ख्वाबों की दुनिया में बुने एक अलसाये मन के भाव, विचार, सोच, कहानियाँ, किस्से, कवितायेँ....|
बुधवार, मार्च 05, 2014
बुधवार, फ़रवरी 26, 2014
शुक्रवार, फ़रवरी 21, 2014
तू साथ दे तो
तू कहती हैं तेरे लिए ये ग़ज़ल लिख दूं
तू साथ दें तो शब्दों का कँवल लिख दूं
गालों की सुर्खी से तेरी किरण लिख दूं
तू साथ दें तो आसमां पर सनम लिख दूं
आँखों के काजल से तेरे ये रात लिख दूं
तू साथ दें तो सितारे भी मैं साथ लिख दूं
दिल कहे है कागज़ पर गुलाब लिख दूं
तू साथ दें तो इश्क़ का गुलदस्ता लिख दूं
'निर्जन' तेरी आरज़ू इस दिल पर लिख दूं
तू साथ दे तो ज़िन्दगी भर आदाब लिख दूं
बुधवार, फ़रवरी 19, 2014
देखे दुनिया
ज़िन्दगी में मुश्किलों से होगा परिचय
मुसीबतों के गुलों से होगा सामना
ऐसे में जीवन को कोसने से क्या लाभ
क्षण ऐसे व्यर्थ ना ज़ाया कर 'निर्जन'
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया
ज़िन्दगी में हर मोड़ हर पल हर पहर
छूटेगा किसी का साथ बिछड़ेगा कोई
पल पल बदलता रहेगा सफ़र ऐसे ही
पथ ऐसे व्यर्थ ना ज़ाया कर जीवन का
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया
ज़िदगी में अँधेरे आयेंगे दुःख छाएंगे
दर्द के बदल आंसू बन बरस जायेंगे
टूटेगी आस तब सांस भी थम जाएगी
हिम्मत व्यर्थ ना ज़ाया कर जीवन की
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया
रोज़ पतझड़ आयेंगे सूखेंगे हौसलें
सींच अपने खून से पायेगा मंजिलें
सांस जब तक रहे बना नए घोंसले
शक्ति व्यर्थ ना ज़ाया कर जीवन की
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया
ले शपथ कर सामना देखे दुनिया...
शुक्रवार, फ़रवरी 14, 2014
सनम
इज़हार-ए-इश्क़ का आया मौसम
अरमां मचलते इस दिल में सनम
महफूज़ मुद्दत से रखा हमने इन्हें
आज क्यों ना कह दें तुमसे सनम
मालूम है फ़र्क पड़ता नहीं तुमको
हम जियें या मर जाएँ ऐसे ही सनम
हसरत दिल की दिल में ना रह जाये
यही सोच लिख बयां करते हैं सनम
तुम कब समझोगी ये अंदाज़-ए-बयां
हो ना जायें हम फनाह इश्क़ में सनम
सोचता 'निर्जन' थाम हाथ मेरा भी कभी
कहेगा हूँ मैं साथ तेरे यहाँ हर पल सनम
--- तुषार राज रस्तोगी ---
चिप्पियाँ:
इश्क़ मोहब्बत,
उम्मीद,
कविता,
ज़िन्दगी,
प्यार,
प्रेम संबंधी,
फ़लसफ़ा,
हिंदी कविता
सोमवार, फ़रवरी 10, 2014
तू क्या जाने
तू क्या जाने इस दिल में
तेरी बेक़रारियां हैं क्या
तू क्या जाने इस दिल में
तेरी दुश्वारियां हैं क्या
तू क्या जाने इस दिल में
तेरी खुमारियां हैं क्या
तू क्या जाने इस दिल में
तेरी जिम्मेदारियां हैं क्या
