शनिवार, फ़रवरी 02, 2013

नीति - भाग ३

देहलीज़ के उस पर एक दूसरी दुनिया थी | अनजान लोगों की भीड़ से भरी एक ऐसी दुनिया जिसकी परिकल्पना नीति ने कभी नहीं की थी | हर एक इंसान जो उस चौखट के पार खड़ा था एक नए रिश्ते का बोझ उस पर लादने तो तयार था | जैसे तैसे हिम्मत जुटा कर नीति ने ग्रहप्रवेश कर तो लिया लेकिन उन नए चेहरों की भीड़ में वो अभी भी उसी एक चेहरे को तलाश रही थी जिसकी ख्वाइश उसने हमेशा से की थी | सभी रीती रिवाज़ों और रस्मों को पूरा करते काफी रात हो गई थी | थकान के मारे चूर हो चुकी नीति अपने कमरे में पहुँचते ही बिस्तर पर निढ़ाल हो गिर पड़ी और कब आँख लग गई पता ही न चला |

एक नई सुबह के साथ ब्याहता जीवन का प्रथम दिवस आरम्भ हुआ | रंजीत ने उठते ही चाय की फरमाइश कर दी | नई नवेली दुल्हन की तरह वो चुपचाप उठी और जल्दी से रसोई घर में जा पहुंची | ललिता देवी उसकी सास ने टेडी निगाहों से उसकी ओर देखा और तुनक कर बोली,

"नीति, नहाये बिना हमारे यहाँ रसोई घर में कोई कदम नहीं रखता | तुमने रसोई को अपवित्र कर दिया | बेटा अब बहार जाओ और महाराज से बोल दो क्या चाहियें |"

"महाराज, सुनते हो महाराज, गंगाजल छिड़क कर रसोई को पवित्र कर दो और नीति को जो चाहियें दे दो |"

नीति "जी मम्मी, आगे से ख्याल रखूंगी | मुझे मालूम नहीं था |" कहते हुए रसोई से बहार जाकर खड़ी हो गई |

महाराज ने चाय उसके हाथों में थमा दी और वो अपने कमरे में चली गई | उसे इस बात का अंदेशा भी न था के जो उसने अभी अभी देखा था वो सिर्फ ट्रेलर था पूरी पिक्चर तो अभी बाकी थी | धीरे धीरे उस पर किन मुसीबतों का पहाड़ टूटने वाला है इससे वो पूरी तरह से अनजान थी | वो बेचारी तो प्रताप की यादों को भुलाकर रंजीत की दुनिया बसाने की कोशिश में ही उलझ कर रह गई थी | समय गुज़रा और ज़िन्दगी रोजमर्राह के कामों के साथ शुरू होने और खत्म होने लग गई | सुसराल के पचास काम और सुसरालईयों की फरमाईशों के चलते अब उसे अपने लिए वक़्त निकलना मुश्किल होने लगा था | सुबह से शाम और शाम से रात कब हो जाती पता भी नहीं पड़ता था | सभी के मूड को ठीक करने और सभी को खुश करने की कोशिश में वो गधे की तरह दिन रात काम में लगी रहती | पर फिर भी कोई उससे सीधे मुंह बात तक न करता था |

नीति के ससुर चमन लाल बहुत ऊँचे रसूक वाले व्यक्ति थे | पर वो दो मुहें सांप थे | समाज में दिखाने का चेहरा अलग था और घर पर कुछ और ही कलाकारी होती थी  | ललिता देवी घर में कम और घर से बहार ज्यादा समय व्यतीत किया करती थी | उसे अपनी सोशल लाईफ से ही फुर्सत नहीं मिलती थी | नन्द इतनी नकचढ़ी के जिसका कुछ ठीक नहीं था | नंदोई भी अव्वल नंबर का छिछोरा था |

कुछ समय पश्चात नीति ने एक प्यारी और फूल सी बेटी को जन्म दिया | अभी वो पत्नी के रिश्ते के बोझ से उबर भी नहीं पाई थी के माँ के रिश्ते का भार भी उसके नाज़ुक कन्धों पर आ गया | बेटी का जन्म उसके लिए के नए तूफ़ान को साथ ले आया | बेटी के जन्म से वो बहुत खुश थी | एक नया खिलौना उसके जीवन में आ गया था | पर सुसराल वालों के भवें तन चुकी थीं | उस दिन के बाद फिर ज़ुल्मों को सहने और झेलने का एक नया दौर आरम्भ हुआ |

दिन रात सास - ससुर के ताने | नन्द की नक्शेबाज़ी झेल झेल कर उसे डिप्रेशन रहने लग गया | नंदोई की अश्लील फब्तियों और घिनौनी नज़रों से वो मानसिक तौर पर घ्रणित महसूस करने लग गई थी | रंजीत तक उसके साथ ठीक व्यव्हार नहीं करता था | कभी इस चीज़ के लिए तो कभी उस चीज़ के लिए उसे प्रताड़ना झेलनी पड़ती | बुरी बुरी गालियों का, तानो का और भेद भाव का सामना करना पड़ता | कभी शादी में लाये सामान को लेकर कभी शादी के खान पान को लेकर कुछ न कुछ उसे सुनने को मिलता ही रहता था | कितनी ही दफा उससे इन डायरेक्टली पैसों की मांग की गई | कई बार तो रंजीत ने उसपर हाथ तक छोड़ दिया | पर वो घर की इज्ज़त और बेटी के प्यार के कारण सब बर्दाश्त करती रहती | सब कुछ चुप चाप सहती रही |

इस सब के चलते उसे अगर कुछ सुकून के पल मिलते थे तो वो उसकी बेटी के साथ होते | सुहानी नाम रखा था उसका | और सच में वो बहुत ही सुहावनी थी | मनमोहक थी | गोरी चिट्टी पटाखा से नयन नक्श | उसके साथ समय सागर की लहरों की तरह कैसे बह जाता मालूम ही नहीं पड़ता था | उसको नहलाना, तयार करना, खाना खिलाना, दूध पिलाना, उसके साथ खेलना मस्ती करना, इस सब में वो अपने सारे दुःख दर्द भुला देती थी |

यदा कदा नीति को दीपक की याद भी आ जाया करती थी | हालाँकि वो उससे नाराज़ थी क्योंकि वो नीति की शादी में शामिल नहीं था पर प्यार आज भी बरक़रार था | प्यार का रिश्ता सब गिले शिकवों से बड़ा होता है | अपने दिल का हाल वो और किसी से बाँट भी नहीं सकती थी | जो बात वो दीपक को बतला सकती थी शायद माता पिता से भी न कर पाती | अपना हल-दिल और किसी से इतना खुल कर नहीं कह सकती थी |

दीपक को शुरुवात से ही नीति के इस फैसले पर ऐतराज़ था | वो ज़रा भी खुश नहीं था | उसने नीति को समझाया भी था पर विपरीत हालातों के चलते वही हुआ जो नियति को मंज़ूर था |  उसे न तो रंजीत ही पसंद था न उसका परिवार | यही कारण था के शादी के इतने सालों के बाद भी जो रिश्ता एक जीजा साले के बीच होना चाहियें था वो कभी बन ही नहीं पाया था | दीपक जब भी रंजीत से मिलता उससे एक खलनायक वाली फीलिंग आती और वो किसी तरह बहाना बना कर वहां से निकल जाया करता था | रंजीत की भी दीपक के सामने हवा संट होती थी क्योंकि उसकी शेखी बघारने की आदत दीपक के सामने कभी नहीं चलती थी | दीपक के जवाब सुनकर अक्सर सबके सामने उसकी झंड हो जाया करती थी | इसलिए वो भी दीपक के सामने संभल कर बात किया करता था |

समय पंख लगाये कैसे बीत जाता है पता ही नहीं पड़ता | ऐसे ही घुट घुट मरते जीते १४ साल गुज़र गए | बेटी बड़ी हो रही थी और सभी हालात समझने लगी थी | अब वो भी माँ के साथ देना चाहती थी | अपनी दादी, दादा और पिता की नाइंसाफी को देख कर वो भी सहमी रहती थी | पर उसके बस में भी कुछ न था | आखिर वो एक छोटी बच्ची ही तो थी |

एक दिन अन्याय की सभी सीमायें लाँघ दी गईं | सुसराल वालों ने किसी छोटी सी बात पर नीति को कमरे में बंद कर के मर पिटाई की | उसके कपड़े तलक फाड़ दिए | बेटी के सामने गला दबाने की प्रयास किया | वो तो नीति की ही हिम्मत थी के जो जैसे तैसे अपने और अपनी बेटी को बचाकर वहां से निकल भागी | उसने तुरंत दीपक को फ़ोन किया और आपबीती बयां की | दीपक ने पुलिस में शिकायत करने को कहा | पर वो डरी हुई थी | उसके साथ उसकी बेटी थी | ऐसे में दीपक ने उसका पूरा साथ दिया और उसे घर वापस ले आया |

नीति लौटकर अपने पिता के घर वापस तो आ गई | पर मायके में रहना आसान नहीं था | हज़ार लोग लाखों सवाल | पिताजी और माताजी की तबियत भी बिगड़ रही थी | अभी कुछ अरसा ही हुआ था उसे वहां रहते | अपने साथ हुए हादसे से वो उबर भी न पाई थी के एक और वज्रपात से वो चकना चूर हो गई | उसके माता पिता के अकस्मात् निधन ने उससे पूरी तरह से तोड़ कर रख दिया | और कहते हैं न के भेड़िये हमेशा मौके की ताक में रहते हैं तो यहाँ भी ऐसा ही हुआ | उसके सुसराल वालों ने ऐसे समय पर उसके ज़ख्मों पर नमक और लाल मिर्ची रगड़ दी | उसके ऊपर तलक का केस कर दिया |

नीति का धैर्य भी अब जवाब देने लग गया था | उसे रातों को नींद नहीं आती थी | वो धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार होने लगी थी | हल पल चिड़िया के जैसे चहकने वाली लड़की अब बिस्तर से भी नहीं उठती थी | अँधेरे कमरे में अकेले बैठी रोती रहती | उसकी आँखें सूज कर लाल हो गई थी और उनके नीचे काले धब्बे उबरने लग गए थे | अब वो भी किस्मत से हार मान लेने को तयार थी  | पर भगवान् में उसकी आस्था ने उसे कभी ऐसा करने नहीं दिया | दीपक भी हमेशा उसके होसले को बढ़ावा देता रहता था | ऐसे समय में उसके पास सिर्फ यही कुछ सहारे थे | एक अपनी बेटी का प्यार, भगवन में उसकी अटूट भक्ति और दीपक का साथ उस पर भरोसा |

लेकिन साहब वो कहते हैं न भगवान् के घर देर है अंधेर नहीं | इन सब हालातों के बीच कुछ ऐसा हुआ जिसकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी | वो इतवार का दिन था | बेटी के साथ वो रिलायंस फ्रेश में साग सुब्ज़ी लेने गई थी | भीड़ काफी थी | उसने देखा के आलू के भाव बहुत कम हो गए हैं | तो सबसे पहले वही लेने आगे बढ़ गई | भीड़ में से उसने के व्यक्ति के कंधे पर थपथपाया और कहा,

"एक्स-क्यूज़ मी प्लीज़, क्या आप थोडा साइड देंगे ? मुझे भी आलू लेने हैं | वह धीरे से साइड हो गया और नीति ने सुब्ज़ी ली और काउंटर पर जाकर पेमेंट के लिए खड़ी हो गई | पेमेंट करते वक़्त काउंटर पर उससे पांच रूपये खुले मांगे | उसने पर्स देखा तो छुट्टे पैसे नहीं थे | उसने आस पास देखा शायद किसी के पास चेंज हो | अचानक उसे वही इंसान नज़र आया जिससे उसने पहले रिक्वेस्ट की थी | उसकी कमर नीति की तरफ थी | एक बार फिर होसला जुटा कर वो आगे बढ़ी और उसकी पीठ पर धीरे से हाथ लगाया और कहा,

" एक्स-क्यूज़ मी, सॉरी फॉर ट्रबल | कैन यू प्लीज़ हेल्प मी ? डू यू हैव चेंज फॉर टेन रुपीज़ ?"

वो व्यक्ति धीरे से मुड़ा | उसका मुस्कराता हुआ चेहरा अब नीति की ओर देख रहा था | नीति ने जैसे ही नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा तो सन्न रह गई | वो प्रताप था | क्रमशः

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गुरुवार, जनवरी 31, 2013

स्त्री तेरी यही कहानी

बचपन में पढ़ा
मैथली शरण गुप्त को
स्त्री है तेरी यही कहानी
आँचल में है दूध
आँखों में है पानी
वो पानी नहीं
आंसू हैं
वो आंसू
जो सागर से
गहरे हैं
आंसू की धार
एक बहते दरिया से
तेज़ है
शायद बरसाती नदी
के समान जो
अपने में सब कुछ समेटे
बहती चली जाती है
अनिश्चित दिशा की ओर
आँचल जिसमें स्वयं
राम कृष्ण भी पले हैं
ऐसे महा पुरुष
जिस आँचल में
समाये थे
वो भी महा पुरुष
स्त्री का
संरक्षण करने में
असमर्थ रहे
मैथली शरण गुप्त की  ये
बातें पुरषों को याद रहती हैं
वो कभी तुलसी का उदाहरण
कभी मैथली शरण का दे
स्वयं को सिद्ध परुष
बताना चाहते हैं या
अपनी ही जननी को
दीन हीन मानते हैं
ऐसा है पूर्ण पुरुष का
अस्तित्व...

नीति - भाग २

रस्ते भर दीपक नीति की टांग खींचता रहा | और नीति उसे लातें, घूंसे और गलियां देती रही | और वो हँसता रहा | गज़ब की अंडरस्टैंडिंग थी दोनों में और गज़ब का प्रेम भी | आज तो सगे रिश्तों में भी ऐसी भावना और प्यार देखने को नसीब न हो | प्रताप, दीपक को  बेहद पसंद आया था | वो भी यही चाहता था के नीति को ऐसा ही जीवन साथी मिले | घर वापस पहुंचकर दीपक ने पुछा,

"आगे क्या इरादा है ? सीरियस है या टाइम पास कर रही है?"

नीति सोच में पड़ गई | उसने दीपक से ऐसे संजीदा सवाल की उम्मीद नहीं की थी | उसने खुद भी अभी तक इसके बारे में नहीं सोचा था | दीपक उसके चेहरे के आवभाव से समझ गया था के ये खुद भी अभी तक कन्फ्यूज्ड है | नहीं जानती आगे क्या करना है | उसने सिर्फ इतना ही कहा के, "अब सीरियस हो जा, मजाक का समय गया |" और इतना कह कर वो चला गया |

नीति सारी रात इस बारे में सोचती रही | पर घरवालों को बताने की उसमें ज़रा भी हिम्मत न थी | समाज से पहले उसे घर वालों से डर था | दूसरी बिरादरी का लड़का | पापा तो बिलकुल नहीं मानने वाले | उसे भली भांति ज्ञात था के पापा हार्ट पेशेंट हैं | अगर ये बात सुनकर कुछ उंच नीच हो गई तो मैं सारी ज़िन्दगी अपने आप को माफ़ नहीं कर पाएगी | इसी जद्दोजहद में पता नहीं कब सुबह हो गई पता ही न चला |

अब दिन रात उसे यही फ़िक्र लगी रहती के वो क्या करे | प्रताप से भी मिलती तो थी, दिल तो उसके पास रहता पर दिमाग इसी उधेड़बुन में लगा रहता | एक दिन हिम्मत कर के उसने प्रताप से पूछ ही लिया |

"प्रताप, हम शादी कब करेंगे ?"

