पात्र :
राम - मुख्य पात्र
सारिका - पत्नी
सोम्या - बड़ी बेटी
सारा - छोटी बेटी
रात बहुत ही तेज़ तूफ़ान आया था | ओले भी गिरे थे | पर उसे नहीं मालूम था के रात का तेज़ अंधड़ उसके जीवन में भी एक नया बवंडर लेकर आने वाला है | एक ऐसा भावनाहीन चक्रवात जो उसके सभी एहसासों और जज्बातों को उड़ा ले जायेगा |
उसके लिए तो वो दिन भी सर्दियों की एक मस्ताना सुबह जैसा था | बारिश अब भी ज़ोरों के बरस रही थी मानो इंद्र देवता कुछ ज्यादा ही प्रसन्न हों | लगता था रात से इन्द्रजी भी बियर का सेवन कर रहे हैं | बिजली ऐसे चमक रही थी जैसे आज मौसम भी रौद्र रूप में तांडव करने के मूड में हो | ज़िन्दगी की वो हसीन सुबह अपने परिवार के साथ, रोजमर्राह की भागम भाग, नहाना धोना, बच्चों का शोर, स्कूल जाने की तयारी, नाश्ता, टिफ़िन, और वही घरेलु कामकाज के बीच उसके दिमाग में क्या चल रहा था किसी को इस बात की भनक भी नहीं थी | सुबह हँसते खेलते बच्चे स्कूल जाने को तयार थे | नाश्ते में चाय और पकोड़े बने थे | सब ने साथ मिलकर आलू, गोभी और प्याज़ के पकोड़े खाए और फिर वो बच्चों को स्कूल छोड़ने निकल गई |
राम रात से अपनी स्टडी में ही बैठा था और काम निपटा रहा था | नाश्ते के बाद भी वो स्टडी में जाकर बैठ गया था और थक कर सुबह वहीँ पर सो गया था | नींद में उसका चेहरा ऐसा लगता था मानो जैसे चाँद सोया हो | एक दम शांत और कोमल | ऐसा उसकी छोटी बेटी 'सारा' कहती है | बड़ी बेटी 'सोम्या' और छोटी बेटी दोनों से उसे बेहद प्यार है | एक आँखों का तारा है तो दूसरी ज़िन्दगी का चकोर | उसका समस्त जीवन उन दोनों के इर्दगिर्द ही घूमता रहता है | उन दोनों के सिवा उसकी छोटी सी दुनिया में और कोई नहीं है | ऐसा नहीं के और लोग नहीं हैं परिवार में पर उन दोनों के सामने उसे कुछ और दिखाई ही नहीं देता है | उनके लिए वो कुछ भी कर गुजरने को तयार रहता है | अचानक से उसकी आँख खुलती है और पसीनो में तरबतर उठ कर बैठ जाता है | उससे समझ नहीं आता के एक दम से ये शोर कैसा ? फिर सोचा शायद कोई बुरा सपना देखा होगा | बैठा बैठा सोच ही रहा है, के अभी तो सोया ही था फिर इतनी जल्दी आँख कैसे खुल गई ? घडी देखी तो दोपहर के पूरे साढ़े बारह बजे थे | अचानक से बड़ी बिटिया भागी हुई आई |
"आ गया बेटा स्कूल से"
"हाँ पापा , कहते कहते बिटिया गोद में आकर बैठ गईं"
"स्कूल में क्या किया आज सारा दिन सोम्या बेटा?", राम ने बड़े प्यार से सवाल किया
"कुछ नहीं, आज तो खेलते रहे और शैतानी करते रहे", उसने आँखे चमका कर और इतरा कर जवाब दिया
"पापा, इस सन्डे को पिज़्ज़ा बनाओगे न ?" बिटिया ने बड़े प्यार से पुछा
"हाँ बेटा, ज़रूर पर पहले",