तू क्या जाने इस दिल में
तेरी उन्सियत है क्या
तू क्या जाने इस दिल में
तेरी शक्सियत है क्या
तू क्या जाने इस दिल में
'निर्जन' धड़कन है क्या
ये दिल समझाता तुझको
कभी तू दिल को समझा
शुक्रवार, फ़रवरी 07, 2014
गुलपोश
गुलपोश चेहरे पर उसके
गुलाबी हंसी गुलज़ार है
मंद मुस्कान होठों की
उस रुखसार में शुमार है
अदा उसके इतराने की
दिल में वाबस्ता रहती हैं
सोच कर क्या मैं लिख दूं
हसरतें मेरी जो कहती हैं
उन्स की खुशबू ओढ़ कर
फ़ना हो जाऊं इस इश्क में
शोला-बयाँ आरज़ू कर तर
जवां हो जाऊं इस इश्क़ में
सदा जा-बजा आती है
'निर्जन' सुनता रहता है
आज भी गुलाबों के दिन
सपने बुनता रहता है
गुलपोश : फूलों से भरे
रुखसार : गाल
शुमार : शामिल
वाबस्ता : संलग्न
हसरत : कामना
उन्स : लगाव
फ़ना : नष्ट
शोला-बयाँ : आग उगलने वाली
सदा=आवाज़
जा-बजा=हर कहीं
रविवार, फ़रवरी 02, 2014
तुम्हारे लिए
मेरी कविता, मेरे अलफ़ाज़
मेरी उम्मीद, मेरे उन्माद
मेरी कहानी, मेरे जज़्बात
मेरी नींद, मेरे ख्व़ाब
मेरा संगीत, मेरे साज़
मेरी बातें, मेरे लम्हात
मेरा जीवन, मेरे एहसास
मेरा जूनून, मेरा विश्वास
सब तुम्हारे लिए ही तो है
फिर क्या ज़िन्दगी में
तुमसे कह नहीं सकता
मेरे जीवन का हर क्षण
तुम्हारे लिए ही तो है
तुम भी अपनी साँसों में
मेरी हर एक सांस को
बसा सकते हो क्या ?
इस ज़िन्दगी में तुम
हर पल हर क्षण यही
गीत गा सकते हो क्या ?
एक गीत एक कविता
फिर कहानी सुनाएगी
कहेगी, बतलाएगी
मेरी मस्ती में तुम भी
शामिल हो जाओगी
निश्छल निर्मल
अनोखी सरल
शरारती दिल्लगी
तुम्हारे जीवन में
संचार करेगी तिश्नगी
जब तुम पा जाओगे
इश्क की मंजिल वही
ज़िन्दगी के हर लम्हे में
हर मोड़ पर हल पल में
फैल जाएगी सुगन्ध
महक मेरे पागलपन की
तसव्वुर में तुम्हारे
तब बेचैन हो उठोगे
अपने आप को
मेरी पहचान में
शामिल करने को.....
चिप्पियाँ:
इश्क़,
उम्मीद,
एहसास,
कल्पना कहानी,
कविता,
मोहब्बत,
संगीत,
हिंदी कविता
शुक्रवार, जनवरी 31, 2014
रात के आगोश में
रात के आगोश में...
छा रहीं मदहोशियाँ
धीमी सरसराहटें
कर रहीं सरगोशियाँ
ख़ामोशी की ज़बां
कहती है कहकशां
तेरी वो गुस्ताखियाँ
जाज़िब बदमाशियाँ
रात के आगोश में...
बातें बस यूँ ही बनीं
उसने जो कुछ कही
उन बंद होटों से सही
दिल से इबादत यही
कर जज्बातों को बयां
जुस्तजू-ए-ज़ौक़ रही
मौन रह सब मैंने सुनी
रात के आगोश में...
चलती मुझसे गुफ़्तगू
छोड़ कर सोने चली
भूल ख्वाबों से मिली
'निर्जन' बे कस बैठा
बे क़द्र रातें कोसता
लफ़्ज़ों को सोचता
ज़ह्मत को परोसता
रात के आगोश में...
