शनिवार, मार्च 30, 2013

एकाकी












एकाकी जीवन है
मेरा
पर्वत तेरे जैसा
कभी लगे
झरने तेरे जैसा
कभी लगे
बादल तेरे जैसा
उमड़ घुमड़ कर
दुःख आते हैं
मन को दुःख दे
छल जाते हैं
कभी अंतः
सुख बरसाते हैं
दिल कहता है
दुःख नहीं चाहियें
अंतः कहता
सुख नहीं चाहियें
अंतः
मन दोनों एकाकी है
जीवन
तन दोनों एकाकी है
तब मैं भी तो
एकाकी हूँ
जीवन डोर
प्रभु को सौंपी
मन, अंतः को
दिया भुलाय
बादल तुझसे
झरने तुझसे
अपना जीवन
लिया मिलाय
बहते रहना
बरसते नयना को
अब लिया है
अपनाय...

शुक्रवार, मार्च 29, 2013

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है













कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है -

काश लोन लेकर शादी की होती -
तो ज़िन्दगी आबाद हो भी सकती थी

ये बेलन और झाड़ू से पिटाई बदन पे खाई है -
रिकवरी एजेंटों की दुआओं से खो भी सकती थी

मगर ये हो न सका और अब ये आलम है -
के बीवी ही है, जिसे मेरा दम निकालने की जुस्तजू  ही है

गुज़र रही है कुछ इस तरह से ज़िन्दगी जैसे -
इससे वसूली वालों के सहारे की आरज़ू ही है

ना कोई राह, न मंज़िल, न रौशनी का सुराग -
गुज़र रही है हतौडों-थपेड़ों में ज़िन्दगी मेरी

इन्ही हतौडों-थपेड़ों से उठ जाऊंगा कभी सो कर -
मैं जानता हूँ मेरे ग़म-वफ़ात, मगर यूँही

कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है

बुधवार, मार्च 27, 2013

गोरी संग होरी

आज न छोड़ेंगे
तुझको हम गोरी
खेलेंगे तो से  होरी
खेलेंगे तो से होरी

चाहे रूठे
हमसे तू गोरिया
चाहे होवे ठिठोली
खेलेंगे तो से होरी

समझे खुद को
तू कितनी सायानी
प्रीत पड़ेगी निभानी
चले न तेरी मनमानी

भर पिचकारी
रंग देंगे तुझको
लाल, नीला, गुलाबी
बचके हमसे जो भागी

भीजेगी फिर
तोहरी चुनरिया
भीज जाएगी चोली
खेलेंगे तो से होरी

ऐसे हमको
नखरे दिखा न
हम ये जीतेंगे बाज़ी
दिखा न ऐसे नाराजी

चाहे लठ चलें
या नैन कटारें
पीछे हम न हटेंगे
खेलेंगे तो से होरी

आज न छोड़ेंगे
तुझको हम गोरी
खेलेंगे हम होरी
खेलेंगे हम होरी

होली का हुल्लड़ - २

होली का हुल्लड़ है, ज़रा हल्ले से निकले
जैसे भी निकले पर,धड़ल्ले से निकले
हम इश्क़ के ख़ादिम ज़रा बल्ले से निकले
रंगीन शब्दों के गुब्बारे, मेरे गल्ले से निकले
जो बनते थे अपने को गज़ब झल्ले से निकले
अब के जो चढ़ा है रंग, बनके छल्ले से निकले
जिन्होंने ये पोता है रंग लल्ले से निकले
होली के रंग, भंग, तरंग पल्ले से निकले
लाल रंग पींको का भर गल्लों से निकले
जम के रंग लगाओ कोई बच के ना निकले
होली है होली मनाओ धूम मचाओ...
बहुत बहुत शुभकामनायें

होली की ख़्वाहिशें ऐसी



अपने कुछ दोस्तों के लिए होली पर लिखी ग़ज़ल आपके सामने पेश कर रहा हूँ | उम्मीद करता हूँ आपको पसंद आएगी |

हजारों, ख़्वाहिशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले,
वो बच निकले,
लेख प्यारे,
लेकिन,
बच कहाँ, निकले

निकलना, बच के,
पिचकारी, से मेरी
पारुल, शैली, सोचे थे
मगर, रंग डाला
जो मैंने, हाय
गुलाबी
होके वो निकले

होली में नहीं है
फर्क लड़के
और लड़की का
पकड़ रंग देता हूँ
मैं हरा, जहाँ नेहा,
सचिन, दिव्या, विनय
मिल जाएँ

हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले,
वो बच निकले,
अभीलेख प्यारे,
लेकिन,
बच कहाँ निकले

चंदा के वास्ते
लाया हूँ पीला
नीला, रचना के
सुर्ख टेटी के
बैंगनी, प्रीती
के लिए

समीर, विष्णु,
को रंग दूं नारंगी
सोचे बैठा हूँ,
मैं भूरा, मृदुला दी
को रंगून
ये कब से सोचे बैठा हूँ

हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले,
वो बच निकले,
ऋतुराज प्यारे,
लेकिन,
बच कहाँ निकले

सुनहरा, ख़ाकी, भूरा
सफ़ेद, मैरून, सलेटी
कत्थई, चमकीला रंग दूं
सभी से
खेलूं मैं होली
सभी दोस्तों से
है गुज़ारिश,
‘निर्जन’ बस इतनी
जो खेलें
होली हम मिल के
दिल भी अपने
मिल जाएँ
जहाँ भी रहे
हम दुनिया में
याद, एक दूजे को आयें

हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले.....
बहुत निकले मेरे अरमान 
लेकिन रंगीन ही निकले 
हजारों, ख्वाइशें, ऐसी,
के हर ख्वाइश पे,
रंग निकले.....

सोमवार, मार्च 25, 2013

होली का हुल्लड़ - १

प्यारे दोस्तों मैं आप सभी को आदाब अर्ज़ करता हूँ | होली के इस शुभ मौके पर मैं आप सबके सामने अपना लिखा एक गीत प्रस्तुत करने जा रहा हूं | उम्मीद करता हूँ आप सभी मेम्बरान को मेरी कोशिश पसंद आएगी | ज़िन्दगी में रिकॉर्डिंग का ये मेरा प्रथम प्रयास है | यदि कोई त्रुटी हो जाये तो शमा चाहूँगा | तो पेश-ए-खिदमत है होली का हुल्लड़ |


दस, नौ, आठ, सात
छह, पांच, चार, तीन
दो एक...मस्ती शरू
करते हैं हम...