इतना कहते के साथ राम ने अपना गाल आगे बढ़ा दिया | बेटी ने धीरे से दोनों गालों पर चूमा और फिर सीने से लग कर बैठ गई | बस वही एक लम्हा होता था जहाँ राम की सारी थकान मिट जाती, नींद गायब हो जाती, ज़िन्दगी और जीवन का वक़्त थम जाया करता था | एक नई ऊर्जा का तेज उसके शरीर में दौड़ जाता था | बेटी को सीने से लगाकर जो आनंद की अनुभूति होती थी उसे बयां करना उसके बस में न था | पिता होने का एहसास दिल में उमड़ जाता था और रगों में खून का दौरान एक दम शांत हो जाता था | वो ऊर्जा से हर्शोल्लासित और सजीव हो उठता था | ऐसा लगता मानो के ये लम्हा यहीं थम जाये और बेटी ऐसे ही हमेशा दिल के करीब रहे |
अचानक राम की बीवी आई और सोम्य को गोदी में उठा कर ले गई | राम अपने लैपटॉप पर मेल चेक करने में लग गया | कुछ देर बाद अचानक से कुछ ऐसा हुआ के दिल में आग जल उठी | कुछ एक घंटों के बाद उसने देखा के घर के और लोग जोर जोर से उससे बुला रहे हैं | वो उठा और जाकर पुछा के क्या हुआ ? पता चला बड़ी बिटिया और उसकी जीवन संगनी कहीं नज़र नहीं आ रहे हैं | तीन घंटे से ऊपर हो गए कुछ पता नहीं कहाँ गए | तुरंत मोबाइल पर संपर्क साधने की कोशिश की | परन्तु मोबाइल तो बंद बता रहा था | दिल में हज़ार सवालों के साथ सैकड़ों आशंकाएं उठने लग गईं | क्या हुआ ? कहाँ हैं ? फ़ोन बंद क्यों है ? बहुत कोशिश की परन्तु कुछ पता नहीं चला | शाम को राम के मोबाइल की घंटी बज उठी | परेशान बैठा राम दौड़कर भागा और फ़ोन उठा कर बोला,
"हेल्लो ! कौन"
दूसरी तरफ़ा से आवाज़ आई
"मैं बोल रही हूँ ", आवाज़ राम की पत्नी सारिका की थी
"सारिका तुम और सोम्या कहाँ हो ?", राम ने गुस्से, डर और असमंजस के भावों के साथ सवाल किया
"मैं आ गई ", सारिका ने बतलाया
"आ गई मतलब ?", राम ने हैरानी से पुछा
"मैं सोम्या को लेकर अपने पापा के आ गई", दूसरी तरफ से जवाब आया
"लेकिन अचानक कैसे ? एकदम बिना बताये और वापस कब आना है ? सब ठीक तो है वहां ?", राम ने उत्सुकता से पुछा
"अब कभी नहीं आना, मैं घर छोड़ कर आ गई " बीवी ने तुरंत जवाब दिया और फ़ोन पटक दिया
राम के पैरों तले ज़मीन खिसक गई | वो बुत बना खड़ा रह गया | चेहरा सफ़ेद पड़ गया | उसे यकीन नहीं हुआ | ऐसे हालातों का सामना उसने पहले कभी नहीं किया था | वो किंकर्तव्यविमूढ़ बावला सा खड़ा दीवार ताक़ रहा था | लाल नम आँखों में आंसू के साथ आक्रोश और गुब्बार था | उसने कई बार फ़ोन लगाने की फिर से कोशिश की पर फोन स्विचऑफ बता रहा था |
सारा तभी भागी भागी आई और बोली,
"पापा, मेरी भी बात कराओ न | मम्मी का फोन था ? सोम्या कहाँ है ?
उसे और मुझे तो आज गुडिया की शादी रचानी है | वो मेरी गुडिया का दुपट्टा लेने गई है क्या ?