जाज़िब : मनमोहक, आकर्षक
जुस्तजू : खोज, पूछ ताछ, तलाश
ज़ौक़ : स्वाद
बे कस : अकेला, मित्रहीन
बे क़द्र : निर्मूल्य
ज़ह्मत : मन की परेशानी, विपदा, दर्द
सोमवार, जनवरी 20, 2014
क्या कहूँ
अमा अब क्या कहूँ तुझे हमदम
नूर-ए-जन्नत, दिल की धड़कन
जान-ए-अज़ीज़, शमा-ए-महफ़िल
गुल-ए-गुलिस्तां, लुगात-ए-इश्क़
हर दिल फ़रीद, दीवान-ए-ज़ीस्त
अलफ़ाज़ होते नहीं मुकम्मल मेरे
पुर-सुकून शक्सियत तेरी जैसे
महकती फ़ज़ा-ए-गुलशन 'निर्जन'
हो सुबहो या शामें या रातों की बेदारी
तुझको देखा आज तलक नहीं है
फ़िर भी
तुझको सोचा बहुत है हर पल मैंने....
लुगात : शब्दकोष, dictionary
दीवान : उर्दू में किसी कवि या शायर की रचनाओं का संग्रह, collection of poems in urdu
ज़ीस्त : ज़िन्दगी, life
अलफ़ाज़ : शब्द, words
मुकम्मल : पूरे, complete
पुर-सुकून : शांत, peaceful/tranquil
बेदारी : अनिद्रा, wakefullness
चिप्पियाँ:
इश्क़ मोहब्बत,
उर्दू कविता,
एहसास,
निर्जन,
प्यार,
रूमानी,
शायरी,
शेर
बुधवार, जनवरी 15, 2014
देखे होंगे
मेरी तरह उसने भी तो रातों में
चाँद से लिपटते तारे देखे होंगे
चांदनी के आगोश में सिमटते
वो मदहोश नज़ारे देखे होंगे
रात के आसमान में धीरे से
खिसकते बादल देखे होंगे
छत की मुंडेर को थामे वो
रातों में मुझे ढूँढ़ते तो होंगे
सियाह रात के सर्द कुहरे में
बंद होठ धीरे से मुस्कुराते होंगे
अनकहे अनछुए एहसास उसके
दिल में भी धड़कते मचलते होंगे
बस कह नहीं पाता है वो
दिल की बात 'निर्जन' तुझसे
ये बात दीगर है कि सपने तो
उसने भी वही देखे होंगे...
चिप्पियाँ:
इंतज़ार,
इश्क़ मोहब्बत,
ऐतबार,
ख्याल,
ख्व़ाब,
चाँद,
बदल,
रातें,
हिंदी कविता
मंगलवार, जनवरी 07, 2014
दिल का पैगाम
उनकी आमद से हसरतों को, मिले नए आयाम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम
दिल दरिया है, रूप कमल है, सोच है आह्लम
हंसी ख़ियाबां, नज़र निगाहबां, ऐसी हैं ख़ानम
ख़ुदाई इबादत, इश्क़ की बरकत, जैसे हो ईमान
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम
दिल अज़ीज़ है, अदा अदीवा है, मिजाज़ है शबनम
खून गरम है, बातें नरम हैं, शक्सियत में है बचपन
लड़ती रोज़ है, भिड़ती रोज़ है, जिरह उनका काम
सोच रहा हूँ उनको भेजूं मैं, कैसे दिल का पैगाम
जब से मिला हूँ, तब से खिला हूँ, बनते सारे काम
मुस्कुराहटें, सरसराहटें, रहती सुबहों और शाम
दुआ रब से, मांगी है कब से, मिल जाये ये ईनाम
सोच रहा है 'निर्जन' उनको दे, कैसे दिल का पैगाम
आमद : आने
आह्लम : कल्पनाशील
ख़ियाबां : फूलों की क्यारी
निगाहबां : देख भाल करने वाला
ख़ानुम(ख़ानम) : राजकुमारी
अज़ीज़ : प्रिय
अदा : श्रृंगार, सुन्दरता
अदीवा : लुभावनी
शबनम : ओस
जिरह : बहस
गुरुवार, जनवरी 02, 2014
बना करते हैं
तेरी ज़ुल्फ़ के साए में जब आशार बना करते हैं
बाखुदा अब्र बरस जाने के आसार बना करते हैं
तेरे आगोश में रहकर जब दीवाने बना करते हैं