रंग भरी इन बौछारों से
भीगी है चुनरिया, हे
भीजे तोहरी चोली, मां
बावरे हैं सब जन यहाँ

मन पर नहीं काबू
होली का है जादू...

ये होली का जादू है ला र ला 
नहीं दिल पे काबू है ला र ला  
दीवाने हम हो गए,
रंगों गुजियों में खो गए
ज़िन्दगी स्वाद और, मस्ती है ला र ला 
ये होली का जादू है ला र ला...

ठंडाई गिलसिया के संग,
भंग घुटी है कोरी, हे
ऐसा मज़ा देवे, जैसे
इन्द्रलोक की गोरी

गरमा, गर्म पूरी की फुहारें
खट्टी कांजी की डकारें
सबको मदहोश हैं करती
देखो, समोसे के कतारें
पहले कभी तो न अब से
इतराता था इतना, रसगुल्ला

ये होली का जादू है ला र ला 
नहीं दिल पे काबू है ला र ला  
दीवाने हम हो गए,
रंगों गुजियों में खो गए
ज़िन्दगी स्वाद और, मस्ती है ला र ला 
ये होली का जादू है ला ला...

जल्दी जल्दी खेल के 
घर भी तो है जाना, हे
नशा ये न चढ़ जाये
दे डैडी से पिटवा न

दिल को, हम जीत चलें है
गाकर ये गीत सांवरिया
है ये, रंग दीवाने का
याद रहे, सारी उमरिया
अब बोलो कैसे बचोगे
‘निर्जन’ की है,
प्यारी सी दुनिया

ये होली का जादू है ला र ला 
नहीं दिल पे काबू है ला र ला  
दीवाने हम हो गए,
रंगों गुजियों में खो गए
ज़िन्दगी स्वाद और, मस्ती है ला र ला 
ये होली का जादू है ला ला...

शुक्रवार, मार्च 22, 2013

कविता दिवस - कविता पर कविता

कविता दिवस पर सोचा
क्यों न प्रयास कर मैं भी
रच डालूं 'निर्जन', कविता
पर एक कंपायक कविता

'क' कृतियाँ सोच
'क' कलात्मक लोच
'क' कोमलता गुन
'क' कर्णप्रीयता सुन

'व' विषय चुन
'व' विचारावेश बुन
'व' वृत्तान्त गढ़
'व' विश्वास दृढ़

'त' तुकबंदी कर
'त' तरकश भर
'त' तंजिया कस
'त' तंत का रस

डाल दिमाग की मिक्सी में
घोट बना कर उद्देश्य
होली पर पेश यह करता हूँ
कविता का कवितामय पेय

रसपान कंकोलक शब्दों का
कँटियाना संभव है मन का
कंटालु भाव मैं बतलाता
कविता दिवस, कविता पर
मैं कविता लिख दिखलाता...

कंपायक - तरंगायक
कंकोलक - चीनी / मीठे
कँटियाना - रोमांचित होना
कंटालु - बबूल

गुरुवार, मार्च 21, 2013

I Love Rains


I love rains,
It take me back memory lanes,
Makes me wet,
With showers of her love and care.

When it thunders,
It reminds me of blunders,
That we both made,
During that loving decade.

When it breezees,
I recall her sneezes,
Wet clothes she wear,
She looked mesmerising i swear.

I love rains,
It take me back memory lanes.

श्रीमती अनारो देवी - भाग ८

अब तक के सभी भाग - १०
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आजाद मुल्क़ | दिलकश फ़िज़ा | खुशनुमा माहौल | दुःख और सुख के बादलों के साथ साथ अनारो देवी के पारिवारिक सुख में समृद्धि और वृद्धी का जोड़ तोड़ चलता रहा | जहाँ उनके बेटे महेन्द्र प्रसाद उर्फ़ मानू की बाल्यकाल में अकस्मात् मृत्यु ने उन्हें झकझोर कर रख दिया और दुसरे बेटे योगेन्द्र उर्फ़ ‘योगी’ की जवान मौत ने सारे परिवार को तोड़ उनके सामने दुःख का विशालकाय पर्वत ला खड़ा किया था | वहीँ अपनी संतानों की तरक्की और शादी ब्याह से उनका आँगन ख़ुशी के रंगों से भी सराबोर भी होता रहा था |

घटना उस समय की है जब महेन्द्र प्रसाद कुछ सात या आठ बरस के रहे होंगे | गर्मियों के दिन थे | जेठ के दोपहरी | एक दिन अचानक पाठशाला से लौट कर उन्हें तेज़ कपकपी उतरी और ज्वर चढ़ आया | अनारो देवी ने घरेलू काढ़ा दे कर उन्हें आराम करने की सलाह दी | परन्तु बालक तो बालक हैं उन्होंने आज तलक किसी की सुनी है भला | माँ की बात न मानकर वे दोस्तों के साथ तेज़ ताप में भी खेलने चले गए | शाम तक उनकी हालत बहुत बिगड़ गई और खेलते खेलते चक्कर खाकर गिर पड़े | सभी बच्चे डर गए और उनके घर पर आकर ये बात बताई | साहू साब तुरंत नौकर को साथ ले उन्हें डाक्टर के पास ले गए | डाक्टर ने बच्चे की हालत देखते हुए उन्हें अस्पताल में भरती कर लिया | परन्तु दिन-बा-दिन बीतते गए और मानू की हालत सुधरने की जगह बिगड़ने लगी | काफी दवा-दारू के बाद भी कोई सूरत-ए-हाल समझ नहीं आया | शहर के बड़े से बड़े डाक्टर को साहू साब ने बुलवाया | पानी की तरह पैसा बहाया पर नतीजा कुछ न निकला | घर में भी सभी का बुरा हाल था पर सब हताश हुए बैठे थे | मंदिर, मस्जिद, गिरिजे, गुरूद्वारे, पीर, फ़कीर, लंगर, प्याऊ सब कर के देखा | हर तरह के नुस्खे अपनाये गए | घंटे-घड़ियाल, कर्म-कान, पूजा-अर्चना, यज्ञ-हवन भी कर देखे पर अगर ऐसे सुनवाई होती तो फिर बात ही क्या थी | आख़िरकार वो दिन भी आ गया जब मानु के विदाई की घडी सभी ने देखी | अपनी आँखों के सामने बिलांद भर के छोरे को काल के मुंह का ग्रास बनते देखते माँ का कलेजा फटे जा रहा था पर ऐसा कोई न था जो उनके लल्ला को जाने से रोक लेता | बुखार दिमाग पर चढ़ने की वजह से मानू कोमा में चला गया था और उसके धीरे धीरे उसकी सासें उसका साथ छोड़ गई |