और भी न जाने कितने ही सवाल वो पूछे चली जा रही थी जिनका जवाब राम के पास नहीं था | जैसे तैसे सारा को समझा बुझा कर और खाना खिला कर सुलाया और फिर कमरे में जाकर देखता क्या है के अलमारियां खाली पड़ी हैं | और भी काफी सामान नहीं है | बेटी की अलमारी खाली पड़ी है | उसके खिलौने, किताबें और कपडे गायब हैं | अचानक से 'सोम्या' के छोटे छोटे जूतों पर नज़र गई तो दिल भर आया | ये मंज़र देखकर अगर कुछ था तो नम आँखे, सीने में दर्द, खालीपन और मायूसी थी | राम सन्न खड़ा सोच रहा था ये अचानक कैसा वज्रपात हुआ उसकी हंसती खेलती दुनिया पर | अभी सुबह तक तो सब कुछ ठीक था | हंसी ख़ुशी ज़िन्दगी चल रही थी | इन्ही सभी कठिन परिस्थितियों से बोझिल मन से बालकोनी में जाकर खड़ा हो गया |
एक सिगरेट सुलगाई और बैठ गया | बारिश अब भी गरज गरज के बरस रही थी | बिजली की चमक ऐसे लगती थी मानो भगवन भी आज उसे चिढाने के मूड में है और उसके इन हालातों की तस्वीर उतार रहा हो | ऐसा लग रहा था जैसे राम की आँखों के आंसू आज आसमान बहा रहा है | राम ने सर ऊपर किया और आकाश की ओर देखकर सोचने लग गया के ये सब उसके साथ ही क्यों और कैसे हो गया | एक दम से यह पहाड़ कैसे टूट पड़ा | अचानक से घर छोड़ कर चले जाना और फ़ोन भी बंद कर देना | माजरा समझ में नहीं आ रहा था | ज़िन्दगी की हालत ऐसी हो गई थी जैसे किसी गाडी पर १२० किलोमीटर की स्पीड से चलते हुए अचानक ब्रेक लगने के बाद जो नुकसान होता है उसी स्तिथि में राम था | एकदम से ऐसे पत्थर दिल कैसे हो सकती है वो | इतने सालों की शादी, प्यार, मन सम्मान, भरोसे का ये सिला दिया उसने | घर में अक्सर ऐसी छोटी मोटी कहा सुनी तो होती रहती है | इसका मतलब ऐसा करना तो नहीं | वो ऐसे कैसे धोखा दे सकती है ? वो इतना सारा सामान लेकर गई कैसे ? क्या ये सब वो काफी समय से सोच समझ कर प्लान कर रही थी ? क्या वो अब कभी वापस नहीं आएगी ? बेटी कैसी होगी ? बेटी से क्या कहा होगा ? बेटी को मेरी याद आएगी तो कैसे मनाएगी ? बेटी रात को सो भी पायेगी मेरे बिना ? काश! ये सब एक मजाक से ज्यादा कुछ न हो | दिल्लगी कर रही है वो मुझसे |
इसी सब सोच के बीच पिछले कुछ सालों की विडियो रील उसके दिमाग में शुरू हो चुकी थी जिसका नज़ारा वो अपनी आँखों के सामने देख रहा था | वो साथ बिताये लम्हे, हंसी ख़ुशी के पल, बेटियों का जन्म और उनके जन्म दिन, हँसना, रूठना, झगड़ना, मानना सभी का बाईस्कोप उसके सामने चला जा रहा था | और ऐसे ही न जाने कितने अनगिनत सवालों से जूझता हुआ वो सिगरेट पर सिगरेट सुलगाये जा रहा था और अपने दिल, वक़्त और ज़िन्दगी को जलाये जा रहा था | क्रमश:
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इस ब्लॉग पर लिखी कहानियों के सभी पात्र, सभी वर्ण, सभी घटनाएँ, स्थान आदि पूर्णतः काल्पनिक हैं | किसी भी व्यक्ति जीवित या मृत या किसी भी घटना या जगह की समानता विशुद्ध रूप से अनुकूल है |
All the characters, incidents and places in this blog stories are totally fictitious. Resemblance to any person living or dead or any incident or place is purely coincidental.
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