के तारों को
वीणा मत बनने देना
भगवन
क्योंकी वह वीणा
जो स्वर निकलती है
ये परिवेश उसे
नहीं स्वीकार पायेगा
स्वयं मैं भी
पथराया सा
अनजान रास्ते
पर बिना स्वर के
उस वीणा को
छेड़ देता हूँ
जिसके स्वर से
ईश्वर तुझे भी रोना
न आ जाये
वो दर्द तेरी
पत्थर की बुत
को भी तोड़ देगा
देख अपनी वीणा को
जो तूने मुझे सौंपी है
बजाने के लिए
एक नियत
स्वर दे
जिससे मैं
आठों पहर
तेरी वीणा से
तेरे ही राग
गया करूँ
मेरे मन मस्तिष्क
को आयाम दे
जिससे मैं कोई
मंजिल देख सकूँ
भावों का संगम सराहनीय है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावना... सुन्दर शब्द ....सुन्दर काविता..वाह!
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत शुक्रिया
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