जैसे तैसे मानू के दुःख से बहार आते आते सालों बीत गए | घर का चिराग बुझ चुका था पर सभी माँ के दिल को दिलासा देने में लगे रहते और संतोष करने को कहते और दूसरी संतानों के होने की दुहाई देते | लोग भगवान् की मर्ज़ी कह कर बात को आया गया कर देते और सुकून कर लेते | पर माँ का दिल कैसे तस्सली करता | जो टीस और पीड़ा उसके दिल के कोने में घर कर गई थी वो ता-उम्र साथ निभाने वाली थी | जीवन का चक्का बड़ा बलवान है और समय के हाथों घूमता है जिसमें इंसान पिस्ता है | अभी कुछ ही वर्ष गुज़रे थे के अचानक एक दिन योगेन्द्र भी मोहल्ले में सड़क पर चलते चलते गश खाकर गिर पड़े | उनकी उम्र तब कोई बीस के आस पास रही होगी | सभी मोहल्ले वाले तुरंत ही उठाकर उन्हें करीब के डाक्टर के पास ले गए | उन्होंने डाक्टर को सीने में दर्द होने की शिकायत बताई | डाक्टर ने तुरंत एक्स-रे निकलवाने का सुझाव दिया | तब तक घर से दुसरे लोग भी डाक्टर के यहाँ पहुँच चुके थे | गंगा सरन जी ने तुरंत ही निकट के अस्पताल में जाकर उनका एक्स-रे करवाया | उस समय एक्स-रे करवाना बहुत बड़ी बात मानी जाती थी | वहां घर पर अनारो देवी और साहू साब को बहुत चिंता लगी हुई थी | कुछ समय के पश्चात सभी योगी को साथ ले घर पहुंचे और तब सबकी जान में जान आई | दो दिन के बाद डाक्टर रिपोर्ट लेकर साहू साब के घर पधारे | सभी बहुत व्याकुल और चिंतित थे के ऐसी क्या बात है जो के डाक्टर साब स्वयं चलकर आये | उन्हें सम्मान सहित बैठक में विराजने को कहा गया और सभी लोग थोड़ी देर में बैठक में हाज़िर हो गए | साहू साब ने पुछा ,

“क्या हुआ डाक्टर बेटा, ऐसी कौन सी बात है जो तुम चलकर आये | कहलवा दिया होता मैं वीरेन्द्र को रपट लेने भिजवा देता | खैर अब आ ही गए हो तो खान पान कर के जाना | बताओ क्या बात है ?”

डाक्टर साब चुप चाप सब सुन रहे थे | उन्होंने धीरे से साहू साब का हाथ थामा और बोले,

“दद्दाजी, खबर अच्छी नहीं है | योगी भाई की हालत सही नहीं है | बात बहुत गंभीर और चिंताजनक है |”

उनकी बात सुनकर सभी सन्न रह गए | गंगा सरन जी ने पुछा,

“बेटे पर बात क्या है वो तो बताओ? ऐसी कौन सी विपदा आन पड़ी अचानक से | योगी तो भला चंगा है ये एक दम से हालत ख़राब | कुछ समझाओ डाक्टर साहब |”

डाक्टर साहब ने उत्तर दिया, “बाबूजी, योगी भाई के दिल में छेद है और दिल भी बढ़ रहा है | देर से पता चला है अब एडवांस स्टेज के करीब पहुँच चुकी है हालत | अगर इलाज भी करते हैं और लगातार दवाई भी करते हैं तो ज्यादा से ज्यादा चार पांच साल और खींच सकते हैं बस | इतना कहकर वो चुप हो गए |”

बैठक में सभी का दिल धक्क्क!!! कर के रह गया | ये कैसी विपदा आन पड़ी अचानक से | अभी सब लोग यही सोच रहे थे के इतना होनहार विद्यार्थी | पढाई लिखाई में अव्वल, हर एक कार्य में दक्ष योगी के साथ अचानक प्रभु ने ये क्या खेला रच डाला | तभी बैठक के दरवाज़े के पीछे से योगी निकल कर आये और बोले,

“अरे अभी पांच साल तो हैं | आप सब तो अभी से मातम मानाने लग गए | कम से कम पांच साल तो ख़ुशी से और अपनी तरह जी लेने दीजिये मुझे | आप सब ऐसे मुँह लटका कर बैठेंगे तो अम्मा को भी पता चल जायेगा | ऐसा में कतई नहीं चाहता के उन्हें ये सब पता चले और वो परेशान हों |”

उनकी बातें और विचार सुनकर सबकी आँखे भर आई और सभी ने उनकी बात का समर्थन करते हुए एक स्वर में हामी भरते बोले,

“हाँ, अम्मा को यह बात ना ही मालूम हो तो बेहतर होगा | अभी तो मानू के हादसे से ही न उभर पाई हैं अम्मा | ये बात पता चली तो न जाने क्या असर होगा |”

सभी ने एक सहमति से अनारो देवी को योगी की बीमारी के बारे में न बताने का फैसला लिया और डाक्टर साब को भी इसमें शामिल कर उनसे से विदाई ली |

देखने में बेहद सुन्दर योगेन्द्र उर्फ़ योगी, प्यार से यही कहकर बुलाती थी अनारो देवी उन्हें | व्यक्ति तो उच्चकोटि के थे ही साथ ही साथ वो पढाई लिखाई में भी अव्वल थे | अपनी बीमारी के चलते भी उन्होंने डबल एम्.ए किया और फिर वो कॉलेज में प्रोफेसर हो गए | उनका सारा समय पढाई लिखाई करने और अपने विद्यार्थीयों को पढ़ने में कैसे बीत जाता पता भी नहीं पड़ता था | साथ ही साथ चुपके चुपके वो अपने इलाज का भी ध्यान रख रहे थे | न ज्यादा हड्कल, न ज्यादा चढ़ना उतरना और न ही ज्यादा भाग दौड़ करते | साहू साब से कह कर उन्होंने बैठक के बगल वाला कमरा ले लिया था | बस सारा दिन वहीँ अपनी किताबों और बच्चों के साथ गुज़ार देते थे |

पर कहते हैं न माँ का दिल, माँ का ही होता है | उसकी आँखों से कुछ नहीं छिपता | क्योंकि वो बाहरी आँखों से नहीं मन की आँखों से देखा करती है | योगी की गिरती सेहत और बर्ताव ने अनारो देवी के मन में शंका उत्पन्न कर दी थी | काफी समय से वो योगी के खान पान, रहन सहन और आचरण पर निगाह कर रही थीं | घर के बाक़ी लोग भी उनकी शंका के घेरे में थे | समझदार को इशारा ही काफी होता है और समझदारी में अनारो देवी का कोई सानी न था | जीवन के अब तक अनुभवों और कटु सत्यों ने उन्हें स्तिथियों को समझने और परखने की ऐसी क्षमता प्रदान कर दी थी जिसके रहते वो किसी भी आनेवाली विपदा को पहले ही महसूस कर लेतीं थी |

