सोमवार, फ़रवरी 04, 2013

नीति - अंतिम भाग

"प्रताप!!!" क्षुब्ध खड़ी नीति के अधरों से नाम निकल गया |

प्रताप भी उसको ऐसे सामने देखकर दंग रह गया |

तभी पीछे कैश काउंटर से आवाज़ आई, "मैडम पैसे"

"हाँ, अभी देती हूँ", कहते हुए उसने प्रताप की तरफ देखा | प्रताप ने तुरंत पांच रूपये पकड़ा दिए | अपने सामान के साथ उसने नीति का सामन भी उठा लिया और बहार आ गया |

नीति भी उसके पीछे पीछे सर झुकाए चली आई | बहार आकर प्रताप ने पुछा, "कॉफ़ी?"

उसने चुप चाप सर हिला कर रजामंदी दे दी और बाईक पर बैठ गई | प्रताप हाईवे के उसी ढ़ाबे पर पहुँच गया जहाँ कभी वो दोनों साथ बैठ कर घंटो गुज़ारा करते थे और चाय नाश्ता किया करते थे |

ढ़ाबे पर पहुँचते ही प्रताप ने आवाज़ लगाई, "प्राजी, दो चा स्पेशल होर मट्ठी ओह वि स्पेशल, वेखो आज कौन आया है"

ढ़ाबे का मालिक दोनों से भली भांति परिचित था | सालों का रिश्ता जो था चाय, मट्ठी और ढ़ाबे का |

"खुशामदीद, जी आया नु, आओ जी आओ | बैठो | अज चाँद किथों निकल आया बादशाहों ? वड्डे अरसे बाद | साड्डी याद किथों लाब्बाई ? होर दस्सो की हाल चाल ? सब तों चंगा ? ओये अज तो मैडम जी वि आए हैं | धन भाग हमारे जो तुस्सी पधारे |"

"चंगा प्राजी, अज वादिय सी चा पिलवा दो" प्रताप ने कहा

"बैठो जी बैठो | हुने आर्डर भिजवाता हूँ | ओये छोटू, टेबल पर कपडा मार, भैया दा आर्डर ले कर आ, छेती, स्पेशल चा मलाई मार के, गरम मट्ठी साथ में |"

इस सब के बीच नीति चुप चाप खड़ी पुराने दिनों में खो गई थी | प्रताप ने कहा, "बैठो" | नीति नज़रें झुका के बैठ गई |

प्रताप इस नीति को देख कर हैरान था | कोयल सी चहकने वाली, आज इतनी खामोश कैसे है | उसने हिम्मत कर के पुछा, "और कैसी हो ? यहाँ  कैसे ? हाउस में सब कैसे है ?"

यूँ तो नीति के पास कहने को बहुत कुछ था | पर आज जुबां लफ़्ज़ों का साथ नहीं दे पा रही थी | वो खामोश रही | मौन आज वो सब कुछ कह रहा था जो उसने कभी शब्दों में भी बयां न किया होगा | प्रताप समझ गया था कुछ दिक्कत है | मामला बहत गंभीर है |

ये सब चल ही रहा था के लड़का चाय और मट्ठी ले आया | प्रताप बोला, "अबे यार प्लेट नहीं लाया, जा दो प्लेट भी ले कर आ फटाफट |"

लड़का प्लेट रख कर चला गया | प्रताप ने गिलास से चाय प्लेट में कर दी और नीति के आगे खिसका दी | "

"शुरू करें ?"

नीति के आँखों से सैलाब उमड़ पड़ा | वो धीरे से रुंधे गले से बोली, "तुम्हे आज तक याद है ?"

प्रताप बीच में बात काटते हुए बोला, "प्लेट में चाय सुड़कने का मज़ा ही कुछ और है, क्यों ठीक कहा न ?"

