मंगलवार, दिसंबर 18, 2012

ममत्व

इस रसहीन जगत में
इस मरुस्थल  जैसे जगत में
एक ममत्व का रस
शोरगुल में
खोया जाता है
माँ से या बच्चे से ?
नहीं जानती मैं
नहीं जानती
अधिकारों में
या
कर्त्तव्य की बेदी
पर मैं
खुद भी
आंसू लिए
खोजती हूँ
अपने ममत्व को
आशीर्वाद भरे
उस आलिंगन को
ममता के
उस हाथ को
जो फेरा था
कभी उसके सर पर
उस सिहरन को
जो मेरे लाल के
पास होने से
आती थी
उस चाँद को
जिसकी याद में
ये जीवन एक तड़प
एक प्यास ही रह जायेगा
कोई प्रश्न कोई उत्तर
किसी के पास
नहीं है
क्योंकि ममता
एक सपना तो नहीं
संतान का मोह
कहीं मोक्ष का
द्वार तो नहीं
नहीं जानती, नहीं जानती

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