रात के अँधेरे में
जब तुम
सो जाते थे
तब एक आत्मा
भटकती थी
एक घर की
तलाश में
जहाँ मुझ
प्यासे
को पानी, पानी
चाहियें था
कुएं की
छाँव चाहियें थी
पीपल के वृक्ष की
छैया पर
जब तुमने
दिन के
उजाले में
वो घर दिया
तब वहाँ
न तो
पीपल ही था
न था वह
कुआँ
मेर प्यास
एक प्यास ही
रह गई
रह गई
एक भटकन
जो मेरे शरीर में
रहते हुए भी
अहसास कराती है
उस स्वप्न की
जिसकी छाँव
जिसकी प्यास
की मुझे
अनंत जीवन तक
तलाश थी
क्यों
हे नियति
मैं तुझसे
पूछता हूँ
क्या ज़रुरत
थी मुझे
उजाले में
स्वप्न दिखने की
जबकि तू
जानता था
कुआँ और पीपल
मुझे कभी
वापस नहीं
मिल सकता
गहन भाव लिए सुंदर रचना ....
जवाब देंहटाएंसाभार !
धन्यवाद
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