प्रताप भी उसके इस सवाल से हैरान रह गया | उसने इस सवाल की उम्मीद इतनी जल्दी नहीं की थी | वो ख़ामोश रहा और कुछ नहीं बोला | दोनों की ख़ामोशी बहुत कुछ कह रही थी पर दोनों मजबूर भी थे, के क्या जवाब दें एक दुसरे को |

दिन बीतते गए  | नीति का कॉलेज भी खत्म होने को था | फाइनल इम्तिहान चल रहे थे और ज़िन्दगी की परीक्षा के लिए भी वो तयार हो रही थी | कॉलेज का आखरी दिन था | वो और प्रताप लंच टाइम पर मिले | करने को बहुत सी बातें थी पर कुछ ऐसा था भी नहीं जिस पर बात करें  | काफी देर तक दोनों खामोश बैठे एक दुसरे का चेहरा तांकते रहे |

यकायक नीति बोली, "मैं चलूँ" |

प्रताप ने चुप्पी तोड़ी और कहा, "मेरे हालत ऐसे नहीं है के अभी शादी के बारे में सोच सकूँ | पिताजी भी बचपन में ही छोड़ कर चले गए थे | अभी तो बहुत कुछ करना है | घर की जिम्मेदारियां भी पूरी करनी हैं | भाई बहनों का भी सोचना है | अभी अपने बारे में नहीं सोच सकता |"

प्रताप की ये बात तीर के जैसे नीति के दिल को अन्दर तक भेद गई | नीति की आँखों में आंसू थम नहीं पाए | फिर भी कोशिश करते हुए रुंधे गले से बोली,

"आई कैन अंडरस्टैंड, चलती हूँ |"

बस वही थी उसकी प्रताप से आखरी मुलाक़ात | कुछ समय बाद नीति के परिवार वालों ने एक लड़का देखकर उसका रिश्ता पक्का कर दिया | लड़का छोटे शहर का था पर पढ़ा लिखा था | नीति के पिता और लड़के के पिता दोस्त थे | नीति को उन्होंने मुंह से माँगा था | लड़के का नाम था रंजीत | नीति ने भी दिल पक्का कर लिया था और शादी के लिए राज़ी हो गई थी |

कुछ दिवस उपरान्त एक अच्छा दिन देख कर दोनों की सगाई कर दी गई | उस दिन आखरी बार प्रताप का फ़ोन नीति के पास आया था |

उसने फ़ोन पर सिर्फ एक ही सवाल किया था, "आर यू एन्ग्गेजड?"

नीति रिसीवर पकडे खामोश खड़ी रही और उसकी ख़ामोशी ने हर सवाल के जवाब दे दिए |

दिवस बीते और नीति की शादी का दिन आ गया | ख़ुशी  से ज्यादा उसके दिल में दर्द था | हालाँकि वो रंजीत से काफी बार मिल चुकी थी | दोनों साथ घूमने फिरने भी जा चुके थे | किन्तु वो दिल का रिश्ता अभी भी नहीं जोड़ पाई थी | इस कमबख्त़ दिल का क्या करती जो हर समय बस प्रताप के बारे में ही सोचता रहता था | इस एक रात के बाद उसकी ज़िन्दगी पूरी तरह से बदलने वाली थी | वो प्रताप से बहुत दूर जाने वाली थी | क्या उसने शादी के लिए हाँ करके सही किया था ? आगे क्या होगा ? क्या वो प्रताप को भुला पायेगी ? क्या प्रताप उसे भुला पायेगा ? शादी के बाद वो रंजीत के साथ खुश रहेगी? क्या रणजीत एक अच्छा पति साबित होगा? क्या रंजीत को प्रताप के बारे में बताना ठीक होगा? क्या वो इस बात को स्वीकार कर पायेगा?  इन्ही सब सवाल जवाब और ज़िन्दगी की उलझनों के बीच उसने रंजीत के साथ सात फेरे तो पूरे कर लिए और सो कॉल्ड शादी भी हो गई |

बिदाई हो गई | गाडी सुसराल पहुँच गई | सुसराल के दरवाज़े पर देहलीज़ पार करने को खड़ी वो अभी भी इन्ही सब सवालों से झूझ रही थी | क्रमशः

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बुधवार, जनवरी 30, 2013

Thought

"Who you are today is not who you will be tomorrow, to understand this fact takes a very long time and a greater understanding of life."

Deep as the sea

Deep as the sea, deeper than the abyss, further than the ocean. Limits are limitless. Abound I find shore. To close to reach land. Land is distant, distant as the stars in the night filled with crowded spectra or a culmination of stars. Profound as my inner emotion that claims no restrain except when beleagured by humans that claim no identity nor will to live. I derail into a smudgery of unexpressed notion that coexists amongst people I love. Why must I express, this to live and survive. Never did a man look back at his sorrows or unrestrained passion to love, live and learn until one set out to decompass his side. Further than his side he survives to crawl on ocean, land and prevail amongs his no believers and people who choose not to love him nor care. He is strong, he is deep, his side no one knows, as to know this would be to be stronger than will, stronger than man, stronger than who we are.

To know you know me is not enough. For I am deep, deeper than you once thought i was. You express no emotions, I express no regret. Together we comfort each other. I only know joy when I server you or make you happy. When I feel your inner passion you make me a part of you that does not go unnoticed. Life is like a puzzle sometimes we embelish on absolute nonsense until we realize time has taken us by surprise. Yet time has no beginning nor end it is a block of space that we claim and accept as per your pretty woman, I often think about you not knowing how profound you really are. I bask in your lips and succumb to you arms and there I find a peaceful ground owes me to be a person. Allows me to be a part of something bigger.

मंगलवार, जनवरी 29, 2013

मुखौटा

मेरी तरफ़ा देख ज़रा
चेहरे पर एक मुखौटा है
मुखौटे का विश्वास न कर
मेरी बात को सुन ले ज़रा
मुझसे कोई सवाल न कर
मेरे झूठ का तू ऐतबार तो कर
जो लिखा है मैंने बस वही तू पढ़
मुझसे तू कोई सवाल न कर
बस शब्दों का ऐतबार तो कर

वो एक नज़र मेरे चेहरे पर
तूने जब जब भी है डाली
क्या पता कभी चलने दी तुझको 
दशा मेरे मन और जीवन की
जितनी हलचल, उतनी पीड़ा
दिल बिलकुल है खाली
सोच के तुझको भी दुःख होगा
हालत अपनी छुपा डाली
मौन सदा रहकर मैं बस
यही सोचता हर पल
शायद अब तो झाँकेगी तू
मेरे दिल के तल तक

मुझे अकेला छोड़ राह तूने भी बदली
जो था मेरा सच वो
तू कभी न समझी पगली
खुश रहे सदा तू
चहके, महेके, सूरज सी चमकाए
कोई अड़चन, कोई पीड़ा
अब निकट तेरे न आए

काश! किसी दिन वक़्त निकले
और मिले तू मुझसे
फिर कानो में धीरे से
ये पूछे तू मुझसे
काहे पहने हो मुखौटा ?
का चाहते जीवन से ?
तब आँखों को मूँद के अपनी
दिल को मैं खोलूँगा
बतलाऊंगा दर्द तुझे मैं
शब्दों में बोलूँगा

हाँ, माना के बहुत दुखद है
मुखौटे संग रहना
पर एही एक कला है बिटिया
जो के सिखलाती है
जियो सदा जीवन को हंस के
दुखी कभी न रहना
पड़े चाहे विपरीत परिस्थिति
में भी मर मर जीना

याद तेरी दिलाते हैं

गीली घास पर चलना
नंगे पावों फिरना
घंटो बातें करना
हर एक बात पे लड़ना 
याद तेरी दिलाते हैं

पराठों पर मक्खन डलना  
आइसक्रीम का मिलना
गर्म चाय की प्याली से
पपड़ाए होठों का जलना
याद तेरी दिलाते हैं

किताबों की मचानें
कुछ भूले बिसरे से गाने
नए नए स्वादिष्ट खाने
बाक़ी सब कुछ बेमाने
याद तेरी दिलाते हैं

जीवन से तमगे पाना
चेहरे का खिलखिलाना
बालक का मुस्कराना
अपनों से दर्द छिपाना 
याद तेरी दिलाते हैं

हाथों में थामे हाथ
अमर बेला का वो साथ
निर्भर एक दूजे पर हम 
आँखों से बहते ग़म
याद तेरी दिलाते हैं

शाम का मध्यम सूरज 
अर्श पर छनती चांदनी
गमलों में नन्ही कोपलें 
सन्नाटे की रागनी
याद तेरी दिलाते हैं

हुज़ूमि दुनिया की भीड़
सियाह रात सी तस्वीर
जुगनू से टिम टिम तारे
चमकते नैन कजरारे
याद तेरी दिलाते हैं

शमां की महक
झींगुरों की चहक
इश्क़िया दहक 
ख़ुदाया रहक
याद तेरी दिलाते हैं

भूरिया सर्द पत्तियाँ
कुरकुरी हवा की मस्तियाँ
इस कविता की पंक्तियाँ
शाम-ए-जीवन की झलकियाँ
याद तेरी दिलाते हैं
याद तेरी दिलाते हैं

भक्ति

भक्ति
जबकि स्वयं
स्त्री स्वरुप है
फिर भी
भक्ति को
क्यों तलाश है
किसी बुत की
जो की
स्वयं में
एक अथाह सागर है
फिर क्या
उसे प्यास है
किसकी
चिरकाल में
अनंत समय तक
क्यों
कोई नहीं जानता

सोमवार, जनवरी 28, 2013

ज़िन्दगी - अंतिम भाग

उस दिन सारी रात आँखों आँखों में ही कट गई | बारिश थम चुकी थी | तूफ़ान आके गुज़र चुका था और नुक्सान भी काफी कर गया था | राम सारी रात वहीँ ठण्ड में बैठा रहा और सोचता रहा के ज़िन्दगी ऐसा मज़ाक उसका साथ ही क्यों कर रही है | हर दफ़ा मैं ही क्यों ? मेरी गलती क्या थी ? और ऐसे कई सवालों के जवाब ढूँढ़ते ढूँढ़ते न जाने कब आँखों आँखों में रात कट गई |

अचानक से सन्नाटा टूटा और एक प्यारी से आवाज़ सुनकर वो चौंक गया | सारा उसकी छोटी बेटी उसके सामने खड़ी थी | उसे देखकर वो मुस्कराया और प्यार से उसके सर पर हाथ फेरा और कहा, "गुड मोर्निंग माई एंजेल, यू वोक उप अर्ली टुडे | क्या हुआ ?"

सारा बोली, ? "पापा स्कूल का टाइम हो गया, जल्दी कहाँ ? जल्दी चलो न वरना लेट हो जायेंगे |"

राम ने तुरंत घडी देखी और ५ मिनट में तयार होकर आ गया | गाडी निकली और सारा को स्कूल छोड़ने चल दिया | रास्ते में सारा ने पुछा,
"पापा, मम्मी कहाँ है ? सोम्य और मम्मी कब वापस आयेंगे ? | आपको मालूम है सोम्य के साथ खेलने में मुझे बहुत अच्छा लगता है | वो मुझे थोडा डांटती तो है और झगड़ा भी करती है पर वो मेरी सबसे अच्छी फ्रेंड भी है | मैं उससे बहुत प्यार भी करती हूँ और वो मेरे से |"

राम के पास उसके मासूम सवालों और बातों का कोई जवाब न था | वो अपने आंसूओं को छुपाये चुप चाप हलकी सी मुस्कान चेहरे पर लिए उसकी ओर देखता और धीरे से सर हिला देता | स्कूल आ गया था | राम ने सारा के माथे पर चूमा और उसे बाय किया और वहां से निकल पड़ा |

अपने घर जाने की बजाये वो सीधा सारिका और सोम्य से मिलने उसके घर पहुँच गया | घंटी बजाई | सारिका के पिताजी ने दरवाज़ा खोला | उनके आव भाव कुछ तुनके हुए थे | वो अन्दर दाखिल हुआ तो पाया सामने सोम्या सोफे पर बैठी है | उसे देखते ही सोम्या मुस्करा दी और पापा पापा कहती उसकी गोद में आ बैठी | अभी २ मिनट भी नहीं गुज़रे थे के सारिका आई और उसे गोद से उठा कर अन्दर ले गई | राम चुप चाप बैठा रहा | उसके कलेजे पर सांप लोट रहे थे | बेटी के होते हुए भी वो उससे मिल नहीं पा रहा था | कुछ नहीं बोला | चुपचाप बैठा रहा और तमाशा देखता रहा | सारिका के पिताजी उसके पास आकर बैठे और कुछ बोलने की चेष्टा करने ही वाले थे , के राम उठ खड़ा हुआ, उसने भरी हुई आँखों से उनकी ओर देखा और प्रणाम कर के वहां से चल दिया | उस समय उसकी बोली से ज्यादा उसकी आँखें बहुत कुछ कह चुकी थी जिसे समझना अब सारिका के पिताजी को था |

राम ऐसा ही था | अपने दिल की बात किसी से ठीक से कभी कह ही नहीं पाता था | ज़्यादातर वो खामोश ही रहता था | रास्ते भर वो गाडी में ख़ामोशी से जगजीत सिंह की ग़ज़ल सुनता रहा | घर आया और फिर से जाके अपने कमरे में चुप चाप बैठ गया | सिगरेट जलाई और इंतज़ार करने लगा के शायद सारिका का फ़ोन आ जाये | सोम्या की दूर होने की वजह से वो और ज्यादा टूट गया था | सोम्या की उन मासूम आँखों को वो भुला नहीं पा रहा था | पापा पापा की आवाज़ अभी भी उसके कानो में गूँज रही थी |  बार बार सोचता के कॉल करके अपने दिल की बात कह दूं पर मोबाइल के बटन पर ही उँगलियाँ रुक जातीं | अब उसे सिर्फ उस सर्वशक्ति में ही विश्वास था | हर समय दिल ही दिल में उनसे प्रार्थना करता रहता के उसके ऊपर आए बुरे वक़्त को बर्दाश्त करने की शक्ति उसे अदा फरमाएं और उसके होंसलें पस्त न होने पायें | ऐसे समय में वो अपना संयम कायम रख पाए |

दोपहर हो गई थी | सारा स्कूल से आ गई थी | आते ही उसने फिर से पुछा पापा, "सोम्या नहीं आई ? मैं उससे नाराज़ हो गई | उसने मेरे से बात भी नहीं की कल से | कब आएगी वो?" ऐसे ही वो पूरे दिन अपने आप से बातें करती रहती और राम ख़ामोशी से बैठा चुप चाप हताशा के साथ अपने साथ होती इस नाइंसाफी को देखता और सहता रहता | उसके भरोसे का खून हुआ था | किसी पर इतना विश्वास करने की सज़ा वो आज भुगत रहा था | पर क्यों ये जवाब उससे आज तक नहीं पता था |

ऐसे ही काफी दिन बीत गए | कोई बातचीत नहीं हुई | वो इंतज़ार में था के शायद फ़ोन आएगा पर कोई खबर नहीं आई | अब उसकी बेचैनी बढ़ने लगी थी | हालाँकि सारा उसके पास थी पर सोम्या की कमी उसे हर पर कमज़ोर करती रहती थी | हर एक पल भगवान् से उसके लिए प्रार्थना करता रहता | वो जहाँ भी रहे ठीक रहे | सुखी रहे स्वस्थ रहे | और सबसे ऊपर खुश रहे |

ऐसे ही अरसा बीत गया | न उधर से कुछ बात हुई और न इधर से | आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी पर बुझाने वाला कोई नहीं था | जो भी मिलता उसे भड़काने वाला ही मिलता | बात बिगड़ने वाले हज़ार थे और बात बनाने वाला एक भी न था | फिर इसी बीच एक दिन राम का जन्मदिन आया | वो भूल चुका था के आज उसका जन्मदिन है | ज़िन्दगी के इन उतार चढ़ावों के बीच उसे अपने लिए सोचने का वक़्त ही कहाँ मिला | हालात के थपेड़ों ने उससे ज़िन्दगी जीने की कला बहुत दूर कर दी थी | हर पल उसे एक ही इंतज़ार रहता था और वो अन्दर ही अन्दर घुट रहा था | न किसी से कुछ बात न किसी से कुछ गिला शिकवा करता था | बस अपने आप से और हालातों से झूझने में लगा रहता था | इसके चलते उसके काम और सेहत का भी काफी नुक्सान होने लगा था | पर वो इरादों का मज़बूत इंसान था | उसने कभी भी अपना धर्य नहीं छोड़ा | एक फाइटर था वो | बस जैसे तैसे अपने को संभाल रखा था उसने | जन्मदिन वाले दिन भी वो चुप चाप सुबह से ही बिना बताये कहीं चला गया | सारा और घर के बाकी सभी लोग हैरान थे के सुबह सुबह राम कहाँ चला गया | उसका मोबाइल भी स्विच ऑफ था | सबको फ़िक्र हो रही थी के क्या हुआ ? ऐसे क्यों और कहाँ चला गया ?