अदीबों की सोहबत में अफ़साने बना करते हैं
तेरी नेकी की गौ़र से जब गुलिस्तां बना करते हैं
ख्व़ार सहराओं में गुमगश्ता सैलाब बना करते हैं
तेरी निगार-ए-निगाह से जब नगमें बना करते हैं
अदना मेरे जैसे नाचीज़ तब 'निर्जन' बना करते हैं
आशार : शेर, ग़ज़ल का हिस्सा
अब्र : मेघ, बादल
आगोश : आलिंगन
अदीबों : विद्वानों
सोहबत : साथ
अफ़साने : किस्से
नेकी : अच्छाई
गौ़र : गहरी सोच
गुलिस्तां : गुलाबों का बगीचा
ख्व़ार : उजाड़
गुमगश्ता : भटकते हुए
निगार : प्रिय
निगाह : दृष्टि
नज़्म : कविता
नगमा : गीत
अदना : छोटा
नाचीज़ : तुच्छ
नज़र उसकी
अदा उसकी
अना उसकी
अल उसकी
आब उसकी
आंच उसकी
रह गया फ़कत
अत्फ़ बाक़ी 'निर्जन'
बस वो तेरा, फिर तेरी
जान उसकी
चाह उसकी
वफ़ा उसकी
क़ल्ब उसकी
ग़ज़ल उसकी
जो कुछ बाक़ी
रहा हमदम
गोया मुस्कुराते
कर देगा
नज़र उसकी
नज़र उसकी ...
*अदा : सुन्दरता, अना : अहं, अल : कला, आब : चमक, आंच : गर्मी, अत्फ़ : प्यार, क़ल्ब : आत्मा, नज़र : समर्पण
चिप्पियाँ:
इश्क़,
इश्क़ मोहब्बत,
उर्दू कविता,
एहसास,
कविता,
ख्याल,
ख्व़ाब,
ग़ज़ल
मंगलवार, दिसंबर 31, 2013
रिश्ते
चिप्पियाँ:
इश्क़ मोहब्बत,
गुलाब,
प्यार,
प्रेरणा,
महक,
रिश्ते,
हिंदी कविता
सोमवार, दिसंबर 30, 2013
मेरा रहबरा
चिप्पियाँ:
उर्दू कविता,
एहसास,
ऐतबार,
कविता,
दोस्ती,
हिंदी कविता
गुरुवार, दिसंबर 26, 2013
यह किसकी दुआ है
ऐ मेरी तकदीर बता
किसकी दुआ है
दिल में उमंग
जिगर में तरंग
यह किसकी दुआ है
मेरे जीवन की
मेरे मन की
चमक दमक तो
संवर गई अब
जुगनू सा
प्रकाशमय जीवन
जगमग सितारों सी
रौशनी है
यह किसकी दुआ है
मन को मोड़ा
तन को जोड़ा
साँसों की तारों
को झकझोरा
यह किसकी दुआ है
एक आवाज़
ह्रदय को हर्षाती
प्रार्थना को भेदती है
आत्मा के यौवन को
खुशियों से प्राणों
से जोड़ती है
यह किसकी दुआ है
अपनों के बंधन
सच्चे और मीठे
साँसों का
हर कतरा झूमा है
यह किसकी दुआ है
पत्ता-पत्ता, बूटा-बूटा
एक-एक करके
मेरे मन मस्तिष्क में
हर क्षण, हर पल
कुछ ना कुछ
गाता है, गुनगुनाता है
पूछता है कहता है
'निर्जन'
यह किसकी दुआ है
यह किसकी दुआ है
मंगलवार, दिसंबर 24, 2013
एक शाम उसके नाम
‘निर्जन’ जैसे चाहने वाले तुमने नहीं देखे
जिगर में आग ऐसे पालने वाले नहीं देखे
यहाँ इश्क़ और इमां का जनाज़ा सब ने देखा है
किसी ने भी दिलजलों के दिल के छाले नहीं देखे
---------------------------------------------------
तेरी आँखों की नमकीन मस्तियाँ
तुझसे 'निर्जन' क्या कहे क्या हैं
ठहर जाएँ तो सागर हैं
बरस जाएँ तो शबनम हैं
---------------------------------------------------
ना हों बंदिशें कोई इश्क़ के बाज़ारों में
कोई माशूक ना होगा
'निर्जन' फ़िर भी फ़नाह होगा
---------------------------------------------------
सुबहें हसीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद
यामिनी रंगीन हो गईं तुझसे मिलने के बाद
हर शय में एक नया रंग है अब 'निर्जन' की
ज़िन्दगी से यारी हो गई तुझसे मिलने के बाद
---------------------------------------------------
आँखों ही आँखों में उफ्फ शरारत हो जाती है
दिल ही दिल में मीठी सी अदावत हो जाती है
कैसे भूल जाए 'निर्जन' तेरी रेशमी यादों को
अब तो सुबहों से ही तेरी आदत होती जाती है
---------------------------------------------------
फ़नाह हुई जगमगाती वो सितारों वाली रौशन रात
आ गई याद फिर से तेरी मदहोश नशीली वो बात
यूँ तो हो जाती है 'निर्जन' ख्वाबों में उनसे मुलाक़ात
बिन तेरे मुश्किल है होना एक भी दिन का आगाज़
---------------------------------------------------
उसके पूछने से बढ़ जाती है दिल की धड़कन
वो जब कहती है 'निर्जन' ये दिल किसका है
सोचता हूँ कुछ कहूँ या बस खामोश रहूँ ऐसे
मेरी आँखों में लिखे जवाब वो पढ़ लेगी जैसे
---------------------------------------------------
तेरी हर अदा पे अपने दिल को संभाला करता हूँ
तेरी जुदाई में शाम-ए-तन्हाई का प्याला भरता हूँ
एक तेरी जुस्तजू में ही 'निर्जन' आबाद है अब तक
जो तू नहीं तो कुछ नहीं ये जीवन बर्बाद है तब तक
---------------------------------------------------
तेरी ज़ुल्फ़ के साए में कुछ पल सो लेता था
सुकून पा लेता था 'निर्जन' दर्द खो लेता था
जो तू गयी तो जहाँ से दिल बेज़ार हो गया
बंदा मैं भी था काम का अब बेकार हो गया
---------------------------------------------------
ठण्ड के मौसम में उसकी शोखियाँ याद आती हैं
मचल जाता है 'निर्जन' जब अदाएं याद आती है
---------------------------------------------------
मेरे दिल की गहराइयों में तेरा प्यार दफ़न रहता है
जहाँ भी रहता है 'निर्जन' अब ओढ़े कफ़न रहता है
---------------------------------------------------
चांदनी मांगी तो रातों के अंधेरे घेर लेते हैं 'निर्जन'
मेरी तरहा कोई मर जाये तो मरना भूल जायेगा
---------------------------------------------------
इश्क़ बढ़ने नहीं पाता के हुस्न डांट देता है
अरे हमदम तू 'निर्जन' को कब तक आजमाएगा
---------------------------------------------------
हाथ भी छोड़ा तो कब, जब इश्क़ के हज को गए
बेवफ़ा 'निर्जन' को तूने, कहाँ लाकर धोखा दिया
---------------------------------------------------
दोस्ती कहते जिसे हैं मेल है एहसास का
ज़िन्दगी की सुहानी सुबह के आगाज़ का
रात भर सोचोगे तुम 'निर्जन' कहता यही
दोस्ती में,
दोस्त कहलाने की अगन अब जग ही गई
---------------------------------------------------
जो टूटे दिल तेरा 'निर्जन'
तो शब् भर रात रोती हैं
ये दुनिया तंग दिल इतनी
दिलों में कांटे चुभोती है
के ख़्वाबों में भी मिलता हूँ
मैं हमदम से भी इतरा कर
तेरी महफ़िल आकर तो
बड़ी तकलीफ होती है
बुधवार, दिसंबर 18, 2013
सदस्यता लें
संदेश (Atom)