नीति की नम आँखों से बहते आंसु की बूँद को छूती उसके होटों की मुस्कराहट और गालों की लाली ने स्वयं जवाब दे दिया था |

नीति थोड़ा रिलैक्स हुई और प्रताप को आपनी कहानी सुनानी आरम्भ की | उसके हर्फ़-ब-हर्फ़ प्रताप के दिल में नश्तर जैसे चुभ रहे थे और उसकी लाचारगी को भेद रहे थे | वो अपने को अन्दर ही अन्दर कोस रहा था | अगर उस समय वो पीछे नहीं हटा होता तो आज नीति की ये हालत न होती | अचानक नीति बोलते बोलते रुक गई | उसने पुछा, "क्या हुआ ?" प्रताप बोला, "कुछ नहीं | अब आगे क्या सोचा है ?"

नीति ने कहा, "कुछ नहीं, अगले बुधवार तलाक की आखरी तारीख है | उसके बाद सब कुछ खत्म | बेटी का दाखिला नए स्कूल में करवा दिया है | बस फिर मैं और बेटी ज़िन्दगी को फिर से जीना सीखेंगे | अच्छा सुनो, समय बहुत हो गया है | मेरी बेटी स्कूल से आती होगी | वापस चलें |"

प्रताप ने सर हिला दिया और दोनों निकल पड़े | प्रताप ने नीति को गली के बहार ही छोड़ दिया और निकल गया | रस्ते भर वो अब नीति के बारे में ही सोच रहा था और समय को धिक्कार रहा था | कोई इंसान समय के हाथों इनता मजबूर कैसे हो सकता है | एक वक़्त वो था जब वो मजबूर था आज नीति को भी समय ने उसी स्तिथि में ला पटका है | सारा समय वो बस यही सोचता रहा के कैसे वो नीति के जीवन में खुशियाँ वापस ला सकता है |

उधर नीति की भी यही हालत थी | वो सोच रही थी के उसे अपनी बातें प्रताप से नहीं बतानी चाहियें थी | उसका भी परिवार होगा | ऐसा न हो के मेरे कारण उसके जीवन में कोई तूफान खड़ा हो जाये | कितनी बेवक़ूफ़ हूँ मैं | जल्दी बाज़ी में वो प्रताप का नंबर लेना ही भूल गई थी | और उसके बारे में पूछना भी |

समय कैसे गुज़र गया पता भी न चला | तलक का दिन भी आ गया | नीति को सुबह ही कोर्ट के लिए निकलना था | वो घर से निकली और गली के बहार ऑटो ढूँढ रही थी के उसकी नज़र सड़क के कोने में खड़े प्रताप पर पड़ी | वो दंग रह गई के प्रताप वहां क्या कर रहा है ? प्रताप के पास पहुंची और कहा, "तुम?"

प्रताप बोला, "तुमने बताया था न के आज फाइनल हियरिंग है, तो मैं..." अभी वो बात खत्म भी न कर पाया था के नीति बोल पड़ी, "अभी नहीं, देरी हो रही है, बाद में बात करुँगी",  प्रताप की शर्ट की जेब से पेन निकल कर उसके हाथ पर अपना नंबर लिख दिया और ऑटो मैं बैठ कर चली गई |

तलक हुए अब एक महीना बीत गया था | नीति इस झटके से उबरने की कोशिश में उलझी पड़ी थी | न खाने का होश था न पीने का | बस बेटी और वो, दोनों एक दुसरे का सहारा थे | बाकि रिश्ते नातेदार भी थे पर वो भी कब तक साथ देते | सब अपने परिवार में मस्त थे | माता पिता के न होने पर अकेली लड़की का साथ कौन देता है | इस समाज में अकेली लड़की होना बहुत बड़ी सज़ा है | हर इंसान उसे कमज़ोर समझ कर उस पर हाथ रखने और उसके घर में घुसने की कोशिश करता है | उनकी निगाहों से साफ़ दिखाई देता के उनकी मंशा क्या है | ऐसे में नीति को अकेले इस सब का सामना करना सही में चुनौती भरा काम था वो भी एक चौदह बरस की बेटी के साथ |

अचानक एक दिन उसके मोबाइल की घंटी बजी | उसने फ़ोन उठाया और बोली, "हेल्लो कौन ?"