शाम तक राम की कोई खबर नहीं थी | पर फिर भी घर के सभी लोगों ने मिलकर उसका जन्मदिन मानाने की तयारी कर ली थी | अब बस उसके लौटने का इंतज़ार था | रात हो गई ९ बज गए | राम का कुछ अतापता नहीं था | सब का दम सूखा जा रहा था | तभी बहार गाडी की आवाज़ आई | सब सतर्क हो गए और घर की सभी लाईटें बंद कर दी गईं | दरवाज़े की घंटी बजी | राम घर वापस आ गया था | बार बार घंटी बजने पर भी किसी ने दरवाज़ा नहीं खोला | फिर उसका ध्यान बत्तियों पर गया | घर में घुप्प अँधेरा था | ये सब देखकर हैरान हो गया और अपनी चाबी से दरवाज़ा खोलकर अन्दर दाखिल हुआ | उसका दिल ज़ोरों के धड़क रहा था | बार बार यही सोच रहा था के लाईटें बंद क्यों है ? सब लोग कहाँ गए ? क्या हो गया ?

जैसे ही राम ने हॉल में कदम रखा तुरंत ही सारा कमरा जगमगा उठा | हर तरह रंग बिरंगी रौशनी, साज सजावट, गुब्बारे, झालर लगे हुए थे और बीच में टेबल पर केक सज़ा रखा था | सब लोग "हैप्पी बर्थडे टू यू, हैप्पी बर्थडे टू यू" गा रहे थे | पर उसकी आँखें वीरान थीं | जिसके मुहं से वो ये सुनना चाहता था वो कहीं नहीं थे | वो मूक खड़ा ये तमाशा देख रहा था | अपने को सँभालते हुए फिर उसके चेहरे पर एक मंद से मुस्कान झलकी |

"थैंक यू , थैंक यू प्लीज  एंड वेलकम तो माई होम" वो सभी से बोला

सारा उसके पास आई और उसका हाथ पकड़ कर उसे केक तक ले गई | और उसके हाथ में चाकू थमा दिया और बोली,

"पापा, जल्दी से केक काटो न बड़ी जोर के भूख लगी है फिर पिज़्ज़ा और छोले भठूरे भी तो खाने हैं "

उसकी इस मासूमियत को देख कर सब हंस पड़े | राम भी जोर से हंस दिया | बोला, "ओके, मेरी माँ अभी काटते हैं चलो |"

केक काटने खड़ा ही हुआ था के पीछे से किसी ने दोनों हथेलियों से उसकी आँखें ढँक ली | वो चुप चाप खड़ा रहा, तभी एक आवाज़ आई,

"पापा, हैप्पी बर्थडे टू यू " ये आवाज़, ये आवाज़ तो सोम्या की थी |

उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, तुरंत उसने अपनी आँखों से हाथ हटाये और मुड़ कर देखा तो सामने सारिका खड़ी थी और साथ में सोम्या भी | इससे पहले के वो अपने मुहं से कुछ कह पता सारिका की हथेली ने उसका मुहं बंद कर दिया और बस आँखों में देखती रही | जो भी गिले शिकवे दूर करने थे वो आँखों ही आँखों में दूर हो गए | सारिका राम से गले लग गई और चारों तरफ तालियों की गडगडाहट गूँज उठी | राम ने अपनी दोनों बेटियों को गोदी में उठा लिया और प्यार से चूमता रहा |

ये उसके जन्मदिन का सबसे बड़ा उपहार था | बस फिर क्या था केक भी कटा और सब ने खूब धूम मचाई | खाना पीना, हंसी मजाक, गाना बजाना सब जम कर हुआ | रात कैसे बीत गई पता ही नहीं चला | दिल ही दिल में राम भगवान् को बहुत बहुत धन्यवाद् दे रहा था और उनका आभार व्यक्त कर रहा था | उसके जीवन की माला को बिखरने से बचने वाले वही थे |

और उसके बाद आज तक उसके जीवन में ऐसी काली रात और ऐसे सियाह दिन फिर कभी नहीं आए | सभी उलझाने बिना कुछ बोले और कहे ही निपट गईं | न उसने सारिका से कोई सवाल किया और न कोई जवाब माँगा | सारिका भी हंसी ख़ुशी ख़ुद-ब-ख़ुद घर चली आई | उससे भी अपनी भूल का एहसास हो चुका था | और वैसे भी अगर सुबह का भूला शाम को वापस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते |

आज राम का परिवार एक हँसता खेलता, गाता गुनगुनाता परिवार है | एंड दे लिव्ड हैप्पिली एवर आफ्टर |

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आशा है कहानी आपको पसंद आई होगी | मेरी दिल से तमन्ना, उम्मीद और प्रार्थना है ऊपर वाले से जैसे राम की ज़िन्दगी में खुशियों के पल लौट आए वैसे ही संसार में समस्त प्राणियों के जीवन की उलझाने और समस्याएं बिना कुछ बोले ही सुलझ जाएँ | कभी भी प्यार करने वालो को आपस में सवाल जवाब करने की नौबत न आए | क्योंकि मेरा ऐसा मानना है के प्यार की ज़बान नहीं होती | प्यार सिर्फ और सिर्फ एक एहसास है | जो बातें एक बंद ज़बान और भरी हुई आँखें कह सकती हैं वो जीवन में कोई भी शब्द बयां नहीं कर सकते | खुश रहिये | प्यार करते रहिये |
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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

रविवार, जनवरी 27, 2013

नीति - भाग १

पात्र :
प्रताप : नायक / नायिका का प्रेमी  
नीति   : नायिका
दीपक : नायिका का भाई
सुहानी: नायिका की बेटी
रंजीत: नायिका का पति
ललिता देवी: नायिका की सास
चमनलाल: नायिका के ससुर

नीति जैसा सुन्दर नाम वैसा ही सुन्दर चरित्र | मिडिल क्लास में जन्मी, एक शिष्ट परिवार में पली, २० साल की, बड़े शहर की एक छोटी सी लड़की | पिताजी का अच्छा खासा कारोबार था | माताजी छोटे शहर से अवश्य थी पर बहुत ही शालीन, ममतामयी और समझदार थी | उसकी ४ और बड़ी बहने थी और वो उनमें सबसे छोटी थी | नीति सभी की लाडली थी | औसत कद काठी, सांवला रंग और बुलंद हौसलों वाली जीवंत तितली | शांत इतनी के यदि सड़क चलते कोई कुछ कह दे या नज़र उठा कर देख भी ले तो बस समझो के उसकी शामत आई | फिर तो जो चीज़ हाथ में आ जाती उसी से उस मनचले का स्वागत सत्कार हो जाता | कभी कभार एक आदा थप्पड़ या घूँसा भी रसीद कर दिया जाता था | एक दम संस्कारी और पूरी तरह से भारतीय परिधान प्रेमी लड़की | जब भी घर से निकलती तो बस एक अदद कमीज़ या टी-शर्ट और जींस, पैरों में हवाई चप्पल नहीं तो कानपुरी | साज श्रृंगार ऐसा के सामने वाला देख ले तो बस मन्त्र मुग्ध हो जाये | न लिपस्टिक, न नेलपॉलिश, न चूड़ी, न झुमका, न नथनी बस एक घडी जो कलाई पर बंधी होती थी जैसे समय देखना कोई मजबूरी हो | अगर समय नहीं होता संसार में तो शायद वो घडी भी कभी दिखाई नहीं देती और वो समय पर भी एहसान करने से बच जाती | उसके हेयर स्टाइल का तो कहना ही क्या था | किसी भी अच्छे खासे लड़के को काम्प्लेक्स आ जाये उसके बाल देख कर | कुछ ऐसी ही थी नीति एक दम बिंदास, आजाद ख्याल, बेबाक और स्पष्ट विचारों वाली | रोज़ सुबह साइकिल पर सवार होकर अपने कॉलेज पहुँच जाया करती और मस्ती किया करती थी | टिपिकल लड़कियों वाले कोई भी गुण और शौक़ उसे दूर दूर तक छु कर भी नहीं निकले थे | वो अबला नहीं निरी बला थी जो एक बार पीछे पड़ जाये तो छटी का दूध, नानी, दादी, परदादी इत्यादि सभी को साथ याद दिला दे | ज़रुरत पड़ने पर मदद करने में सबसे आगे | दूसरों के हक के लिए लड़ने मरने में सबसे तेज़ | एक शब्द में अगर उसके बारे में कहूँ तो वो एक दम "झल्ली" हुआ करती थी | टिक्की, चाट पकोड़ी, गोल गप्पे, आइस क्रीम, चूरन और तरह तरह की सुपारी खाना उसके शौक़ हुआ करते थे | चूरन खरीदने के लिए तो वो कहीं भी जा सकती थी बस कोई नई वैरायटी का चूरन बता दे कोई | बस एक बात जो उससे हमेशा खाए जाती थी के "हाय! मैं कहीं मोटी तो नहीं होती जा रही हूँ ?" | इसकी बैचैनी और चिंता उसे जब भी रहती थी और आज भी बरक़रार है | उसकी सबसे बढ़िया बात जो उसे सबसे अलग करती थी वो ये के समय कैसा भी हो वो हँसना कभी नहीं छोडती थी | वो मुस्कान उसके चेहरे पर हमेशा बनी रहती थी जो उसकी शक्सीयत को सबसे जुदा करती थी |

उन्ही दिनों एक पार्टी में एक दिन अचानक नीति की मुलाक़ात प्रताप से हुई | नीति की सहेली के भाई का दोस्त था प्रताप | एक कॉमन फ्रंड के ज़रिये दोनों की जान पहचान हुई थी | पहले पहल तो दोनों में इतनी तकरार होती थी के पूछो मत | अगर कभी दोनों किसी पार्टी या गेट टूगेदर में मिल भी जाते तो आसमान सर पर उठा लिया करते थे | दोनों कभी भी एक दुसरे की बात से सहमत नहीं होते थे और बहस करते रहते थे | यही बहस करते करते दोनों को धीरे धीरे एक दुसरे की आदत पड़नी शुरू हो गई | उन दोनों को एक दुसरे की कंपनी पसंद आती तो थी पर कहीं न कहीं कुछ कमी थी | नीति की मनभावन अदाओं, उसके पहनावे, उसके अंदाज़, उसकी बातें, उसका अपनी बात को प्रूव करने के लिए किसी भी हद्द तक बहस करना, और हमेशा खुश रहना इन्ही सब बातों की वजह से शायद ही कोई ऐसा लड़का होता जो प्रभावित न होता और उस पर क्यों न मर मिट जाता | वही हाल प्रताप का था | मन ही मन वो उससे चाहने तो लगा था पर जिस प्रेमिका की छवि उसने अपने मन मंदिर में बसा रखी थी नीति उससे कोसों दूर थी | वो नीति को उस परिवेश में अपने सामने खड़ा देखना चाहता था | पर उसने ठान ली थी के वो नीति को बदल कर रहेगा और फिर ही उसके सामने इज़हार-ए-मोहब्बत करेगा |

धीरे धीरे मेल जोल बढ़ने लगा | प्रताप की कंपनी का असर नीति पर भी दिखाई देने लगा | उसकी बातों के आकर्षण से वो बहुत ही प्रभावित हुई | धीरे धीरे उनकी दोस्ती गहरी होती चली गई |  अकेली मुलाक़तों का सिलसिला शुरू हुआ | एक साधारण दोस्ती से बढ़ते बढ़ते कब वो एक दुसरे को पसंद करने लग गए पता नहीं चला | और एक दिन प्रताप ने उसके सामने इज़हार-ए-इश्क कर दिया | मन ही मन वो भी तयार थी | उसने झट से हाँ कर दी | प्रताप के प्यार में उसने अपने नारी स्वरुप को पहचाना शुरू किया | प्रताप के कहने पर उसने अपने को धीरे धीरे बदलना शुरू कर दिया | बाल बढ़ाये, सूट पहनना शुरू किया | बोली में शालीनता और सौम्यता लाइ | कान भी छिदवा लिए | चूड़ियाँ पहनने लग गई और तो और शर्मना भी आ गया | तो साब अब हमारी नीति टॉमबॉय से एक सुन्दर भारतीय नारी और प्रेमिका में तब्दील हो चुकी थी |

नीति का एक भाई था दीपक | हालाँकि सगा नहीं था पर था सगे से भी ज्यादा | दोनों में उम्र का फासला भी ज्यादा नहीं था | यही कोई ४-५ साल का अंतर होगा दोनों में | पर दोनो के बीच ट्यूनिंग कमाल की थी | निति की ज़िन्दगी के हर फैसले में उसका साथ देना और हर मुश्किल मोड़ पर उसके साथ डट कर खड़े रहना उसका जन्म सिद्ध अधिकार था | एक गज़ब की अनकही और अनसुनी बौन्डिंग थी दोनों में | वहीँ नीति भी उसको छोटा समझ कर कुछ ज़रुरत से ज्यादा ही प्यार जाता देती थी | बात बात पर झापड़ रसीद कर देना, सर का तबला बजा देना या फुटबॉल समझ कर लात जमा देना तो मामूली बात हुआ करती थी | दीपक ने भी कभी इसका बुरा नहीं मन क्योंकि वो नीति को दिल से प्यार करता था और बहुत इज्ज़त देता था | आपस में अगर बात करते तो पूरी शिष्टता से गाली गलोच करते, समस्त दुनिया की माँ-बहन, बाप-बेटी एक करना उनकी बातचीत में आम बात थी | दोनों एक दुसरे से महीनो नहीं मिलते थे न ही कोई बात चीत होती थी | पर जब भी मिलते थे तो ऐसी गज़ब की गर्मजोशी होती जिसका कोई ठीक नहीं | घंटो कैसे गुज़र जाता करते कुछ पता न चलता | घर वाले चीखाम चिल्ली करते रहते आओ खाना खा लो, नाश्ता कर लो पर अपनी बातों में उन्हें कुछ सुने न देता |  अपनी इसी छोटी सी और प्यारी सी दुनिया में दोनों बहुत खुश थे | और एक दुसरे से बेहद जुड़े हुए थे |

दीपक नीति की एक एक हरकत से वाकिफ था | वो उसकी एक एक हरकत को नोट कर रहा था | नीति में इतना बदवाल उससे हज़म नहीं हो रहा था | नीति का एकदम से ऐसे बदलना उसके लिए भी अचरज की बात थी | वो भी सोच रहा था के ये कुछ तो छुपा रही है मेरे से | पर नीति भी छुपी रुस्तम थी | अभी तक उसने प्रताप के बारे में उसको कुछ भी नहीं बताया था | भनक भी नहीं लगने दी थी उसने किसी को इसके बारे में | उसने नीति से पुछा भी अचानक इतना बदलाव कैसे, तो जवाब में वो हंस कर टाल देती या कहती,

