बुधवार, जनवरी 23, 2013

दुविधा

दुविधा कब तक है जीवन की
दुविधा कब से है यह मन की
दुविधा है ये जन्म जन्म की
आकर जाना, जाकर आना
घट-घट वासी और निरंतर
मिटा धारणा मन की
जब चाहे तब घर छोड़ना
जब चाहे तब मिल जाना
ऐसी दशा नहीं चाहियें
ऐसा मरण नहीं चाहियें
व्यथित दशा है इस मन की
प्यासी लालसा नहीं चाहियें
दे दो मुक्ति दीनन जी
मेरी दीनता तुम्हे पुकारे
दे दो मुक्ति इस मन की
दुविधा कब तक सुलझेगी
इस मन की !!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. sahi likha hai aapne ..yah duvidha hi jiivan men kitani hi baar pairon men bediya daal deti hai ...sundar rachna..

    जवाब देंहटाएं
  2. सुंदर रचना |आपके ब्लॉग को यहाँ शामिल किया गया है- ब्लॉग"दीप"

    जवाब देंहटाएं
  3. भावपूर्ण अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  4. आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद | दिल से आभार व्यक्त करता हूँ | आप लोगों की ऐसी ही हौसलाफ्जाई के चलते मैं आगे भी लिखने का प्रयत्न करता रहूँगा |

    जवाब देंहटाएं
  5. सशक्त और प्रभावशाली रचना.....

    जवाब देंहटाएं

कृपया किसी प्रकार का विज्ञापन टिप्पणी मे न दें। किसी प्रकार की आक्रामक, भड़काऊ, अशिष्ट और अपमानजनक भाषा निषिद्ध है | ऐसी टिप्पणीयां और टिप्पणीयां करने वाले लोगों को डिलीट और ब्लाक कर दिया जायेगा | कृपया अपनी गरिमा स्वयं बनाये रखें | कमेन्ट मोडरेशन सक्षम है। अतः आपकी टिप्पणी यहाँ दिखने मे थोड़ा समय लग सकता है ।

Please do not advertise in comment box. Offensive, provocative, impolite, uncivil, rude, vulgar, barbarous, unmannered and abusive language is prohibited. Such comments and people posting such comments will be deleted and blocked. Kindly maintain your dignity yourself. Comment Moderation is Active. So it may take some time for your comment to appear here.