सामने से आवाज़ आई, "प्रताप, मिलना है अभी बोलो कहाँ और कब मैं लेने आ जाऊंगा | बहुत ज़रूरी है |"

जगह फाइनल हो गई और प्रताप उसे लेने आया और फिर दोनों इस्कोन मंदिर चले गए |  मंदिर में कदम रखते ही प्रताप ने नीति का हाथ पकड़ा और अन्दर ले गया | दर्शन किये, परिक्रमा लगाई और बहार आकर चबूतरे पर बैठ गए | इससे पहले नीति कुछ कह पाती प्रताप ने कह दिया, "मुझसे शादी करोगी ?"

नीति ने कहा,"मेरी बेटी है | वो मेरे से भी बुरे दौर से गुज़र रही है | चुपचाप रहती है | पढाई में भी पिछड़ रही है | गुमसुम रहती है | बहुत सहमी रहती है | खुलकर बात नहीं करती | कभी हंसती नहीं | किसी के साथ खेलती नहीं | घुलती मिलती नहीं | उससे पूछे बिना नहीं कह सकती कुछ भी | ये फैसला मेरी बेटी ही लेगी अगर लेना होगा तो | तुम्हे अपनाना शायद उसके लिए मुश्किल होगा | मुझे वक़्त चाहियें |"

प्रताप ने कहा, "बेटी से मिलना है | आज ही | मुझपर भरोसा है तो चलो अभी |"

नीति बिना कुछ बोले प्रताप को सुहानी से मिलाने ले गई | प्रताप का व्यक्तिव सही में आकर्षक था | उसकी सकारात्मक सोच और प्रभावी शख़्सियत सभी को उसका दीवाना बना देती थी | ये बात नीति को भली भांति ज्ञात थी | उस दिन उसने कई घंटे नीति और सुहानी के साथ बात करते बिताये |

रात को सुहानी ने कहा, "मम्मा, अंकल बहुत अच्छे हैं | आई लाइक हिम अ लौट | वो फिर कब आयेंगे ?" नीति हैरान थी जो लड़की आसानी से किसी से बात तक नहीं करती थी वो प्रताप को इतना पसंद कैसे करने लग गई | पर वो खुश थी क्योंकि वो भी यही चाहती थी |

फिर क्या था मुलाकातों का सिलसिला बढ़ता गया | प्रताप ने उन्हें दुःख के दिनों से बहार आने में बहुत मदद की | अब तो सुहानी भी उससे बहुत प्यार करने लगी थी | उसकी हर बात मानती और जो भी वो समझाता उससे ध्यान से समझती और फॉलो करती | वो भी एक पिता की तरह उसका ख्याल रखता था | ऐसे करते कब साल गुज़र गया पता भी न चला | ज़िन्दगी की धुरी अब पटरी पर आने लगी थी |

एक दिन नीति ने दीपक को फ़ोन करके प्रताप के बारे में बताया | दीपक ने सुना तो बहुत खुश हुआ | वो भी दिल ही दिल में यही चाहता था के नीति अपनी ज़िन्दगी को दूसरा मौका दे और अगर इस पारी में प्रताप उसके साथ है तो सब ठीक ही होगा | वो भी इस फैसले में नीति के साथ था |

सुहानी का जन्म दिवस आया | प्रताप एक सुन्दर सा केक बनवा कर उसके लिए लाया और बहुत से खिलौने भी | शाम को सब साथ थे | नीति ने केक काटने से पहले सुहानी से पुछा के उसे अंकल का गिफ्ट और केक पसंद आया ? उसने जवाब में कहा, "हाँ पसंद आया पर उसे कुछ और भी चाहियें |"

प्रताप ने पुछा, "बोलो डिअर, क्या चाहियें ? तुम्हारे लिए सब कुछ हाज़िर है, बस आवाज़ करो"

सुहानी बोली, "आप सोच लो, जो बोलूंगी मिलेगा न, पक्का ?"