"अपुन तो बिंदास है, कुछ भी करूँ मेरी मर्ज़ी | मैं अपनी मर्ज़ी की मालकिन हूँ  यार | क्यों ये लुक अच्छा नहीं लग रहा क्या ? यार उस लुक से बोर हो गई थी तो सोचा थोडा चेंज कर के देख लूं | शायद घर वाले खुश हो जाएँ और मेरे पीछे पड़ना छोड़ दें |"

दीपक भी समझदार था | उसकी बातों को सुनकर चुप रहता और मुस्कुराता रहता  | उससे पता था के कुछ न कुछ खिचड़ी तो पका रही है ये और वक़्त आने पर ही परोसेगी | या फिर उसे ही ऊँगली टेडी करनी पड़ेगी बात पता करने के लिए | वो रग रग से वाकिफ था नीति की | उसे अच्छे से मालूम था के नीति से कोई बात निकलवाना बड़ी टेडी खीर है | जैसा वो खुद था वैसी ही उसकी बहन भी थी | दोनों के दोनों महा कुत्ती चीज़ | बस यही सोचकर वो शांत रहा और समय का इंतज़ार करता रहा |

 एक दिन अचानक इधर उधर की बातों बातों में उसने नीति से पूछ ही लिया,

"कमीनी अब तो बता दे कौन है वो इतने दिन हो गए तुझे ड्रामा करते |"

नीति चौंक कर बोली "क्या भाई कोई नहीं है, तू भी सनक गया है क्या? आइन्वाई मेरे पीछे पड़े जा रहा है"

पर दीपक को पता था के अब इसके पिटारे का ढक्कन खुलने का टाइम आ गया है | उसने फिर से कहा,

"चल चल जल्दी बता, इतने महीनो से तेरी नौटंकी देख रहा हूँ | चल क्या रहा है ? मिलवा तो सही |"

अब नीति के पेट में कहाँ पचने वाली थी बात सो उसने सब कुछ उगल डाला जैसे कोई गर्मी में ठन्डे ठन्डे शरबत की बोतल को हलक में उतार डालता है वैसे ही उसने सब कुछ दीपक के सामने उंडेल दिया | दीपक भी दंग रह गया सुनकर | उससे भरोसा नहीं हो रहा था के किसी के लिए नीति ने अपने आप को इतना बदल डाला | वो नीति से बोला के,

"जिस बन्दे ने तेरे जैसी कमीनी को बदल दिया वो कितना बड़ा कमीना होगा | बता जल्दी कब मिलवा रही है जीजा से |"

और बस फिर ऐसे ही नीति की टांग खिचाई चलती रही सारा समय | दीपक दिल से खुश था नीति के लिए | नीति को पता था के दुनिया में सबसे ज्यादा ख़ुशी दीपक को ही हुई होगी और फिर पलक झपकते ही उसने प्रताप से मिलवाने की ख्वाइश ज़ाहिर कर दी | दीपक तो इसी मौके के लिए तयार बैठा था | उसने तुरंत हाँ कर दी |
अगले दिन नीति दीपक को प्रताप से मिलवाने ले गई | प्रताप को देखकर दीपक कुछ देर उससे ऐसे ही देखता रहा | पर्सनालिटी दमदार थी | लम्बा, चौड़ा, हट्टा कट्टा नौजवान | गोरा रंग | मैग्गी जैसे लच्छेदार बाल | दीपक को उससे मिलकर बहुत अच्छा लगा | प्रताप ने आगे बढ़कर दीपक से हाथ मिलाया और बोला,

"और दीपक, कैसे हो ? आओ यार बैठो | और सब ठीक | हाउस में सब बढ़िया चल रहा है ?

दीपक भी कम नहीं था | उसने भी हाथ पकडे पकडे जवाब जड़ दिया दीपक के सवाल पर,

"अरे जीजा ! सब बढ़िया | हाउस में सब आपका ही इंतज़ार कर रहे हैं | कहों तो ले चलूँ | काफी लोग हैं लाइन में जो मिलने की बाट जोह रहे हैं | और सबसे उतावले तो ससुरजी और सासुमां है | बोलो ले चलूँ ?"

इतना सुनते ही प्रताप की और नीति की हंसी छुट गई | नीति बोली, "सुधर जा, वरना पिटेगा" | दीपक मज़े ले रहा था और हँसे जा रहा था और बेचारी नीति किलस रही थी और तुनककर बोली,

"कुत्ते चुप हो जा ! तुझे बताकर बहुत गलत किया | अब तू मेरी टांग खीचता रहेगा | चुप हो जा वरना तेरे मुहं पर जड़ दूंगी अभी | सब अक्ल ठिकाने आ जाएगी तेरी | "

दीपक और प्रताप दोनों इस मोमेंट को एन्जॉय करने में लगे हुए थे और हंस हंस कर नीति की हालत का मज़ा ले रहे थे | फिर सारा माहौल तीनो के ठहाको से गूँज गया | दीपक ने प्रताप को और प्रताप ने दीपक को कुछ गिफ्ट्स दिए और कुछ देर और मजाकबाज़ी और टांग खिचाई के दौर चलते रहे और फिर इस सब इसके के बाद वो बाय-शाये कर के उसके घर से रवाना हो गए | क्रमश:

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रिश्ते

आज एक बंधू से कुछ बात चीत हो रही थी | मेरे बहुत ही अभिन्न मित्रों में से एक हैं वो | मित्र क्या भाई के समान ही हैं | उनकी बातों के बाद जो कुछ भी एहसास मेरे दिल में उमड़े और जो जीवन के निष्कर्ष सामने आए वो मैंने यहाँ आप सबके सम्मुख शब्दों में प्रस्तुत करने का प्रयास कर दिया  | बहुत ही सुलझी सोच रखने वाले मेरे मित्र को मैं इस कविता के मध्यम से धन्यवाद करना चाहूँगा के ऐसे वक़्त में उन्होंने मेरा साथ दिया, मेरी पीड़ा को समझा, मेरा मार्गदर्शन किया और मुझे सँभलने में मदद की  | बहुत बहुत शुक्रिया दोस्त |

जीवन एक जंजाल है भैया
मानवता बेहाल है भैया
रिश्तों की छोड़ों तुम बातें
इनका पैसों में तोल है भैया
इनका कोई मोल नहीं है
इनका तो राहू काल है भैया
नया ज़माना आया है भैया
प्रायोरिटी संग लाया है भैया
रिश्तों को अगर निभाना है भैया
तो प्रायोरिटी वाईस चलाना है भैया
किसका कितना करना है भैया
किसका कितना भरना है भैया
ये प्रीडीसाएडिड गोल है भैया
स्वार्थ का बोल बाला है भैया
शादी के रश्ते को इसमें
सबसे ऊपर डाला है भैया
छोटी छोटी सी बातों पर
बस मोल भाव होता है भैया
मतलब का बस राज है भैया
देता कौन किसी का साथ है भैया
जोर से तुम जो बोलोगे भैया
दिमाग की दही कर लोगे भैया
बच्चे को जो धमकाओगे भैया
बदले में बगलें झांकवाओगे भैया
गर बीवी के बाप का नाम लिया
तो महाभारत छिड़वाओगे भैया
सास ससुर ने कुछ बोल दिया तो
फौरेन घर छोड़ दिया रे भैया
जेठ जेठानी जो कुछ बोलें तो
टाँगे उनकी क्यों तोडें न भैया
बीवी का भाई वाह जी वाह भैया
मियां की बहना न जी न भैया
अगर गौर से देखो तो भैया
बस एक ही दिल में प्यार है भैया
हाँ सारा संसार है भैया
जो बिन मांगे देता है सब सुख
वो 'माँ' का रिश्ता है भैया
देता जीवन भर दुलार है भैया
बिन मांगे बिन पूछे करता
जीवन भर तुमसे प्यार है भैया
जीवन भर तुमसे प्यार है भैया

शनिवार, जनवरी 26, 2013

ज़िन्दगी - भाग १

पात्र :
राम - मुख्य पात्र
सारिका  - पत्नी
सोम्या - बड़ी बेटी
सारा - छोटी बेटी

रात बहुत ही तेज़ तूफ़ान आया था | ओले भी गिरे थे | पर उसे नहीं मालूम था के रात का तेज़ अंधड़ उसके जीवन में भी एक नया बवंडर लेकर आने वाला है | एक ऐसा भावनाहीन चक्रवात जो उसके सभी एहसासों और जज्बातों  को उड़ा ले जायेगा |

उसके लिए तो वो दिन भी सर्दियों की एक मस्ताना सुबह जैसा था  | बारिश अब भी ज़ोरों के बरस रही थी मानो इंद्र देवता कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हों | लगता था रात से इन्द्रजी भी बियर का सेवन कर रहे हैं | बिजली ऐसे चमक रही थी जैसे आज मौसम भी रौद्र रूप में तांडव करने के मूड में हो | ज़िन्दगी की वो हसीन सुबह अपने परिवार के साथ, रोजमर्राह की भागम भाग, नहाना धोना, बच्चों का शोर, स्कूल जाने की तयारी, नाश्ता, टिफ़िन, और वही घरेलु कामकाज के बीच उसके दिमाग में क्या चल रहा था किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी | सुबह हँसते खेलते बच्चे स्कूल जाने को तयार थे | नाश्ते में चाय और पकोड़े बने थे | सब ने साथ मिलकर आलू, गोभी और प्याज़ के पकोड़े खाए और फिर वो बच्चों को स्कूल छोड़ने निकल गई |

राम रात से अपनी स्टडी में ही बैठा था और काम निपटा रहा था | नाश्ते के बाद भी वो स्टडी में जाकर बैठ गया था और थक कर सुबह वहीँ पर सो गया था | नींद में उसका चेहरा ऐसा लगता था मानो जैसे चाँद सोया हो | एक दम शांत और कोमल | ऐसा उसकी छोटी बेटी 'सारा' कहती है | बड़ी बेटी 'सोम्या' और छोटी बेटी दोनों से उसे बेहद प्यार है | एक आँखों का तारा है तो दूसरी ज़िन्दगी का चकोर  | उसका समस्त जीवन उन दोनों के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है | उन दोनों के सिवा उसकी छोटी सी दुनिया में और कोई नहीं है | ऐसा नहीं के और लोग नहीं हैं परिवार में पर उन दोनों के सामने उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता है | उनके लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तयार रहता है | अचानक से उसकी आँख खुलती है और पसीनो में तरबतर उठ कर बैठ जाता है | उससे समझ नहीं आता के एक दम से ये शोर कैसा ? फिर सोचा शायद कोई बुरा सपना देखा होगा | बैठा बैठा सोच ही रहा है, के अभी तो सोया ही था फिर इतनी जल्दी आँख कैसे खुल गई ? घडी देखी तो दोपहर के पूरे साढ़े बारह बजे थे  | अचानक से बड़ी बिटिया भागी हुई आई |

"आ गया बेटा स्कूल से"

"हाँ पापा , कहते कहते बिटिया गोद में आकर बैठ गईं"

"स्कूल में क्या किया आज सारा दिन सोम्या बेटा?", राम ने बड़े प्यार से सवाल किया

"कुछ नहीं, आज तो खेलते रहे और शैतानी करते रहे", उसने आँखे चमका कर और इतरा कर जवाब दिया

"पापा, इस सन्डे को पिज़्ज़ा बनाओगे न ?" बिटिया ने बड़े प्यार से पुछा

"हाँ बेटा, ज़रूर पर पहले",

इतना कहते के साथ राम ने अपना गाल आगे बढ़ा दिया | बेटी ने धीरे से दोनों गालों पर चूमा और फिर सीने से लग कर बैठ गई | बस वही एक लम्हा होता था जहाँ राम की सारी थकान मिट जाती, नींद गायब हो जाती, ज़िन्दगी और जीवन का वक़्त थम जाया करता था | एक नई ऊर्जा का तेज उसके शरीर में दौड़ जाता था | बेटी को सीने से लगाकर जो आनंद की अनुभूति होती थी उसे बयां करना उसके बस में न था  | पिता होने का एहसास दिल में उमड़ जाता था और रगों में खून का दौरान एक दम शांत हो जाता था | वो ऊर्जा से हर्शोल्लासित और सजीव हो उठता था |  ऐसा लगता मानो के ये लम्हा यहीं थम जाये और बेटी ऐसे ही हमेशा दिल के करीब रहे |

अचानक राम की बीवी आई और सोम्य को गोदी में उठा कर ले गई | राम अपने लैपटॉप पर मेल चेक करने में लग गया | कुछ देर बाद अचानक से कुछ ऐसा हुआ के दिल में आग जल उठी | कुछ एक घंटों के बाद उसने देखा के घर के और लोग जोर जोर से उससे बुला रहे हैं | वो उठा और जाकर पुछा के क्या हुआ ? पता चला बड़ी बिटिया और उसकी जीवन संगनी कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं | तीन घंटे से ऊपर हो गए कुछ पता नहीं कहाँ गए |  तुरंत मोबाइल पर संपर्क साधने की कोशिश की | परन्तु मोबाइल तो बंद बता रहा था | दिल में हज़ार सवालों के साथ सैकड़ों आशंकाएं उठने लग गईं | क्या हुआ ? कहाँ हैं ? फ़ोन बंद क्यों है ? बहुत कोशिश की परन्तु कुछ पता नहीं चला | शाम को राम के मोबाइल की घंटी बज उठी | परेशान बैठा राम दौड़कर भागा और फ़ोन उठा कर बोला,

"हेल्लो ! कौन"

दूसरी तरफ़ा से आवाज़ आई

"मैं बोल रही हूँ ", आवाज़ राम की पत्नी सारिका की थी

"सारिका तुम और सोम्या कहाँ हो ?", राम ने गुस्से, डर और असमंजस के भावों के साथ सवाल किया

"मैं आ गई ", सारिका ने बतलाया

"आ गई मतलब ?", राम ने हैरानी से पुछा

"मैं सोम्या को लेकर अपने पापा के आ गई", दूसरी तरफ से जवाब आया

"लेकिन अचानक कैसे ? एकदम बिना बताये और वापस कब आना है ? सब ठीक तो है वहां ?", राम ने उत्सुकता से पुछा

"अब कभी नहीं आना, मैं घर छोड़ कर आ गई " बीवी ने तुरंत जवाब दिया और फ़ोन पटक दिया

राम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई | वो बुत बना खड़ा रह गया | चेहरा सफ़ेद पड़ गया | उसे यकीन नहीं हुआ | ऐसे हालातों का सामना उसने पहले कभी नहीं किया था | वो किंकर्तव्यविमूढ़ बावला सा  खड़ा दीवार ताक़ रहा था | लाल नम आँखों में आंसू के साथ आक्रोश और गुब्बार था | उसने कई बार फ़ोन लगाने की फिर से कोशिश की पर फोन स्विचऑफ बता रहा था |

सारा तभी भागी भागी आई और बोली,

"पापा, मेरी भी बात कराओ न | मम्मी का फोन था ? सोम्या कहाँ है ?

उसे और मुझे तो आज गुडिया की शादी रचानी है | वो मेरी गुडिया का दुपट्टा लेने गई है क्या ?