एक दिन उन्होंने योगी को अपने कमरे में बुलवाया | कमजोरी के चलते योगी बहुत ही धीरे धीरे सीढियां चढ़कर उनके कमरे में पहुंचे | ऊपर तक जाने में वो बुरी तरह से हांफने लगे | अनारो देवी ने उन्हें देखा तो उठ कर उनके सर पर हाथ फेरा और कहा,

“आ गया लल्ला | बैठ जा | इतना हांफ क्यों रहा है | देख कितना कमज़ोर भी हो गया है तू | अपने खाने पीने का ख्याल रखा कर | वैसे भी अब तेरी शादी की उम्र हो रही है तंदरुस्त नहीं दिखेगा तो कैसे काम चलेगा | लल्ला, तू सारा दिन बस कॉलेज और उसके बाद अपने कमरे में ही रहता है | कहीं आता जाता भी नहीं है | क्या बात है, क्या परेशानी है, कोई दिक्कत है तो मुझे बता मैं तो तेरी अम्मा हूँ | मैं सब ठीक कर दूंगी | बचपन में तू दिल की सारी अच्छी बुरी झट से आकर कह दिया करता था | और जब से तूने वो नीचे वाला कमरा लिया है तब से तो तू अपने में ही खो गया है | अब तो अम्मा से मिले भी तुझे पखवाड़ों बीत जाते हैं | खाना भी अब नीचे ही मंगवा कर खाने लगा है | चुपड़ी रोटी भी नहीं खाता | घी-दानी भी ऐसे ही वापस आ जाती है | पहले कम से कम चौके बैठ कर ठीक से खाना तो खा लिया करता था | ठाकुरजी की कृपा से चौके में तेरी शक्ल देखने को मिलती तो थी अब तो उसके भी लाले हैं | इतना भी क्या व्यस्त हो गया तू के अपनी अम्मा को ही भूल गया |”

योगी अम्मा की गोद में सर रखकर लेट गए | “न अम्मा ऐसी तो कोई बात न है | बस आजकल कॉलेज मैं काम थोड़ा ज्यादा है और बच्चों के इम्तिहान भी सर पर हैं | फिर उन्हें पढ़ना, समझाना, परीक्षा के लिए तयार करना होता है इसलिए समय बचाने के लिए ज़्यादातर नीचे ही रहता हूँ और खाना भी नीचे ही मंगवा लेता हूँ और कहीं आता जाता भी नहीं हूँ | एक बार इम्तेहान निपट जाएँ फिर बस फारिक़ | बस और कोई बात न है तू फ़िक्र न करा कर | मैं ठीक हूँ |”

अनारो देवी ने योगी का हाथ उठाया और अपने सर पर रख लिया, “खा मेरी कसम के सब ठीक है | इतने दिनों से देख रही हूँ | सब पर नज़र है मेरी | तेरी अम्मा हूँ मैं कुछ तो है जो मुझसे छिपाया जा रहा है | अब बात क्या है बता नहीं तो...|”

योगी ने झट से अम्मा के मुंह पर हाथ रख दिया और आगे कुछ भी कहने से रोक दिया | “वो बात ऐसी है अम्मा के मेरी तबियत कुछ ठीक न है | इलाज करा रहा हूँ जल्दी ठीक हो जाऊंगा |”

“सच बता! बात क्या है | अम्मा से कुछ मत छिपा |”

“अम्मा!!! मेरे दिल में छेद है और दिल भी धीरे धीरे फैल रह है | डाक्टर का कहना है के अब ज्यादा दिन ना हैं मेरे पास | ज्यादा से ज्यादा महीना दो महीना और हैं |”

अनारो देवी अपने आपको सँभालते हुए पूछती हैं “कब से है ये बीमारी? बता कब से भर रहा है तू ये दर्द? ये बात सबको पता है न? कब से छिपाया जा रहा है मेरे से यह सब?

“अरी अम्मा, छोड़ यह सब सवाल जवाब, देख मैं हूँ तो तेरे सामने एक दम तंदरुस्त और हाँ आज सारी रात तेरी गोद में सर रखकर ही सो जाऊंगा |”

अनारो देवी अब समझ गईं थी के तबियत बिगड़ गई है और बात हाथ से निकल चुकी है | अनारो देवी भी अपनी आँखों पर एहसासों का बाँध बना अपने आंसुओं को बहने से रोकती रहीं और योगी से सर पर ममता का हाथ फिराती रहीं | एक सियाह रात अम्मा और लल्ला के बीच होती अनकही बातचीत में आँखों आँखों में गुज़र गई | रात की तन्हाई और कमरे की खामोश दीवारें अपने अनकहे शब्दों से सन्नाटे को गुंजायमान करती रही | सभी चिरागों की रौशनी को समेटे सुबह की लाली ने फिर से एक बार घर के आँगन का रुख किया | बस वही आखरी पल थे जो अनारो देवी और योगी ने साथ बिताये थे |

उस दिन के तकरीबन दो महीने बाद फागुन मास, दुलेहंडी वाले रोज़ योगेन्द्र अपने कमरे में कुर्सी पर बैठे के बैठे रह गए | डाक्टरी रिपोर्ट के अनुसार उनका दिल पूरी तरह से फैल गया था जिसके चलते वो ब्रह्मलीन हो गए | उस समय उनकी आयु बत्तीस वर्ष के आस पास रही होगी | आख़िरकार उन्होंने डाक्टर के कहे को सिरे से झुठला दिया था और उम्र के तकरीबन बारह साल उस बीमारी से लड़ते गुज़ारे | घर में सभी इस सदमे के लिए तयार थे | कहीं न कहीं अनारो देवी भी इस दिन को देखने के लिए दिल मज़बूत किये ठाकुरजी से अपने लल्ला की सलामती की दुआएं माँगा करती थीं | उनकी आँखों से गिरते खून के कतरों का एहसास सिर्फ गंगा सरन जी ही लगा सकते थे | लाड, प्यार और दुलार से सींची हुई बगिया से ऐसे फूलों के उजड़ने का गम माली ही जान सकता है |