"हाँ मेरे चाँद बोलो तो" प्रताप ने उसे गले से लगा कर कहा

सुहानी ने धीरे से उसके कान में कहा, "क्या आप मेरे पापा बनेंगे?" ये बात सुनकर तो प्रताप की ख़ुशी का ठिकाना न रहा | उसकी आँखें छलक गई | उसने सुहानी को कस कर अपनी बाहों में भर लिया और कहा, "ज़रूर बेटा, आप कहते हो तो ज़रूर पर मम्मी से तो पूछ लो | क्या वो रेडी हैं ?"

नीति चुप चाप खड़ी देख रही थे के इन दोनों के बीच आखिर क्या खिचड़ी पक रही है के तभी सुहानी ने पुछा, "मम्मी, अगर अंकल मेरे पापा बन जाएँ तो आपको कोई प्रॉब्लम तो नहीं है?" नीति के पास कोई जवाब न था वो सुहानी के सवाल पर बुत बनी खड़ी थी और प्रताप को देख रही थी | प्रताप चुप चाप खड़ा मुस्करा रहा था | नीति समझ नहीं पा रही थी आखिर ऐसा हुआ कैसे | क्या जादू चलाया | आज उसे कन्फर्म हो गया था के प्यार और सहजता में जो आकर्षण है वो जीवन में और किसी चीज़ में नहीं है | एक दिन प्रताप के प्यार ने उसे बदल के रख दिया था और आज उसकी बेटी को भी |

सुहानी बार बार पूछ रही थी और आख़िरकार नीति ने हामी में सर हिला दिया |  उसे अपने जीवन का सबसे बहुमूल्य तोहफा मिल गया था और सुहानी को भी | वो बहुत खुश थी | प्रताप और नीति भी उसकी ख़ुशी से बहुत खुश थे |

-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

5 टिप्‍पणियां:

  1. धाराप्रवाह कहानी,बहुत सुंदर सुखद अंत,,,,बधाई,,

    RECENT POST बदनसीबी,

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर समापन आपके लेखन में वर्रण करने की परिवेश बुनने की अद्भुत क्षमता है पात्रों के अनुकूल भाषा का बेहतरीन इस्तेमाल इस समापन क़िस्त में भी हुआ है अंत में एक नै ज़मीन तोड़ता हुआ

    संबंधों की .

    जवाब देंहटाएं
  3. भदौरिया जी और शर्मा जी आप दोनों को तहे दिल से शुक्रिया | शर्माजी क्षमा चाहूँगा आपका कमेंट जो है उसका अंत मुझे सच में समझ नहीं आया | कृपा कर समझाने का प्रयत्न करें | आभार |

    जवाब देंहटाएं
  4. सुखान्त वाली अच्छी लिखी गई है कहानी ||
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर, अद्भुत लेखन ! कथा , चरित्र , पात्र , चित्रण सभी कुछ अपने साथ जोड़ रहा है ....बहुत अच्छा लिख रहे हो ...स्नेहाशीष !

    जवाब देंहटाएं

कृपया किसी प्रकार का विज्ञापन टिप्पणी मे न दें। किसी प्रकार की आक्रामक, भड़काऊ, अशिष्ट और अपमानजनक भाषा निषिद्ध है | ऐसी टिप्पणीयां और टिप्पणीयां करने वाले लोगों को डिलीट और ब्लाक कर दिया जायेगा | कृपया अपनी गरिमा स्वयं बनाये रखें | कमेन्ट मोडरेशन सक्षम है। अतः आपकी टिप्पणी यहाँ दिखने मे थोड़ा समय लग सकता है ।

Please do not advertise in comment box. Offensive, provocative, impolite, uncivil, rude, vulgar, barbarous, unmannered and abusive language is prohibited. Such comments and people posting such comments will be deleted and blocked. Kindly maintain your dignity yourself. Comment Moderation is Active. So it may take some time for your comment to appear here.