरी माँ के रोने और हंसने की आवाज़ याद है मुझे तो | अब तू आ गई है | तेरे साथ खूब खेलूँगा |"

इतना कहकर पलटे और अनारो से पुछा,

"जमाई राजा कहाँ हैं? जल्दी से उनसे भी मिल लेता हूँ | फिर आज ही वापस भी जाना है | फ़सल खड़ी है | फ़सल काटने के काम ज़ोरों पर है | मेरे अनुपस्थित होने से सब कामचोर मनमानी करेंगे | इसलिए आज ही वापस जाना होगा | वो तो खुशखबरी ऐसी सुनी तो रहा न गया और दौड़ा आया | "

उन्होंने अनारो को ढ़ेरों आशीर्वाद दिए | अपनी सेहत और संतान का ख्याल रखने की सलाह दी |  जमाई राजा से मिलकर उन्हें उपहार, बधाई और आशीर्वाद दिए | रात हो गई थी | सबने उनसे रुकने का बहुत आग्रह किया  परन्तु जय राम जी की कर साहू साब जिन पैरों आए थे उन्ही पैरों वापस लौट गए |

ऐसे ही हँसते खेलते और गुनगुनाते हुए शादी के कुछ बरस और बीत गए | अनारो देवी भी अब जीवन के अट्ठारह सावन पार कर चुकीं थी | करोबार और घर के हालात अपने शिखर को छु रहे थे | गंगा सरन जी का कारोबार आज आसमान की बुलंदियों पर था और पाताल की गहराइयों तक उसकी जडें जम चुकी थीं परन्तु देश के हालत दिनों दिन बिगड़ रहे थे |

देश को आजाद करवाने की कवयातें दिनों दिन जोर पकडती जा रही थी | इसके चलते एक अभियान ने उनके जीवन को ऐसा पटका के उसका झटका कहर बन उनके परिवार पर ऐसा बरपा के रातों रात सब कुछ नष्ट हो गया | हिन्दुस्तान में स्वदेशी आन्दोलन जोर पकड़ रहा था | जगह जगह विदेशी माल की होली हो रही थी | गंगा सरन तो विदेशी माल के बहुत बड़े व्यापारी थे | एक रात अचानक आधी रात जानकी प्रसाद जी के हवेली के दरवाज़ों पर ज़ोरों के दस्तक बज उठी | घर में सभी चौंक कर उठ बैठे | सभी की दिलों में घबराहट और बेचैनी थी के इतनी रात गए क्या हुआ ? कौन है जो इतनी जोर जोर से दरवाज़ों को पीट रहा है | घर के नौकर ने जाके पुछा,

"कौन है भैया इतनी रात गए ?"

बहार से आवाज़ आई, "भैया जल्दी से दरवाज़ा खोलो | गंगा बाबु से मिलना है | जानकी बाबु को बुलाओ | बहुत अनर्थ हो गया है |"

नौकर ने दरवाज़ा खोल दिया | सामने कल्लू नाई खड़ा था | उसके साथ कुछ और लोग भी थे | गंगा सरन जी और उनके पिताजी दौड़ कर दरवाज़े पर आए और पुछा,

"अरे कल्लू तू ! क्या हुआ ? इतने घबराये हुए क्यों हो कल्लू ? कौन सा पहाड़ टूट पड़ा ? आसमान सर पर क्यों उठा रखा है ?"

"बाबूजी अनर्थ हो गया जल्दी चलिए | स्वदेशी आन्दोलन वालों का हुजूम आया था | उसने आपके गोदामों और दूकान सभी की होली कर दी | सब कुछ ध्वस्त हो गया | जल कर खाख हो गया | कुछ भी नहीं बचा | हमने समझाने की बहुत कोशिश की परन्तु किसी ने एक न सुनी | और तो और उन्होंने बाज़ार की और भी कई दुकाने फूँक डालीं जो विदेशी माल का व्यापार करते थे |"

कल्लू की बात सुनकर सबको बड़ा धक्का लगा | किसी ने इसके बारे में सोचा तक न था | ऐसा उनके साथ भी हो सकता है इसका ख्याल किसी के भी ज़हन में आज तक नहीं आया था | वो शहर के बड़े व्यापारियों में से एक थे | ऊपर तक उनकी पहुँच थी | वे आश्वस्त थे की उनके ऊपर कोई आंच नहीं आएगी | सभी तुरंत मिलकर बाज़ार के लिए निकल पड़े | साथ जाते वक़्त आधे रस्ते ही जानकी प्रसाद जी को अतितीव्र ह्रदयघात हुआ | दूकान पहुँचते पहुँचते ही उनकी हालत काफी बिगड़ गई और उनके प्राण पखेरू वहीँ ब्रह्मलीन हो गए | गंगा सरन कुछ समझ नहीं पा रहे थे | उनके साथ इतना कुछ अचानक हो गया था के वो कुछ भी सोचने, समझने और कहने की स्तिथि से परे जा चुके थे | वो निःशब्द, मौन हुए निष्क्रिय, प्राण विहीन अपनी पिता को एक टक देख रहे थे और दूसरी तरफ ख़ामोशी के साथ स्थिर खड़े अपनी बरसों की मेहनत को धधक धधक कर स्वाह होते हुए | उनके स्वर मौन थे और दिमाग शांत हो चुका था | किसी मूक दर्शक की भांति अपने सामने घटने वाली नियति की लीला को वो समझ नहीं पा रहे थे |

किसके लिए रोयें | पिता की अकस्मात् मृत्यु होने पर या फिर अपने जीवन के समस्त परिश्रम से अर्जित पूँजी के भस्म हो जाने पर | ऐसी परिस्थिति में उनकी मनोदशा अत्यंत वेदना पूर्ण थी | उनके पिताजी शायद खुशकिस्मत थे के परलोक सिधार गए थे | परन्तु गंगा सरन जी की अवस्था न जीवित में थी न मृत में |  क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.
 

2 टिप्‍पणियां:

  1. कल प्रवास पर था-
    काफी कुछ छूट गया -
    आभार प्रिय तुषार ||

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर कहानी क्रम,हर एक कड़ी का अपना ही महत्व है.

    जवाब देंहटाएं

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