जीवन पथ अंतहीन है | यहाँ चलते ही रहना है | जो आता है वो जाता भी है | यह एक शाश्वत सत्य है | परमपिता परमेश्वर का लिखा कोई नहीं बदल सकता | जीवन में उसने जो पात्र, घटनाएँ और वृत्तान्त लिख कर भेजे हैं उनका सञ्चालन वह स्वयं ही करता है | किसी को जल्दी बुलावा आता है किसी को देर से | यही सोच अपने दुःख और पीड़ा को साथ लिए अनारो देवी और उनका समस्त परिवार जीवन के कठिन पलों का सामना करते हुए आगे बढ़ता रहा |

संतान भी बड़ी हो रही थीं | हालाँकि उम्र का अंतर संतानों में काफी ज्यादा था लेकिन आपस में प्यार, आदर और सम्मान एक दुसरे के लिए स्पष्ट था | सबकी आंखो की सच्चाई और आचरण में उनका एक दुसरे के प्रति व्यक्तिगत स्नेह और प्रेम निहित था | अब अनारो देवी को अपनी संतानों के ब्याह की चिंता सताने लगी थी | हालाँकि उनकी बड़ी बेटी गार्गी का ब्याह उन्होंने पंद्रह बरस की आयु में ही कर दिया था | समय गुज़रते बाक़ी की संतानों के भी हाथ पीले होते गए और वो अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होती चलीं गईं | क्रमशः

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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |

All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental. 

बुधवार, मार्च 20, 2013

इश्किया होली


इश्क़िया होली पर तुझे दिल पेश करूँ
इश्क़िया होली पर तुझे जां पेश करूँ
इश्क़िया होली पर तुझे जहां पेश करूँ
जो तू कहे नगमा-ए-जज़्बात तुझे 
मेरी जानिब-ए-मंजिल पेश करूँ
गर मालूम हो तेरी नियाज़-ए-इश्क 
फ़िर नगमात-ए-इश्क गाकर वही 
दिलनवाज़ दिल्साज़ मैं पेश करूँ
जो तेरी नम हसरतों को हवा दे 
जज़्बात वही सजाकर पेश करूँ 
या कोई तेरी ग़ज़ल, कविता, किस्सा 
तेरे ही अल्फाजों में तुझे पेश करूँ 
तू जो एक बार मिल जाये होली पर 
अपने नवरंग प्यार की बौछार से भिगा
सराबोर कर, तुझको तुझे ही पेश करूँ 
अबके होली....

रविवार, मार्च 17, 2013

खूब मना मिलकर तू होली

होली के दिन आए आज
खूब बजेंगे जमकर साज़
ला दिखलायें अपना दिल
होली आकर हमसे मिल
बढ़े अपनों का प्यार ज़रा
चढ़े इश्क़ का खुमार ज़रा
त्योहार गले मिलते अपने
होत हैं सच दिल के सपने
सबके दिल में रंग खिले
गले लग करें दूर गिले
लुत्फ़ बहुत ही आता है
मुफ्त मज़ा दे जाता है
छोड़-छाड़ हर शरम-वरम
खूब निभाओ छुपे करम  
होली पर मस्ती में जीना
भंग तो जमकर है पीना
रंग चढ़ता हँसते हँसते 
भुला देता सारे रस्ते
पास लाओ अपना कान
मेरी बात पर दो ध्यान
चबाओ एक बनारसी पान
लगाके उसमें केसरी किमाम
नशे की जब चढ़ती मस्ती
दुनियादारी की क्या हस्ती
अपनी धुन में डोलती है
स्वछंद विचारों की कश्ती
हल्ला गुल्ला शोर मचे
सब देख सरीखे मोर सजे
होली की जो मचती है धूम
जनता सबरी जाती झूम
होली में बनाती तकदीरें
क्या खूब संवरती तदबीरें
अबीर भरा है समस्त गगन
घर घर हो रहे लोग मगन
सब रंगे हैं ललाम लाल
सबरे गालों का एही हाल
मनवा बावरा हाले डोले
हर क्षण पगला मुझसे बोले
खूब मना मिलकर तू होली
'निर्जन' बन सबका हमजोली

शुक्रवार, मार्च 15, 2013

ज़िन्दगी से मुलाक़ात


आओ बतलाऊं दिल की बात
आज दिन था कितना खास
ज़िन्दगी से एक मुलाक़ात
बढ़ी गुफ्तगू की सौगात
कैसे सुबह से शाम हो गई
दिल की बातें आम हो गईं
जादू झप्पी से हुआ आगाज़
कितना सुन्दर रहा रिवाज़
शब्दों को भी पकड़ जकड़
दिए उलाहने अगर मगर
सवालात कुछ आम हुए
मियां मुफ्त सरनाम हुए
कुछ तस्वीरें कुछ तकरीरें
मिल बांटी हाथों की लकीरें
थोड़ी खुशियाँ थोड़े ग़म
सांझे किये कर आँखें नम
फिर आगे ये गज़र चली
कुदरत संग ये जा मिली
नदी, फूल, तितली के रंग
साथ खिले बातों के संग
गपियाने के जब दौर चले
जाने किस किस ओर चले
विचार, सुन्दरता, आकर्षण
अनावरण, भावना, विकर्षण
कर जीवंत आत्मा का मंथन
क्या खूब किया था विश्लेषण
हृदय द्वार जब खोल दिये
अस्तित्व शब्दों में बोल दिये
उन अपनेपन की बातों ने
जीवन में नवरस घोल दिए
द्रुतवाह अग्नि का खेल हुआ
बौद्धिक क्षमता का मेल हुआ
एक पड़ाव फिर ऐसा आया
पकवानों को सम्मुख पाया
शौक़ भोजन व्यंजन का
हृदय क्षुधा संबद्ध दर्शाया
हंसी ठीठोली खूब रहीं
कवितायेँ भी खूब कहीं
धारावाहिक, फिल्में, गाने
चर्चा इन पर ख़ास हुई
माज़ी से चुनकर लम्हात
शरीक हुए अब जज़्बात
वाह वाही भी खूब कही
ऐसे ही सारी शाम बही
वक़्त बिछड़ने का आया
दिल अपना मुंह को लाया
लम्हा काश ये थम जाता
जीवन यूँ ही चल पाता
कब होता है ऐसा यार
जाना लाज़मी उस पार
हाथ छुड़ा निमिष का
मिलने का वादा कर
निश्चल मन हुए जुदा
बिछडन के लम्हे पर
दागा गया कड़ा गोला
सवाल था बड़ा भोला
दिन पूरा कैसा गुज़रा ?
शब्दों में बतलाओ
भावनाओं को दर्शाओ
हमने कहा बतलायेंगे
हम भी कुछ जतलायेंगे
गौर थोडा फरमाएंगे
तब ही कुछ दिखलायेंगे
लो कहा दिनभर का सार
अब तुम करते रहो विचार
ज़िन्दगी से एक मुलाक़ात
दिन बना मेरा यह खास....