और भी न जाने कितने ही सवाल वो पूछे चली जा रही थी जिनका जवाब राम के पास नहीं था | जैसे तैसे सारा को समझा बुझा कर और खाना खिला कर सुलाया और फिर कमरे में जाकर देखता क्या है के अलमारियां खाली पड़ी हैं | और भी काफी सामान नहीं है | बेटी की अलमारी खाली पड़ी है | उसके खिलौने, किताबें और कपडे गायब हैं | अचानक से 'सोम्या' के छोटे छोटे जूतों पर नज़र गई तो दिल भर आया | ये मंज़र देखकर अगर कुछ था तो नम आँखे, सीने में दर्द, खालीपन और मायूसी थी | राम सन्न खड़ा सोच रहा था ये अचानक कैसा वज्रपात हुआ उसकी हंसती खेलती दुनिया पर | अभी सुबह तक तो सब कुछ ठीक था | हंसी ख़ुशी ज़िन्दगी चल रही थी | इन्ही सभी कठिन परिस्थितियों से बोझिल मन से बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया |

एक सिगरेट सुलगाई और बैठ गया | बारिश अब भी गरज गरज के बरस रही थी | बिजली की चमक ऐसे लगती थी मानो भगवन भी आज उसे चिढाने के मूड में है और उसके इन हालातों की तस्वीर उतार रहा हो | ऐसा लग रहा था जैसे राम की आँखों के आंसू आज आसमान बहा रहा है |  राम ने सर ऊपर किया और आकाश की ओर देखकर सोचने लग गया के ये सब उसके साथ ही क्यों और कैसे हो गया | एक दम से यह पहाड़ कैसे टूट पड़ा | अचानक से घर छोड़ कर चले जाना और फ़ोन भी बंद कर देना | माजरा समझ में नहीं आ रहा था | ज़िन्दगी की हालत ऐसी हो गई थी जैसे किसी गाडी पर १२० किलोमीटर की स्पीड से चलते हुए अचानक ब्रेक लगने के बाद जो नुकसान होता है उसी स्तिथि में राम था | एकदम से ऐसे पत्थर दिल कैसे हो सकती है वो | इतने सालों की शादी, प्यार, मन सम्मान, भरोसे का ये सिला दिया उसने | घर में अक्सर ऐसी छोटी मोटी कहा सुनी तो होती रहती है | इसका मतलब ऐसा करना तो नहीं | वो ऐसे कैसे धोखा दे सकती है ? वो इतना सारा सामान लेकर गई कैसे ? क्या ये सब वो काफी समय से सोच समझ कर प्लान कर रही थी ? क्या वो अब कभी वापस नहीं आएगी ? बेटी कैसी होगी ? बेटी से क्या कहा होगा ? बेटी को मेरी याद आएगी तो कैसे मनाएगी ? बेटी रात को सो भी पायेगी मेरे बिना ? काश! ये सब एक मजाक से ज्यादा कुछ न हो | दिल्लगी कर रही है वो मुझसे |

इसी सब सोच के बीच पिछले कुछ सालों की विडियो रील उसके दिमाग में शुरू हो चुकी थी जिसका नज़ारा वो अपनी आँखों के सामने देख रहा था | वो साथ बिताये लम्हे, हंसी ख़ुशी के पल, बेटियों का जन्म और उनके जन्म दिन, हँसना, रूठना, झगड़ना, मानना सभी का बाईस्कोप उसके सामने चला जा रहा था | और ऐसे ही न जाने कितने अनगिनत सवालों से जूझता हुआ वो सिगरेट पर सिगरेट सुलगाये जा रहा था और अपने दिल, वक़्त और ज़िन्दगी को जलाये जा रहा था |  क्रमश:

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All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

Thought

" Life will knock you down every moment, But its upto you if you want to stand up again like a winner. Or you just want to stay down there defeated."

शुक्रवार, जनवरी 25, 2013

मैं

मैं
क्या है ?
क्या कोई जानता है ?
मैं बकरी भी करती है
वो क्या है
ये भी कोई पूर्ण रूप से
नहीं जानता
न तो, वो
गाय की तुलना में
आती है
न ही आती भैंस में
फिर क्या श्रेष्ठता है ?
जो स्वयं
मैं, मैं करती है
क्यों करती है
एक स्त्री भी
अहं में
कहती है
क्या है
उससे जानने के लिए
अपने आप में
खो जाता हूँ
एक पत्नी
एक माँ
एक बहु
एक स्त्री
सिर्फ सेवा करना
सभी की
निस्वार्थ सेवा
मैं और मेरे में
सभी तो अपने है
फिर हर स्त्री
को रिश्तों से बांध कर
क्यों लक्ष्मण रेखा में
छोड़ दिया जाता है
एक माला की तरह
क्या वो, मानव सेवा
सिर्फ मानव सेवा में
समर्पित नहीं
हो सकती
जहाँ बकरी का स्वर भी
उसका दर्द भी
लुप्त हो जायेगा
कसाई से उसे भी
उसे भी तो
मुक्ति मिलेगी ।

गुरुवार, जनवरी 24, 2013

Thought

"STRENGTH does not come from WINNING, YOUR STRUGGLES develop your STRENGTHS when you go through hardships and decide not to surrender, that is STRENGTH"

बुधवार, जनवरी 23, 2013

दुविधा

दुविधा कब तक है जीवन की
दुविधा कब से है यह मन की
दुविधा है ये जन्म जन्म की
आकर जाना, जाकर आना
घट-घट वासी और निरंतर
मिटा धारणा मन की
जब चाहे तब घर छोड़ना
जब चाहे तब मिल जाना
ऐसी दशा नहीं चाहियें
ऐसा मरण नहीं चाहियें
व्यथित दशा है इस मन की
प्यासी लालसा नहीं चाहियें
दे दो मुक्ति दीनन जी
मेरी दीनता तुम्हे पुकारे
दे दो मुक्ति इस मन की
दुविधा कब तक सुलझेगी
इस मन की !!!

एक कोना खाली दिल का मेरे












एक कोना खाली दिल का मेरे
याद तुझे फिर करता है...

तेरी मंद मंद मुस्कानों पर
दिल मेरा आज भी मरता है
तेरी शोख अदाओं की 'चुहिया'
दिल आज भी तारीफ़ करता है

तेरे इतराने इठलाने पर
दिल बाग़ बाग़ हो उठता है
बुलबुल सी तेरी चहक को ही
सुनने को दिल तरसता है

दौड़ के आकर लगना गले
और कहना धीरे से 'पापा'
फिर चूमना मेरे गालों को
और आँखों से शरारत करना
अब कब ये सपना सच होगा
इंतज़ार दीवाना करता है

चिपक के सीने से मेरे
तेरा सपनो में खो जाना
पर आज इन काली रातों में
दिल हर पल धड़कन गिनता है

तेरे नाज़ुक नाज़ुक हाथों से
गालों को सहलाना मेरे
तेरे छोटे छोटे हाथों को
फिर चूमने का दिल करता है
कहाँ खो गई मेरी चिड़िया
दिल तुझसे मिलने को करता है

एक कोना खाली दिल का मेरे
याद तुझे फिर करता है...

मंगलवार, जनवरी 22, 2013

दूर करो


मोह में सोया
तड़प के जागा
चला भिखारी तन का
और दीनता ज्यादा क्या है
पीड़ित मन जीवन का
मुक्ति दे दो
भव बंधन से
मुक्ति दे दो
जन्म मरण से
ख्वाहिश है इस मन की
पूर्ण करो हे परमपिता
मैं मांगू हर पल दिल से
दे दो मुक्ति
मुझको तुम अब
इस सारी उलझन से
कृपा करो तुम दीनदयाला
दुःख दूर करो जीवन से

अपने को पहचान


तू क्यों रोकर खोता है
अपने को पहचान
ये मोती अनमोल हैं
जिसको हम किसी कीमत पर
न खोते न पाते हैं
दिवस गंवाकर
फिर क्या होगा
जो रो रो कर गाते हैं
किस्मत दगा किया करती है
गाते हैं, बतलाते हैं
अपने को तू जान रे, बन्दे
मोती को पहचान
अपनी परख तू खुद कर, बन्दे
जीवन को पहचान
तू क्यों रोकर खोता है
अपने को पहचान

गुरुवार, जनवरी 17, 2013

सफ़ेद कपड़ों वाली परी


दिल्ली की एक मस्त शाम । महरौली का इलाका । मौसम-ए-बरसात चल रहा था | माध्यम बारिश की फुहार पड़ रही थी | सारा आसमान हलके संतरी रंग से सराबोर हो रहा था | सूरज अपनी काली रॉयल एनफ़ील्ड बुलेट से उतरा और सड़क पार कर के फूटपाथ पर जाकर खड़ा हो गया | सामने वाली बिल्डिंग पर लगे शीशे की तरफ नज़रे गडा दीं | फिर इधर उधर का मुआएना करने के बाद अन्दर झाँकने लगा | अब तो उसके लिए ये रोज़ का रूटीन बन गया था | रोजाना शाम को आना और उसे उन सफ़ेद शफाक कपड़ों में नाचते हुए देखना |

बस एक वही थी जो इस भीड़ भरी दुनिया में उसकी नज़रों में समां गई थी | वही थी जिसे वो बेहद पसंद करने लगा था | जिसने उसके बेज़ार दिल को धड़कने पर मजबूर कर दिया था | जिसकी एक झलक से वो मंत्रमुग्ध हो जाता और उसके चेहरे पर एक हलकी से मुस्कराहट आ जाती थी | उसको डांस स्कूल में नाचते देखना ऐसा लगता मानो कोई मोर बारिश में थिरक रहा हो | दूसरी नर्तकियों बीच वो ऐसे लगती जैसे सूरज के इर्द गिर्द चाँद और तारे | उसका हर एक भाव और भंगिमा ऐसे प्रतीत होती थी जैसे आकाश में हवा में कोई पंख धीरे धीरे लहरा रहा हो और हिचकोले लेता इधर उधर डोल रहा हो | किरन उसके लिए आसमां थी और उसकी घरती भी | उसकी झलक पाते ही उसका दिन बन जाया करता था | उसका समस्त जीवन उस एक पल थम जाया करता था |

किरन हर लिहाज़ से बेहद खूबसूरत थी | बेहतरीन सुन्दरता | अदभुत कलापूर्ण व्यक्तित्व | ऊँचा लम्बा कद, सुडौल गठीला बदन, तीखे नयन नक्षक | लम्बे काले घने नागिन जैसे बाल | गहरी और मोहित कर देने वाली भूरी आँखें | बनानेवाले की बेजोड़ कलाकृति की मिसाल थी वो | देखने में एक दम गोरी फिरंग लगती थी पर थी सौ प्रतिशत हिन्दुस्तानी |

संभवतः वो भी अपनी ज़िन्दगी में किसी ख़ास व्यक्ति का इंतज़ार कर रही थी | और सूरज बहार खड़ा यही सोच रहा था के काश वो खुशकिस्मत इंसान वो हो |

संगीत शुरू हुआ, और उसने बड़े ही मनमोहक तरह से नाचना आरम्भ किया | डांस फ्लोर पर उसके शांतचित्त, उसकी प्रतिभा, उसके आकर्षण और उसके बला के जलवे को देख कोई भी अचंभित क्यों न हो जाये | वो दूसरी डांसर्स से एक दम अलग थी | सबसे जुदा | किरन का आत्मविश्वास, उसकी मनोहरता, उसके लुभावने अंदाज़, उसकी जिंदादिली और उसकी नैसर्गिक सुन्दरता के अभिलक्षण उसके नृत्य के हर कदम में उसके इख़्तियार की झलक दिखला रहे थे |

सूरज की आँखें लगातार उसका और उसकी हर एक गतिविधि का क्रमवीक्षण कर रही थीं | कुछ घंटों के लिए उसकी ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत जो हो गई थी | शीशे से चिकने और चमकते डांस फ्लोर पर किरन का अक्स साफ़ नज़र आ रहा था | उसके लम्बे काले बालों की गुथी हुई चोटी और सफ़ेद ड्रेस में उसकी विशिष्टता और निखर कर आ रही थी |

सूरज उसकी तरफ नज़रे जमाये चुपचाप खड़े सोच रहा था के काश मैं इस भीड़ के बीच से रास्ता बनाकर किरन तक पहुँच सकता | और उसका हाथ थाम कर उसके साथ कुछ पल बिता सकता । तभी अचानक से संगीत बजना बंद हो गया | डांस खत्म हो गया था | किरन धीरे से आगे बढ़ी तौलिया उठा कर पसीना पोंछती हुई डांस फ्लोर पार कर के सीधा मुख्य द्वार पर आकर रुक गई | उसके रुकते ही ऐसा लगा मानो बसंत आ गया हो | उसने हाथ बढाकर दरवाज़े का हैंडल पकड़कर दरवाज़ा खोला | हाथ आगे बढाकर हथेली बहार निकाल कर देखा | बारिश अभी भी बरस रही थी | सूरज मन्त्र मुग्ध खड़ा उसकी ओर तंकता रहा | अचानक उससे लगा की उसकी नज़रें सीधा उसे ही देख रही हैं | दिल रेल के इंजन सा भक भक करने लगा | पैर जड़ हो गए । होश के होते उड़ गए । गला खुश्क हो गया । तलवों तले ज़मीन खिसक गई | सोचने लगा के अपने एहसास उसके सामने कैसे बयाँ करूँगा ?

तभी फिर से संगीत बजना शुरू हो गया और जो लोग अन्दर थे वो एक बार फिर से शुरू हो गए | किरन ने उसकी तरफ़ मुड़कर देखा और पास आकर बोली

"आप मेरे साथ डांस नहीं करेंगे ?"

सूरज शुतुरमुर्ग की तरह खड़ा भौंचक्का सा किरन की आँखों में देखता रह गया | उसके संगुप्त शब्द उसके दिल की गहराईयों में ही दबे रह गए |

"जिसकी रमणीयता, मनमोहक और अतुलनीय थी और जिसके आज तक वो सपने ही देखा करता था, उसके साथ नाचना, अत्यंत आनंदप्रद और सम्मान की बात थी |"

धीरे से लड़खड़ाती जुबान से शब्द बहार आये | अब तक जो सिर्फ सोच रहा था आज वो बोल दिया गया था | किरन सर झुकाकर मुस्कराई और चमकदर चेहरा लाल हो गया | सूरज घुटनों पर बैठ गया, सर झुका कर धीरे से हाथ आगे बढ़ा दिया | फिर दोनों बारिश में साथ नाचने लगे |

वो सोच रहा था के ये सच नहीं हो सकता | जो भी हो रहा है एक सपना है | पर सच वही था के ये लम्हा उसके जीवन में आ गया था, वो उस लम्हे को जी रहा था | वो नहीं चाहता था के ये खत्म हो | ये साथ कभी न छूटे | ये डांस यूँ ही चलता रहे | उसे अब किसी और चीज़ की कोई परवाह नहीं थी |

बारिश की बूंदों का संगीत सुना जा सकता था | रिमझिम बूँदें धरती पर गिरकर जलतरंग बजा रही थीं | जैसे जैसे बारिश तेज़ हो रही थी वैसे वैसे उनके नाच की लय भी बढ़ रही थी | उसने आगे बढ़कर धीरे से अपने गालों को सूरज के गालों के पास लाकर कान में कुछ फुसफुसाया | उसके सुन्दर चेहरे पर कृतज्ञता और करुणा से भरे भाव थे |

वो दोनों पुर्णतः जीवंत थे, परिपूर्ण थे और आनन्दित थे | चाँद मुंह झुकाए उसके काले बालों की भीगी लटों को निहार रहा था | बरसात का पानी भी उनके क़दमों की हरकतों को पहचान रहा था | बारिश के पानी में और उस पर पड़ते उसके क़दमों में तालमेल था | उसके पैरों से पानी की छपछपाहट भी छनछनाहट सी सुनाई दे रही थी | उसकी पैनी नज़रों में गज़ब की चमक थी और फिर वो ख़ुशी के मारे जोर से हंस पड़ी |

