गुरुवार, जनवरी 02, 2014

बना करते हैं

















तेरी ज़ुल्फ़ के साए में जब आशार बना करते हैं
बाखुदा अब्र बरस जाने के आसार बना करते हैं

तेरे आगोश में रहकर जब दीवाने बना करते हैं
अदीबों की सोहबत में अफ़साने बना करते हैं

तेरी नेकी की गौ़र से जब गुलिस्तां बना करते हैं
ख्व़ार सहराओं में गुमगश्ता सैलाब बना करते हैं

तेरी निगार-ए-निगाह से जब नगमें बना करते हैं
अदना मेरे जैसे नाचीज़ तब 'निर्जन' बना करते हैं

आशार : शेर, ग़ज़ल का हिस्सा
अब्र : मेघ, बादल
आगोश : आलिंगन
अदीबों : विद्वानों
सोहबत : साथ
अफ़साने : किस्से
नेकी : अच्छाई
गौ़र : गहरी सोच
गुलिस्तां : गुलाबों का बगीचा
ख्व़ार : उजाड़
गुमगश्ता :  भटकते हुए
निगार : प्रिय
निगाह : दृष्टि
नज़्म : कविता
नगमा : गीत
अदना : छोटा
नाचीज़ : तुच्छ

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर।
    सुप्रभात।
    नववर्ष में...
    स्वस्थ रहो प्रसन्न रहो।
    आपका दिन मंगलमय हो।

    जवाब देंहटाएं
  2. चारो शेर लाजवाब है ! आपने शब्दार्थ देकर बहुत अच्छा बोधगम्य बना दिया है |
    नया वर्ष २०१४ मंगलमय हो |सुख ,शांति ,स्वास्थ्यकर हो |कल्याणकारी हो |
    नई पोस्ट विचित्र प्रकृति
    नई पोस्ट नया वर्ष !

    जवाब देंहटाएं
  3. बढ़िया प्रस्तुति है आदरणीय-
    बधाई -

    जवाब देंहटाएं

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