गुरुवार, मार्च 14, 2013

मैं और मेरी तन्हाई

मैं और
मेरी तन्हाई
बस यही है
अब मेरी अपनी
इस तन्हाई में
मैं कितने
मौसम सजाता हूँ
सब कुछ
भूल कर मैं
तुझसे मिलने
आता हूँ
तेरी यादें
तेरी बातें
तेरे सपने
सजाता हूँ
फिर जब
आँख खुलती है
मुस्करा कर
सर हिलाता हूँ
तेरे ख्वाबों को
दिल से
लगाकर मैं
मुड़कर तन्हाई
में अपनी वापस
लौट जाता हूँ
मैं इस तन्हाई से हूँ
और मेरा
जादू ये तन्हाई
बस अब एक
तनहा मैं
और फ़कत
मेरी ये तन्हाई.....

जीवन चक्र

एक को तेरा मरण
तेरह दिन में
मिले नए सम्बन्ध
छूटे रिश्ते वो सब
जो तेरे अपने
जाने और अनजाने थे
क्यों मानव इस
चक्रव्यूह में
घूमता है
ये, अजीब सा सत्य
हे ईश्वर
एक, तीन का मिश्रण
शुन्य सा हुआ
हर मानव
कब तक
आता जाता
रहेगा
पृथ्वी की तरह
चाँद सूरज के पीछे
सुबह शाम
घूमता रहेगा
एक घर
एक परिवेश से
दुसरे परिवेश में
कभी जब
पुराने सम्बन्धी
आयेंगे यादों में
तब तू अपने
जन्म की
अनंत पीड़ा से
अपनी मृत्यु की
वेदना का अनुभव
करते हुए क्या
सुख की सांस भी
ले पायेगा ......

बुधवार, मार्च 13, 2013

आयो होरी को त्यौहार

आयो होरी को त्यौहार
लायो रंगों की बौछार
भीजी चुनरी तुम्हार
सुलगे जियेरा हमार
आओ मिल बांटे प्यार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
फागुन सुलगाये सांस
आयो देखो मधुमास
मारे हिलोरे आस
बसंत जिलावे प्यास   
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
खिलती कली कली
अरमानो में खलबली
गीत गावे मनचली
चली मैं पिया गली
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
कोकिला कूक लगाये
अमिया बौरायी जाये
अंतर्मन अग्न जगाये
प्रिये संग नेह बनाये
आयो होरी...

आयो होरी को त्यौहार
भंग लाओ मेरे यार
रंग चढे अब के बार
आई टेसू की फुहार
हुडदंग होवे सर पार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
ढोल मंजीरे बजाएं ताल
नाचें बाल, बाला, गोपाल
नभ उड़े अबीर-ओ-गुलाल
गरे डारे बइयाँ माल
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
शायरी, नज़्म, पान
कविता, शेर, पीकदान  
साहेबान, मेहरबान
क़द्रदान, खानदान
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
पकवान मज़ेदार
कांजी-बड़ा ज़ोरदार
आलू पोहा मिर्चमार  
ठंडाई चढ़ी नशेदार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
राजमा-चावल मांडमार
छोले भठूरे ज़ायकेदार
कढ़ी पकोड़ी झोलदार
पिंडी छोले हवादार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
सैंडविच, टिक्की, भेल, पापड़ी
स्नैक्स, उपमा, चकली, फाफ्ड़ी
नगौरी, ढोकला, मठरी, कचौड़ी
मेथी चटनी, भल्ले, समोसा, पूड़ी
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
मिष्ठानों से भरते थाल    
रसगुल्ला, गुंजिया, लड्डू, बर्फ़ी,
खीर, जलेबी, हलवा, कतली
सबरों देसी घी को माल
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
ज़न्खी बेरंगी सरकार
निगोड़ी से न दरक़ार
किसी की न वफ़ादार
बेमानी, चोर और बेकार
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
मज़हबी दंगे फसाद
सुसरे सब अवसरवाद
नफरत बारूदी खाद
हमरी नस्ल हुई बर्बाद
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
खून से ललाम लाल
मचा कैसा है बवाल
पिचकारी गोला हाथ
गुब्बारा बम के साथ
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
नशेड़ियों की होती मांग
दारू, सुलफ़ा, चरस, अफीम,
बीडी, सिगरेट, गांजा, भांग
हाई हो देते सीमा लांघ
आयो होरी.....

आयो होरी को त्यौहार
लाल प्रेम का गुलाल
पीली मित्रता की धार
नीली सौभाग्य की फुहार
बैंगनी खुशियाँ अपार
आयो होरी.....

शहीद सरदार उधम सिंह को मेरा शत शत नमन



भारत की आज़ादी की लड़ाई में पंजाब के प्रमुख क्रान्तिकारी सरदार उधम सिंह का नाम अमर है। कुछ लोगों का ऐसा मानना है कि उन्होने जालियाँवाला बाग हत्याकांड के उत्तरदायी जनरल डायर को लन्दन में जाकर गोली मारी और निर्दोष लोगों की हत्या का बदला लिया, लेकिन कुछ इतिहासकारों का मानना है कि उन्होंने माइकल ओडवायर को मारा था, जो जलियांवाला बाग कांड के समय पंजाब का गर्वनर था | ऐसा भी माना जाता है के ओडवायर जहां उधम सिंह की गोली से मरा, वहीं जनरल डायर कई तरह की बीमारियों से ग्रसित होकर मरा।

२६ दिसंबर १८९९  को पंजाब के संगरूर जिले के सुनाम गांव में जन्मे ऊधम सिंह अनाथ थे। सन १९०१  में ऊधम सिंह की माता और १९०७  में उनके पिता का निधन हो गया। इस घटना के चलते उन्हें अपने बड़े भाई के साथ अमृतसर के एक अनाथालय में शरण लेनी पड़ी। ऊधम सिंह के बचपन का नाम शेर सिंह और उनके भाई का नाम मुक्ता सिंह था, जिन्हें अनाथालय में क्रमश: ऊधम सिंह और साधु सिंह के रूप में नए नाम मिले। अनाथालय में ऊधम सिंह की जिंदगी चल ही रही थी कि १९१७ में उनके बड़े भाई का भी देहांत हो गया और वह दुनिया में एकदम अकेले रह गए। १९१९ में उन्होंने अनाथालय छोड़ दिया और क्रांतिकारियों के साथ मिलकर आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए। डा. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू की गिरफ्तारी तथा रोलट एक्ट के विरोध में अमृतसर के जलियांवाला बाग में लोगों ने १३ अप्रैल १९१९ को बैसाखी के दिन एक सभा रखी जिसमें ऊधम सिंह लोगों को पानी पिलाने का काम कर रहे थे।