उसकी हंसी से चाँद की चमक और ज्यादा बढ़ गई | उसके सफ़ेद कपडे पूरी तरह से भीग चुके थे | भीगने के बावजूद भी वो पीछे हटने का नाम नहीं ले रही थी | बेपरवाह बस नाचती रही और सूरज उसका साथ देता गया | फिर वो थोडा पीछे हटी और स्वछंद पंछी की भांति उड़ने लग गई | सूरज की नज़रें हर जगह उसका पीछा कर रहीं थीं इस डर से के कहीं उसका ये सपना टूट न जाए | तभी अचानक वो रुकी, सूरज की ओर मुड़ी और सामने आकर खड़ी हो गई |

उसकी सासें तेज़ बहुत तेज़ चल रही थी | ऐसी आवाज़ लग रही थी जैसे इंजन की चिमनी से धुआं निकल रहा हो | उसके चेहरे पर विश्वास था | नज़रों में निश्चल प्यार था | और दोनों के दिल ख़ुशी के मारे जोर जोर के धड़क रहे थे |

"इतनी देर क्यों लगाई?" उसने धीरे से मुस्कराते हुए पुछा

"माफ़ कीजिये" सूरज ने असमंजस भरे स्वर में जवाब दिया

उसने मोतियों जैसी आँखें मूँद लीं | लम्बा सा सांस लिया | आगे बढ़ी और सूरज के गालों को चूम लिया | उसके होटों का स्पर्श किसी कोमल कलि की भांति नाज़ुक था | फिर उसने सूरज को गले लगा लिया और दोनों कुछ देर के लिए कहीं खो गए |

"मुझे और कितनी देर तुम्हारे डांस के लिए पूछने का इंतज़ार करना चाहियें था?" वो फुसफुसाई

सूरज ने अपना जैकेट उतरा और उसे पहना दिया के कहीं बारिश में उसे ठण्ड न लग जाये | फिर धीरे से उसके माथे को चूमा और उसे गले से लगा लिया | प्यार से उसकी कमर पर हाथ फेरा और फिर उसकी गीली लटों को उँगलियों से सुलझाने लगा |

"मैं मरते दम तक तुम्हारा इंतज़ार करता" सूरज ने जवाब दिया

माहौल में शांति और सुकून का वातावरण बन गया | अब सारी सच्चाई साफ़ हो चुकी थी | दोनो एक दुसरे के चेहरों पर अनुराग के भावों को पढ़ चुके थे | दोनों की आत्माएं एक हो चुकी थीं | दोनों वहीँ खड़े भीगते रहे | दोनों सोच रहे थे, के वो एक दुसरे को हद्द से ज्यादा चाहते हैं और हमेशा चाहते रहेंगे |

यकायक बिजली कौंधी | सन्नाटे की चुप्पी टूट गई | दोनों को एहसास हो गया था, दोनों ही एक दूसरे के कहने का इंतज़ार कर रहे थे |

सूरज ने किरन का हाथ थामा और कहा, "चलें?"

"हाँ", उसने जवाब दिया

और इस तरह सूरज को अपनी सफ़ेद कपड़ों वाली परी, अपने सपनो की रानी मिल गई और दोनों अपनी नई दुनिया की तरफ बढ़ चले |

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बुधवार, जनवरी 16, 2013

तो क्या होता?

दिसम्बर बलात्कार घटना को बीते अब तकरीबन महीना हो गया | इस पूरे वक्फे के दौरान मैंने समाचार चैनलों  पर, ब्लोग्स पर, अकबारों में, लोगों के मुख से और न जाने कहाँ कहाँ से काफी कुछ पढ़ा और सुना | सबकी अपनी अपनी राय और अपने नज़रिए से अनोखे विचार थे | श्रधांजलि देने का और हादसे पर अपने विचार प्रकट करने का सबका अपना एक अनोखा तरीका था | कितने तो मोमबत्तियां जलने में लगे थे, मार्च पास्ट निकाले जा रहे थे, कहीं गिटार बजा कर दुःख जताया जा रहा था, कुछ बैनर पर टिप्पणियां लिख कर दिखाने में लगे थे, कहीं हाथ पर काले कपडे बांध कर दुःख जताया जा रहा था, कहीं मौन व्रत लिए लोग चुप चाप धरने दे रहे थे, तो कहीं कोई बाबा कुछ बकार रहे थे, तो कहीं नेता अपने आने वाले चुनाव की रणनीति को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष रूप के नाटक करने और टिप्पणियां देने में जुटे हुए थे | इन सब बातों और घटनाक्रम के बीच मैं अपने घर पर बैठा कुछ नहीं कर रहा था सिर्फ सोच रहा था, कुछ ख्याल और सवाल बार बार मेरे मन में दस्तक दिए जा रहा था | वो सब इतने अजीब थे के पहले तो मैं उन्हें अनदेखा करता रहा फिर आख़िरकार जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने अपने दिल से हार मान कर के उन्हें यहाँ आपके सामने प्रस्तुत करना ही ठीक समझा | शायद कुछ जवाब, कुछ विशेष ख्याल और सुझाव सुनने और पढने को मिल जाएँ । वो ख्याल और सवाल जो उठते हैं कुछ इस प्रकार से हैं :

  1. यदि आज हमारा समाज पुरुष प्रधान न होकर स्त्री प्रधान होता तो क्या होता ?
  2. यदि पुरुष निर्बल और दुर्बल कहलाता और स्त्री सर्वशक्तिमान तो क्या होता ?
  3. मोटे तौर पर पूछूँ तो आज जहाँ पुरुष खड़ा है वहां अगर स्त्री खडी होती समाज में तो क्या होता ?
  4. क्या ऐसी घिनोनी घटनाएँ पुरुषों के साथ भी होती? होतीं तो क्या होता ?
  5. क्या पुरुषों का बलात्कार होता ? यदि होता तो क्या होता ?
  6. क्या पुरुषों को भी सही वस्त्र पहन कर घर से निकलने की हिदायतें दी जातीं ?
  7. क्या रात-बे-रात बहार निकलने से पहले पुरुषों को सोचना पड़ता ? डरना पड़ता ?
  8. क्या पुरुष अपनी माँ, बहन, बेटी, बीवी के साथ ही महफूज़ महसूस करते ? रात को यदि उन्हें कहीं जाना होता तो वो इनमें से किसी न किसी को साथ लेकर ही बहार जाते ?
  9. क्या कोई बाबा पुरुषों को ऐसी सलाह देता के, “यदि उसका बलात्कार होते समय वो किन्ही २-३ महिलाओं को बहन या माँ पुकार कर मदद मांग लेता तो शायद उसके साथ अन्याय कम होता”?
  10. क्या कोई नेता या कोई किसी भी दल का मुखिया ये कहता के, “पुरुषों को मोबाइल नहीं रखने चाहिए और निक्कर, टी-शर्ट, बनियान आदि भड़कीले कपडे नहीं पहनने चाहियें | ऐसी भड़काऊ वेशभूषा से ही उनपर ऐसे यौन अत्याचार होते हैं | वो सामने वाले को मजबूर करते हैं उनके साथ ऐसा करने के लिए | उन्हें पूरे ढके हुए वस्त्र पहन कर घर से निकलना चाहियें” | क्या ऐसी बयानबाजी होती ?
  11. बसों में, रेल में, सार्वजानिक भीड़भाड़ वाले इलाकों में या कहीं भी सट कर चलना, बैठना, बात करना या खड़े नहीं होना चाहियें | क्या पता कोई आकर उन्हें छेड़ दे या मर्दों के साथ ईव-टीजिंग न हो जाये |
  12. क्या पुरुषों के लिए भी इतनी ही पाबंदियां, दोगलापन और ओछापन दिखाई देता समाज में जितना आज स्त्रियों के लिए दिखाई पड़ता है ?
  13. पुरुषों को घर संभालना चाहियें । वो बच्चे पलने और खाना बनाने के लिए ही हैं । बहार का काम तो स्त्री की ज़िम्मेदारी है । यदि ऐसा सुनने को मिलता तो क्या होता ?
  14. क्या उस समाज में स्त्रियाँ भी पुरुषों से तफरी लेतीं, फितरे कसती, सीटियाँ मारतीं, चिकुटी काटतीं, इशारे करतीं ?
  15. क्या पुरुष बार में नाचते और महिलाएं उनपर पैसे उड़ातीं ?
  16. यदि पुरुषों द्वारा मुजरे और देह व्यापार करवाया जाता तो क्या होता ?
  17. क्या बार में जाकर शराब पीने वाले पुरुषों को बदचलन, आवारा और चरित्रहीन करार दे दिया जाता ?
  18. और कहीं पुरुष पुलिस के पास शिकायत करने चला जाता तो क्या उससे ऐसे ही ज़िल्लत झेलनी पड़ती जैसे आज नारी को झेलनी पड़ती है ?
  19. क्या स्त्रियाँ पुरुषों को हीन समझतीं ?
  20. अगर पुरुष भ्रूण हत्या होती तो क्या होता ?
  21. अगर समाज में पुरुषों को खरीदा और बेचा जाता तो क्या होता ?

अगर यह सब सच में होता तो पुरुषों की स्तिथि और उनका मानसिक पीड़ा कैसी होती ? सच कहूँ तो ऐसे सवालों का और सोच का कोई अंत नहीं है | यदि कोई ऐसा समाज होता तो उसका चेहरा कैसा होता ? और पुरुषों की सोच ऐसे समाज में कैसी होती ? मेरे दिमाग में सदा ही ऐसी सोच और ऐसे अजीब-ओ-गरीब सवाल उठ खड़े होते हैं | इनका उत्तर मेरे पास नहीं है । वो इसलिए क्योंकि मैं अपने आप से सवाल करता हूँ | हर एक स्तिथि में मैं पहले खुद को रखता हूँ और फिर अपने आप से सवाल करता हूँ, “अगर तू उसकी जगह पर होता तो क्या होता ?” | जब तक अंतर्मन से जवाब नहीं मिलता तब तक मैं कोई भी फैसला नहीं ले पता | काश! आज का समाज भी ऐसे ही अपने आप से सवाल करता कुछ भी कहने या करने से पहले कम से कम कुछ तो सोचता  | जिसकी पीड़ा है कम से कम उसकी पीड़ा का अनुभव तो करता और महसूस करता ।  तब शायद ऐसी  भद्दी टिप्पड़ियाँ, ऐसी गन्दी और निचली सोच, ऐसे ओछे विचार, ऐसी शर्मनाक हरकतें और ऐसी नकारात्मक मानसिकता पैदा ही न हो पाती | काश! मेरे बस में कुछ होता तो मैं भी उसके लिए शायद कुछ तो कर पाता पर दुःख इस बात का है के सिर्फ मैं अपने आप से और सभी से सवाल ही कर सकता हूँ | इससे ज्यादा कुछ और नहीं | आशा है ऐसे ही सवाल दुसरे भी, आने वाले भविष्य में अपने आप से करने का कष्ट करेंगे और इस समाज को रहने लायक बनाने में योगदान देंगे | आज सिर्फ मैं प्रार्थना कर सकता हूँ के, “परमपिता परमात्मा, उसकी आत्मा को शांति प्रदान करे और उससे जल्द से जल्द इन्साफ मिल सके” |

मंगलवार, जनवरी 15, 2013

Poet


No one can ever understand the poet. For he is a notional representation of what transpires in life. The Good, The Bad, the Unthought, The calibration of a World that once existed and co exists amongst us. A poet will smile even when he does not want to, A Poet will let you join his side when you most need to be together with laughter or an uncongruent feeling that you have inside of you that needs to be exposed. The Poet surrenders to you, the Listener and welcomes you to his realm of thought, provocation and abstinence of malicious judgement and fallice. Thy Poet writes in a Harmony of the past, present and future. With him holding the key to an inner salvation that one often seeks when expressing their inner most thoughts.  Thy Poet is stern and irrevocably pristine to the sadacious appetite of the Modern Society.  Even when in doubt the Poet has thy answer to their inner most sanctions of your world.   He often reaches the deep, inner substraints of a well known phenomenon and a well suited lack of understanding that is within all of our reach as we aspire to a final place where we submit.  As the Sun lacks brightness and vigor the Moon catches a Bright Light to bestow amongst humanity.  A Poet reaches the farthest channels of the Universe once benownst by man kind later to be forgotten 
as a a part of History and the common like.  But this is no common like, it actually shines from afar and captivates the human eye till it renders.  The Light is meager pronouncing itself even with a shade of magnitude. The Light deserves presence that is often unappreciated by man and misunderstood my most women. The conquest of Light is the most inexplicable feat that a Man can encounter. The aphorgy or intricateness of the Sun shining upon a specific dwelling controlled by man. inconsecrated.....

रविवार, जनवरी 13, 2013

खुशियाँ

खुशियाँ एक शब्द - बस शब्द ही रह गया था मेरे लिए -
इसका मतलब और इसकी परिभाषा मैं भूल चूका था

कभी यादों के किसी कोने में झाँक कर देखूं
तो याद पड़ता है के शायद इस शब्द के मायने
मेरे लिए क्या हुआ करते थे ;
चॉकलेट, साहसी खेल कूद, तैराकी, जिमख़ाना, सबसे मिलना जुलना, बातें करना, खिलखिलाना, गाना बजाना, नाचना और अच्छा खाना

फिर एक दिन अचानक कुछ ऐसा हुआ
मेरा बचपन, उमीदें और खुशियाँ सब टुकड़ों में चूर चूर हो गईं
और बाकि बचा मेरे पास कुछ बिखरी, विदीर्ण, लुप्त, टूटी फूटी यादें
एक नकली हंसी और एक मुखौटा जो चेहरे पर लगाये मैं घुमने लग गया 

उस दिन से मैं अन्दर से मर गया था
अपरिवर्तनीय रूप से हमेशा के लिए बदल गया था
और मुझे पता नहीं था के मैं कभी इस ख़ुशी के मीठे स्वाद को कभी फिर से चख पाउँगा

अचानक फिर
एक दिन
एक  इंसान मिला
उससे मिलकर मानो जैसे
एक अपनेपन का एहसास हुआ
एक लगाव, एक आस
एक उम्मीद जगी 

मुलाकातें बढीं
सोहबत का असर हुआ
सोच में सुधर होना शुरू हो गया
हालत में सुधार होना शुरू हुआ है
मिलकर ख़ुशी का एहसास जागने लगा
आज की मुलाकात के बाद से
अपने आप से प्यार करना शुरू किया है
चेहरे पर मुस्कान छलकने लगी है
ज़िन्दगी फिर से चहकने लगी है
अरमान महकने लगे हैं

अग्रगमन थोडा सख्त और मुश्किल है
पर मैं कर रहा हूँ
कोशिश जारी है
शनै शनै
लौटने लग गया हूँ
उसी मोड़ पर
जहाँ ज़िन्दगी छूट गई थी
फिर से उसका हाथ थमने
और अपने नए व्यक्तित्व से
उसका तार्रुफ़ करवाने

ख़ुशी का आगमन हो रहा है
नई नवेली दुल्हन की भांति
अलता लगाये जीवन में
धीरे धीरे कदम बढ़ा कर
प्रवेश कर रही हैं और उसके साथ
सकारात्मक सोच और ओज
का स्रोत भी मिल चुका है

सहर्ष और आदरपूर्वक
स्नेहपूर्वक और ससम्मान
सादर सत्कारपूर्वक
कोटि कोटि धन्यवाद है
भाई आपका 

बस इतना कहूँगा के -

जब तुमसे से हो गई बंदगी
खुशियों से भर गई ज़िन्दगी
मिट जाएगी  मांदगी
ख़त्म समझो शर्मिंदगी
अब नई होगी छंदगी
अब नई होगी छंदगी...

