दिन के उजाले में
जिसकी आँखें सूर्य के समान चमकती हैं
जिसकी हंसी से
सारा जग रोशन हो जाता है
जिसके अनेकों दोस्त है
जिसे पागलों की तरह चाहने वाला
एक प्रेमी है
किसी दिन वो भी ब्याह के
एक बड़ी घर में जाने का सपना संजोये है
जिस तरह वो अपने पिता के घर में
उनके साये पली बढी है
एक दिन वो अपनी पढाई पूरी कर
अपनी मनपसंद नौकरी करना चाहती है
या फिर अपनी पढाई पूर्ण कर
एक सजीले नौजवान के साथ
अपना जीवन व्यतीत करना चाहती है
जिसके साथ वो सदा सुखी रहे खुश रहे
उसके खूबसूरत संतान हो
और वो उन्हें पूरे दिल से चाहे
समय बीतने के साथ वो दादी बने, पड़दादी बने
और जब अंतिम समय आये
तब वो शांति के साथ
अपने प्यारे जीवन साथी के पास लेटे हुए
पञ्च तत्व में विलीन हो जाये
यही एक स्त्री की संपूर्ण जिंदगी की सोच होती है
इसके विपरीत पीड़ित
एक २३ वर्षीय युवती
चांदनी में चमकती सर्द रात में
रुदन करते हुए
अपनी तरह टूटी हुई और
मिथ्या मुस्कराहट लिए
एक दम अकेली
कुछ अनजान दरिंदों के बीच
एक अनिश्चित मानसिकता के साथ
संघर्ष करती है
अब वो बड़ा घर एक खालीपन से
भर गया है
सपने चूर चूर हो गए हैं
समाज में दूसरों की मुस्कराहटों को देख
उससे अपनी पुरानी जिंदगी का एहसास होता है
अब कोई राजकुमार नहीं है
जिसे वो सब कुछ सौंपना चाहती थी
जो उससे छिन गया है
उसके वो सुन्दर बच्चे अब नहीं होंगे
अब उसका वो चकना चूर दिल
कभी जुड नहीं पायेगा
वह अपनी माँ से कभी कह नहीं पायेगी
के उनकी वो परिपूर्ण और निपुण बेटी
हमेशा के लिए कहीं खो गई
वह सदा के लिए समाप्त हो चुकी है
अब सिर्फ एक शव समान रह गई है
उन लोगों ने उससे सब कुछ छीन लिया
और अब वो एक परछाई है जो कभी वो हुआ करती थी
उससे सब कुछ छिन्न चुका है
उसकी मुस्कान, उसकी जवानी और उसकी संपूर्ण जिंदगी
वेदना को स्वर प्रदान करती बेहद भावपूर्ण रचना!
जवाब देंहटाएं@शालिनी - आप का मैं बहुत बहुत धन्यवाद करता हूँ | आगे भी मैं ऐसे ही आपके जैसे प्रशंसक के लिए लिखता रहूँगा.
जवाब देंहटाएं@ब्लॉग बुलेटिन - मेरी कविता को ऐसा मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.