इतिहासकार डा. सर्वदानंदन के अनुसार ऊधम सिंह सर्वधर्म समभाव के प्रतीक थे और इसीलिए उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद आजाद सिंह रख लिया था जो भारत के तीन प्रमुख धर्मो का प्रतीक है। अमर शहीद उधम सिंह उर्फ राम मुहम्मद सिंह आजाद १३ अप्रैल, १९१९ को घटे जालियाँवाला बाग नरसंहार को अपनी आँखों के सामने होते देखा । कुछ घटिया राजनेताओं की साजिश के कारण जलियाँवाला बाग़ में मारे गए लोगों की सही संख्या कभी सामने नहीं आ पाई परन्तु इस काण्ड से हमारे वीर उधमसिंह घायल शेर की भांति खूंखार हो गए और गुस्से से आग बबूला हो गए | तकरीबन १८०० लोग जो शहीद हुए थे उन्होंने मन ही मन उनके लिए लड़ने की ठानी और प्रतिशोध की अग्नि में जलने लगे |  ऊधम सिंह ने जलियाँवाला बाग़ की मिटटी को हाथ में ले और माथे से लगा प्रण लिया के वो इस दुष्कर्म के लिए ज़िम्मेदार माइकल ओ डायर को सबक ज़रूर सिखायेंगे |

देशप्रेम का यह सच्चा सपूत संकल्पित था ब्रटिश दुर्दांत हुकूमत द्वारा किये गए पाप और अपने देशवासियों के क्रूर अपमानजनक मौत का बदला लेने के लिए | अपनी इस मुहीम को अंजाम देने हेतु उन्होंने अलग अलग नामों से अफ्रीका, नैरोबी, ब्राजील और अमेरिका की यात्रा की। सन् १९३४ में हमारे उधम सिंह लंदन पहुंचे और वहां ९, एल्डर स्ट्रीट कमर्शियल रोड पर रहने लगे। यहाँ वहाँ यात्रा करने के लिए उन्होंने एक गाड़ी भी ख़रीदी | उसके साथ उन्होंने एक ६ गोलियों वाली पिस्तौल भी खरीद के रखी |

फिर वो सही समय का इंतज़ार करेने लगे | सिंह साब सही मौका मिलते ही कमीने माइकल ओ डायर को मारने की फ़िराक में थे और उचित वक़्त की बाट जोह रहे थे | १९४० में उन्हें जलियाँवाला बाग़ में शहीद हुए अपने सैकड़ों भाई, बहन, माताओं और देशवासिओं की मौत का बदला लेने का मौका मिला | उस काण्ड के २१ साल बाद १३ मार्च १९४० को | ब्रिटिश अख़बारों में प्रकाशित हुआ की लन्दन के कैक्सटन हाल में एक गोष्ठी आयोजित होने वाली है जिसमे ओ डायर के अलावा पूर्व भारत सचिव लार्ड जेटलैंड भी पहुंचेगा | दिन में दो बजे एक वकील की वेशभूषा में सज्जित उधम सिंह हाँथ में एक मोटी पुस्तक लिए पहुँच गए | मूलतः उसी किताब को भीतर से पिस्तौल के आकर में काट कर एक लोडेड पिस्तौल उसी में सुरक्षित रख दी थी | निश्चित समय पर कार्यक्रम प्रारंभ हुआ | हाल खचाखच भरा हुआ था | ओ डायर ने यहाँ भी अपना भारत विरोधी जहर उगला | तालियों की गडगडाहट से पूरा हाल गूंज उठा | लेकिन तभी गोलियों की तडतडाहट ने तालियों की गडगडाहट को खामोश कर दिया | दीवार के पीछे से मोर्चा संभालते हुए उधम सिंह ने माइकल ओ डायर पर गोलियां दाग दीं। दो गोलियां माइकल ओ डायर को लगीं । सूअर ओ डायर जमीन पर पड़ा तड़फ रहा था और उसकी तत्काल मौत हो गई | जेटलैंड के हिस्से की गोली भी उसे  मिल चुकी थी | पिस्तौल खाली हो चुकी थी किन्तु उधम सिंह का चेहरा संकल्प पूर्ण होने की दैवी आभा से चमक रहा था | बैठक के बाद उधमसिंह ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर दुनिया को संदेश दिया कि अत्याचारियों को भारतीय वीर कभी बख्शा नहीं करते। उधम सिंह ने वहां से भागने की कोशिश नहीं की और अपनी गिरफ्तारी दे दी। उन पर मुकदमा चला । अदालत में जब उनसे पूछा गया कि वह डायर के अन्य साथियों को भी मार सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों नहीं किया। उधम सिंह ने जवाब दिया कि वहां पर कई महिलाएं भी थीं और भारतीय संस्कृति में महिलाओं पर हमला करना पाप है।

१ अप्रेल १९४० को केन्द्रीय आपराधिक ओल्ड बेयले मुकद्दमे की औपचारिता निभा कर ४ जून १९४० को उन्हें फांसी की सजा सुना कर उसी ब्रिक्सटन जेल भेज दिया गया जहाँ अमर शहीद मदन लाल धींगरा को भेजा गया था | जेल में उन्होंने गुरु ग्रन्थ साहिब, कुरान और हिन्दू धर्म की पुस्तकों का अध्यन करने की कोशिश की किन्तु क्रूर ब्रिटिश हुकूमत ने उन्हें दस दिन में एक बार नहाने की छुट दी थी | अतः इन पवित्र पुस्तकों को स्नान कर छूने की भारतीय परम्परा के चलते उन्होंने इसमें आंशिक सफलता ही प्राप्त की | ३१ जुलाई को पेंटोंन विले जेल में फांसी का फंदा चूम कर उन्होंने जुलाई के महीने को पवित्र कर दिया | उनकी अंतिम क्रिया भी ब्रिटिश हुकूमत ने गुप्त रूप से कर दी | १९ जुलाई १९७४ को उधम सिंह के अवशेष भारत लाये जा सके और उन अवशेषों को हिन्दू-मुस्लिम-सिख समुदाय ने उधम सिंह की इच्छानुसार हरिद्वार में गंगा, फतेहगढ़ मस्जिद के साथ लगे कब्रिस्तान में और सिख भाइयों ने उनकी अंत्येष्टि आनंद साहिब में पूर्ण की | देशप्रेम के इस सच्चे सपूत को देशभक्तों का हार्दिक-हार्दिक अभिनन्दन अनिवार्य है | इस तरह यह क्रांतिकारी भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में अमर हो गया |