खुशनुमा ज़िन्दगी जीने के कुछ आसान तरीके

आज मेरे एक बहुत ही अज़ीज़ मित्र, भाई, बंधू, भ्राता ने कहा के ज़िन्दगी में हमेशा खुश रहो | खुद को इतना मज़बूत रखो के कोई तुम्हे ग़मगीन न कर पाए । ज़िन्दगी ये सोच कर जियो के तुम ही तुम हो और तुम हर गम से ऊपर हो । यदि गम आये भी तो उससे ख़ुशी के साथ जीना सीखो | लिखो तो ख़ुशी के लिए लिखो | ऐसा लिखो जो मरते हुए मैं प्राण फूँक दे, सोते को उठा दे, रोते को हंसा दे, लंगड़े को भगा दे, अंधे को दिखा दे, दुबले को फुला दे और दुखी को सुखी कर दे | तभी लेखनी में जान आएगी | लेखन में वज़न की बहुत अहमियत है । तो वज़न लाना बहुत ज़रूरी है । तो आज से और अभी से ज़िन्दगी में यही कोशिश रहेगी के ख़ुशी का दामन थामे मस्ती की लहरों में गोते लगते हुए जीवन रुपी समुन्द्र को हंसी मजाक में तैर कर पार करूँ | लेखनी में और जान फूँक दूं और जो भी लिखूं वो आनंद देने वाला हो और दिलों को हर्षित करने वाला हो |

"भाई नुक्ते जो बतलाये थे वो दिल में नोट कर लिए हैं | और आगे भी ऐसे ही हिदायतों का और विचारों के आदान प्रदान का इंतज़ार रहेगा | जल्दी ही मिलते हैं | और जो कुछ भी आप मेरे लिए कर रहे हैं और किया है उसके लिए दिल से शुक्रिया | एक बड़े भाई की कमी हमेशा खली है मुझे | बजरंगबली ने आवाज़ सुनकर आज वो पूरी कर दी | और बजरंगबली के साथ उसमें किसी और का भी बहुत बड़ा योगदान है | आप भलीभांति जानते हैं जिन्हें मैं संबोधित कर रहा हूँ - फूपी-सा ;)  | एक बार फिर बहुत बहुत धन्यवाद् आप सब को | "

तो नुक्से कुछ इस प्रकार से हैं :
  1. अपने ज़िन्दगी को दूसरों की ज़िन्दगी के साथ तोलना बंद कर दें | जितना है उतने में संतुष्ट रहें |
  2. मेहनत करें, कोशिश करें, उपाय करें और सकारत्मक सोच के साथ जीवन व्यतीत करें |
  3. ज़िन्दगी में परेशानियों को ढूंढना छोड़ दें और जीवन में जो चीज़ें गज़ब है अदभुत है उन्हें देखने आरम्भ कर दें | 
  4. पूजा पाठ, हवन आदि घर में ज़रूर करें ।
  5. तनाव देने के लिए बहुत कुछ मिलेगा | अपना समय उन पर बर्बाद न करें | उन्हें ज़िन्दगी से जाने दें |
  6. दूसरों की तरक्की और ख़ुशी में खुश रहिये भले ही आप उनसे इर्षा करते हों |
  7. ज़िन्दगी सम्पूर्ण नहीं है | इस बात को स्वीकार करें |
  8. आप अनोखे और खूबसूरत है | इस पर विश्वास कीजिय | आप जैसे हैं वैसे ही अपने आप को प्यार करना सीखिए |
  9. ख़ुद की मदद करने का सबसे आसान तरीका है दूसरों की मदद करना |
  10. दूसरों से दिल खोल कर मिलें | नए रास्ते बनते जायेंगे |
  11. दूसरों की बात को सुनना सीखें |
  12. बुरी से बुरी समस्या में भी कम से कम, दिल में एक सकारात्मक ख्याल ज़रूर लायें |
  13. समस्याओं का समाधान भद्रता से करें | अभद्रता केवल आग में घी का काम करेगी |
  14. अपनी ऊर्जा  लड़ाई लड़ने में प्रयोग न करें | अपितु उससे अपने मनपसंद कार्य में उपयोग करें |
  15. एक के बाद एक गलती का नाम ही जीवन है | इसलिए अपने आप पर इतने सख्त न हों |
  16. जो लोग आपसे शालीनता की अपेक्षा रखते हैं उनके साथ शालीन रहें |
  17. ख़राब मिज़ाज में धैर्य से काम लें | अच्छे मिज़ाज के आने का इंतज़ार करें |
  18. अपना गुस्सा, तनाव, कुंठा, निराशा, निष्फलता को खेलकूद और व्यायाम कर के निकलें |
  19. अपने जीवन का अच्छा पहलू सदा यार रखें | उन लम्हों को अपने साथ अपनी डाईरी, डेली जर्नल, ब्लॉग या कहीं भी लिख कर सुरक्षित रखिये |
  20. तकनीक हमेशा साथ नहीं रहती इसे कबूल करें |
  21. किसी भी कार्य को भरपूर उत्साह के साथ करें |
  22. सड़क पर चलते समय राहगीरों को, अनजान चेहरों को देख कर मुस्कराएँ और दोस्तों और अपनों से फौली भरकर मिलें |
  23. कम बोलें | आलोचना तथा अप्रिय शब्दों का प्रयोग न करें |
  24. तनावपूर्ण स्तिथि में दिमाग ठंडा रखें | शांत दिमाग में जवाब आसानी से आ जायेंगे |
  25. जल्दबाजी न करें | जो भी कार्य करें बहुत सोच समझकर और अपना समय लेकर करें |
  26. हमेशा जीवन में अच्छाई के बारे में सोचें | बुराई के बारे में सोच कर अपना दिन नष्ट न करें |

Allow Me Lord

Allow me Lord
To forgive and forget all those that have tresspassed against me

Allow me Lord
To Sanctify the Truth that we all seek in and amongst ourselves

Allow me Lord
To repent for all my Ignorances,Truths and lack of vision for myself and others

Allow me Lord
To prevail in these hard times that those unsure of themselves wreak havoc

Allow me Lord
To have this time with you and To be comforted by your consecrated truths

Allow me Lord
To Heal from the Sword that was choosen for me of which I fight everyday

Allow me Lord
To solve all these worries that render my soul and have taken life from me

Allow me Lord
To heighten those that worry and can not see the Light nor Vision of day nor Night

Allow me Lord
To strengthen my friendships and relationships of those who fear me for no reason

Allow me Lord
To rise above these murky waters and treacherous souls that do not forgive

Allow me Lord
To serve you in bondage when and where I can do not let me go blind

Allow me Lord
To prepare for the Tough times ahead knowing that I am giving my true intent even To a Stranger

Allow me Lord
To connect with you and be at your side despite the times of change for all

Allow me Lord
To understand those that are different than myself and allow them To be who they are

Allow me Lord
To send a message To the World of Peace and Justice for all not just the fortunate

Allow me Lord
To Bless those that want To be blessed by a person who believes in you and does not forget

Allow me Lord
To be one in union To all the sacredness and divinity that is a part of believing in you my Lord

Allow me Lord
To Pray To you the things that are most important To me and may those things become a part of my life

Allow me Lord
To not attach to those that do not have my highest intent for good as I have for them

Allow me Lord
To detach from those that have crossed Boundaries and assume that they have some power over me

Allow me Lord
To Forgive such uncaring and unemotional people from my Life, May they not be able To sleep at night

शनिवार, जनवरी 12, 2013

मैं चाहता हूँ


मैं तुम्हे चाहता हूँ | तुम्हारे प्यार में पड़ना चाहता हूँ | तुम्हे पूरी शिददत से अपनी ज़िन्दगी में शामिल करना चाहता हूँ | हर तरफ तुम ही तुम हो | मेरी सोच के हर दायरे में तुम्हारा दखल चाहता हूँ | तुम्हारा हाथ पकड़ तुम्हारे साथ खड़ा रहना चाहता हूँ | तुम्हारी ज़िन्दगी में उठे तूफ़ान और बवंडरों का सामना करना चाहता हूँ | तुम्हारी जीत में, मैं भी खुशियाँ मानना चाहता हूँ | शुरू से आखिर तक मैं तुम्हारा साथ चाहता हूँ | तुम्हारी ज़िन्दगी में मैं वो शक्श बनना चाहता हूँ जिसपर तुम आँख मूँद कर ऐतबार कर सको और इस ज़िम्मेदारी के लिए मैं कोई भी कीमत चुकाने को तयार हूँ | मैं कभी भी तुम्हे धोखा नहीं देना चाहता; मैं हमेशा पूर्ण रूप से तुम्हारे साथ ईमानदार और विश्वसनीय बना रहना चाहता हूँ |

मैं वो कन्धा बनना चाहता हूँ जिस पर तुम सर रखकर सो सको | मैं वो छोटी और नर्म बाहें बनना चाहता हूँ जो तुम्हे सीने से लगा सकें जब तुम्हे उनकी ज़रुरत हो | मैं वो इंसान बनना चाहता हूँ जिसे तुम दिल से याद कर सको जब तुम्हे अनुरक्ति की ज़रुरत महसूस हो | मैं तुम्हारे जाने पर तुम्हारा इंतज़ार करना चाहता हूँ | मेरी आरज़ू है के मैं कहीं भी चला जाऊं पर वापस लौट कर तुम्हारे पास ही आऊँ | मैं तुम्हे सब कुछ देना चाहता हूँ जो भी मेरे पास है, मेरा दिल, मेरा प्यार, मेरी आत्मा, मेरा शरीर, मेरी शक्ति, मेरी भक्ति और मेरा अनुराग | मैं चाहता हूँ के तुम मेरे दिल को देखो और समझो और मुझे अपना प्यार दो | मुझे तुम्हारी कमियों और ख़ामियों से कभी कोई फर्क नहीं पड़ा | अगर मेरी नज़र से देखो तो वो कमियां तुम्हे परिपूर्ण बनती हैं | मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता के तुम्हारा को माज़ी है या था | मैं हमेशा तुम्हारे साथ चलने के लिए तयार हूँ और इन सब को साथ लेकर चलने के लिए | फिर चाहे इनकी गहराई में संसार डूब जाये या फिर मैं |

मैं तुम्हारे साथ रातों को झगड़ना चाहता हूँ | तुम्हारी टी-शर्ट की खुशबू में मदहोश होकर तुम्हे अपने करीब ला अपनी बाहों में जकड़ना चाहता हूँ | मैं तुम्हे अपने से दूर जाने नहीं देना चाहता | तुम्हारे नर्म नाज़ुक गालों को कोमल हाथों में लेकर मैं धीरे से चूमना चाहता हूँ | तुम्हारी सोई पलकों पर में धीमे से अपने अंगूठे को फेरना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे खर्राटों से परेशां होकर जब तक जागना चाहता हूँ जब तक तुम मेरा नाम लेकर न बुदबुदाने लग जाओ | तुम्हारे बर्फ से ठन्डे नाज़ुक पैर जो मुझे रात को छूते हैं मैं उनकी शिकायत तुमसे करना चाहता हूँ | मैं तकियों को लेकर तुमसे लड़ना चाहता हूँ | मैं तुम्हे हर उस तरह से प्यार करना चाहता हूँ जितनी मूर्तियाँ खजुराहो में हैं | मैं तुम्हारे हर एक कण को रेशे को प्यार करना चाहता हूँ क्योंकि वही तुम्हे बनाते हैं जो आज तुम हो | मैं तुम्हारी बाहों में रहना चाहता हूँ जब भी मैं उदास होता हूँ या आहत होता हूँ | मुझे उन बाहों में एक सुकून और महफ़ूज़ होने अहसास होता है | मैं चाहता हूँ जब भी मैं रोऊँ, कमज़ोर पड़ जाऊं या कभी मेरा दिल टूट जाये तो तुम्हे वो इंसान हो जो मुझे संभाले और मेरे कानो में धीरे से फुसफुसा कर कहें "डरो मत सब ठीक है, मैं हूँ" | मैं तुम्हे दिली अमन, चैन और सुकून अदा करना चाहता हूँ |

मैं तुम्हारे अंदाज़ और हरकतों पर जोर से हँसना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे घट्ठेदार चुटकुले और अकथनीय रूप धारण करने पर हँसना चाहता हूँ क्योंकि वो वास्तव् में बहुत ही मज़ाकिया होते हैं ये बात अलग है मैंने आज तक तुमसे इसके मुतालिक कभी खुलासा नहीं किया है | मैं तुम्हे मक्कारी वाली हंसी के साथ मुझे अजीब अजीब नामो से पुकारते हुए देखना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ बैठ कर अपनी और तुम्हारी ज़िन्दगी के बारे में नए नए विचार और सोच बांटना चाहता हूँ | जिन्हें याद कर कर के मैं आखरी दम तक हँसता और मुस्कराता रहूँ | मैं दिनभर तुम्हे अनगिनत सन्देश भेजना चाहता हूँ जो की सिर्फ तुम और मैं ही समझ सकें और जिनका मतलब भी हम दोनों के सिवा कोई और न जान सके | मैं चाहता हूँ तुम उन संदेशों को पढ़कर तब तक हंसती रहो जब तक तुम्हारी आँखों में पानी न छलक जाये और आस पास सभी तुमसे सवाल करने लगें "क्या हुआ, क्या हो गया, इतना मज़ेदार क्या है ?" और तुम उन्हें कुछ भी बयां न कर पाओ और जोर जोर से हंसती रहो जब तक वो यह न समझें के तुम बावली हो गई हो | मैं तुम्हारी मुस्कराहट बनना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ राजनीती, कूटनीति, देश, समाज, घटनाएँ, सुख, दुःख, मान, सम्मान, बड़ी, छोटी, प्यार, ज़िन्दगी, दिन, रात, आकर्षण, जीवन, प्रेम, मरण और भी न जाने क्या क्या, इसका अर्थ समझना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे और अपने बीच प्यार का एक नया फ़लसफ़ा इजाद करना चाहता हूँ | मैं तुम्हे साथ जीवन के कुछ बहुत ही महत्त्व और ज़िन्दगी बदलने वाले फ़ैसले लेना चाहता हूँ |

मैं हर पल में तुम्हारा साथ देना चाहता हूँ, तुम्हारे लिए फेवर करना चाहता हूँ पर ये कहते हुए के, "ओके...बट यू ओ में," इसलियें नहीं के इसकी एवज़ में मुझे कुछ चाहियें, अपितु इसलिए के इसके बदले में मुझे तुम्हारे साथ और ज्यादा वक़्त बिताने का मौका मिल जायेगा | मैं कभी कभी तुम पर इतना गुस्सा करना, झल्लाना चाहता हूँ के अंत में मुझे वो शर्म वाली भावना आये और मैं तुमसे अपनी गलती के लिए माफ़ी मांगूं | और मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरे साथ ऐसा ही करो | मैं चाहता हूँ के तुम अपनी बड़ी बड़ी आँखों को गोल गोल घुमाकर मेरी तरफ़ा देखकर मुझे कहो के "यार, माफ़ करो, मेरा पीछा छोड़ो" जब मैं तुम्हे हद्द से ज्यादा परेशान करूँ और बदले में मैं तुम्हारे पास आकर धीरे से तुम्हे चुटकी काट लूं | मैं चाहता हूँ के तुम भी वापस मुझे चुटकी काटो | मैं चुटकी काटने की एक छोटी से जंग लड़ना चाहता हूँ | मैं चाहता हूँ के तुम मुझसे कहो के मैं गलत कर रहा हूँ जिससे मैं दोबारा से चुटकी काट सकूँ और यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहे | मैं तुम्हारे साथ बैठक में कुश्ती लड़ना चाहता हूँ और तुम्हे चित्त कर ज़मीन पर गिराकर मैं तुम्हे बड़ी चाह से देख कर चिढाना चाहता हूँ "मैं जीत गया, मैं जीत गया" | जबकि ये हुम दोनो जानते हैं के ये तुमने मुझे सिर्फ इसलिए करने किया जिससे हम साथ में ज़िन्दगी का एक और प्यारा सा नज़ारा ज़िन्दगी भर के लिए अपनी स्मृतियों में याद रखें |

