इज़हार-ए-इश्क़ का आया मौसम
अरमां मचलते इस दिल में सनम
महफूज़ मुद्दत से रखा हमने इन्हें
आज क्यों ना कह दें तुमसे सनम
मालूम है फ़र्क पड़ता नहीं तुमको
हम जियें या मर जाएँ ऐसे ही सनम
हसरत दिल की दिल में ना रह जाये
यही सोच लिख बयां करते हैं सनम
तुम कब समझोगी ये अंदाज़-ए-बयां
हो ना जायें हम फनाह इश्क़ में सनम
सोचता 'निर्जन' थाम हाथ मेरा भी कभी
कहेगा हूँ मैं साथ तेरे यहाँ हर पल सनम
--- तुषार राज रस्तोगी ---
वाह ! लाजबाब प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: पिता
आपका धन्यवाद्
हटाएंbahut umda !
जवाब देंहटाएंNEW POST बनो धरती का हमराज !
आपका धन्यवाद्
हटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंप्यार की खुबसूरत अभिवयक्ति.......
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति प्रशमसनीय है। मेरे नरे नए पोस्ट सपनों की भी उम्र होती है, पर आपका इंजार रहेगा। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंwah sundar rachna
जवाब देंहटाएंअच्छी गजल है सुन्दरता से अपनी बात कही बधाई
जवाब देंहटाएंबेहद रूहानियत से सारे मिसरे बुने हैं,
जवाब देंहटाएंखूब खूब्बत्तर जज्बो में बहर मर गुने हैं।
बधाई भाई !