मैं अपने देश के ऐसे सच्चे वीर बेटों, सेनानियों और शहीदों को शीश झुका कर शत शत नमन करता हूँ |

आप सभी देशवासियों से एक सवाल पूछना चाहता हूँ के देश को गंदे नेताओं से बचाने के लिए हमें आज ऐसा ही आदर्श देश पुत्र चाहिए ??? "सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं,  मेरी कोशिश है कि यह सूरत बदलनी चाहिए" | यदि आप इस सवाल पर सहमत हैं तो कृपया अपना जवाब और मत टिपण्णी के रूप ज़रूर ज़रूर दीजिये |

भारत माता की जय | जो बोले सो निहाल सत श्री आकाल | जय श्री राम | हर हर महादेव | जय कारा वीर बजरंगी का | यलगार हो | जयहिंद !!!

समझो तब

जीवन पहेली है
ना समझो तब
जीवन कहानी है
समझो तब

जीवन अन्धकार है
ना समझो तब
जीवन दर्शन है
समझो तब

जीवन काँटा है
ना समझो तब
जीवन गुलदस्ता है
समझो तब

रिश्ते तमाशा हैं
ना समझो तब
रिश्ते ज़िम्मेदारी हैं
समझो तब

साथ दुखमय है
ना समझो तब
साथ सुखमय है
समझो तब

प्रेम मृगतृष्णा है
ना समझो तब
प्रेम अनुभूति है
समझो तब

मन निर्जीव है
ना समझो तब
मन सजीव है
समझो तब

विचार पीड़ा हैं
ना समझो तब
विचार क्रीडा हैं
समझो तब

बातें व्यर्थ हैं
ना समझो तब
बातें अर्थ हैं
समझो तब

मुलाक़ात बेमानी है
ना समझो तब
मुलाक़ात दीवानी है
समझो तब

चरित्र धोखा है
ना समझो तब
चरित्र भरोसा है
समझो तब

कसक सज़ा है
ना समझो तब
कसक मज़ा है
समझो तब

मनुष्य अज्ञानी है
ना समझो तब
मनुष्य ज्ञानी है
समझो तब

जीवन यापन अनुभव है
अलौकिक व पारलौकिक का
समझो तब, समझो तब, समझो तब...

मेरी मृगतृष्णा

मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल की
जन्मो जन्मो से
तरसती है
मैं कौन हूँ
क्या हूँ
सब जानते हुए
हर जन्म में
नई मोह माया के
उधड़े बुने जाल में
फंसती है

मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
किसी चाहत को
तड़पती है
कभी श्राप है
कभी आशीर्वाद है
नौका विहार की भांति
लहरों से मुझे
मिलाती है

गहन अन्धकार
दिव्य प्रकाश
हर जन्म में मुझे
धरोहर में मिलता है
मेरी मृगतृष्णा
अनंत काल से
कुछ ना
पाने को की
मचलती है 

जी क्यों है

कोई ये कैसे बताये, के ये 'जी' क्यों है 
वो जो अपने हैं, वही 'जी' 'जी' करते क्यों है 
यही बातें हैं,  तो फिर बातों में, 'जी' 'जी' क्यों है 
यही होता है तो, आखिर ये, 'जी' होता क्यों है 

एक ज़रा बात बढ़ा दे, तो समझ लें 'जी' को 
उसकी बातों से समझ जायेंगे, हम भी 'जी' को 
इतनी फुर्सत में हैं, समझा तो ज़रा, तू 'जी' को 

शब्द-ए-बर्बाद से,  वाबस्ता है अब तक कोई 
उम्र-ए-दर्द दिया करता है, अब तक वोई  
शब्द जो भूल गए, फिर से सुनाता क्यों है

दिल-ए-उल्फत कहो, या कहो, अफ़सुर्दा
कहते हैं 'जी' का ये रिश्ता है, कसक का रिश्ता 
है कसक का, जो ये रिश्ता, भला कहते क्यों है ...... 

वाबस्ता - get stuck/attached
उल्फत - love
अफ़सुर्दा - sad/sorry/dismal/withering

मंगलवार, मार्च 12, 2013

शाद-ए-हबल्ब

फवाद-ए-फुर्सत की दुआ तू है 
अबसार-ए-मसरूर फरोग तू है  
देख तुझे दीदार-ए-दुनिया हासिल है 
शाइ तू जो दिलों जहाँ गाफ़िल है  
ख़ामोशी बयां करती अफ़साने है
लफ़्ज़ों में शामिल शोख नजराने हैं
जाकिर शोखियाँ तेरी तनहा रातों में 
क़माल जादू मयस्सर तेरे हाथों में 
घुंचालब कहते आलि-आलिम बातें 
याद है तुझसे आक़िबत वस्ल  
बहकी दिलकश मदहोश सियाह रातें 
उम्मीद-ए-फ़र्दा फ़कत तू है मेरी 
शाद-ए-हबल्ब तू ही है बस 
अब बज़्म-ए-यार में....

फवाद-ए-फुर्सत - स्वस्थ होते दिल / रिकवरिंग  हार्ट / recovering heart
अबसार - आँखें / आईज / eyes
मसरूर - आनन्दित / चीयर्फुल / cheerful
फरोग - रौशनी / लाइट / light
शाइ - गुम / लॉस्ट / lost
अफ़साने - किस्से / स्टोरीज / stories
शोख - शरारती / मिसचीविअस / mischevious
जाकिर - ख्याल करना / रेमेम्बेरिंग / remembering
शोखियाँ - शरारतें /  प्रैंक्स / pranks
मयस्सर -  मौजूद / अवेलेबल / available
घुंचालब - कली जैसे होठ / बड लिप्स / lips like bud  
आलि - अवर्णनीय / सबलाइम / sublime
आलिम - समझदार / इंटेलीजेंट / intelligent
आक़िबत - अंतिम / फाइनल / final
वस्ल - मुलाकातें / मीटिंग्स / meetings 
उम्मीद - आशा / एक्स्पेक्ट / expect 
फ़र्दा -  कल / टुमौरो / tomorrow
शाद - छाया / शैडो / shadow
हबल्ब - दोस्त / फ्रेंड / friend
बज़्म-ए-यार - दोस्तों के महफ़िल / ग्रुप ऑफ़ फ्रेंड्स / group of friends