मैं अपना सर तुम्हारे कंधे पर रखना चाहता हूँ इसलिए नहीं के मुझे नींद आ रही है पर इसलिए के मैं चुपचाप से तुम्हारे करीब आना चाहता हूँ | मैं चाहता हूँ के तुम मुझे पीछे से आकर अचानक पकड़ लो और मोहकता से लुभाते हुए मेरे कंधे को चूम लो | मैं तुम्हारी गर्दन के पीछे अपना चेहरा छिपाकर अचानक से अपनी पलकों से तुम्हे गुदगुदाना चाहता हूँ | मैं चाहता हूँ तुम मेरी इस हरकत के लिए तुम मुझे "बेवक़ूफ़" कहो और फिर धीरे से कहो, "पर इन सभी हरकतों के लिए मैं तुम्हे चाहती हूँ और तुमसे बेंतेहा बेशुमार प्यार करती हूँ" | मैं सारा शनिवार और इतवार तुम्हारे साथ एक चादर में एक ही आधार में बिताना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ अच्छी, बुरी, मीठी, खट्टी, बेतुकी, मज़ेदार, हस्याद्पद, उपहास योग्य, मूर्खतापूर्ण, विचित्र, बदमाश, नटखट, नाज़ुक, और न जाने कैसी कैसी यादें बनाना चाहता हूँ जिन्हें हम आपस में अपने अकेले समय में बाँट सकें और अपनी अपनी प्रतिक्रिया एक दुसरे से कह सकें |

तुम्हारे न होने पर मैं दर्द में तड़पना चाहता हूँ; अपने दिल की गहराई में उस पीड़ा को महसूस करना चाहता हूँ | तुम्हारे चले जाने पर में अपने आपको इस दुनिया का सबसे अकेला इंसान होना कैसा लगता है वो महसूस करना चाहता हूँ | और तुम्हारे वापस आने की वो बेक़रारी मैं ख़ुशी से महसूस करना चाहता हूँ | मुझे यह अच्छी तरह से जानकारी है के मैं तुम्हारा हूँ और तुम मेरी हो | और मैं तुम्हे ये बताना चाहता हूँ के मैं हमेशा तुम्हारे पीछे हूँ जिसे तुम कभी भी मुड़कर देख सकती हो और हमेशा अपने पास पाओगी | अगर किसी को हमारा साथ पसंद न भी हो तब भी मैं तुम्हारा हाथ थामे रहूँगा | मुझे हर वो तनाव, निराशा और कुंठा चाहियें जो मुसीबत के समय में एक रिश्ते में होती हैं क्योंकि इनसे पता चलता है के आप संबद्ध है | मैं चाहता हूँ तुम हमेशा मेरे साथ रहो बावजूद इस कारण के कुछ लोग हमारे खिलाफ खड़े है | मैं उन सब स्तिथियों का सामना तुम्हारे साथ मिलकर करना चाहता हूँ | मैं अपनी बाकि की सारी ज़िन्दगी तुम्हारे साथ बिताना चाहता हूँ पर मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरे साथ अपने भविष्य के बारे में सोचो | मैं तुम्हे ज़िन्दगी में आगे बढ़ते देखना चाहता हूँ | न सिर्फ आर्थिक रूप से बल्कि मैं तुम्हे जीवन को खुल के पूरी तरह से ख़ुशी के साथ जीते हुए देखना चाहता हूँ | मैं ये आश्वासन चाहता हूँ के तुम अपनी संभावित ज़िन्दगी खुल कर अपनी शर्तों पर जियो और मुझे उस पर गर्व हो जिस तरह मुझे तुम पर गर्व है |

मैं तुम्हारे साथ युवा प्रेम का अनुभव करना चाहता हूँ | मैं तुम्हारे साथ हाथ में हाथ डाल कर लोगों के बीच घूम कर उन वयोवृद्ध जोड़ों को सुनना और देखना चाहता हूँ जो जवानों के बारे में बातें करते हैं और उनकी खामियां निकलते रहते हैं | मैं चाहता हूँ के तुम मुझ खूब पर जोर से हंसो जब मैं तुमसे कहूँ, "देखो कभी हम दोनों भी इनकी जगह होंगे और ऐसे ही बातें करेंगे" | मैं चाहता हूँ के मैं और तुम मिलकर एक पूरा दिन अपनी गाडी धोने से शुरू करें और मैं पानी के पाइप से तुम्हारे चेहरे पर पानी छिड़क दूं और तुम्हे गीला कर दूं और तुम मेरे पीछे भागो और मुझे ज़मीन पर गिरा दो और साबुन की बाल्टी मेरे सर पर उंडेल दो | मैं चाहता हूँ हम साथ में बैठ कर हॉरर मूवी देखने और जब तक देखने मैं मशगूल रहें जब तक हमें एहसास न हो के अब डर के मरे सोयेंगे कैसे | मैं चाहता हूँ के तुम मेरे पास चुपचाप बैठो और मुझे गिटार बजाते हुए वो गीत और कवितायेँ गाते देखो जो मैंने तुम्हारे लिए लिखे हैं | मैं चाहता हूँ के तुम ऐसा सोचो के मेरे से अच्छा तुम्हारे लिए कोई और लिख नहीं सकता | मैं चाहता हूँ के मेरे गीत, मेरे बोल तुम्हे रुला दें और मैं धीरे से तुम्हारे आंसू पोछ दूं | मैं चाहत हूँ के इसके बाद मैं तुम्हारा फ़ायदा उठाऊं और मैं चाहता हूँ के तुम भी यही चाहो के मैं तुम्हारा फायदा उठाऊं | और बदले में मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरा फायदा उठाओ |

मैं चाहता हूँ के हम दोनों चुपचाप के स्वच्छंद, सुविधापूर्ण, आरामदायक ख़ामोशी में बैठे रहे | वहां मैं चुपचाप बिना तुम्हारे जाने तुम्हारा एक चित्र बनाऊं | मैं चाहता हूँ के तुम्हे मालूम हो के मैं क्या कर रहा हूँ पर फिर भी तुम ख़ामोश रहो ताकि वो पल ख़त्म न हो जाए | मैं तुमसे घंटो बैठ कर फ़िज़ूल की बातें करना चाहता हूँ और तुम्हारी उलूल जुलूल बातें सुनकर उन पर धीरे से मुस्कराना चाहता हूँ | अख़बार में आये क्रॉसवर्ड पजल सोल्वे करना चाहता हूँ और कार्टून स्ट्रिप देख देख कर मजाक करना चाहता हूँ | मैं तुम्हे हँसते और मुस्कराते देखना चाहता हूँ क्योंकि इसी एक कारण की वजह से मैं बार बार तुम्हारे इश्क में गिरना चाहता हूँ | मैं अपनी आँखों से तुम्हे अनाभूषित और असज्जित होते देखना चाहता हूँ |

मैं चाहता हूँ के तुम मुझे समझाओ के तुम्हे शृंगार की ज़रुरत नहीं है क्योंकि तुम बिना उसके भी बेहद खूबसूरत दिखती हो | ये बात दीगर है के तुम्हारी उस ख़ूबसूरती को देखकर बहार बच्चे डर के मारे खाना पीना छोड़ देते हैं | मैं चाहता हूँ के तुम मुझे बताओ के जब तुमने अपनी नाक छिदवाई थी और कान छिदवाए थे तब तुम्हे कितना दर्द हुआ था | और मुझसे पूछ के टैटू बनवाते वक़्त मुझे कैसा लग रहा था | मैं तुमसे छोटी छोटी चीज़ों पर झगड़ना चाहता हूँ जैसे कौन सा फ.म रेडियो चैनल सुनना है या फिर टीवी पर कौनसी पिक्चर देखनी है | मैं तुम्हारे साथ बहस करना चाहता हूँ के डोमिनोस का पिज़्ज़ा खाने चला जाये या फिर मकडोनालड का बर्गर जब तलक हम दोनों एकमत न हो जाएँ के आज तो लोटन के छोले कुलचे खाने चलते हैं क्योंकि हम दोनों में से किसी को भी अंग्रेजी खाना पसंद नहीं है | मैं चाहता हूँ के तुम मेरे साथ विडियो गेमस खेलो जिस तरह मैं तुम्हारे साथ घर के काम में हाथ बंटाता रहता हूँ | मैं चाहता हूँ के मैं तुम्हे अपने पसंदीदा खेल खेलना सिखाऊं और तुम अचानक एक दिन मुझे उसमें हरा दो | और मैं चाहता हूँ के तुम इसके बारे में शेखी बघारना शुरू कर दो और कहो के, "यह कोई नौसिखिये का लक नहीं है ये तो मेरी मेहनत से मिली सफलता है" | और फिर मैं तुम्हारे साथ मुक़ाबला करना शुरू कर दूं | और मैं तुम्हारे साथ नई नई चीज़ों पर शर्तें लगाना शुरू कर दूं |

मैं चाहता हूँ के तुम्हे साथ एक बढ़िया सा सालसा डांस करूँ | बार मैं बैठकर तुम्हारे साथ मदिरा पान करूँ और यह देख कर खुश हो जाऊं के तुम मेरे लिए ज़रुरत से ज्यादा फिक्रमंद हो के कहीं मुझे कुछ हो न जाए | मैं चाहता हूँ के हमारी इस बात को लेकर बहुत नोकझोंक हो और हम फ़िज़ूल की बातों पर बहस करें जिनका कोई मतलब नहीं हो | फिर घर आकर तुम्हे मानाने के लिए मैं तुम्हे प्यार करूँ | मैं चाहता हूँ के तुम्हारे दोस्त मुझे पसंद करें | मैं चाहता हूँ के मैं तुम्हे रोज़मर्रा के काम करते देख निहारता रहूँ | मूल रूप से स्वभावतः मैं हर पल तुम्हारे साथ व्यतीत करना चाहता हूँ | मैं सिर्फ तुम्हारे साथ रिश्ता बनाना चाहता हूँ और किसी के साथ नहीं | मुझे मालूम है के मैं अक्सर मीन मेख नीकालता हूँ और मेरे में बहुत सी कमियां है पर तुमने मेरे दिल को कुछ इस तरह से छुआ है जैसे पहले कभी किसी ने नहीं छुआ और अब तुम्हारे प्यार में जो मैं गिर पड़ा हूँ तो अब उठ नहीं सकता और सिर्फ तुमसे ही प्यार कर सकता हूँ | मैं चाहता हूँ के तुम भी मेरे इस सच को स्वीकारो और अपने प्यार का इज़हार मेरे से कुछ ऐसे ही अंदाज़ में करो | मैं हमेशा तुम्हे ऐसे ही चाहूँगा बिना किसी शर्त के क्योंकि अब तो बस तुम हो और तुम्ही हो दूसरा कोई नहीं | मैं सोचता हूँ के जीवन में हर एक को तुम्हारे जैसा प्यार मिलना चाहियें क्योंकि तुम सिर्फ तुम हो और तुम मेरी हो सिर्फ मेरी |

मैं चाहता हूँ के मैं तुम्हे अपने इस प्यार का एहसास इस तरह से करवाऊं के तुम उससे स्वीकार करो, समझो, और सबसे बड़ी बात जो खास है वो ये के तुमने कभी ख्वाबों में ही ऐसे प्यार की परिकल्पना नहीं की होगी इसलिए मैं चाहता हूँ के तुम भी मुझे ऐसे ही शिददत से चाहो और अपना लो |

इन्ही सभी उपमाओं, विचारों और प्रेमालाप से भरी सोच के सपने देखता लोटन अपनी खाट पर पैर पसारे घोड़े बेच कर सो रहा था के तभी अचानक मालिक ने आकर एक ज़ोरदार और झन्नाटेदार लात उसके पिछवाड़े पर जमा दी और कहा के, "हरामखोर आज क्या सोता ही रहेगा, काम पर नहीं जायेगा क्या? देख कितना दिन चढ़ आया है, सूरज सर पर नाच रहा है और तू सपनो में बकड़ बकड़ का कर रहा है और फिलम बना रहा है" |

लोटन बेचारा आधी खुली और आधी बंद भौंचक्की और अलसाई आँखों से तुरंत उठ खड़ा हुआ और लडखडाता, डगमगाता, बडबडाता जी मालिक.. जी मालिक करता हुआ रसोई की ओर निकल गया |

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ये कहानी लेखन का मेरा प्रथम प्रयास था । उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगा और आशीर्वाद प्राप्त होगा । कोई त्रुटी हो गई हो तो क्षमा चाहूँगा और आपके सुझाव और विचार सादर आमंत्रित हैं । 

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.

मैं और मेरी बिटिया

मैं और मेरी बिटिया दोनों का कुछ ऐसा रिश्ता है जिसे मैं बयां नहीं कर सकता और न ही करने की कोशिश करता हूँ | इस बंधन को समझाना या बतलाना कठिन होगा मेरे लिए | फिलहाल मैं आपको वो दिखा रहा हूँ जिसे देखकर शायद आप भी अपनी हंसी न रोक पायें | जी बिलकुल मैं अपने नए अवतार का परिचय आपसे करवा रहा हूँ जो मेरी छोटी से ४ वर्षीय गुडिया द्वारा बनाया गया है | यूँ तो वो अक्सर ही अपनी चित्रकला में मेरा वर्णन करती रहती है या मेरे नए नए अवतारों को प्रस्तुत करती रहती है परन्तु यह जो चित्रकारी मैं यहाँ प्रदर्शित करने जा रहा हूँ वो मेरे व्यक्तित्व से बहुत ही मेल खाती है | आप भी एक नज़र डालें और मेरी परी के कलात्मकता का आनंद लें |

मेरी बेटी के नज़रिए से मेरा सुन्दर और मनमोहक चित्रण :



























हाँ जी ये महाशय मैं ही हूँ ऐसा मेरी राजकुमारी का कहना है | अब आप सभी समझदार है | मैं तो बिलकुल मान चूका हूँ के ये मैं ही हूँ सौ फीसदी क्योंकि उसने अपनी प्यार भरी और दुलार भरी दलीलों से मुझे मानने के लिए मना ही लिया | बस अब वो खुश हो गई है | वो खुश तो मैं खुश | और मेरी दुआ है के वो सदा ऐसे ही खुश रहे मुस्कराती रहे |

आप सोचते होंगे की ये कलाकृति आज क्यों पोस्ट कर रहा हूँ दरअसल परिवार के साथ वो गई है घुमने और मैं अकेला बैठा उससे याद कर रहा था | नींद भी गायब है आँखों से | तो इस तस्वीर को देखकर ही मुस्करा रहा हूँ और उसकी बातें याद कर रहा हूँ | आशीर्वाद के साथ ढेर सारा प्यार, लाड़ और दुलार |

शुक्रवार, जनवरी 11, 2013

तलाश

हे करुनामय
रात के अँधेरे में
जब तुम
सो जाते थे
तब एक आत्मा
भटकती थी
एक घर की
तलाश में
जहाँ मुझ
प्यासे
को पानी, पानी
चाहियें था
कुएं की
छाँव चाहियें थी
पीपल के वृक्ष की
छैया पर
जब तुमने
दिन के
उजाले में
वो घर दिया
तब वहाँ
न तो
पीपल ही था
न था वह
कुआँ
मेर प्यास
एक प्यास ही
रह गई
रह गई
एक भटकन
जो मेरे शरीर में
रहते हुए भी
अहसास कराती है
उस स्वप्न की
जिसकी छाँव
जिसकी प्यास
की मुझे
अनंत जीवन तक
तलाश थी
क्यों
हे नियति
मैं तुझसे
पूछता हूँ
क्या ज़रुरत
थी मुझे
उजाले में
स्वप्न दिखने की
जबकि तू
जानता था
कुआँ और पीपल
मुझे कभी
वापस नहीं
मिल सकता